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विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा: मूल्यांकन लाभ से बढ़ेंगे भारत के रिजर्व

इस वित्त वर्ष में देश के विदेशी मुद्रा भंडार की गतिविधि में मूल्यांकन लाभ की सकारात्मक भूमिका होगी। बता रहे हैं धर्मकीर्ति जोशी, अधीश वर्मा और मीरा मोहन

Published by
धर्मकीर्ति जोशी   
अधीश वर्मा   
Last Updated- October 19, 2025 | 10:05 PM IST

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार वास्तव में आयात और बाहरी ऋण चुकाने की आवश्यकताओं जैसे पर्याप्तता मानदंडों के अनुसार एक बेहतर स्तर का प्रतिनिधित्व करता है। 3 अक्टूबर तक विदेशी मुद्रा भंडार 699.9 अरब डॉलर के एक बड़े स्तर पर था। भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं और बाजार की अस्थिरता के दौर में, दुनिया में यह चौथा सबसे बड़ा भंडार एक सुरक्षा कवच है। देश का चालू खाता घाटा (सीएडी) भी सहज स्तर पर है जो वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.2 फीसदी रहा।

लेकिन जब पूंजी प्रवाह अस्थिर होता है जैसा कि इस वित्त वर्ष में हुआ है तब कम चालू खाते घाटे की भरपाई करना भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है और इससे मुद्रा पर दबाव पड़ सकता है। उदाहरण के तौर पर, पहली छमाही में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) में 3.9 अरब डॉलर की शुद्ध निकासी दर्ज की गई जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 21.6 अरब डॉलर का शुद‌्ध निवेश हुआ था।

मुद्रा भंडार का प्रबंधन

कुशल विदेशी मुद्रा प्रबंधन, वास्तव में अंतरराष्ट्रीय वित्त एवं व्यापारिक समुदायों में देश की देनदारियों को पूरा करने और व्यापार तथा वित्तीय प्रवाह को बनाए रखने की क्षमता से जुड़ा आत्मविश्वास सुनिश्चित करने के साथ ही नकदी जोखिम कम करने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण है।

भारत अब विदेशी मुद्रा भंडार की मात्रा और उसके प्रबंधन दोनों के मामले में बहुत आगे बढ़ चुका है। आज विदेशी मुद्रा भंडार भारत के जीडीपी का लगभग 17 फीसदी है जबकि वित्त वर्ष 1991 में भुगतान संतुलन संकट के दौरान यह महज 1.3 फीसदी था।

मुद्रा भंडार प्रबंधन पद्धति का भी विकास हुआ है जिसकी शुरुआत 1992 में भुगतान संतुलन पर उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशों और 1997 के पूर्वी एशियाई संकट से मिले सबक से हुई। यह दृष्टिकोण थोड़ा व्यापक हुआ है और अब इसमें पूंजी प्रवाह की मात्रा और जोखिम से जुड़े पहलू के साथ-साथ बाहरी झटकों के प्रति संवेदनशीलता भी शामिल है।

चालू खाता घाटे से जुड़ी दुविधा

भारत कई वर्षों से विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में चौथे स्थान पर है। हालांकि, शीर्ष तीन विदेशी मुद्रा धारक देशों चीन, जापान और स्विट्जरलैंड की तुलना में एक बड़ा अंतर है, वास्तव में इन सभी देशों को चालू खाता अधिशेष का फायदा है।

इसके कारण ही इन देशों के केंद्रीय बैंकों के लिए, ऐसे भंडार बनाना सुविधाजनक है जो स्थिर प्रकृति के होते हैं। आयात बिल से निर्यात आमदनी के अधिक होने के कारण उनकी मुद्राओं पर मूल्यवृद्धि का दबाव होता है। इसीलिए, केंद्रीय बैंक अपनी मुद्राओं की मूल्यवृद्धि को रोकने और प्रतिस्पर्धी निर्यात सुनिश्चित करने के लिए डॉलर खरीदते रहते हैं।

