आवास बाजार मौद्रिक नीति के प्रसार का एक महत्त्वपूर्ण और अहम माध्यम है। ऊंची ब्याज दरों के कारण आवास मांग में कमी से समग्र आर्थिक गतिविधियों में गिरावट आती है। विकसित बाजारों में यह बात खासतौर पर सही है जहां अचल संपत्ति कारोबार संगठित है।
आवास न केवल आर्थिक मांग का एक अहम जरिया है जो सकल घरेलू उत्पाद में 10 से 24 फीसदी का योगदान देता है बल्कि वह अधिकांश परिवारों के लिए एक संपत्ति भी है। दीर्घकालिक संपत्ति होने के नाते इसका मूल्य ब्याज दरों को लेकर अत्यधिक संवेदनशील है।
सन 1980 के दशक में भी तत्कालीन फेड चेयरमैन पॉल वॉल्कर ने मुद्रास्फीति को थामने के लिए ब्याज दरों में तेज इजाफा किया था तब सन 1979 से 1982 के बीच अचल संपत्ति निवेश में 40 फीसदी गिरावट आई थी और यह मंदी की वजह बना था। दूसरी ओर कारोबारी पूंजी का बड़ा हिस्सा प्रतिस्पर्धी प्रकृति का है और अल्पकालिक होता है। ऐसे में निवेश के निर्णय लेते समय फाइनैंसिंग की लागत अपेक्षाकृत छोटा कारक होती है।
अपने पिछले आलेख में हमने कोविड के बाद की कम ब्याज दर वाली परिस्थितियों में विकसित देशों के अचल संपत्ति बाजारों के समक्ष उत्पन्न जोखिम पर चर्चा की थी। समेकित बचत और बड़े मकानों की चाह ने कीमतों को 30 से 50 वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया था। जब कीमतों में दोबारा कमी आई तो दो जोखिम उत्पन्न हुए: धीमी वृद्धि और वित्तीय बाजारों का तनाव। कीमतों में 20 फीसदी गिरावट का अर्थ है कर्ज का संकटग्रस्त हो जाना।
इस चरण में हमारी प्राथमिक चिंता है वैश्विक वृद्धि पर असर। मंदी की स्थिति में कमियों को गहरा या उजागर कर सकती है। उदाहरण के लिए कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार जैसे हालात। हमने अनुमान लगाया था कि अगर अमेरिका, चीन, जर्मनी, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में आवास निर्माण पुराने रुझान पर गिरा तो वैश्विक वृद्धि पर 0.9 फीसदी असर होगा। हाल के दिनों में इनमें से कई बाजारों में तेज मंदी आई जिससे अंदाजा लगता है कि वैश्विक वृद्धि हमारे पहले के अनुमान से बुरी हो सकती है।
अमेरिका में 2.7 लाख करोड़ डॉलर की मॉर्गेज समर्थित प्रतिभूतियां जो फेड के पास हैं, उन्हें आवास बाजार में सीधे पूंजी डालने के उदाहरण के रूप में देखना चाहिए। इन खरीदों के अंत ने मॉर्गेज दरों और सरकारी बॉन्ड प्रतिफल के बीच के अंतर को 1985 के बाद के उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया। ऐसे में जब तक क्वांटिटेटिव ईजिंग दोबारा शुरू नहीं होती है मॉर्गेज दरों के 2021 के स्तर तक आने की संभावना नहीं है, भले ही सरकारी बॉन्ड प्रतिफल इस स्तर पर आ जाए।
फिलहाल मॉर्गेज को लेकर किसी व्यवस्थागत जोखिम की आशंका नहीं है क्योंकि कर्जदारों का क्रेडिट स्कोर 2007 की तुलना में काफी अधिक है, आय में ऋण आधारित सेवाओं की हिस्सेदारी कम है और मकान खरीदने वालों की हिस्सेदारी कई दशकों के उच्चतम स्तर पर है।
बहरहाल, नए शुरू होने वाले मकान अक्टूबर 2022 के उच्चतम स्तर से 20 फीसदी नीचे हैं और अगर बीते पांच दशकों के रुझान को संकेत माना जाए तो इनमें और गिरावट आएगी। अगर मान लिया जाए कि एक मकान को बनाने में औसतन सात महीने का वक्त लगता है तो निर्माणाधीन मकानों की तादाद जो जीडीपी में मकानों के निर्माण के योगदान को निर्धारित करती है, उनमें अब रिकॉर्ड स्तर से कमी आ रही है।
