लेख

Editorial: शेयर बाजार में सपाट प्रदर्शन, घरेलू निवेशकों का उत्साह बरकरार

भारत जहां अभी भी सबसे तेज गति से विकसित होती बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है वहीं प्रतिकूल माहौल भी साफ नजर आ रहा है

Published by
बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 19, 2025 | 9:58 PM IST

पिछली दीवाली से अब तक शेयर बाजार अपेक्षाकृत सपाट स्तर पर रहा। निफ्टी और सेंसेक्स को 5.6 फीसदी की मामूली वृद्धि हासिल हुई जबकि व्यापक एनएसई 500 करीब 3.7 फीसदी ही ऊपर है। मिडकैप्स 250 में 4.5 फीसदी की तेजी आई जबकि स्मॉलकैप्स 250 में 2.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इक्विटी से होने वाले रिटर्न मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद मामूली रूप से ही धनात्मक रहेंगे।

यह उन चरणों में से एक है जहां जोखिम रहित साधन मसलन सरकारी प्रतिभूतियों ने शेयर बाजार की तुलना में बेहतर रिटर्न दिया है। पिछले एक साल में आर्थिक अनिश्चितता और भूराजनीतिक तनाव का बोलबाला रहा है। भारत जहां अभी भी सबसे तेज गति से विकसित होती बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है वहीं प्रतिकूल माहौल भी साफ नजर आ रहा है। हालांकि पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि में उल्लेखनीय तेजी आई लेकिन पूरे वित्त वर्ष के अनुमानों में सतर्कता बरती गई है।

यूक्रेन युद्ध अभी भी जारी है और गाजा में हालिया युद्ध विराम के बावजूद पश्चिम एशिया में शांति स्थापना नहीं हुई है। इसके अलावा अमेरिका द्वारा थोपी गई उच्च शुल्क व्यवस्था, आव्रजन पर सख्त नियंत्रण और महंगे वर्क वीजा ने भी वैश्विक व्यापार के रुझानों में उल्लेखनीय अनिश्चितता पैदा की है।

सेवा निर्यात सहित भारत का निर्यात आंशिक तौर पर प्रभावित भी हुआ क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने दंडात्मक शुल्क लगाए हैं। यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन और जापान धीमी वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति से गुजर रहे हैं। चीन ने वृद्धि को गति देने के लिए कई प्रोत्साहन पैकेज प्रस्तुत किए हैं।

अधिकांश बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में धीमी आर्थिक वृद्धि और ऊर्जा तथा औद्योगिक धातुओं की भारी आपूर्ति की वजह से सामान्य तौर पर जिंस कीमतों में कमी आनी चाहिए थी लेकिन आपूर्ति बाधित होने की आशंकाओं और अमेरिकी शुल्कों के कारण आपूर्ति श्रृंखला के बाधित होने के चलते कीमतों और मुद्रा में उतार-चढ़ाव के हालात हैं।

मुद्रास्फीति ट्रंप के शुल्क बढ़ाने के बिना जितने स्तर पर होती, उससे कहीं अधिक ऊंचे स्तर पर है। डॉलर अधिकांश मुद्राओं की तुलना में कमजोर है। परंतु रुपया अमेरिकी डॉलर से काफी कमजोर है। पिछली दीवाली के समय रुपया डॉलर के मुकाबले 84 रुपये के स्तर पर था जो अब फिसलकर 88.87 रुपये पर आ गया है।

परिसंपत्ति वर्ग की बात करें तो पिछले एक वर्ष में कीमती धातुओं मसलन प्लेटिनम, चांदी और सोने का रिटर्न शानदार रहा। इन सभी ने 50 फीसदी से अधिक रिटर्न दिया। बहरहाल इक्विटी रिटर्न की कमी के बावजूद घरेलू निवेशकों के उत्साह में कमी नहीं आई। आम परिवारों ने म्युचुअल फंड के अलावा सीधे शेयरों में निवेश करना जारी रखा।

प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों की बात करें तो ओपन एंडेड फंड्स की संपत्ति सितंबर 2024 के 66.8 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर सितंबर 2025 में 75.4 लाख करोड़ रुपये हो गई। म्युचुअल फंड्स ने इस अवधि में शेयरों में 4.5 लाख करोड़ रुपये की राशि का निवेश किया। अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025 के बीच 85 प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम(आईपीओ) के जरिये 1.7 लाख करोड़ रुपये की राशि जुटाई गई जबकि एक साल पहले की समान अवधि में 88 आईपीओ से 90,436 करोड़ रुपये की राशि जुटाई गई थी।

हालांकि पिछले 12 महीनों में विदेशी संस्थागत निवेशकों ने लगातार बिकवाली की है और भारतीय शेयर बाजार से लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये की राशि निकाल ली है। इसका मतलब यह है कि भारतीय शेयर बाजार पूरी तरह घरेलू उत्साह के सहारे टिका हुआ है। कॉरपोरेट नतीजे संकेत देते हैं कि खपत अब भी अपेक्षित स्तर से कम है, हालांकि ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में कुछ सुधार देखा गया है।

यह उम्मीद की जा रही है कि हाल ही में वस्तु एवं सेवा कर की व्यापक दर कटौती से त्योहारी सीजन में मांग को कुछ प्रोत्साहन मिलेगा। ऐसी स्थिति में शेयर कीमतों में तेज उछाल देखा जा सकता है। लेकिन वर्तमान अनिश्चितता के माहौल को देखते हुए कई परिवार पारंपरिक परिसंपत्ति, मसलन सोने में निवेश करना पसंद कर सकते हैं।

First Published : October 19, 2025 | 9:58 PM IST