आमतौर पर केंद्रीय बजट के पहले इस स्तंभ में हम यह चर्चा करते थे कि अगले वित्त वर्ष में सरकार की संभावित उधारी क्या हो सकती है और बॉन्ड प्रतिफल पर इसका क्या असर हो सकता है। परंतु इस बार हम एक अन्य विषय पर बात करेंगे। इसकी प्रेरणा है वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का हालिया वक्तव्य जिसमें उन्होंने कहा है कि वह मध्य वर्ग से आती हैं, खुद को मध्य वर्ग का मानती हैं ताकि वह उन्हें समझ सकें। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने सालाना 5 लाख रुपये तक वेतन वाले मध्य वर्ग पर अपने किसी बजट में नया कर नहीं लगाया। उनके इस वक्तव्य के बाद से ही मध्य वर्ग चर्चा में आ गया है।
मोटे तौर पर हर तीन में से एक भारतीय मध्य वर्ग में है। उसकी सालाना आय पांच लाख रुपये से 30 लाख रुपये के बीच है और वह वित्त वर्ष 2005 के 14 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 2021 में 31 फीसदी हो गई है। पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकॉनमी द्वारा किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक आजादी की सौवीं वर्षगांठ यानी वित्त वर्ष 2047 तक इसके बढ़कर 63 फीसदी हो जाने की उम्मीद है। 140 करोड़ लोगों की आबादी में से केवल 2.56 प्रतिशत आय कर चुकाते हैं। इनमें से अधिकांश वेतन भोगी मध्य वर्ग के लोग हैं।
फरवरी 2014 में जब मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने कहा था कि वह विदेशों में जमा काला धन लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा था कि अगर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आती है तो वह एक कार्य बल का गठन करेंगे और कानून बदलकर काले धन को तोहफे के रूप में ईमानदार करदाताओं में बांट देंगे। उन्होंने आम चुनाव से पहले चाय पे चर्चा के एक आयोजन में कहा था कि वापस लाई गई राशि में से 10 फीसदी वेतनभोगियों और ईमानदार करदाताओं को भेंट की जाएगी। क्या बजट में वेतनभोगियों के लिए कुछ बेहतर होगा?
आइए नजर डालते हैं कर और रियायतों के मौजूदा ढांचे पर। मैं पुरानी कर व्यवस्था को संदर्भ के रूप में इस्तेमाल कर रहा हूं क्योंकि अधिकांश वेतनभोगियों ने उसी का चयन किया है क्योंकि उसमें रियायतें उपलब्ध हैं:
- ढाई लाख रुपये तक के वेतन पर कोई आय कर नहीं है।
- 2.5 लाख रुपये से 5 लाख रुपये के बीच वेतन होने पर 2.5 लाख रुपये से ऊपर की राशि पर 5 फीसदी कर लगता है यानी करीब 12,500 रुपये। परंतु कर्मचारियों की यह श्रेणी आय कर अधिनियम के अनुच्छेद 87ए के तहत 12,500 रुपये तक की रियायत पा सकती है।
- 5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये के बीच के वेतन पर 12,500 रुपये के अलावा 5 लाख रुपये से अधिक के वेतन पर 20 फीसदी कर लगता है। यानी 10 लाख रुपये सालाना वेतन वालों केलिए 1,12,500 रुपये कर देय होता है।
- 10 लाख रुपये से अधिक वेतन होने पर कर देनदारी 1,12,500 रुपये के अलावा 10 लाख से ऊपर की राशि पर 30 फीसदी की दर से होता है।
वर्तमान में 5 लाख रुपये सालाना आय वाले कर्मचारी को कोई कर नहीं देना होता, 10 लाख रुपये तक की आय पर कर दर 11 फीसदी, 25 लाख रुपये तक की आय पर 23 फीसदी, 50 लाख रुपये पर 27 फीसदी और एक करोड़ रुपये पर 32 फीसदी कर चुकाना होता है। जाहिर है ये स्लैब केवल वेतन के लिए नहीं हैं बल्कि इसमें अन्य स्रोतों से होने वाली आय शामिल है। इस पर चार फीसदी अधिभार लगता है जिसमें स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर शामिल हैं।
50 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये के बीच की आय वाले लोगों के लिए यह 10 फीसदी और एक करोड़ रुपये से दो करोड़ रुपये तक की आय वालों के लिए यह 15 फीसदी है। विभिन्न प्रकार के निवेश के लिए उपलब्ध रियायतें कौन सी हैं? 80 सी, 80सीसीसी और 80 सीसीडी के तहत कुल रियायत 1.5 लाख रुपये की है जिसमें जीवन बीमा का प्रीमियम, भविष्य निधि, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र आदि शामिल हैं। इसमें किसी आवास ऋण पर चुकाया गया मूलधन भी शामिल है।
अन्य रियायतें भी हैं मसलन 80 सीसीडी (1बी) के तहत नैशनल पेंशन स्कीम में भुगतान पर 50,000 रुपये तक की रियायत। इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों के लिए 14 फीसदी वेतन और नियोक्ता द्वारा नैशनल पेंशन स्कीम में 10 फीसदी योगदान को आयकर से छूट रहती है। अन्य रियायतों की बात करें तो जिस घर में स्वयं रह रहे हैं उसके आवास ऋण पर 1.5 लाख रुपये के मूल धन संबंधी रियायत के अलावा ब्याज पर दो लाख रुपये तक की कर छूट है। स्वास्थ्य बीमा और जांच पर 25,000 रुपये तक की राशि को छूट हासिल है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह राशि दोगुनी है। क्या इलाज और बीमा की बढ़ती लागत के बीच यह राशि पर्याप्त है?
