स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘दुनिया एक व्यायामशाला है जहां हम स्वयं को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।’ परंतु डॉनल्ड ट्रंप की मनमानी शुल्क दरों के बीच विश्व व्यापार व्यवस्था व्यायामशाला के बजाय कुश्ती का अखाड़ा बनती दिख रही है। ट्रंप ने हर देश के साथ अलग से बातचीत करके व्यापार समझौते करने की शुरुआत की है। यहां तक कि यूरोपीय संघ में शामिल 27 देश जिनका बाजार अमेरिका के बाजार से बड़ा है, उन्होंने भी उनके दबाव को स्वीकार कर लिया। अब तक केवल चीन उनके विरुद्ध खड़ा हुआ है। उसने दुर्लभ धातुओं पर अपना एकाधिकार कायम कर लिया है।
फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के बाद लग रहा था कि दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता हो जाएगा लेकिन अब भारत पर 25 फीसदी शुल्क के साथ 25 फीसदी जुर्माना लगा दिया गया है क्योंकि वह रूसी तेल आयात कर रहा है। यह ब्रिटेन पर लगे 10 फीसदी, यूरोपीय संघ, दक्षिण कोरिया और जापान पर लगे 15 फीसदी तथा पूर्वी और दक्षिण एशिया के अन्य भारतीय प्रतिस्पर्धी देशों पर लगे 15-20 फीसदी के शुल्क से बहुत अधिक है। यहां तक कि राष्ट्रपति ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने और उनकी क्रिप्टो मुद्रा खरीदने वाला पाकिस्तान भी भारत से बेहतर हालत में है। भारत ने शायद बार-बार यह नकार कर ट्रंप को खिझा दिया कि पाकिस्तान के साथ संघर्ष विराम में उनकी कोई भूमिका नहीं रही। केवल ब्राजील, स्विट्जरलैंड और दक्षिण अफ्रीका ही भारत से खराब हालत में हैं।
ट्रंप ने दूसरों को पछाड़ने के लिए शुल्क दरों को हथियार बनाया है लेकिन इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि अमेरिका भी उतना खुला नहीं है जितना वह दावा करता है। थोलोस फाउंडेशन के व्यापार गतिरोध सूचकांक 2025 के मुताबिक अमेरिका में शुल्क दर कम है लेकिन व्यापार संरक्षण के मामले में वह दुनिया में 61वें स्थान पर है। ट्रंप कनाडा,ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, मेक्सिको और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों को निशाना बना रहे हैं जिनके व्यापार अवरोध इस सूचकांक में अमेरिका से कम हैं।
ट्रंप की नई शुल्क दरें प्रभावी होने के बाद अनुमान है कि अमेरिका 122 देशों के इस सूचकांक में 61वें स्थान से गिरकर 113वें स्थान पर आ जाएगा। पूर्वी एशियाई देशों में केवल ताईवान (26वीं रैंकिंग) और मलेशिया (36वीं रैंकिंग) में अधिक खुलापन है। अन्य देशों मसलन दक्षिण कोरिया, चीन, फिलीपींस, वियतनाम और थाईलैंड क्रमश: 85वीं, 114वीं, 116वीं, 117वीं और 118वीं रैंकिंग पर हैं। ये देश उच्च गैर व्यापार शुल्क और सेवा प्रतिबंधों की जद में हैं। आसियान देशों के साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौता है और उनकी शुल्क दर भारत से कम है लेकिन सेवा पर प्रतिबंध उन्हें भी संरक्षित बनाते हैं।
ट्रंप द्वारा लगाए गए शुल्क विश्व व्यापार संगठन के नियमों का भी उल्लंघन कर रहे हैं जिससे वह और कमजोर हो रहा है। अगर बड़े पैमाने पर कारोबारी जंग नहीं होती क्योंकि अधिकांश देश ट्रंप के सामने झुक गए हैं, फिर भी विश्व व्यापार व्यवस्था पहले जैसी नहीं रह जाएगी। विश्व बैंक और मुद्रा कोष के मुताबिक वैश्विक आर्थिक वृद्धि में भी गिरावट आएगी। वैश्विक अनिश्चितता सूचकांक जो निवेश निर्णयों को प्रभावित करता है वह अप्रैल 2025 के उच्चतम स्तर से नीचे आने के बाद भी काफी ऊपर है।
