डिजि यात्रा फाउंडेशन को उम्मीद है कि भारत में करीब 80 प्रतिशत घरेलू हवाई यात्री साल 2028 तक चेहरे की पहचान पर आधारित उसकी एयरपोर्ट चेक-इन ऐप का उपयोग करने लगेंगे। यह उपयोग अभी रोजाना 30 से 35 प्रतिशत के बीच है। कंपनी के मुख्य कार्य अधिकारी सुरेश खड़कभवी ने बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में यह जानकारी दी है।
उन्होंने कहा, ‘शायद भाषा बाधा है। इसे दूर कर लिया जाएगा क्योंकि हम अपनी ऐप को विभिन्न भाषाओं के अनुकूल बना रहे हैं।’ वर्तमान में यह ऐप केवल अंग्रेजी में उपलब्ध है। अलबत्ता जुलाई तक पांच अतिरिक्त भाषाएं – हिंदी, बांग्ला, तमिल, मराठी और कन्नड़ पेश कर दी जाएंगी।
खड़कभवी ने कहा, ‘फिलहाल हम उनका परीक्षण कर रहे हैं। जुलाई तक उपयोगकर्ता छह भाषाओं में से कोई भी चुन सकते हैं।’ आगे चलकर इस ऐप का लक्ष्य संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त सभी 22 भारतीय भाषाओं का समर्थन करना है।
यह ऐप यात्रियों को भौतिक दस्तावेजों के बजाय चेहरे की पहचान का इस्तेमाल करते हुए अपनी पहचान सत्यापित करने की सुविधा देती है। वर्तमान में यह ऐप नामांकन के लिए केवल ‘आधार’ को ही स्वीकार करती है। इसमें बदलाव होने वाला है। इसमें जल्द ही ड्राइविंग लाइसेंस को जोड़ दिया जाएगा। इस पर काम चल रहा है। डिजि यात्रा की सुविधा अभी 24 हवाईअड्डों पर है जिसे अगले मार्च तक 41 हवाईअड्डों तक कर दिया जाएगा।
उन्होंने कहा, ‘अभी आप अपने ड्राइविंग लाइसेंस का इस्तेमाल करके डिजि यात्रा पर नामांकन नहीं कर सकते हैं। हम इसके लिए उपयोगकर्ता स्वीकृति परीक्षण (यूएटी) की व्यवस्था कर रहे हैं। हम यह भी जोड़ रहे हैं, एक महीने में आप न केवल ‘आधार कार्ड’ के आधार पर, बल्कि अपने ड्राइविंग लाइसेंस के आधार पर भी नामांकन कर पाएंगे।’
उन्होंने कहा कि वर्तमान में डिजि यात्रा 24 हवाई अड्डों पर परिचालन में है और मार्च 2026 तक इसका विस्तार 41 हवाई अड्डों तक करने की योजना है। उन्होंने कहा, ‘वर्तमान में प्रतिदिन सभी घरेलू यात्रियों में से 30 से 35 प्रतिशत यात्री डिजि यात्रा ऐप का उपयोग कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य साल 2028 तक इस संख्या को बढ़ाकर 70 से 80 प्रतिशत तक ले जाना है।’
फाउंडेशन इस ऐप के अंतरराष्ट्रीय उपयोग के लिए प्रायोगिक परीक्षण की भी योजना बना रहा है। खड़कभवी ने कहा, ‘हम वास्तव में अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन संघ (आईएटीए) की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) को लक्ष्य बना रहे थे, जो 1 जून से 3 जून के बीच दिल्ली में हुई थी। हम उस समय तक कम से कम एक पीओसी (प्रुफ ऑफ कॉन्सेप्ट – किसी परियोजना की व्यावहारिकता के समर्थन में साक्ष्य जुटाने की प्रक्रिया) करना चाहते थे। अलबत्ता, हम ऐसा नहीं कर पाए।’
इस प्रायोगिक परीक्षण में भारत के भीतर अक्सर यात्रा करने वाले विदेशी प्रवासियों के लिए ई-पासपोर्ट पर आधारित क्रेडेंशियल सत्यापन शामिल होगा। अगर यह परीक्षण कामयाब रहता है, तो यह अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर भी डिजि यात्रा के उपयोग का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।