facebookmetapixel
एफपीआई ने किया आईटी और वित्त सेक्टर से पलायन, ऑटो सेक्टर में बढ़ी रौनकजिम में वर्कआउट के दौरान चोट, जानें हेल्थ पॉलिसी क्या कवर करती है और क्या नहींGST कटौती, दमदार GDP ग्रोथ के बावजूद क्यों नहीं दौड़ रहा बाजार? हाई वैल्यूएशन या कोई और है टेंशनउच्च विनिर्माण लागत सुधारों और व्यापार समझौतों से भारत के लाभ को कम कर सकती हैEditorial: बारिश से संकट — शहरों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए तत्काल योजनाओं की आवश्यकताGST 2.0 उपभोग को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन गहरी कमजोरियों को दूर करने में कोई मदद नहीं करेगागुरु बढ़े, शिष्य घटे: शिक्षा व्यवस्था में बदला परिदृश्य, शिक्षक 1 करोड़ पार, मगर छात्रों की संख्या 2 करोड़ घटीचीन से सीमा विवाद देश की सबसे बड़ी चुनौती, पाकिस्तान का छद्म युद्ध दूसरा खतरा: CDS अनिल चौहानखूब बरसा मॉनसून, खरीफ को मिला फायदा, लेकिन बाढ़-भूस्खलन से भारी तबाही; लाखों हेक्टेयर फसलें बरबादभारतीय प्रतिनिधिमंडल के ताइवान यात्रा से देश के चिप मिशन को मिलेगी बड़ी रफ्तार, निवेश पर होगी अहम चर्चा

सामयिक सवाल: प्रतिभा संकट के दौर में नौकरी का प्रस्ताव

भविष्य में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) के कारण कार्य संस्कृति में आने वाले बदलाव की आहट भी पूरे सम्मेलन के दौरान गूंजती दिखाई दी।

Last Updated- November 17, 2024 | 9:27 PM IST
Jobs Outlook: Recruitment expected to grow 7% in second half led by logistics, e-commerce लॉजिस्टिक, ई-कॉमर्स की अगुवाई में दूसरी छमाही में भर्तियां 7% बढ़ने की उम्मीद

हाल ही में मुंबई में बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा आयोजित बैंकिंग एवं वित्तीय सेवाओं से जुड़े सम्मेलन में प्रतिभाओं की कमी का मुद्दा प्रमुखता से उठा। कई सत्रों में विशेषज्ञों ने इस विषय पर चर्चा की। शीर्ष अधिकारियों और विशेषज्ञों ने इसे आज के दौर में उद्योगों के समक्ष खड़ी सबसे बड़ी चिंताओं में से एक बताया। भविष्य में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) के कारण कार्य संस्कृति में आने वाले बदलाव की आहट भी पूरे सम्मेलन के दौरान गूंजती दिखाई दी।

एआई अभी शुरुआती दौर में है, इसलिए नौकरी बाजार और रोजगार क्षेत्र पर इस प्रौद्योगिकी के प्रभाव अभी दूर भविष्य में ही दिखाई देंगे, लेकिन प्रतिभा संकट आज सभी क्षेत्रों और उद्योगों का सबसे ज्वलंत मुद्दा है। इसने कंपनियों को बुरी तरह प्रभावित किया है। किसी भी स्तर पर यदि एक इस्तीफा हो जाए तो कंपनी को वह इतनी बड़ी समस्या दिखती है, जितनी वास्तव में वह होती नहीं। सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि इन बदलते हालात का फायदा उन पेशेवरों को मिला है, जो दूसरे संस्थान अथवा एकदम भिन्न प्रकृति के उद्योग में बेहतर अवसरों की तलाश में हैं।

कुछ कर्मचारियों के लिए यह अपने ही संस्थान में तरक्की या वेतन बढ़वाने का सुनहरा अवसर बन कर आया है। जब कोई कर्मचारी इस विजयी भाव के साथ आकर कहता है कि उसे दूसरी कंपनी से नौकरी का प्रस्ताव मिला है तो इसका सीधा मतलब यह होता है कि वह वेतन-भत्ते, नौकरी की प्रकृति और जीवन-कार्य के बीच संतुलन में लचीलापन आदि को लेकर दो संस्थानों में तुलना करने की स्थिति में है।

विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से बातचीत में यह बात उभर कर आई है कि प्रतिभा संकट से जूझते नौकरी बाजार में सभी संस्थान कर्मचारी को अपने साथ बनाए रखने के लिए अक्सर सारे जतन करते हैं। भले ही वह कर्मचारी उस भूमिका के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प न हो। इसका एक कारण है। कर्मचारी को अपने साथ जोड़े रखने के प्रयास कंपनियां इसलिए करती हैं कि दूसरी कंपनी से पेशेवर को लाने में एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिसमें समय तो लगता ही है, पहले के मुकाबले अब यह काफी थकाऊ-उबाऊ भी प्रतीत होता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि बाजार में उपयुक्त प्रतिभाओं की कमी के बारे में नौकरी खोजने वालों को उन विशेषज्ञों से बहुत पहले जानकारी हो चुकी है, जो आज बड़े-बड़े सम्मेलनों में इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं। इस बारे में जानकारी होना पेशेवरों को साहस, आत्मविश्वास और ताकत देता है। यह साहस और आत्मविश्वास पहले के लोगों में दिखाई नहीं देता था।