किराये के मामले में चुकाए जाने वाले वास्तविक किराये को मूल वेतन में 10 फीसदी घटाकर रियायत हासिल है। जबकि अब किराया आसमान छू रहा है। कई मामलों में तो किराये के एक हिस्से की भरपाई वेतन के करयोग्य हिस्से से की जाती है। ऐसे में महानगरों की परिभाषा को नए सिरे से तय करने का समय आ गया है।
बच्चों की शिक्षा के लिए वेतनभोगी व्यक्ति को दो बच्चों तक प्रति माह अधिकतम 100 रुपये का भत्ता मिलता है। हॉस्टल व्यय 300 रुपये है। 1997 में तय इस सीमा को कभी संशोधित नहीं किया गया। यह सब 80सी के तहत आता है और अक्सर भविष्य निधि या आवास ऋण के मूलधन जैसे किसी एक मद में ही खप जाता है। 2018 के बजट में चिकित्सा व्यय के रूप में 15,000 रुपये की राशि मानक कटौती के रूप में वापस लौटाने की व्यवस्था की गई। जबकि परिवहन के लिए यह राशि 19,200 रुपये रखी गई। अगले वर्ष कुल सीमा को बढ़ाकर 40,000 रुपये तथा उसके अगले वर्ष 50,000 रुपये कर दिया गया। यह वेतन से अलग है। क्या जीवन स्तर पर होने वाला व्यय समय के साथ नहीं बढ़ता?
कर्मचारियों को यात्रा अवकाश भत्ता यानी एलटीए के रूप में भी रियायत मिलती है जो वास्तविक यात्रा लागत के बराबर होती है तथा इसमें स्थानीय यात्रा व्यय शामिल नहीं होता। न ही खाने पीने या होटल का बिल इसमें शामिल किया जा सकता है। अगर किसी कर्मचारी के पास कार है तो उसे रखरखाव और चालक समेत 2,700 रुपये और 1600 सीसी से अधिक क्षमता वाले इंजन पर 3,300 रुपये प्रति माह की रियायत मिलती है। आज यह एक मजाक से अधिक भला क्या है?
खाने का कूपन तो और बड़ा मजाक है। कर्मचारियों को 22 दिनों तक रोज 50 रुपये का खाने का वाउचर दिया जा सकता है वह भी दिन में दो बार। इस कीमत पर तो आप संसद की कैंटीन में भी नहीं खा सकते। सब्सिडी समाप्त होने के बाद संसद में खाना महंगा हो गया है।
कर स्लैब उचित हो सकते हैं लेकिन कई रियायतें बहुत पुरानी हो चुकी हैं। अब वक्त आ गया है कि उन पर पुनर्विचार किया जाए और मुद्रास्फीति की लागत को ध्यान में रखा जाए। इसका एक तरीका यह है कि सभी रियायतें समाप्त कर दी जाएं और कर मुक्त आय के लिए ऊंची दर तय की जाए। मध्य वर्ग की चिंताओं को हल करने से बचत-जीडीपी अनुपात पर सकारात्मक असर होगा। फिलहाल यह 19 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर है। यह खपत और वृद्धि को गति देने में भी अहम भूमिका निभाएगा।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)