जर्मनी में नई इमारत बनाने के परमिट 2008 के बाद के रुझानों से भी नीचे हैं और जनवरी 2023 में अचल संपत्ति निर्माण के ऑर्डर का मूल्य एक वर्ष पहले के उच्चतम स्तर से 28 फीसदी कम है। बीते दो दशकों में जर्मनी की आबादी शायद ही बदली हो। प्रवासी वहां की आबादी में आ रही नैसर्गिक गिरावट की भरपाई भर कर रहे हैं। 1970 से 2015 के बीच आवास कीमतों में ज्यादा बदलाव नहीं आया। तब से तेज इजाफे और नॉमिनल कीमतों में हालिया गिरावट उन मुश्किलों को सामने ला सकती है जो जांची परखी नहीं हैं।
कनाडा में उच्चतम स्तर से 23 फीसदी की गिरावट के बाद भी नई इमारतों के निर्माण की अनुमति अभी भी रुझान के अनुरूप है और उसके इससे नीचे आने की उम्मीद है। बीते दो दशकों में से अधिकांश समय में दौरान मूल्य आय अनुपात बिगड़ा है और अब वह आधी सदी के निचले स्तर पर है।
ऑस्ट्रेलिया में भी बीते 25 वर्षों में वास्तविक आवास मूल्य में अबाध वृद्धि देखने को मिली है और आवास ऋण प्रतिबद्धताएं 2021 के उच्चतम स्तर से आधी रह गई हैं। चूंकि वे लगभग 2014 के स्तर पर हैं इसलिए उनमें और गिरावट आती नहीं दिखती, खासतौर पर किराया बाजार की सख्ती को देखते हुए। ऐसे में आने वाले महीनों में निर्माण में अपेक्षाकृत कम फंड आएंगे।
मौद्रिक नीति की बात करें तो ऑस्ट्रेलिया का रुझान विकसित देशों के बाजारों में अचल संपत्ति की विशेषताओं को भी दर्शाता है। किराया बाजार की सख्ती भी उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति को ऊंचे स्तर पर रख सकती है क्योंकि किराया खपत के लिए महत्त्वपूर्ण है। बहरहाल, जब उच्च ब्याज दरों के कारण बिक्री में कमी आएगी और फिर विनिर्माण में कमी आएगी तो किराया बाजार में और अधिक सख्ती आ सकती है। एक बार मांग कमजोर पड़ने पर ही इस चक्र का अंत होगा।
वर्तमान कीमतों (नॉमिनल) और वास्तविक आवास कीमतों के रुझान पर अलग से नजर डालना महत्त्वपूर्ण है। उच्च मुद्रास्फीति, खासकर किरायों में इजाफे का अर्थ यह है कि नॉमिनल आवास कीमतें कम गिरेंगी। हालांकि बड़े विकसित देशों में किराया प्रतिफल 2015 की तुलना में 20 से 30 फीसदी कम है क्योंकि ब्याज दरें कम हैं।
वृहद आर्थिक प्रभाव आवास कीमतों में गिरावट की गति और आकार पर निर्भर करता है। अगर उनमें चरणबद्ध तरीके से गिरावट आती है और ज्यादातर गिरावट वास्तविक संदर्भों में होती है तो वृद्धि में कमजोरी के बावजूद वित्तीय स्थिरता बरकरार रहनी चाहिए। बहरहाल, हमारा अनुमान है कि अगर आवास कीमतें नॉमिनल आधार पर 15 फीसदी से अधिक गिरीं तो कुछ प्रमुख बाजारों में भी वित्तीय स्थिरता को लेकर चिंता उत्पन्न हो सकती है।
भारत में ये चिंताएं उतनी प्रासंगिक नहीं हैं। यहां बाजार दशक भर लंबी मंदी से उबर रहा है। आवास क्षेत्र का पूरी तरह वित्तीयकरण नहीं हुआ है। किराया प्रतिफल उतने मायने नहीं रखते और कुल वित्तीय परिसंपत्तियों में मॉर्गेज की हिस्सेदारी बमुश्किल छठे हिस्से के बराबर है। बहरहाल, भारत कमजोर वैश्विक वृद्धि और वित्तीय अस्थिरता के खतरे से अप्रभावित नहीं रहेगा।
(लेखक एपैक स्ट्रैटजी, क्रेडिट सुइस के सह-प्रमुख हैं)