पुराने जमाने के पेशेवर यह सब देख यही कहेंगे कि अब समय कितना बदल गया है। पहले कोई भी पेशेवर दूसरी कंपनी में नौकरी के लिए साक्षात्कार देने बहुत ही गुपचुप तरीके से जाता था। पूरी कोशिश की जाती थी कि किसी को (खास कर अपने बॉस या सहकर्मी) भी इस बारे में खबर न हो। इसके विपरीत आज का दौर यह है कि लोग दूसरी कंपनी में नौकरी का प्रस्ताव मिलने या साक्षात्कार के लिए बुलाए जाने की खबर को जानबूझ कर उड़ाते हैं। अब किसी पेशेवर में ऐसा कोई भय नहीं कि उसे दूसरी कंपनी में खड़ा देखा गया है। बल्कि इसे तो और अच्छा माना जा रहा है।

कर्मचारी चाहते हैं कि किसी तरह उनके दूसरी कंपनी में नौकरी तलाशने या नौकरी का प्रस्ताव मिलने की बात उनके मौजूदा बॉस तक पहुंच जाए, ताकि वह प्रतिभा पलायन होने से रोकने के लिए दूसरी कंपनी में मिलने वाले वेतन-भत्तों और सुविधाओं से बेहतर तरक्की या वेतन वृद्धि अपने यहां दिलाने का वादा करे। ऐसा होने पर पेशेवर उस कंपनी के साथ दोबारा सौदेबाजी की स्थिति में आ जाता है, जहां से उसे नई नौकरी का प्रस्ताव मिला है।

इस प्रकार वह नई कंपनी से मिलने वाले प्रस्ताव पर सहमत होगा अथवा इसके मुकाबले जहां पहले से काम कर रहा है, उस कंपनी द्वारा रखे गए नए और बेहतर पैकेज को स्वीकार कर वहीं रुक जाएगा, इसका कोई सीधा जवाब फिलहाल नहीं है। हां, यह स्पष्ट है कि अधिकांश मामलों में गेंद उम्मीदवार के पाले में ही होती है कि वह क्या निर्णय ले।

जो बात यहां से शुरू होती है कि ‘मैं साक्षात्कार के लिए आने को तैयार हूं’, वह कई सप्ताह की प्रक्रिया चलने के बाद इस बिंदु पर आकर भी समाप्त हो सकती है कि ‘मैं अब नौकरी बदलने का इच्छुक नहीं हूं’। कुछ क्षेत्रों में व्हाइट कॉलर पेशेवरों की इतनी भारी कमी क्यों पैदा हो गई है? इसका सही-सही कारण तलाशना तो बहुत मुश्किल है, लेकिन हाल ही में भर्ती फर्म माइकल पेज की एक रिपोर्ट में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है। विभिन्न उद्योगों के लगभग 3,000 वरिष्ठ अधिकारियों और पेशेवरों से प्रतिभा रुझान पर की गई बातचीत के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट में कुछ आंकड़े दिए गए हैं।

इस रिपोर्ट में इस ओर संकेत किया गया है कि भारत में 34 फीसदी संस्थान उपयुक्त प्रतिभाओं को खोजने और उन्हें अपने साथ लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यही नहीं, इनमें से एक तिहाई संस्थान अपने पुराने कर्मचारियों को साथ बनाए रखने के लिए जूझ रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अपनी मौजूदा नौकरी से खुश और संतुष्ट पेशेवरों में 94 फीसदी अपने लिए नई भूमिका की तलाश में हैं। इसलिए ऐसी धारणा है कि कर्मचारी को प्रतिस्पर्धी वेतन और कार्य-जीवन संतुलन, प्रबंधन के साथ संबंध, स्पष्ट प्रोन्नति नीति और पहचान आदि ऐसे महत्त्वपूर्ण कारक हैं, जो उन्हें कंपनी के साथ जुड़े रहने के लिए प्रेरित करते हैं।

पिछले साल गार्टनर एचआर ने किसी कर्मचारी के संस्थान के साथ बने रहने और अन्य कंपनी में नौकरी के प्रस्ताव को ठुकराने जैसे मुद्दों पर केंद्रित एक सर्वेक्षण किया था। इस सर्वेक्षण में वैश्विक स्तर पर 3,500 उम्मीदवारों की राय शामिल की गई। इसमें गार्टनर ने पाया कि लचीलापन (59 फीसदी), बेहतर कार्य-जीवन संतुलन (45 फीसदी) और उच्च वेतन (40 फीसदी) ऐसे कारक हैं, जिनके के आधार पर कोई पेशेवर पुरानी कंपनी के साथ बना रहता है अथवा दूसरी कंपनी का प्रस्ताव ठुकराता है।

वर्ष 2023 में किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई थी कि 50 फीसदी उत्तरदाताओं ने बताया कि उन्होंने नौकरी का प्रस्ताव स्वीकार करने के बाद कदम पीछे खींच लिए। इससे पहले के एक सर्वेक्षण में गार्टनर ने बताया था कि वर्ष 2022 में दूसरी कंपनी का प्रस्ताव स्वीकार करने के बाद फिर मना कर देने वाले पेशेवरों की संख्या 44 फीसदी थी। कोविड महामारी से पहले यह रुझान बहुत धीमा रहा। उदाहरण के लिए वर्ष 2019 में ऐसे लोगों की संख्या 36 फीसदी रही, जिन्होंने नौकरी के हां कर देने के बाद फिर ज्वाइन करने से मना कर दिया था।

संगठनात्मक सलाहकार फर्म कोर्न फेरी का कहना है कि नौकरियों की संख्या अधिक है और उस पात्रता वाले पेशेवर बहुत कम, लेकिन यह रुझान 2021 के बड़े पैमाने पर नौकरी छोड़ने के दौर के बाद से घटता गया है। इस मामले को ध्यान में रखते हुए संस्थानों को अब कार्य स्थल को शानदार और गतिशील बनाने पर ध्यान देना होगा, ताकि कर्मचारियों को बनाए रखना या नई प्रतिभाओं को साथ जोड़ना सार्थक हो।

First Published - November 17, 2024 | 9:27 PM IST

संबंधित पोस्ट