भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के एक अध्ययन से पता चलता है कि शेयर बाजार में शेयरों की खरीद-फरोख्त (ट्रेडिंग) करने वाले 10 में से 9 लोगों ने वर्ष 2021-2022 (वित्त वर्ष 2022) और वित्त वर्ष 2024 के बीच तीन वर्षों के दौरान शेयर बाजार के वायदा एवं विकल्प (एफऐंडओ) सेगमेंट में पैसा गंवा दिया।
एक अनुमान के मुताबिक 1.1 करोड़ खुदरा निवेशकों ने सामूहिक तौर पर तीन वर्षों में 18.1 लाख करोड़ रुपये गंवा दिए (ट्रेडिंग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को औसतन 2 लाख रुपये का नुकसान हुआ) और इसके साथ ही केवल वित्त वर्ष 2024 में ही 75,000 करोड़ रुपये का शुद्ध नुकसान हुआ है। इस अध्ययन में पूंजी बाजार नियामक सेबी की जनवरी 2023 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि 89 प्रतिशत निजी एफऐंडओ कारोबारियों ने वित्त वर्ष 2022 में पैसा गंवाया था।
लगातार कई वर्षों के नुकसान के बावजूद, घाटा सहने वाले तीन-चौथाई से अधिक शेयर बाजार कारोबारियों ने अपनी एफऐंडओ गतिविधि जारी रखी है। एफऐंडओ में दिलचस्पी दिखाने वाले खुदरा व्यापारियों की संख्या वित्त वर्ष 2022 के 51 लाख से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 96 लाख हो गई है। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है क्योंकि स्टॉक एक्सचेंज पर औसत दैनिक कारोबार एक साल पहले के करीब 360 लाख करोड़ रुपये की तुलना में सितंबर में रिकॉर्ड स्तर पर 540 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है।
वित्त वर्ष 2024 में, लगभग 73 लाख व्यक्तिगत कारोबारियों ने पैसा गंवाया, जिसमें ट्रांजैक्शन लागत सहित प्रति व्यक्ति औसतन 1.2 लाख रुपये का शुद्ध घाटा हुआ। केवल 7.2 प्रतिशत व्यक्तिगत एफऐंडओ कारोबारियों ने तीन साल की अवधि में मुनाफा बनाया। लगभग 1 प्रतिशत व्यक्तिगत कारोबारी, ट्रांजेक्शन लागत को समायोजित करने के बाद 1 लाख रुपये या उससे अधिक का लाभ कमाने में कामयाब रहे जबकि घाटा उठाने वाले 3.5 प्रतिशत कारोबारियों (लगभग 400,000 कारोबारी) को पिछले तीन वित्त वर्षों में औसतन 28 लाख रुपये का घाटा उठाना पड़ा।
अब सवाल यह है कि एफऐंडओ में निवेश करने वाले कारोबारी आखिर कहां से आते हैं? उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि क्या है? दिलचस्प बात यह है कि 75 प्रतिशत से अधिक इन निजी कारोबारियों ने 5 लाख रुपये से कम की वार्षिक आमदनी घोषित की थी। सेबी के अध्ययन में इस बात की ओर इशारा किया गया, ‘एफऐंडओ सेगमेंट में निजी कारोबारियों की भागीदारी बढ़ने से उत्पाद की उपयुक्तता और निजी निवेशकों की सुरक्षा को लेकर चर्चा हो रही है।’
इसके अलावा बहस का मुद्दा यह भी है कि इस पैसे का स्रोत कहां है। हाल ही में बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई सम्मेलन में, पूर्व बैंकर के वी कामत ने कहा कि बचत का वित्तीयकरण, प्रौद्योगिकी की वजह से मुमकिन हुआ है लेकिन यह केवल एक पहलू है। उनका कहना है, ‘हमें इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर विशेष रूप से इस बारे में बात कर रहे हैं कि बाजारों में परिचालन के जोखिम को देखते हुए सावधानी की दरकार है लेकिन वहीं दूसरी तरफ कम जानकारी वाले लोग भी एफऐंडओ सेगमेंट में कारोबार के लिए आ रहे हैं।’
कामत ने कहा, ‘एफऐंडओ सेगमेंट में पैसा गंवाने वाले निवेशकों का ताल्लुक वास्तव में असुरक्षित ऋण बाजार से है। इसलिए मुझे लगता है कि आरबीआई ने असुरक्षित ऋण देने और ऋण वाली पूंजी के उपयोग पर सावधानी बरतने की सलाह दी है। मुझे लगता है कि जल्दबाजी में उठाए गए कदम सही नहीं हैं इसलिए दोनों नियामक चेतावनी दे रहे हैं।’
