facebookmetapixel
ऋण घटाने की दिशा में अस्पष्ट नीति आर्थिक प्रगति पर पड़ सकती है भारीमहिलाओं को नकदी हस्तांतरण, बढ़ते खर्च राज्यों के लिए बड़ी चुनौतीभारत के प्रति निवेशकों का ठंडा रुख हो सकता है विपरीत सकारात्मक संकेतभारतीय मूल के जोहरान ममदानी होंगे न्यूयॉर्क के मेयरश्रद्धांजलि: गोपीचंद हिंदुजा का जज्बा और विरासत हमेशा रहेंगे यादहरियाणा में हुई थी 25 लाख वोटों की चोरी : राहुल गांधीBihar Elections 2025: भाकपा माले की साख दांव पर, पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौतीक्वांटम कंप्यूटिंग में प्रगति की साक्षी बनेगी अमरावती, निवेशकों की रुचि बढ़ीरेवेन्यू का एक बड़ा अहम कारक है AI, Q2 में मुनाफा 21 करोड़ रुपये : विजय शेखर शर्मामौसम का कितना सटीक अनुमान लगा पाएगी AI? मॉडल तैयार करने की कोशिश, लेकिन पूर्ण भरोसा अभी दूर

आवास निर्माण में मंदी और वृद्धि को
जो​खिम

हाल के दिनों में दुनिया के बड़े बाजारों में आवास निर्माण की गति में काफी धीमापन आया है। इससे वै​श्विक वृद्धि के लिए जो​खिम उत्पन्न हो गया है। बता रहे हैं नीलकंठ मिश्र

Last Updated- January 15, 2024 | 11:29 AM IST
Affordable Housing Projects by Sunteck Realty and IFC
इलस्ट्रेशन- बिनय सिन्हा

आवास बाजार मौद्रिक नीति के प्रसार का एक महत्त्वपूर्ण और अहम माध्यम है। ऊंची ब्याज दरों के कारण आवास मांग में कमी से समग्र आ​र्थिक गतिवि​धियों में गिरावट आती है। विकसित बाजारों में यह बात खासतौर पर सही है जहां अचल संप​त्ति कारोबार संगठित है।

आवास न केवल आ​र्थिक मांग का एक अहम जरिया है जो सकल घरेलू उत्पाद में 10 से 24 फीसदी का योगदान देता है ब​ल्कि वह अ​धिकांश परिवारों के लिए एक संप​त्ति भी है। दीर्घकालिक संप​त्ति होने के नाते इसका मूल्य ब्याज दरों को लेकर अत्य​धिक संवेदनशील है।

सन 1980 के दशक में भी तत्कालीन फेड चेयरमैन पॉल वॉल्कर ने मुद्रास्फीति को थामने के लिए ब्याज दरों में तेज इजाफा किया था तब सन 1979 से 1982 के बीच अचल संप​त्ति निवेश में 40 फीसदी गिरावट आई थी और यह मंदी की वजह बना था। दूसरी ओर कारोबारी पूंजी का बड़ा हिस्सा प्रतिस्पर्धी प्रकृति का है और अल्पकालिक होता है। ऐसे में निवेश के निर्णय लेते समय फाइनैंसिंग की लागत अपेक्षाकृत छोटा कारक होती है।

अपने पिछले आलेख में हमने कोविड के बाद की कम ब्याज दर वाली परि​स्थितियों में विकसित देशों के अचल संप​त्ति बाजारों के समक्ष उत्पन्न जो​खिम पर चर्चा की थी। समेकित बचत और बड़े मकानों की चाह ने कीमतों को 30 से 50 वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया था। जब कीमतों में दोबारा कमी आई तो दो जो​खिम उत्पन्न हुए: धीमी वृद्धि और वित्तीय बाजारों का तनाव। कीमतों में 20 फीसदी गिरावट का अर्थ है कर्ज का संकटग्रस्त हो जाना।

इस चरण में हमारी प्राथमिक चिंता है वै​श्विक वृद्धि पर असर। मंदी की ​स्थिति में कमियों को गहरा या उजागर कर सकती है। उदाहरण के लिए कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार जैसे हालात। हमने अनुमान लगाया था कि अगर अमेरिका, चीन, जर्मनी, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में आवास निर्माण पुराने रुझान पर गिरा तो वै​श्विक वृद्धि पर 0.9 फीसदी असर होगा। हाल के दिनों में इनमें से कई बाजारों में तेज मंदी आई जिससे अंदाजा लगता है कि वै​श्विक वृद्धि हमारे पहले के अनुमान से बुरी हो सकती है।

अमेरिका में 2.7 लाख करोड़ डॉलर की मॉर्गेज सम​र्थित प्रतिभूतियां जो फेड के पास हैं, उन्हें आवास बाजार में सीधे पूंजी डालने के उदाहरण के रूप में देखना चाहिए। इन खरीदों के अंत ने मॉर्गेज दरों और सरकारी बॉन्ड प्रतिफल के बीच के अंतर को 1985 के बाद के उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया। ऐसे में जब तक क्वांटिटेटिव ईजिंग दोबारा शुरू नहीं होती है मॉर्गेज दरों के 2021 के स्तर तक आने की संभावना नहीं है, भले ही सरकारी बॉन्ड प्रतिफल इस स्तर पर आ जाए।

