केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में गिरावट लगातार चिंता का विषय बनी हुई है। यकीनन इसमें हो रही गिरावट धीमी हुई है और चालू वित्त वर्ष में जो पूंजीगत व्यय 35 फीसदी कम था वह पहली छमाही के अंत में 15 फीसदी ही कम रह गया। परंतु 2024-25 में अप्रैल-नवंबर के नए आंकड़े बताते हैं कि केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय 2023-24 की समान अवधि से अब भी 12 फीसदी कम है। 2024-25 में 17 फीसदी वृद्धि के साथ 11.11 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय का लक्ष्य हासिल करना तो दूर की बात है, अब सरकार को पिछले वित्त वर्ष का 9.48 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा लांघने के लिए भी कड़ी मशक्कत करनी होगी।
यह गिरावट क्यों आई? व्यापक धारणा है कि पिछले साल 19 अप्रैल को शुरू होकर 1 जून को खत्म होने वाले सात चरणों के आम चुनावों के कारण पूंजीगत व्यय में गिरावट आई। परंतु वास्तव में यही वजह है तो पहली तिमाही में आई गिरावट दूसरी तिमाही में खत्म हो जानी चाहिए थी और तीसरी तिमाही के पहले दो महीनों में पूंजीगत व्यय में वृद्धि होनी चाहिए थी। कुछ बढ़ोतरी तो हुई है मगर अप्रैल से नवंबर के बीच 12 फीसदी की गिरावट खास राहत नहीं दे रही है।
अब इसी दौरान केंद्र सरकार की राजस्व व्यय में वृद्धि देखते हैं। 2024-25 के बजट में उम्मीद जताई गई थी कि 6 फीसदी से अधिक इजाफे के साथ राजस्व व्यय 37.1 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा। जून 2024 के अंत में वृद्धि केवल 2 फीसदी थी। किंतु उसके बाद से इसमें लगातार इजाफा हुआ और 2024-25 की पहली छमाही में यह 4.2 फीसदी हो गई। अप्रैल-नवंबर 2024-25 तक राजस्व व्यय में वृद्धि का आंकड़ा 7.8 फीसदी पर पहुंच गया।
अब अगर राजस्व व्यय तेज हो सकता है तो पूंजीगत व्यय क्यों पिछड़ गया? सरकार के पूंजीगत व्यय के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो 2024-25 में केंद्र के कुल पूंजीगत व्यय का 90 फीसदी से अधिक केवल छह क्षेत्रों में था- सड़क, रेल, रक्षा, दूरसंचार, राज्यों को अंतरण और नई योजनाएं। 2023-24 में कुल पूंजीगत व्यय में उनकी हिस्सेदारी 87 फीसदी थी। परंतु 2024-25 के शुरुआती आठ महीनों में 12 फीसदी गिरावट इनमें से दो क्षेत्रों सड़क और रक्षा में सुस्ती की वजह से आई। 2024-25 के पूंजीगत व्यय में इनकी हिस्सेदारी 40 फीसदी थी। सड़क और राजमार्ग निर्माण पर पूंजीगत व्यय 16 फीसदी कम रहा और रक्षा क्षेत्र में 15 फीसदी कमी आई। यह गंभीर बात है और बुनियादी ढांचे तथा रक्षा दोनों क्षेत्रों के लिए चिंताजनक है।
इन दो क्षेत्रों में धीमे पड़ते व्यय की समस्या दूर करना मुश्किल नहीं है। या तो व्यय पर ठीक से नजर नहीं रखी जा रही है या परियोजना के क्रियान्वयन में गंभीर समस्याएं हैं, जिसकी वजह से ये दो क्षेत्र खर्च नहीं कर पा रहे हैं। इसकी भरपाई अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन करने वाली भारतीय रेल कर रही है, जिसकी इस वर्ष के पूंजीगत व्यय में 22 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है। करीब 1.68 लाख करोड़ रुपये के साथ भारतीय रेल का पूंजीगत व्यय अप्रैल-नवंबर 2023 के व्यय से केवल 1 फीसदी कम है।
राज्यों के पूंजीगत व्यय और बाहरी मदद वाली उनकी परियोजनाओं के लिए अतिरिक्त केंद्रीय सहायता के लिए उन्हें केंद्र से मिलने वाले कर्ज की बात करें तो केंद्र सरकार का प्रदर्शन कुछ बेहतर रहा है। अप्रैल-नवंबर 2024-25 में यह अंतरण 5 फीसदी बढ़ गया। यह बात अलग है कि बजट में तय किए गए 41 फीसदी इजाफे के लक्ष्य से यह बहुत पीछे है। इसके उलट समूचे वित्त वर्ष 2023-24 में ऐसा अंतरण करीब 24 फीसदी बढ़कर 1.15 लाख करोड़ रुपये रहा था। लगता है कि चालू वित्त वर्ष में अंतरण कम रहेगा।