वहीं दूसरी ओर, भारत में चालू खाता घाटा बना रहता है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पूंजी आवक पर निर्भर करता है, जिसका एक हिस्सा ऋण (बाह्य वाणिज्यिक उधारियां और प्रवासी भारतीय जमा) के रूप में होता है और जिसे कुछ समय बाद चुकाना पड़ता है।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश का प्रवाह मददगार साबित होता है लेकिन यह अपेक्षाकृत अस्थिर होता है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पूंजी प्रवाह का अधिक स्थिर रूप है, लेकिन इसमें भी भारत, शुद्ध आधार पर कुछ दबाव का अनुभव कर रहा है। ऐसे में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का निर्माण अधिक अवसरवादी लगता रहा है और इसके लिए सक्रिय प्रबंधन की आवश्यकता होती है।

आरबीआई की सक्रियता

कई कारक मुद्रा भंडार को प्रभावित करते हैं। इनमें से एक है मूल्यांकन प्रभाव, जो प्रमुख आरक्षित मुद्राओं की विनिमय दरों में परिवर्तन के साथ-साथ विदेशी प्रतिभूतियों के बाजार मूल्यों में उतार-चढ़ाव को संदर्भित करता है – जिसे मार्क-टु-मार्केट गणित कहा जाता है। ये एफसीए (विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति) घटक को प्रभावित करते हैं जो विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा हिस्सा है। दूसरा मूल्यांकन प्रभाव सोने की कीमतों में उतार-चढ़ाव से पड़ता है। शुद्ध पूंजी प्रवाह में कमी के वक्त भी मुद्रा भंडार बढ़ाने में मूल्यांकन प्रभाव की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

यदि वित्त वर्ष 2025 में और इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में मूल्यांकन प्रभाव नहीं होता तब कुल विदेशी मुद्रा भंडार 52.2 अरब डॉलर कम होता। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 के मूल्यांकन लाभ में सोने की उच्च कीमतों और अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड पर कम यील्ड का असर दिखा है। पिछले वित्तीय वर्ष में भारतीय रिजर्व बैंक ने सोने के भंडार में 58 टन की वृद्धि करके प्रशंसनीय चपलता दिखाई है, जिसके बाद से इसकी कीमतों में तेजी आई है।

लाभ जारी रहने की उम्मीद

इस वित्त वर्ष के लिए भी मूल्यांकन लाभ बेहतर रहने के संकेत हैं। लगातार वैश्विक अनिश्चितताओं को देखते हुए, भारत का चालू खाता इस वित्त वर्ष में थोड़ा अधिक होगा जबकि वित्तीय प्रवाह अस्थिर और अपर्याप्त रह सकता है। अमेरिका द्वारा भारत पर उच्च शुल्क लगाने के कदम ने भी रुपये पर काफी दबाव डाला है। इसके अलावा,आरबीआई की शुद्ध फॉरवर्ड एसेट्स (भुगतान करने योग्य) भले ही फरवरी 2025 के अंत में 88.75 अरब डॉलर के ऐतिहासिक उच्च स्तर से नीचे आ गई हैं लेकिन यह जुलाई तक 57.9 अरब डॉलर पर ऊंची बनी रही। केंद्रीय बैंक के लिए इन तीनों स्थिति से निपटने के लिए, एक पर्याप्त विदेशी मुद्रा कोष आवश्यक है।

अच्छी बात यह है कि जो कारक मूल्यांकन लाभ बढ़ाते हैं वे अभी अनुकूल हैं। सोने की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं और अमेरिकी डॉलर पाउंड और यूरो के मुकाबले कमजोर हुआ है, जिससे भारत के एफसीए को बढ़ावा देने के लिए एक अनुकूल विनिमय दर मिली है। अमेरिकी ट्रेजरी पर यील्ड कम हुई है। अप्रैल 2025 में 10 वर्षीय यील्ड, 4.27 फीसदी की तुलना में अक्टूबर में अब तक यह औसतन 4.11 फीसदी रही है और फेडरल रिजर्व द्वारा नरमी प्रक्रिया शुरू करने से यह और कम हो सकता है। कुल मिलाकर, इस वित्त वर्ष में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की गतिविधियों में मूल्यांकन लाभों के सकारात्मक भूमिका निभाने की उम्मीद है।


(लेखक क्रिसिल लिमिटेड में क्रमशः मुख्य अर्थशास्त्री, वरिष्ठ अर्थशास्त्री और आर्थिक विश्लेषक हैं)

First Published : October 19, 2025 | 10:05 PM IST