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सफर फिर होगा सुनहरा, जरा हटे तो गर्दिश की धूल

Last Updated- December 08, 2022 | 4:47 AM IST

बैलेंस बना रहेगा

छंटनी से निजी क्षेत्र में करियर का ग्लैमर कुछ फीका पड़ेगा, वहीं स्टॉक में पड़े माल को बेचने के लिए मार्केटिंग विशेषज्ञों की मांग पैदा होगी। कुल मिला कर बैलेंस रहेगा। निजी क्षेत्र में करियर का ग्लैमर कभी भी खत्म नहीं होगा।

एस. एस. भदौरिया
स्तंभकार, मुख्य डाकघर, बीकानेर


यही हाल रहा तो..

मंदी का दौर बताकर कंपनियों द्वारा कर्मचारियों की छंटनी ठीक नहीं है। यही आलम रहा तो निजी क्षेत्रों के नौकरी का ग्लैमर खत्म होते समय नहीं लगेगा। वैसे, देखा जाए तो भारत में नौकरी की कमी नहीं है, बस व्यवस्था को सुधारना होगा।

ओ. पी. मालवीय
भोपाल, मध्य प्रदेश


केवल घबराहट है

विश्वभर में पसरी मंदी से आभास होता है कि निजी क्षेत्र का ग्लैमर खत्म हो रहा है, जबकि यह सच नहीं है।  इससे थोड़ी घबराहट जरूर फैली है, लेकिन निजी क्षेत्र ने जिस प्रकार प्रगति की है, उससे न उसका ग्लैमर कम होगा और न ही मेहनतकश उत्साही युवकों को दूसरा कोई क्षेत्र भाएगा।

डॉ. जी. एल. पुणताम्बेकर
रीडर, वाणिज्य विभाग, सागर, मप्र

ढलान की ओर

निजी क्षेत्रों में करियर का ग्लैमर अब ढलान की ओर अग्रसर हो रहा है। एक तो आर्थिक संकट की मार और ऊपर से सरकारी मदद नहीं मिलने के कारण कॉर्पोरेट जगत की मानो रीढ़ ही टूट गयी है।

जेम्स जॉन
सदस्य, अग्नि संस्था, अंधेरी, मुंबई

नहीं होगा खत्म


निजी क्षेत्र आर्थिक मंदी का सामना निराश होकर नहीं बल्कि दृढ़ हिम्मत, दूरदृष्टि और पूरे विश्वास के साथ करने को आतुर है, तो फिर करियर के ग्लैमर का खत्म होने का अंदेशा करना उचित नहीं है।

नई सोच और उन्नत टेक्नोलॉजी की शिक्षा से परिपूर्ण व्यक्ति के लिए करियर का ग्लैमर खत्म हो ही नहीं सकता। और न ही इसकी भरपाई सरकारी क्षेत्र कर सकता है।

भरत कुमार जैन
फोरम ऑफ एग्रो इंडस्ट्रीज, मप्र

बना रहेगा ग्लैमर

निजी क्षेत्र व्यक्ति द्वारा क्षमता से बढ़कर काम करने के कारण ही ग्लैमराइज है। ऐसे में मंदी के तूफान से निजी क्षेत्र में करियर का ग्लैमर फीका पड़ सकता है,  लेकिन निजी क्षेत्र में काम करने वाले अपनी कार्य क्षमताओं से ऐसे तूफानों का रुख पलटकर रख देंगे और निजी क्षेत्र में करियर का ग्लैमर बना रहेगा। लोगों को इससे निराश होने की जरूरत नहीं है।

विकास कासट
373, विवेक विहार, सोडाला, जयपुर

क्षणिक है यह दौर


सेवा की बात हो या नौकरी की निजी क्षेत्र सदैव बेहतर निष्पादन करता रहा है। यही कारण है कि आज का युवा वर्ग ऊंचे वेतन पर महत्वपूर्ण पदों पर निजी क्षेत्र की सेवाओं की ओर निरंतर आकर्षित होता जा रहा है।

विश्व स्तर पर छाई आर्थिक मंदी के दौर के कारण निजी क्षेत्र में छंटनी की प्रक्रिया भी हुई है, लेकिन यह नितांत अस्थायी दौर है।