दिलचस्प है कि राज्यों पर अभी तक इसका ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। 25 राज्यों (सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के कुल पूंजीगत व्यय बजट में 95 फीसदी के हिस्सेदार) का पूंजीगत व्यय इस वित्त वर्ष की अप्रैल-नवंबर अवधि मंर केवल 1 फीसदी बढ़ा। लेकिन आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, केरल, मिजोरम, ओडिशा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल का पूंजीगत व्यय कम रह है। इसका असर राज्यों के पूंजीगत व्यय कार्यक्रम पर अवश्य पड़ेगा।
दो और क्षेत्र हैं, जिनकी केंद्र के पूंजीगत व्यय बजट में 13 फीसदी हिस्सेदारी है। लेकिन वे पूंजीगत व्यय में सरकारी सुस्ती का एक दिलचस्प पहलू दिखाते हैं। वे ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं, जिसका उनसे जुड़े क्षेत्रों की व्यय खपाने की क्षमता या व्यय की कारगर निगरानी से कोई लेना-देना नहीं है।
दूरसंचार के पूंजीगत व्यय का अधिकांश हिस्सा सरकारी क्षेत्र की कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) में पूंजी डालने के लिए था। कुल 84,000 करोड़ रुपये की पूंजी में से 83,000 करोड़ रुपये तो बीएसएनएल के लिए ही रखे गए थे। परंतु 2024-25 के पहले आठ महीनों में इसमें से केवल 8 फीसदी राशि उसमें डाली गई है। दूसरे शब्दों में कहें तो बीएसएनएल को वादे के मुताबिक रकम देने से सरकार के पूंजीगत व्यय में काफी इजाफा हो जाएगा। मगर रकम क्यों नहीं दी गई यह रहस्य है। यह राशि क्यों नहीं हस्तांतरित किी गई यह एक रहस्य है। पिछली बार के बजट में बीएसएनएल के लिए 53,000 करोड़ रुपये की रकम रखी गई थी मगर उसे 65,000 करोड़ रुपये यानी काफी ज्यादा रकम दे दी गई। इस साल पहले आठ महीनों में इस दिशा में कोई प्रगति न होना एक पहेली है क्योंकि इस नाकामी की वजह से भी केंद्र के पूंजीगत व्यय में खासी गिरावट आई है।
इससे भी अहम बात यह है कि 2024-25 के बजट में 66,000 करोड़ रुपये की राशि केंद्र सरकार की योजनाओं और परियोजनाओं के पूंजीगत व्यय के लिए आवंटित की गई थी। इसमें से करीब 62,000 करोड़ रुपये की राशि यानी बड़ा हिस्सा नई परियोजनाओं के लिए रखा गया था, जिनकी घोषणा सरकार को चालू वित्त वर्ष में करनी थी। मगर चालू वर्ष के पहले आठ महीनों में उस आवंटित राशि में से केवल 4 फीसदी इस्तेमाल की गई। ऐसे में 63,000 करोड़ रुपये अब भी खर्च किए जाने हैं। संभव है कि सरकार को यह पूंजी खर्च करने की जरूरत ही नहीं हो या उसने इस साल घोषित होने वाली किसी अन्य योजना के लिए यह रकम बचाकर रखी हो।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय फिलहाल 2025-26 का बजट बनाने में व्यस्त है। ऐसे में पूंजीगत व्यय में कमी एक अवसर हो सकती है। पिछले कुछ महीनों में कर राजस्व वृद्धि भी सुस्त पड़ी है। ऐसे में राजस्व के मोर्चे पर वृद्धि की जो उम्मीद पहले लगाई गई वह तेजी से मिट रही है। राजस्व व्यय भी बजट में उल्लिखित 6 फीसदी दर की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ा है। अगर 2024-25 के लिए राजकोषीय घाटे को लक्ष्य के मुताबिक जीडीपी के 4.9 फीसदी पर ही रोकना है तो वित्त मंत्रालय को इस साल के पूंजीगत व्यय में उम्मीद की किरण नजर आ सकती है।
वित्त मंत्रालय को 83,000 करोड़ रुपये की राशि बीएसएनल में बतौर इक्विटी नहीं डालनी चाहिए बल्कि कंपनी से कहना चाहिए कि वह बाजार से पूंजी जुटाए। मंत्रालय को नई योजनाओं के लिए आवंटित 60,000 करोड़ रुपये की राशि खर्च करने से भी बचना चाहिए। इससे 1.43 लाख करोड़ रुपये बच जाएंगे। राजस्व में कमी आने और व्यय के लक्ष्यों में चूकने पर यह रकम काम आएगी। अगर सरकारी उपक्रमों में इक्विटी नहीं डाली जाए और अभी तक घोषित नहीं की गई नई योजनाओं के लिए रकम नहीं रखी जाए तो पूंजीगत व्यय में कमी पर ज्यादा दुख नहीं मनाया जाएगा। विडंबना ही है कि सरकार के पूंजीगत व्यय में कमी भी अवसर बन सकती है।