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Editorial: AI पर समझदारी भरा नियमन

भारत भी इस समय इस दिशा में प्रयासरत है और वर्तमान में चल रही एआई वैश्विक साझेदारी शिखर बैठक (जीपीएआई) में इस विषय पर घोषणा दस्तावेज लाने का प्रयास कर रहा है।

Last Updated- December 13, 2023 | 8:25 AM IST
Sensible regulation on AI

यूरोपीय संघ ने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) अधिनियम पारित कर दिया है। यह दुनिया भर में एआई से संबंधित पहला कानून है और नियमन तथा निगरानी का एक मॉडल मुहैया कराता है। यह एआई नियमन पर वैश्विक सहमति का मानक भी बन सकता है। भारत भी इस समय इस दिशा में प्रयासरत है और वर्तमान में चल रही एआई वैश्विक साझेदारी शिखर बैठक (जीपीएआई) में इस विषय पर घोषणा दस्तावेज लाने का प्रयास कर रहा है।

एआई ने कई क्षेत्रों में विनिर्माण को किफायती बनाया है। इसकी वजह से दवाओं की खोज तेज हुई है तथा पदार्थ विज्ञान शोध में नई पहल हुई है। वैज्ञानिक शोध से लेकर स्वायत्त परिवहन, स्वास्थ्य सेवा और बीमारियों की खोज तक एवं स्मार्ट पावर ग्रिड से लेकर वित्तीय तंत्र और दूरसंचार नेटवर्क समेत यह निजी और सार्वजनिक सेवाओं के स्तर पर बहुत उपयोगी साबित हो सकती है।

परंतु एआई आपराधिक गतिविधियों की वजह भी बन सकता है। यह अधिनायकवादी सत्ता के हाथ में अधिक अधिकार देता है। चेहरे को तत्काल पहचानने की क्षमता, व्यापक निगरानी उपाय और भेदभावकारी सामाजिक अंकेक्षण तंत्र इसकी बानगी हैं। कई सैन्य ऐप्लिकेशन से भी खतरे सामने आ सकते हैं जो ऐसे स्वचालित हथियार बनाने में मददगार हो सकती हैं जहां इंसानी हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता ही नहीं होगी। यह स्वचेतन एआई की साइंस-फिक्शन की संभावनाओं से एकदम अलग है जिसमें माना जा रहा है कि वह अपनी प्रकृति को तार्किक ढंग से समझता है और जिज्ञासा के साथ सीखकर काम करता है।

ऐसी चिंताओं से समग्रता के साथ निपटा जाना चाहिए और विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं में ऐसे नियमन को लेकर सहमति होनी चाहिए। ऐसा इसलिए कि एआई का बहुत तेजी से चौतरफा प्रसार होता है। आदर्श स्थिति है नियंत्रण की निगरानी और नुकसान की संभावना को कम करना। ऐसा करते समय यह भी ध्यान रखना होगा कि शोध तथा लाभकारी एआई की शुरुआत पर असर न पड़े।

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यूरोपीय संघ के नियमन एआई के लिए एक तकनीक निरपेक्ष, एकरूप परिभाषा स्थापित करने प्रयास करते हैं जो भविष्य की प्रणालियों पर लागू होंगी। यह अहम है क्योंकि तकनीक का उद्भव बहुत तेज गति से हो रहा है। अवधारणात्मक ढांचा एआई प्रणालियों को जोखिम के अनुसार वर्गीकृत करता है। जोखिम जितना अधिक होगा, निगरानी उतनी ही सख्त होगी और प्रदाताओं और उपयोगकर्ताओं के दायित्व उतने ही अधिक होंगे।

सीमित जोखिम वाली व्यवस्था को पारदर्शिता की जरूरत के साथ अनुपालन वाला होना चाहिए जो एआई अधिनियम के साथ सूचित निर्णयों की इजाजत देता है। उपयोगकर्ताओं को यह पता होना चाहिए कि वे कब एआई से संवाद कर रहे हैं। उदाहरण के लिए चित्र, ध्वनि या वीडियो सामग्री तैयार करने वाले सिस्टम या डीपफेक आदि। पारदर्शिता की जरूरतों में यह खुलासा भी शामिल है कि कोई सामग्री एआई से तैयार की गई है।

यूरोपीय संघ का कानून कहता है कि सुरक्षा अथवा बुनियादी अधिकारों को प्रभावित करने वाली एआई प्रणालियों को अत्यधिक जोखिम वाला माना जाता है और उसे दो श्रेणियों में बांटा जाता है। एक है खिलौनों, विमानन, कारों, चिकित्सा उपकरणों और लिफ्ट आदि में इस्तेमाल होने वाली एआई और दूसरा विभिन्न क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाली एआई जिसे यूरोपीय संघ के डेटाबेस में दर्ज होना चाहिए। इसमें बायोमेट्रिक पहचान, अहम अधोसंरचना, शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा एआई द्वारा प्रबंधित जरूरी निजी सार्वजनिक सेवाएं शामिल हैं। ऐसे जोखिम वाले एआई उत्पादों को पेश करने के पहले समुचित आकलन किया जाना चाहिए।

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कुछ प्रणालियां जो अस्वीकार्य जोखिम वाली हैं उन्हें इस कानून में प्रतिबंधित किया गया है। इसमें लोगों के संज्ञानात्मक व्यवहार को बदलने या संवेदनशील समूह को प्रभावित करने वाले ऐप्लिकेशन शामिल हैं। उदाहरण के लिए खतरनाक व्यवहार को बढ़ावा देने वाले खिलौने, ऐसा सामाजिक अंक जो लोगों को उनके व्यवहार, सामाजिक आर्थिक दर्जे या गुणों के आधार पर बांटे।

रियल टाइम या रिमोट बायोमेट्रिक पहचान प्रणालियों मसलन चेहरे की पहचान आदि का इस्तेमाल केवल अदालत की मंजूरी से किया जा सकेगा वह भी केवल गंभीर अपराध के मामलों में पहचान के लिए। कतिपय क्षेत्रों में इस ढांचे में बदलाव की आवश्यकता होगी और इसमें सैन्य शोध एवं विकास शामिल नहीं है इसके बावजूद यह एक आधार रेखा मुहैया कराता है जिस पर पूरी दुनिया सहमत हो सकती है। जीपीएआई में इसके कुछ संस्करणों को अपनाने पर विचार किया जाना चाहिए और भारत को घरेलू लाइसेंसिंग इसी तर्ज पर शुरू करनी चाहिए।

First Published - December 12, 2023 | 9:39 PM IST

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