योगेश जैन
एमजी रोड, इंदौर


थोड़ा सा है असर

जहां तक निजी क्षेत्र में करियर के ग्लैमर खत्म होने का सवाल है, तो फिलहाल यह वर्तमान में चल रही वैश्विक मंदी के परिदृश्य में एक सीमा तक प्रभावित हो सकता है, किन्तु खत्म नहीं।

डॉ. हेमलता कर्नावत
ए-426, महानंदा नगर, उजैन

निजी जोखिमपूर्ण

कंपनियों के कदम ने नौजवानों को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि वे इतने जोखिमपूर्ण क्षेत्र में अपना कैरियर तलाशें या फिर सरकारी क्षेत्र में जहां भले ही कम पैसा मिले, लेकिन निश्चिंतता हर हाल में रहे।

यही कारण है कि निजी क्षेत्र में नौकरियों का ग्लैमर कुछ कम हो रहा है।

श्रीमती समीर उपाध्याय
गांधी नगर, बस्ती, उप्र

चिंता का सबब

मंदी की तपिश के चलते निजी क्षेत्र में करियर का ग्लैमर तो कम हुआ है।  आज निजी क्षेत्र ही सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार दे रहा है ऐसे में उसकी सेहत का ठीक न होना चिंता का सबब है।

हर्षवर्धन सिंह रावत
निवेश सलाहकार, लखनऊ

फिर होगा शबाब


इस तिमाही में निजी क्षेत्र में करियर का ग्लैमर सुस्त रहेगा, लेकिन ग्लैमर खत्म होने की बात है तो यह न कभी हुआ था और न ही कभी होगा।

आर्थिक संकट के चलते यह समस्या उपजी है, जो समय के साथ खत्म हो जायेगी और तब निजी क्षेत्र में करियर का ग्लैमर अपने शबाब पर होगा।

अनुराग
सॉल्यूशंस कम्युनिकेशन, मुंबई

सरकारी ही सही

सरकारी नौकरी की बात ही कुछ अलग है। आज भी इसी में लोगों का सबसे ज्यादा भरोसा है। वरना एक-एक सरकारी नौकरी के लिए इतनी मार न मचती।

बात चाहे पहले की हो या अब की सबसे सुरक्षित सरकारी नौकरी ही है।

गोपाल दत्त गौड़
ट्रेजरी ऑफिसर (से.नि.), लखनऊ

बना रहेगा ग्लैमर


निजी क्षेत्र का ग्लैमर कतई खत्म नहीं हो रहा है, इसकी पुष्टि हाल ही में आईआईएम एवं अन्य बिानेस स्कूलों में हुए कैंपस रिक्रूटमेंट के साथ हो गयी।

इसके अलावा, फैशन डिजाइनिंग संस्थानों में भी कैंपस रिक्रूटमेंट की शुरुआत हो गयी है। संकट के दौर से गुजर रहे तमाम देशों के मुकाबले भारत पर कोई असर नहीं दिख रहा है।

पूजा ए.शर्मा
एक्सिस सेल्स लिमिटेड, मुंबई

फिर लौटेगा दौर

निजी क्षेत्र में अब भी नौकरी के ज्यादा अवसर हैं। सरकारी नौकरी हर एक को कैसे मिल सकती है।  रही बात टिकाऊ नौकरी की तो उसकी गारंटी तो सरकार ही दे सकती है।

निजी क्षेत्र के दिन फिर से वापस आएंगे। अगर अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी ज्यादा लंबे समय तक नही रहेंगे।

श्रीमती रमेश खन्ना
प्रधानाचार्य (से.नि), ऐशबाग, लखनऊ


तस्वीर बदलेगी

अभी हाल ही के आंकडे बताते हैं कि बीमा क्षेत्र में रोजगार की भरमार होगी और इसके अलावा ऑटो, टेलिकॉम, हॉस्पिटलिटी और निवेश बैंकिंग में रोजगार के अवसर काफी बढेंग़े।

उम्मीद है कि आगामी तिमाही में तस्वीर बदलेगी और ग्लैमर अधिक बढ़ने के साथ-साथ निजी क्षेत्र में चमक भी आयेगी।

