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भारतीय सिनेमा की वापसी की रफ्तार धीमी

अगर भारतीय फिल्म कारोबार को महामारी और स्ट्रीमिंग मंचों की चुनौतियों की दोहरी मार से पूरी तरह से उबरना है तो ‘दृश्यम’ जैसी कई फिल्मों की जरूरत होगी।

Last Updated- June 14, 2023 | 10:31 PM IST
With 994 mn tickets sold last year, Indian movie business is perking up

अभिषेक पाठक की ‘दृश्यम 2’, मलयालम की हिट फिल्म का आधिकारिक हिंदी रीमेक है जो बेहद मनोरंजक फिल्म है। इस फिल्म का मुख्य किरदार, विजय सलगांवकर अपने परिवार को एक आकस्मिक हत्या से पैदा हुई स्थितियों से बचाने की कोशिश करता है। इस कहानी में आने वाले मोड़ आपको हैरान करते हैं। कथित तौर पर 50 करोड़ रुपये के बजट में बनी मध्यम बजट की इस फिल्म ने पिछले साल वैश्विक बॉक्स ऑफिस पर 340 करोड़ रुपये की कमाई की थी।

अगर भारतीय फिल्म कारोबार को महामारी और स्ट्रीमिंग मंचों की चुनौतियों की दोहरी मार से पूरी तरह से उबरना है तो ‘दृश्यम’ जैसी कई फिल्मों की जरूरत होगी। यह आज भारतीय सिनेमा की स्थिति पर ध्यान देने योग्य पहला बिंदु है। ब्लॉकबस्टर फिल्मों के बीच ऐसी फिल्में दर्शकों को सिनेमाघरों में वापस आने के लिए प्रेरित करती हैं और इससे यह बात भी सुनिश्चित होती है कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक है।

‘दृश्यम 2’ बड़े बजट की हिट फिल्मों ‘ब्रह्मास्त्र’ और ‘आरआरआर’ के तुरंत बाद आई थी। और सबसे बड़ी हिंदी हिट फिल्मों में से एक ‘पठान’ से ठीक पहले आई थी। इन सभी फिल्मों की वजह से फिल्म उद्योग के कारोबार में तेजी आई। ‘पठान’ ने वास्तव में 25 सिंगल स्क्रीनों में भी रौनक ला दी। इसके बाद से लगभग हर प्रमुख सिनेमा रिटेलर, स्क्रीन में निवेश कर रहे हैं। पीवीआर आईनॉक्स इस साल 168 नई स्क्रीन की पेशकश करने की योजना बना रही है और साथ ही यह अपने पुराने 50 स्क्रीन हटा रही है। मिराज, कार्निवल, सिनेपोलिस जैसे प्रमुख चेन अधिक स्क्रीन में निवेश कर रहे हैं।

लेकिन भारत की लगभग 9,000 स्क्रीन के लिए मध्यम बजट की फिल्मों का पाइपलाइन में अटके रहना एक चिंता का विषय बना हुआ है। भारत के सबसे बड़े फिल्म रिटेलर पीवीआर आईनॉक्स के प्रबंध निदेशक अजय बिजली कहते हैं, ‘जहां तक बड़ी फिल्मों का सवाल है, कोई भ्रम नहीं है। मध्यम बजट की फिल्मों को ही लेकर मुंबई फिल्म बिरादरी रचनात्मक रूप से सोच रही है कि दर्शकों के साथ किस तरह जुड़ा जाए।

इससे पहले ‘अंधाधुन’ (2018) और ‘कहानी’ (2012) जैसी फिल्मों के साथ रचनात्मकता दिखाई गई थी। अब ऐसी चीजें बेहद कम हो गईं हैं।’ यूएफओ मूवीज के कार्यकारी निदेशक और समूह सीईओ राजेश मिश्रा कहते हैं, ‘हिंदी भाषी बाजार में गिरावट का रुख है क्योंकि सामग्री मिलने की रफ्तार बेहद कम है।’

हिंदी फिल्म की स्थिति

फिल्म उद्योग में सबसे बड़ी हिस्सेदारी हिंदी फिल्मों की है और इसका खराब प्रदर्शन भारतीय सिनेमा को परेशान कर रहा है। मिराज ग्रुप के प्रबंध निदेशक (मनोरंजन) अमित शर्मा का कहना है, ‘टिकटों की बिक्री के मामले में हिंदी 50-60 प्रतिशत के स्तर पर है जबकि दक्षिण भारत का फिल्म बाजार, महामारी से पहले के स्तर पर 80-90 प्रतिशत पर हैं।’ इस कंपनी के पास पूरे देश में 185 स्क्रीन का स्वामित्व है।

उनका मानना है कि टिकट की कीमतों में वृद्धि के कारण कमाई, महामारी से पहले के स्तर के 80 प्रतिशत से अधिक हो गई है। वर्ष 2019 में यह कमाई 19,100 करोड़ रुपये थी जो वर्ष 2020 में घटकर 7,200 करोड़ रुपये तक रह गई। पिछले साल यह बढ़कर 17,200 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गई थी। वर्ष 2022 में करीब 99.4 करोड़ भारतीयों ने टिकट खरीदे और 2022 में सिनेमाघरों में फिल्म देखने गए। यह एक अच्छी संख्या है लेकिन यह अब भी महामारी से पहले के कुल 1.46 अरब टिकटों से काफी कम है। इनमें से अधिकांश डेटा फिक्की-ईवाई रिपोर्ट से लिए गए हैं।

