सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) महिला मतदाताओं से राजनीतिक संपर्क साधने के लिए एक वर्ष लंबा व्यापक अभियान शुरू करना चाहती है। खबरों के अनुसार इस साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव और 2024 में लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा यह अभियान शुरू करने पर विचार कर रही है।
इस अभियान का मकसद उन लाखों महिला मतदाताओं से संपर्क साधना है जो सरकार की योजनाओं की लाभार्थी रह चुकी हैं। इस व्यापक चुनावी अभियान के तहत भाजपा की महिला कार्यकर्ता इन महिलाओं के साथ सेल्फी लेंगी और मौजूदा सरकार के तहत उनके जीवन में आए बदलावों पर बात करेंगी। उपयुक्त हैशटैग के साथ ये उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर लगाई जाएंगी।
यह कहा जा सकता है कि सरकार के लिए आगामी 8 मार्च को महिला दिवस के अवसर पर यह व्यापक अभियान शुरू करने का और कोई बेहतर मौका नहीं हो सकता है। मगर मूल प्रश्न तो पूछा जाना शेष है। एक मतदाता के रूप में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा रिझाए जाने के अलावा महिलाओं की आज क्या अहमियत और स्थिति है, खासकर तब जब यह दशक भारत के दशक के रूप में मनाया जा रहा है?
आइए, कुछ आंकड़ों पर विचार करते हैं। केंद्रीय मंत्रिपरिषद में 28 कैबिनेट मंत्री हैं जिनमें केवल दो महिलाएं- निर्मला सीतारमण (वित्त मंत्री) और स्मृति इरानी (महिला एवं बाल विकास एवं अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री)- हैं। इस तरह, कैबिनेट स्तर के मंत्रियों में महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र सात प्रतिशत है।
47 राज्य मंत्रियों में केवल नौ महिलाएं हैं, जो मंत्रियों की कुल संख्या का महज पांचवां हिस्सा है। स्वतंत्र प्रभार वाले दो राज्य मंत्री भी हैं मगर वे दोनों पुरुष हैं। मंत्रिपरिषद के कुल 77 सदस्यों में 11 महिलाएं हैं। यह संख्या मंत्रिपरिषद के कुल मंत्रियों की संख्या का 14.2 प्रतिशत है।
भारत में कई महिलाएं सिविल सर्विस परीक्षा में शीर्ष स्थान पर रह चुकी हैं और अक्सर विज्ञापनों और कोचिंग संस्थानों के बैनरों का गौरव बढ़ाती हैं मगर अब तक कोई महिला अफसरशाही में सर्वोच्च पद कैबिनेट सचिव पर नहीं पहुंच पाई हैं। अब तक देश में 32 कैबिनेट सचिव हुए हैं। एन आर पिल्लई देश के पहले कैबिनेट सचिव थे जिनकी नियुक्ति 1970 में हुई थी।
अब तक कोई महिला प्रधानमंत्री की प्रमुख सचिव नियुक्त नहीं हुई है। 1971 में पी एन हक्सर सहित देश में अब तक 13 प्रमुख सचिव नियुक्त हो चुके हैं। इसी तरह, देश में कोई महिला अब तक रक्षा सचिव, वित्त सचिव या गृह सचिव नहीं बनी है। हालांकि, विदेश मंत्रालय में तीन महिलाएं शीर्ष पदों पर रही हैं। इनमें चोकिला अय्यर (2001), निरुपमा राव (2009) और सुजाता सिंह (2013) शामिल हैं। ये तीनों मंत्रालय में शीर्ष पद पर पहुंची थीं तो उस समय क्रमशः जसवंत सिंह, एस एम कृष्णा और सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थे।