पूनम यादव
छात्रा, बीमा एवं बैंकिंग मैनेजमेंट, ठाणे

नहीं रहा आकर्षण


निजी क्षेत्र इस समय पहले जैसा आकर्षक नहीं रह गया है रोजगार की तलाश करने वालों के लिए। सरकार के अपनी कंपनियों को बचा पाने में सक्षम है पर निजी क्षेत्र का हाल बुरा है।

नौकरी घटती जा रही है और जो लोग बचे हैं निजी क्षेत्र में उनको भी गारंटी नहीं दी जा सकती है।

रजत सिनर्जी
सिल्क एक्सपोर्टर, नीचीबाग, वाराणसी

सरकार से आस

मंदी के बढ़ते कदमों के साथ घटते रोजगार के परिदृश्य में करोड़ों लोगों को रोजगार देने के प्रयासों को तेज करना होगा। निजी क्षेत्र में रोजगार मुश्किल है। इसलिए सारी निगाहें सरकार की रोजगार देने वाली जनकल्याणकारी योजनाओं की ओर केंद्रित हो गई है।

डॉ. वी. के. वर्मा
गोटवा, बस्ती, उत्तर प्रदेश

लोग हैं भयभीत

आर्थिक मंदी के दौर से सर्वाधिक प्रभावित निजी कंपनियां हुई है, अब तक इन कंपनियों के आकर्षक वेतन भत्ते युवाओं को अपनी ओर खींच रहे थे, लेकिन आज के हालात में छंटनी का जो दौर चला, उसने लोगों को भयभीत कर दिया, कि न जाने कब और किस बहाने निजी कंपनियों में काम करने वालों को सड़क पर आ जाना पडे।

अभय प्रकाश त्रिपाठी
मालवीय रोड, बस्ती, उत्तर प्रदेश

कैसे घटेगा ग्लैमर

देश के सरकारी उपक्रमों में न तो छंटनी और न ही नई भर्ती की जा रही है। ऐसे में निजी क्षेत्र ही बचता है, जहां नौकरी मिलने की संभावनाएं हैं। ऐसे में यह कहना कि निजी क्षेत्र में करियर का ग्लैमर खत्म हो रहा है, उचित नहीं प्रतीत होता।

निरंजन लाल अग्रवाल
रिटायर्ड, बैंक अधिकारी, लखनऊ

दबदबा बना रहेगा

निजी क्षेत्र में करियर का ग्लैमर कभी भी कम होने वाला नहीं है। इसका खास कारण निजी कंपनियों का तेजी से होने वाला विकास और उसके लाभ में कर्मचारियों की भागीदारी के हिसाब से सुख सुविधाओं में होने वाली आकर्षक बढ़ोतरी है।

आमोद कुमार उपाध्याय
संत कबीर नगर, उप्र


बकौल विश्लेषक

प्रोफेसर जे. के. मित्रा
हेड एवं डीन, एफएमएस
दिल्ली विश्वविद्यालय

बुरा नहीं, यह है उद्योग जगत के लिए ‘करेक्शन’ का दौर
यह पूंजीवाद के चरित्र में है कि जब विकास होता है, तो उसके बाद मंदी आती है और फिर विकास का दौर आता है और फिर…, ऐसे में कंपनियां अपनी साख बचाने के लिए लोगों की भर्ती और छंटनी करती रहती हैं।

एक बात यह भी कि लोगों को ये आंकड़े तो जल्द ही उपलब्ध हो जाते हैं कि किस कंपनी ने कितने लोगों की छंटनी की है, लेकिन क्या उन लोगों को यह पता होता है कि पिछले कुछ सालों में (मंदी से पहले) कंपनी की विकास दर कितनी रही थी? शायद ही लोगों को इसके बारे में जानकारी होती होगी। 


सच्चाई तो है कि मंदी आने से पहले बैंकिंग सेक्टर सहित विभिन्न कंपनियों का विकास बहुत तेजी से हुआ था। जब मंदी आती है और लोगों की छंटनी होती है तो एकाएक झटका लगता है। मेरा मानना है कि यह ‘करेक्शन’ यानी बैलेंस का दौर चल रहा है।

बीते कुछ वर्षों में कंपनियों का विकास कुछ ज्यादा ही तेजी से हुआ है। अब उनमें स्थायी होने का समय चल रहा है। जहां तक निजी क्षेत्रों में ग्लैमर की बात है, तो वह खत्म होने वाला नहीं है।
मौजूदा परिस्थितियों में भले ही इसमें थोड़ी कमी देखने को मिले। बात यह भी कि आखिर लोग जाएंगे कहां।

