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हेल्थ इंश्योरेंस रिन्यूअल में देरी घाटे का सौदा! एक्सपर्ट से समझें इससे क्या-क्या हो सकता है नुकसान

हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का समय पर रिन्यूअल नहीं किया गया तो फायदा मिलना रुक सकता है और प्री-एग्जिस्टिंग बीमारी का वेटिंग पीरियड दोबारा शुरू हो सकता है

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अमित कुमार   
Last Updated- October 19, 2025 | 4:13 PM IST

बहुत से लोग हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते हैं ताकि मुश्किल समय में मदद मिले। लेकिन अगर रिन्यूअल का समय मिस हो जाए तो सारी मेहनत बेकार हो सकती है। एक्सपर्ट्स का कहना हैं कि ऐसे में पुराने फायदे गायब हो जाते हैं और बीमारियों के लिए इंतजार की अवधि फिर से शुरू हो जाती है। इससे पैसे और स्वास्थ्य दोनों पर असर पड़ता है।

पॉलिसीबाजार डॉट कॉम के हेल्थ इंश्योरेंस रिन्यूअल्स के बिजनेस हेड जितिन जैन कहते हैं कि ज्यादातर सालाना पॉलिसी में 30 दिन का ग्रेस पीरियड मिलता है। इस दौरान प्रीमियम न भरने पर नो क्लेम बोनस जैसे फायदे और पूरी हुई वेटिंग पीरियड सब खो जाते हैं।

फोनपे इंश्योरेंस के सीईओ विशाल गुप्ता बताते हैं कि ग्रेस पीरियड में रिन्यू करने से पॉलिसी की निरंतरता बनी रहती है। लेकिन उस समय कोई मेडिकल खर्च कवर नहीं होता। प्रीमियम भरने के बाद ही कवरेज फिर शुरू होती है। अगर कोई बीमारी हो जाए तो दावा नहीं मिलेगा।

दोनों एक्सपर्ट कहते हैं कि पॉलिसी लैप्स होने पर व्यक्ति बिना सुरक्षा के रह जाता है। लैप्स के दिनों में कोई क्लेम नहीं माना जाता। पॉलिसी दोबारा शुरू करने का फैसला इंश्योरेंस कंपनी पर होता है। अक्सर नई जांच करनी पड़ती है, जिससे शर्तें बदल सकती हैं।

पुरानी बीमारियों का क्या होता है?

प्री-एक्सिस्टिंग डिजीज यानी पहले से मौजूद बीमारियों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस में 2 से 4 साल तक इंतजार करना पड़ता है। अगर पॉलिसी लैप्स हो जाए तो यह इंतजार फिर से शुरू हो जाता है। गुप्ता कहते हैं कि अब तक की प्रगति मिट जाती है। इससे मरीज को बड़ा झटका लग सकता है। जैन ने एक असली उदाहरण बताया।

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अंकित जैन की 15 लाख रुपए की स्वास्थ्य कवर वाली पॉलिसी थी। उन्होंने रिन्यूअल 5 दिन लेट कर दिया, जो ग्रेस पीरियड से बाहर था। उनकी डायबिटीज जैसी पुरानी बीमारी के लिए 2 साल की वेटिंग पीरियड थी, जो फिर से शुरू हो गई। अगस्त में डायबिटीज की वजह से अस्पताल जाना पड़ा, लेकिन क्लेम नहीं मिला।

ऐसे में लोग क्या करें कि लैप्स न हो?

एक्सपर्ट्स कुछ आसान टिप्स देते हैं। सबसे पहले इंश्योरेंस कंपनी के साथ अपना फोन नंबर और ईमेल अपडेट रखें ताकि रिमाइंडर मिलते रहें। रिन्यूअल की तारीख से 45 से 60 दिन पहले ही काम निपटा लें। ऑटो-डेबिट सेट कर दें या कैलेंडर में अलर्ट लगा लें ताकि भूल न जाएं। अगर हो सके तो सालाना प्रीमियम भरें, इससे बार-बार रिन्यू करने की झंझट कम हो जाती है।

जैन कहते हैं कि समय पर रिन्यूअल सबसे आसान तरीका है अपनी पॉलिसी और फायदों को बचाने का। लेकिन अगर कभी लेट हो जाए तो फौरन कंपनी से बात करें, शायद कोई रास्ता निकले। ऐसे में लोगों को जागरूक रहना चाहिए ताकि छोटी गलती से बड़ा नुकसान न हो।

First Published : October 19, 2025 | 4:13 PM IST