आने वाले दिनों में जब तक हालात बेहतर नहीं होते, भारतीय रत्न एवं आभूषण निर्यात, कपड़ा एवं वस्त्र, फार्मास्युटिकल्स, ऑर्गेनिक केमिकल्स आदि पर अगर 50 फीसदी का मौजूदा शुल्क लगता है तो निर्यातकों को भारी नुकसान होगा। इन क्षेत्रों में रोजगार की भी भारी हानि होगी। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है और 2030 तक दोनों देशों का व्यापार बढ़कर 500 अरब डॉलर होने की उम्मीद है। इसे मिशन 500 का नाम दिया गया है। फिलहाल यह आंकड़ा करीब 200 अरब डॉलर का है। अगर देश को वर्ष 2030 तक 2 लाख करोड़ डॉलर का निर्यात लक्ष्य पूरा करना बनाना है तो इस दिशा में काफी काम करना होगा। भारत अमेरिकी मांगों के सामने नहीं झुक सकता है क्योंकि आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है जहां अमेरिका तत्काल खुलापन चाहता है।
इतना ही नहीं ट्रंप भूराजनीतिक मुद्दों पर और रियायत मांग सकते हैं या फिर देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं। उन्होंने ब्राजील पर 50 फीसदी शुल्क लगाया है जिसके साथ अमेरिका का व्यापार अधिशेष है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि ब्राजील की न्यायपालिका ने ट्रंप के मित्र और पूर्व राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो पर अभियोग लगाया है। ट्रंप को यह समझना चाहिए कि पुतिन के साथ उनके बनते-बिगड़ते रिश्तों का इस्तेमाल भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए धमकाने के क्रम में नहीं किया जा सकता है। रूसी तेल अब खास रियायत पर नहीं बिक रहा है और अगर भारत उसे खरीदना बंद कर देता है तो इससे वैश्विक तेल आपूर्ति में उथलपुथल होगी और कीमतें बढ़ेंगी।
भारत को इस अवसर का लाभ लेते हुए अपने उच्च व्यापार गतिरोध को कम करना चाहिए ताकि सबके लिए लाभदायक हालात बन सकें। भारत ने 2018 से अपना व्यापार संरक्षण अनावश्यक रूप से बढ़ाया है और थोलोस व्यापार गतिरोध सूचकांक 2025 में वह 122 देशों में 120वें स्थान पर है। इसमें वह केवल रूस और इंडोनेशिया से बेहतर है। कृषि क्षेत्र के इतर भारत के पास संरक्षण कम करने और अमेरिका के साथ व्यापार समझौते का अवसर मौजूद है। ट्रंप को यह समझना चाहिए कि भारत के साथ दबंगई नहीं की जा सकती है।
बतौर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन की खाद्य सहायता संबंधी धमकियों का विरोध किया था और निक्सन की धमकियों के बावजूद बांग्लादेश की आजादी में सहायता की थी। उन्होंने अमेरिका की ही मदद से हरित क्रांति को अंजाम दिया और खाद्य सहायता पर निर्भरता हमेशा के लिए समाप्त कर दी। प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी तकनीक और मदद के साथ ही सही अगर भारत में और खुलापन तथा प्रतिस्पर्धी क्षमता ला सकें तो शायद वह विकसित भारत की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा सकते हैं। भारत को यूरोपीय संघ के साथ तेजी से व्यापार समझौते की दिशा में बढ़ना चाहिए और प्रशांत पार साझेदारी के व्यापक एवं प्रगतिशील समझौते में शामिल होने पर भी विचार करना चाहिए। आसियान मुक्त व्यापार समझौते में बातचीत करके सेवा क्षेत्र तक उसका विस्तार करना भी भारत के लिए लाभदायक होगा।
अगर ट्रंप पहले से घोषित 25 प्रतिशत टैरिफ के ऊपर दंडात्मक शुल्क लगाते हैं, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत को भारी नुकसान होगा, और अमेरिका-भारत संबंधों में जो गर्मजोशी बढ़ रही थी, वह क्वाड के बावजूद लंबे समय के लिए पीछे चली जाएगी। क्या अमेरिका में रहने वाला समृद्ध और प्रभावशाली भारतीय प्रवासी समुदाय कुछ मदद कर सकता है, यह अभी स्पष्ट नहीं है। भारत और अमेरिका दोनों के लिए काफी कुछ दांव पर लगा है।
(लेखक जाॅर्ज वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के इंटरनैशनल इकनॉमिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट में विशिष्ट अतिथि स्कॉलर हैं)