सरकारी नौकरियों में बहुत बड़े पैमाने पर तो भर्तियां होती नहीं हैं। तो ऐसे में निस्संदेह लोगों को निजी क्षेत्रों की ओर रुख करना ही होगा। हां, यह दीगर है कि छठे वेतन आयोग के आने से सरकारी नौकरियों में ऊंचे पद थोड़े ग्लैमरस हो गए हैं और हो सकता है, वहां से लोग निजी क्षेत्रों में नहीं जाएंगे।

हालांकि सच तो यह भी है कि वहां से निजी क्षेत्रों की ओर रुख करने वाले अधिकारियों की बारगेनिंग पॉवर बढ़ गई है।  

बातचीत: पवन कुमार सिन्हा


हड़बड़ी में न बदलें डगर, फिर कालीन बिछाएंगी कंपनियां

प्रवीण मल्होत्रा
करियर काउंसलर


वैश्विक आर्थिक मंदी की वजह से अगर कोई यह सोच रहा हो कि निजी क्षेत्रों में नौकरियों का ग्लैमर खत्म हो रहा है, तो ऐसा नहीं है। मंदी का आना नई बात नहीं है।

यह एक चक्र है जो कुछ वर्षों में आता है। जब तक मंदी होती है, तब तक लोगों में थोड़ा डर का माहौल बना रहता है लेकिन जैसे मंदी आती है, वैसे ही खत्म भी हो जाती है। युवाओं के लिए कहना चाहती हूं कि आज की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हड़बड़ाहट में आकर विषय में बदलाव न करें।

पिछली बार लंबे समय के लिए मंदी का दौर चला था, तो उस वक्त भी आईआईएम के छात्रों ने घबराहट में आकर फाइनेंस की जगह मार्केटिंग या फिर एचआर में स्पेशलाइजेशन करने का फैसला किया था। लेकिन जब मंदी खत्म हो जाती है तो हर क्षेत्र में अचानक लोगों की जरूरत महसूस होने लगती है।

खासकर, फाइनेंस के क्षेत्र में। मंदी की दौर में घबाहट में आकर उठाए गए कदम भविष्य में नुकसान पहुंचा सकती है। जहां तक सरकारी नौकरियों में ग्लैमर की बात है, तो छठे वेतन आयोग के लागू किए जाने बाद थोड़ी बढ़ गई है।

हां, एक बात और जो लोग यह कहते हैं कि सरकारी नौकरियां सुरक्षित होती हैं तो सवाल यह उठता है कि वहां नौकरियां है हीं कितनी। यह सही है कि मौजूदा परिस्थिति में सरकारी नौकरियां बहुत कम प्रभावित हैं।

लेकिन सबसे ज्यादा नौकरियां तो प्राइवेट सेक्टर में ही हैं। निजी क्षेत्रों में जो छंटनी का दौर है, वह बहुत कम समय के लिए है। बहरहाल, मंदी का दौर कब तक खत्म होगा इसके बारे में तो न तो बराक ओबामा कह सकते हैं और न ही हमारे वित्त मंत्री चिदंबरम ही कह सकते हैं।  

बातचीत: पवन सिन्हा

पुरस्कृत पत्र

निजी क्षेत्रों में रोजगार हैं अधिक


ऐसा माना जा रहा है कि निजी क्षेत्र की नौकरियों को लेकर जो क्रेज था, वह मंदी के इस दौर में खत्म होता जा रहा है।

लेकिन गौर करें तो आज भी रोजगार के जितने अवसर निजी क्षेत्र में हैं, उतने कहीं और नहीं।

छठे वेतन आयोग से सरकारी क्षेत्र में वेतन वृध्दि तो खूब हुई है, लेकिन यहां रोजगार के अवसर बढ़ने के बजाए कम ही होंगे। जैसे ही मंदी के बादल छंटेंगे निजी क्षेत्र का सितारा फिर बुलंदी पर होगा।


आलोक परिहार
पत्रकारिता विभाग, मा.च.रा.प.सं.वि.वि., भोपाल, मध्य प्रदेश


…और यह है अगला मुद्दा

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First Published - November 23, 2008 | 11:34 PM IST

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