अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रुचि की बात करें तो पियरे ट्रूडो का कथन एकदम सटीक लगता है, ‘अमेरिका के साथ रहना हाथी के साथ सोने के समान है। वह चाहे जितना दोस्ताना और शांत स्वभाव का हो लेकिन उसकी हर हरकत और घुरघुराहट का असर आप पर होता है।’
चौंतीस करोड़ की आबादी वाला अमेरिका दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। वर्ष 2023 में 28 लाख करोड़ डॉलर आकार के साथ उसकी अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे बड़ी थी। अमेरिकी सेना ने 2023 में 916 अरब डॉलर यानी अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.5 फीसदी रक्षा क्षेत्र पर व्यय किया। यह राशि दुनिया भर में रक्षा पर होने वाले कुल खर्च की 40 फीसदी है। दुनिया की आरक्षित मुद्रा वही छापता है और अधिकतर देशों का सबसे बड़ा या दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार भी वही है।
अमेरिका की चुनावी व्यवस्था जटिल है। उसके सभी 50 राज्यों में दो सीनेटर होते हैं और उपराष्ट्रपति (सीनेट का 101वां सदस्य) के पास 100 सदस्यीय सीनेट में निर्णायक मत होता है। सीनेटरों को जनता चुनती है। हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स निचला सदन होता है। इसमें 438 सदस्य होते हैं और राज्य की आबादी के हिसाब से ही उसे निर्वाचन क्षेत्रों का आवंटन किया जाता है। इस सदन के चुनाव जनता के मतों से होते हैं।
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव जनता के मतों को निर्वाचक मतों (इलेक्टोरल वोट) में बदलकर होता है। इसमें जनता के मतों से चुने गए हरेक सीनेटर के पास एक और हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव के सदस्य के पास एक निर्वाचक मत होता है। इस प्रकार कुल 538 निर्वाचक मत होते हैं यानी राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 270 निर्वाचक मतों की आवश्यकता होती है।
प्रत्येक राज्य और वॉशिंगटन डीसी अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनने के लिए मतदान करता है। जिस राज्य में जो भी टिकट जनता के ज्यादा मत पाता है, उस राज्य के सीनेटर और रिप्रजेंटेटिव के निर्वाचक मत उसी टिकट या प्रत्याशी को मिल जाते हैं। अगर टेक्सस में जनता के ज्यादा मत रिपब्लिकन को मिलते हैं तो टेक्सस के दो सीनेटरों के निर्वाचक मत और वहां के 40 रिप्रजेंटेटिव के मत रिपब्लिकन उम्मीदवार को ही जाएंगे भले ही वे किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हों।
अमेरिका में दो दलों वाली व्यवस्था है। डेमोक्रेटिक पार्टी को पिछले 10 राष्ट्रपति चुनावों में से सात बार जनता का बहुमत मिला है मगर पांच बार रिपब्लिकन सरकार रही है और पांच बार डेमोक्रेटिक सरकार। इसकी वजह यह है कि राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली में जनता के मत बहुत खराब तरीके से परिलक्षित होते हैं।
सभी राज्यों में बराबर आबादी नहीं है मगर हर राज्य को दो सीनेटर मिलते हैं। यह वहां का संवैधानिक प्रावधान है जो देश की संघीय प्रकृति बरकरार रखने के लिए बना है। आखिरकार उसका नाम ‘संयुक्त राज्य’ है।
हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव का आवंटन जनता के मतों और निर्वाचक मतों के बीच के अंतर को और अधिक बढ़ा देता है। अलास्का की आबादी सात लाख है और वायोमिंग की आबादी 5.70 लाख। किंतु हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में दोनों की तीन-तीन सीट हैं।
कैलिफोर्निया की आबादी 3.9 करोड़ है और उसकी 55 सीट हैं। 3.1 करोड़ की आबादी वाले टेक्सस की 40 सीटें और 1.9 करोड़ की आबादी वाले न्यूयॉर्क की 28 सीट हैं। प्यूर्टो रिको अमेरिकी राज्य नहीं बल्कि ‘टेरिटरी’ है और जहां 30 लाख से अधिक अमेरिकी नागरिक रहते हैं। लेकिन वहां एक भी सीनेटर या रिप्रजेंटेटिव नहीं है। अगर आप आबादी अनुपात के हिसाब से देखें तो प्यूर्टो रिको में हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव की 18 सीट तथा दो सीनेटर होने चाहिए। कैलिफोर्निया में 150 से अधिक रिप्रजेंटेटिव तथा टेक्सस में 125 रिप्रजेंटेटिव होने चाहिए। इस हिसाब से देखें तो अलास्का और वायोमिंग के नागरिकों के मतों को अधिक वजन मिला है।
इसके अलावा राज्य अपने हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव क्षेत्रों की सीमाएं तय करते हैं और दोनों दल अपनी राजनीतिक संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए अपने नियंत्रण वाले राज्यों में समीकरण बनाने का काम करते हैं। राज्यों में मतदान के पंजीयन और प्रक्रियाओं के लिए नियम भी अलग-अलग होते हैं। इसका असर भी मतदान पर पड़ सकता है।
डेमोक्रेट्स प्राय: उन राज्यों में बड़े मार्जिन से जीतते हैं, जहां आबादी का घनत्व अधिक है। न्यूयॉर्क और कैलिफोर्निया इसके उदाहरण हैं। इसलिए वे अक्सर जनता के ज्यादा मत हासिल करते हैं। रिपब्लिकन के जीतने की अधिक संभावना कम घनत्व वाले राज्यों मसलन अलास्का और वायोमिंग में होती है। यही वजह है कि उन्हें 2000 और 2016 में जनता के मत हारने के बाद भी राष्ट्रपति चुनाव जीतने में मदद मिली थी।
2024 में एक प्रत्याशी 78 वर्ष का है और उसके खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। वह यौन हमले का दोषी पाया गया है। उसने सार्वजनिक तौर पर 30,000 से अधिक झूठ बोले हैं। उसका कारोबार छह बार दिवालिया हो चुका है। फरवरी 2024 में अमेरिकन पॉलिटिकल साइंस एसोसिएशन द्वारा 154 विद्वानों के एक सर्वेक्षण में उसे अमेरिका का अब तक का सबसे बुरा राष्ट्रपति करार दिया गया था।
एक अन्य दावेदार 59 वर्षीय महिला है जो श्वेत नहीं है, लेकिन वह बेदाग है। वह उस प्रशासन का हिस्सा रही है, जिसने लगभग चमत्कारिक ढंग से आर्थिक हालात बदल डाले।
जनता के सीधे मत लिए जाते तो मामला शायद एकतरफा होता। मगर अमेरिका की अजीबोगरीब चुनाव प्रणाली के कारण ऐसा नहीं हो रहा है। बहरहाल इस मुकाबले की अहमियत इतनी ज्यादा है कि दुनिया इसे सांसें थामे देख रही है।