भारतीय बैंकिंग जगत की शीर्ष हस्तियों में शामिल के वी कामत ने कुछ दिनों पहले कहा था कि भारतीय बैंकिंग उद्योग पिछले 50 वर्षों में परिसंपत्ति गुणवत्ता एवं पंूजी की मात्रा के लिहाज से बेहतरीन स्थिति में है। कई दूसरे लोग एवं रेटिंग एजेंसियों का भी यही आकलन है। फरवरी में इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च ने वित्त वर्ष 2023 के लिए देश के बैंकिंग क्षेत्र के परिदृश्य में संशोधन किया। रेटिंग एजेंसी ने कहा कि पिछले कई दशकों में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र इस समय सर्वाधिक अच्छी स्थिति में है।
एजेंसी ने कहा कि वित्त वर्ष 2020 से बैंकिंग क्षेत्र में शुरू हुआ सुधार का सिलसिला अब भी जारी है। इस रेटिंग एजेंसी के अनुसार अप्रैल की शुरुआत से मुख्य वित्तीय मानदंडों में और सुधार होगा। वास्तव में नकदी की उपलब्धता कम होगी और ब्याज दरें बढ़ेंगी जिनसे बैंकों के ट्रेजरी लाभ पर असर होगा मगर ब्याज दरें बढऩे से इस नुकसान की भरपाई हो जाएगी। रेटिंग एजेंसी ने कहा कि निगमित ऋण बैंकों का कारोबार बढ़ाएंगे और वे इस मामले में खुदरा ऋणों की जगह ले लेंगे।
वैश्विक रेटिंग एजेंसियों का क्या कहना है? मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने भारतीय बैंकिंग क्षेत्र का परिदृश्य संशोधित कर ‘नकारात्मक’ से ‘स्थिर’ कर दिया है। इस रेटिंग एजेंसी का मानना है कि आर्थिक गतिविधियों में तेजी से ऋण आवंटन में 10-13 प्रतिशत इजाफा हो सकता है और परिसंपत्ति गुणवत्ता में भी सुधार होगा। इसके अनुसार बैंकों की पूंजी कोविड-19 महामारी से पूर्व की स्थिति से भी अधिक हो जाएगी। एजेंसी के अनुसार इन सभी अनुकूल बातों से बैंकों का मुनाफा बढ़ेगा।
एसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने नवंबर 2021 की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारतीय बैंकिंग क्षेत्र एक बार फर मुनाफे में आ गया है और उनकी स्थिति पूंजी के लिहाज से मजबूत हो गई है। एक अन्य रेंटिंग एजेंसी एसऐंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलीजेंस (वित्तीय सूचना सेवा इकाई) का कहना है कि भारत के बैंकिंग उद्योग में पर्याप्त पूंजी है और फंसे ऋणों में खासी कमी आई है। इस एजेंसी ने आरबीआई के एक सर्वेक्षण का हवाला दिया है जो निवेशकों में बढ़ते आत्मविश्वास और आने वाली तिमाहियों में उत्पादन में तेजी आने का संकेत देता है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जून 2020 में परिसंपत्तियों पर प्रतिफल और सरकार नियंत्रित बैंकों की पूंजी में सुधार हुआ है। इससे पहले पिछले चार वर्षों से मुनाफा अनुपात नकारात्मक रहा था। इन सभी बातों से लगता है कि बैंकिंग क्षेत्र के लिए अब संभावनाएं कई गुना मजबूत लग रही हैं। सभी कह रहे हैं कि भारतीय बैंकिंग उद्योग इतनी अच्छी हालत में कभी नहीं था। क्या वाकई ऐसा है?