इसी सम्मेलन में, जब पूछा गया कि क्या बैंक ऋण का एक हिस्सा, शेयर बाजार में जा रहा है तब आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि इसको लेकर ‘कोई ठोस डेटा’ उनके पास नहीं है। उन्होंने कहा कि आरबीआई ने एक त्वरित नमूना सर्वेक्षण जरूर कराया था ताकि अंदाजा मिल सके कि इस क्षेत्र में क्या हो रहा है और इससे जुड़ी व्यापक समझ बन सके। हालांकि उन्होंने सर्वेक्षण के परिणाम के बारे में कोई जानकारी नहीं दी।
उन्होंने कहा, ‘यह बताना बेहद मुश्किल है कि कितना पैसा बाजारों में जा रहा है लेकिन हमें एक व्यापक अंदाजा मिला है।’आरबीआई ने आईपीओ फाइनैंसिंग और शेयरों के एवज में ऋण लेने के मानदंड सख्त कर दिए हैं। समग्र बैंकिंग क्षेत्र के लिहाज से दास को फिलहाल कोई बड़ा जोखिम नहीं दिख रहा है जिससे प्रणालीगत स्तर पर अस्थिरता पैदा हो सके लेकिन उन्होंने बैंकों से असुरक्षित ऋणों के इस्तेमाल की निगरानी करने के लिए कहा है।
पिछले कुछ वर्षों में बैंक ऋण पर नजर डालते हैं। 20 सितंबर तक, कुल बैंक ऋण 171.25 लाख करोड़ रुपये था जो पिछले एक वर्ष में 13 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। पिछले वर्षों के दौरान 23 सितंबर, 2022 और 22 सितंबर, 2023 के बीच, यह वृद्धि 20 प्रतिशत तक थी।
पिछले एक वर्ष में, कृषि और संबद्ध गतिविधियों को दिए गए ऋण में 16.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, उद्योग (सूक्ष्म, लघु, मध्यम और बड़े) में 8.9 प्रतिशत, सेवाओं में 13.7 प्रतिशत और निजी ऋणों में 13.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष के तुलनात्मक आंकड़े क्रमशः 16.7 प्रतिशत, 6.5 प्रतिशत, 25.4 प्रतिशत और 30 प्रतिशत थे। उद्योग के लिए ऋण का स्तर बढ़ गया है लेकिन कृषि क्षेत्र के लिए यह लगभग स्थिर है जबकि निजी ऋणों और सेवाओं को दिए गए ऋण में तेज गिरावट आई है।
अब हम अपना ध्यान, ऋण से जुड़े कुछ क्षेत्रों पर डालते हैं। उपभोक्ता टिकाऊ सामान खरीदने के लिए व्यक्ति ऋण की वृद्धि धीमी हो गई है जो 9.8 प्रतिशत से घटकर 8.6 प्रतिशत हो गई है। सावधि जमाओं पर लिए जाने वाले ऋण में भी कमी आई है और यह 18.7 प्रतिशत से कम होकर 9.4 प्रतिशत हो गया है। वहीं अन्य निजी ऋणों में तेजी से गिरावट आई है और यह 26.3 प्रतिशत से घटकर 11.4 प्रतिशत हो गया है। वहीं दूसरी ओर ऋण और शेयरों के मुकाबले ऋण, 5 प्रतिशत से बढ़कर 22.9 प्रतिशत हो गया है और सोने के आभूषणों पर ऋण 14.6 प्रतिशत से बढ़कर 51 प्रतिशत हो गया है।
ये सभी आंकड़े विभिन्न क्षेत्रों में बैंक की पूंजी प्रवाह को दर्शाते हैं। गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियां (एनबीएफसी) भी इन क्षेत्रों को ऋण देती हैं। वे बड़े पैमाने पर असुरक्षित क्षेत्र में मौजूद हैं लेकिन इन आंकड़ों में उनका जोखिम शामिल नहीं है।
ये आंकड़े हमें क्या बताते हैं?
आरबीआई ने बैंकिंग उद्योग को असुरक्षित ऋण के जोखिम को लेकर काफी हद तक संवेदनशील बनाने की कोशिश की है। सोने के एवज में ऋण लेने के रुझान में नाटकीय तरीके से बढ़ोतरी हुई हैं लेकिन जहां तक निजी ऋण के अन्य सेगमेंट की बात आती है विशेष रूप से असुरक्षित ऋण की इस वृद्धि में पिछले एक वर्ष में कमी आई है। एनबीएफसी क्षेत्र के बैंक ऋण की वृद्धि में भी तेजी से कमी आई है। आवास और वाहन ऋण की वृद्धि में भी कमी आई है लेकिन यह एक अलग कहानी है।