भारत यह दर्शाता है कि दुनिया में कहां और क्या हो रहा है। लंदन की कंपनी ओमडिया के मुख्य विश्लेषक (मीडिया और मनोरंजन) डेविड हैनकॉक कहते हैं, ‘चीजें सामान्य हो रही हैं। फ्रांस में फिल्म कारोबार महामारी से पहले के स्तर के कारोबार के 88 प्रतिशत, ब्रिटेन में 82 प्रतिशत और अमेरिका में 76 प्रतिशत के स्तर पर वापस आ गया है। चिंता की बात यह है कि फिल्मों की आपूर्ति कोविड से पहले के स्तर से लगभग आधी हो गई है और इसका मतलब है कि राजस्व बढ़ाने के अवसर अब कम होंगे। इस साल मध्यम बजट की फिल्मों का स्तर वैसा नहीं देखने को मिल रहा है।’

महामारी ने दुनिया भर में फिल्म निर्माण को नियमित प्रक्रिया से बाहर कर दिया था। ‘मिशन इम्पॉसिबल: डेड रेकनिंग’ से लेकर ‘मैदान’ और ‘जवान’ तक हॉलीवुड और भारत दोनों जगहों पर हर बड़ी फिल्म के रिलीज में देरी हुई है। इससे उबरने में समय लगेगा। लोगों के सिनेमा हॉल में जाने की आदत टूट गई है और उनकी वापसी में समय लग रहा है। फिल्म कारोबार की स्थिति पर यह दूसरा प्रमुख बिंदु है।

स्ट्रीमिंग मंचों पर कुछ विश्व स्तरीय फिल्मों और शो की उपलब्धता का मतलब यह है कि दर्शक न केवल निराश हैं बल्कि वे अपने इस दायरे से बाहर निकलने के लिए अनिच्छुक हैं। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उनकी पसंद का दायरा अब स्थायी रूप से बदल गया है। ‘कहानी’ और ‘अंधाधुन’ दोनों ही मध्यम बजट की सफल फिल्में हैं, लेकिन आज दर्शकों को इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती है। इसकी वजह यह है कि खासतौर पर मध्यम बजट की फिल्में लोग ओटीटी पर अधिक देखते हैं और इसमें तेजी देखी जा रही है। बड़े बजट की बड़े पर्दे के लायक बनने वाली फिल्में भी सिनेमाई आलोचना से बच जाती हैं।

इन फिल्मों से उम्मीदें भी शुद्ध पैसा-वसूल मनोरंजन को लेकर हैं जो मार्वल की फिल्में या यहां तक कि ‘आरआरआर’ और ‘पठान’ जैसी फिल्मों ने शानदार तरीके से दिया है। शर्मा ने कहा, ‘सामग्री निर्माता सफलता के नुस्खे को पाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन संभव है कि हमने कुछ दर्शकों को हमेशा के लिए खो दिया हो।’

दक्षिण के सिनेमा की रौनक

सवाल यह है कि हिंदी सिनेमा को प्रभावित करने वाले कारकों ने तमिल, तेलुगू, मलयालम और कन्नड़ सिनेमा को प्रभावित क्यों नहीं किया है? विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि यह बाजार संरचनात्मक रूप से हिंदी फिल्म के बाजार से तीन महत्त्वपूर्ण तरीके से अलग है। पहला, ओटीटी पर दक्षिण भारतीय भाषाओं में पर्याप्त सामग्री नहीं है।

नतीजतन, स्ट्रीमिंग मंच दक्षिण भारत में उतनी तेजी से आगे नहीं बढ़े हैं जिस तरह इनका विस्तार हिंदीभाषी बाजारों में हुआ है। दूसरा, पांच दक्षिणी राज्य सिंगल-स्क्रीन के दबदबे वाले बाजार हैं। भारत के सबसे ज्यादा सिनेमा दर्शकों वाले दो तेलुगू भाषी राज्यों में बड़े फिल्म निर्माता सिंगल स्क्रीन को नियंत्रित करते हैं और रिलीज के समय और अन्य चीजों को तय करते हैं। इस तरह का गठजोड़ इन बाजारों को बड़े फिल्मी हिट के साथ मालामाल कर देता है।

तीसरा, तमिलनाडु में स्थानीय सरकार टिकट की कीमतों को नियंत्रित करती है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सका कि मल्टीप्लेक्स का दबदबा न बढ़ पाए जिनकी टिकटों की औसत कीमतें अधिक होती हैं। हिंदी फिल्मों का बाजार मल्टीप्लेक्स के प्रभुत्व वाले अधिक प्रतिस्पर्धी बाजार से संचालित होता है।

बिजली कहते हैं, ‘कुछ दशकों के अंतराल में एक चरण आता है जब रचनात्मकता में बदलाव लाना पड़ता है। ओटीटी हर किसी को यह देखने के लिए मजबूर कर रहा है कि वे किस तरह की सामग्री बना रहे हैं। ओटीटी के साथ भी थकान की भावना बढ़ना तय है। हमें (महामारी के कारण) खेल से बाहर कर दिया गया था, लेकिन 10 की गिनती अभी भी खत्म नहीं हुई है। हम वापसी जरूर करेंगे। यह दो तिमाहियों तक की बात हो सकती है।’

First Published - June 14, 2023 | 10:31 PM IST

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