मगर भारतीय बैंकिंग उद्योग को लेकर मेरी राय कुछ अलग है। इसमें कोई शक नहीं कि कुछ बैंकों को छोड़कर बैंकिंग प्रणाली की स्थिति में खासा सुधार हुआ है। कुछ ऐसे बैंक जरूर हैं जिन्होंने सूक्ष्म ऋण खंड में अधिक ऋण आवंटित किए हैं मगर फंसी परिसंपत्तियां नियंत्रण में हैं और पूंजी की भी कोई कमी नहीं है। इसके साथ ही ऋण की मांग में भी इजाफा हो रहा है। बैंकों के पास काफी नकदी है इसलिए वे ऋण देना चाह रहे हैं। मगर समस्या यहीं खड़ी हो जाती है। चालू वित्त वर्ष समाप्त होने ही वाला है और दौरान कई बैंक कंपनियों को बंद लिफाफा भेज रहे हैं। ये ऐसी कंपनियां हैं जो अपना मौजूदा ऋण किसी दूसरे बैंक या वित्तीय संस्थान में सस्ती ब्याज दरों पर स्थानांतरित कराना चाहती हैं।
हाल में ही सार्वजनिक क्षेत्र की एक इकाई ने 10 वर्ष की परिपक्वता अवधि वाले बॉन्ड पर मिलने वाले प्रतिफल की तुलना में करीब 1.5 प्रतिशत अंक कम दर पर 15 वर्ष के लिए रकम जुटाई है। एक दूसरी इकाई ने 4 प्रतिशत से कुछ अधिक दर पर एक वर्ष के लिए रकम जुटाई है। कुछ बड़ी ऋण परियोजनाएं महंगे ऋण हटाकर दीर्घ अवधि के लिए ऋण ले रही हैं। वे करीब 7 प्रतिशत ब्याज दर पर 15 वर्षों के लिए ऋण ले रही हैं। बैंक ऐसे अवसरों पर दांव लगाने के लिए तैयार हैं क्योंकि निर्माण कार्य पूरा होने की वजह से नकदी प्रवाह में किसी तरह की बाधा आने की आशंका नहीं है।
इस समय भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की रीपो रेट 4 प्रतिशत और रिवर्स रीपो रेट 3.5 प्रतिशत हैं। मगर बैंक वैरिएबल रेट रविर्स रीपो नीलामी के तहत करीब 4 प्रतिशत ब्याज कमा सकते हैं। 4 प्रतिशत से अधिक ब्याज की पेशकश करने वाला कोई भी ऋण बैंकों को स्वीकार्य है।
बैंकों से ऋण लेने वाली कंपनियां सस्ती दरों पर ऋण दूसरी जगह स्थानांतरित कर रही हैं। बैंकों के पास ऋण पर ब्याज के मसले पर मोल-भाव में शिरकत करने के आलवा कोई दूसरा विकल्प नहीं हैं। पहले कम दरों की पेशकश कर निजी बैंक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से ग्राहक छीन लेते थे मगर अब स्थिति बदल चुकी है और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बीच भी एक दूसरे के ग्राहक अपनी ओर खींचने की शुरुआत हो चुकी है। पहले ऐसी होड़ नहीं दिखी थी।
बैंकिंग उद्योग को लेक इस नए उत्साह का नतीजा क्या होगा? बचतकर्ताओं को नुकसान हो रहा है क्योंकि कर कटौती के बाद महंगाई को मात देने के लिए पर्याप्त ब्याज वे नहीं अर्जित कर पाते हैं। बैंकों को भी नुकसान हो रहा है क्योंकि उनका ब्याज मार्जिन कमजोर हो रहा है। केवल उधार लेने वालों को लाभ मिल रहा है। मगर यह भी सच है कि जब किसी को सस्ती रकम मिलती है तो जोखिम लेने की उसकी क्षमता भी बढ़ जाती है। वे उत्साह में आकर वे निवेश के लिहाज से कमजोर परियोजनाओं में निवेश कर बैठते हैं जिन्हें लेकर उन्हें पछतावा होता है। सस्ती रकम बेजा इस्तेमाल का भी कारण बनती है। क्या हम बैंकिंग उद्योग को लेकर समय से पहले ही अति उत्साह का शिकार हो गए हैं?