मौजूदा सरकार में केंद्रीय मंत्रालयों में 93 सचिवों में 16 महिलाएं हैं। इनमें राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री कार्यालय भी शामिल हैं। कुल मिलाकर सचिवों की कुल संख्या का वे 17.2 प्रतिशत हैं और उनका पोर्टफोलियो भी थोड़ा ‘कम रुतबे वाला’ समझा जाता हैं। मुख्यमंत्रियों की बात करें तो इस समय केवल एक महिला ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल) इस पद पर है।
इस समय देश के सभी राज्यों को मिलाकर 32 मुख्य सचिव हैं। इनमें पांच महिलाएं हैं जिनमें कर्नाटक में वंदिता शर्मा, मेघालय में आर वी सुचियांग, मिजोरम में रेणु शर्मा, राजस्थान में उषा शर्मा और तेलंगाना में ए शांति कुमारी शामिल हैं। इस तरह, जितने मुख्य सचिव हैं उनमें 15.6 प्रतिशत महिलाएं हैं जो मुख्यतः देश के दक्षिणी एवं पूर्वोत्तर राज्यों में हैं।
संसद सदस्यों की बात करें तो निचले सदन लोकसभा में कुल 542 सदस्यों में 78 महिलाएं (14.3 प्रतिशत) हैं। ऊपरी सदन राज्यसभा के 224 सदस्यों में 24 महिलाएं (10.7 प्रतिशत) हैं। देश की राष्ट्रपति भी इस समय एक महिला है और प्रतिभा पाटिल के बाद देश में दूसरी महिला सर्वोच्च पद पर पहुंची है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की चेयरपर्सन भी महिला माधवी बुच पुरी हैं। इससे पहले देश के किसी दूसरे नियामक की कमान महिला के पास नहीं रही थी।
भारत में कंपनी जगत में भी स्थिति बहुत अलग नहीं है। शीर्ष कंपनियों में उच्च पदों पर महिलाओं की मौजूदगी अक्सर नहीं दिखती है। उदाहरण के लिए विविध कारोबारों में मौजूदगी रखने वाली देश के एक शीर्ष समूह की किसी भी कंपनी में महिला मुख्य कार्याधिकारी नहीं है।
नियमानुसार निदेशकमंडल में कम से कम एक महिला की मौजूदगी सुनिश्चित करना भी कई कंपनियों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं लग रही है। वैश्विक सलाहकार एवं लेखा कंपनी ईवाई ने ‘डायवर्सिटी इन द बोर्डरूमः प्रोग्रेस ऐंड द वे फॉरवर्ड’ शीर्षक नाम से पिछले साल अपनी एक रिपोर्ट में भारतीय कंपनियों के निदेशकमंडल में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर कुछ आंकड़े सामने रखे।
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में निदेशकमंडल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 2013 में 6 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 18 प्रतिशत हो गया। ईवाई ने अपनी रिपोर्ट में उन बातों की भी चर्चा की जिन पर कंपनियों को महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए विचार करना चाहिए।
मगर केवल महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने से कुछ नहीं होगा। कंपनी संचालन नियमों के तहत किसी कंपनी के निदेशकमंडल में एक महिला निदेशक की मौजूदगी अपनी जगह ठीक है मगर प्रतिभाशाली महिलाओं को, जहां जरूरत है, वहां नेतृत्व करने वाले पदों पर पहुंचने का अवसर देना दूसरी बात है। जैसा कि ईवाई की रिपोर्ट में कहा गया है कि निफ्टी 500 में शामिल कंपनियों में 95 प्रतिशत के निदेशकमंडल में एक महिला है लेकिन 5 प्रतिशत से भी कम कंपनियों में महिला चेयरपर्सन हैं।
कोविड महामारी के बाद बदले माहौल में मृदु शक्ति (सॉफ्ट पावर) का महत्त्व बढ़ रहा है। कारोबारी प्रतिष्ठानों और सरकार को इस बदलाव को अच्छी तरह समझना चाहिए। महिलाओं को मृदु शक्ति समझना और उन्हें हल्की-फुल्की जिम्मेदारी देने भर से काम नहीं चलेगा।