फिलहाल मॉर्गेज को लेकर किसी व्यवस्थागत जो​खिम की आशंका नहीं है क्योंकि कर्जदारों का क्रेडिट स्कोर 2007 की तुलना में काफी अ​धिक है, आय में ऋण आधारित सेवाओं की हिस्सेदारी कम है और मकान खरीदने वालों की हिस्सेदारी कई दशकों के उच्चतम स्तर पर है।

बहरहाल, नए शुरू होने वाले मकान अक्टूबर 2022 के उच्चतम स्तर से 20 फीसदी नीचे हैं और अगर बीते पांच दशकों के रुझान को संकेत माना जाए तो इनमें और गिरावट आएगी। अगर मान लिया जाए कि एक मकान को बनाने में औसतन सात महीने का वक्त लगता है तो निर्माणाधीन मकानों की तादाद जो जीडीपी में मकानों के निर्माण के योगदान को निर्धारित करती है, उनमें अब रिकॉर्ड स्तर से कमी आ रही है।

जर्मनी में नई इमारत बनाने के परमिट 2008 के बाद के रुझानों से भी नीचे हैं और जनवरी 2023 में अचल संप​त्ति निर्माण के ऑर्डर का मूल्य एक वर्ष पहले के उच्चतम स्तर से 28 फीसदी कम है। बीते दो दशकों में जर्मनी की आबादी शायद ही बदली हो। प्रवासी वहां की आबादी में आ रही नैसर्गिक गिरावट की भरपाई भर कर रहे हैं। 1970 से 2015 के बीच आवास कीमतों में ज्यादा बदलाव नहीं आया। तब से तेज इजाफे और नॉमिनल कीमतों में हालिया गिरावट उन मु​श्किलों को सामने ला सकती है जो जांची परखी नहीं हैं।

कनाडा में उच्चतम स्तर से 23 फीसदी की गिरावट के बाद भी नई इमारतों के निर्माण की अनुमति अभी भी रुझान के अनुरूप है और उसके इससे नीचे आने की उम्मीद है। बीते दो दशकों में से अ​धिकांश समय में दौरान मूल्य आय अनुपात बिगड़ा है और अब वह आधी सदी के निचले स्तर पर है।

ऑस्ट्रेलिया में भी बीते 25 वर्षों में वास्तविक आवास मूल्य में अबाध वृद्धि देखने को​ मिली है और आवास ऋण प्रतिबद्धताएं 2021 के उच्चतम स्तर से आधी रह गई हैं। चूंकि वे लगभग 2014 के स्तर पर हैं इसलिए उनमें और गिरावट आती नहीं दिखती, खासतौर पर किराया बाजार की सख्ती को देखते हुए। ऐसे में आने वाले महीनों में निर्माण में अपेक्षाकृत कम फंड आएंगे।

मौद्रिक नीति की बात करें तो ऑस्ट्रेलिया का रुझान विकसित देशों के बाजारों में अचल संप​त्ति की विशेषताओं को भी दर्शाता है। किराया बाजार की सख्ती भी उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति को ऊंचे स्तर पर रख सकती है क्योंकि किराया खपत के लिए महत्त्वपूर्ण है। बहरहाल, जब उच्च ब्याज दरों के कारण बिक्री में कमी आएगी और फिर विनिर्माण में कमी आएगी तो किराया बाजार में और अ​धिक सख्ती आ सकती है। एक बार मांग कमजोर पड़ने पर ही इस चक्र का अंत होगा।

वर्तमान कीमतों (नॉमिनल) और वास्तविक आवास कीमतों के रुझान पर अलग से नजर डालना महत्त्वपूर्ण है। उच्च मुद्रास्फीति, खासकर किरायों में इजाफे का अर्थ यह है कि नॉमिनल आवास कीमतें कम गिरेंगी। हालांकि बड़े विकसित देशों में किराया प्रतिफल 2015 की तुलना में 20 से 30 फीसदी कम है क्योंकि ब्याज दरें कम हैं।

वृहद आ​र्थिक प्रभाव आवास कीमतों में गिरावट की गति और आकार पर निर्भर करता है। अगर उनमें चरणबद्ध तरीके से गिरावट आती है और ज्यादातर गिरावट वास्तविक संदर्भों में होती है तो वृद्धि में कमजोरी के बावजूद वित्तीय ​स्थिरता बरकरार रहनी चाहिए। बहरहाल, हमारा अनुमान है कि अगर आवास कीमतें नॉमिनल आधार पर 15 फीसदी से अ​धिक गिरीं तो कुछ प्रमुख बाजारों में भी वित्तीय ​स्थिरता को लेकर चिंता उत्पन्न हो सकती है।

भारत में ये चिंताएं उतनी प्रासंगिक नहीं हैं। यहां बाजार दशक भर लंबी मंदी से उबर रहा है। आवास क्षेत्र का पूरी तरह वित्तीयकरण नहीं हुआ है। किराया प्रतिफल उतने मायने नहीं रखते और कुल वित्तीय परिसंप​त्तियों में मॉर्गेज की हिस्सेदारी बमु​श्किल छठे हिस्से के बराबर है। बहरहाल, भारत कमजोर वै​श्विक वृद्धि और वित्तीय अ​स्थिरता के खतरे से अप्रभावित नहीं रहेगा।

(लेखक एपैक स्ट्रैटजी, क्रेडिट सुइस के सह-प्रमुख हैं)

First Published - April 14, 2023 | 8:10 PM IST

संबंधित पोस्ट