भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा वर्ष 2023 की अंतिम नीतिगत समीक्षा को लेकर व्यापक तौर पर यही अपेक्षा थी कि नीतिगत दरें और नीतिगत रुख अपरिवर्तित रहेगा।
समिति ने बाजार को नहीं चौंकाने का उचित निर्णय लिया और वर्ष का संतोषजनक समापन किया। हकीकत में 2023 अनुमान से बेहतर वर्ष साबित हुआ। वर्ष की शुरुआत भारी अनिश्चितता के साथ हुई थी।
विकसित देशों में मुद्रास्फीति की दर बहुत अधिक थी और केंद्रीय बैंक इससे निपटने के लिए संघर्ष कर रहे थे। यह स्पष्ट नहीं था कि कुछ विकसित देशों में मुद्रास्फीति कितने समय तक ऊंचे स्तर पर बनी रहेगी या फिर बड़े केंद्रीय बैंकों द्वारा लगातार मौद्रिक नीति में सख्ती का बाजार पर क्या असर होगा।
यह बात ध्यान देने लायक है कि बड़े केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक सख्ती की वजह से दुनिया के वित्तीय और मुद्रा बाजारों में काफी अस्थिरता देखने को मिली। खासतौर पर 2022 में फेडरल रिजर्व के कदमों से। अब जबकि 2023 समाप्त होने के करीब है तो विकसित देशों में मुद्रास्फीति की दर भले ही लक्ष्य से अधिक है लेकिन उसमें काफी कमी आई है।
फेडरल रिजर्व ने भले ही यह संकेत दिया है कि नीतिगत ब्याज दरें लंबी अवधि तक ऊंची बनी रहेंगी, वित्तीय हालात काफी हद तक सहज हुए हैं।
वृद्धि के क्षेत्र में भी प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर रहा है। अमेरिका में अब तक मंदी नहीं आई है जबकि भारत में वृद्धि के आंकड़े अपेक्षा से बेहतर रहे हैं। ऐसे में शुक्रवार को वित्तीय बाजार एमपीसी के संशोधित वृद्धि अनुमानों को लेकर अधिक उत्सुक थे।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के लिए सकल घरेलू उत्पाद के हाल ही में जारी आंकड़ों ने दिखाया कि अर्थव्यवस्था में 7.6 फीसदी वृद्धि हुई। इस प्रकार वित्त वर्ष की पहली छमाही में वृद्धि दर 7.7 फीसदी हो गई। एमपीसी के संशोधित आंकड़ों के मुताबिक पूरे वर्ष की वृद्धि दर सात फीसदी रह सकती है।
समिति का अनुमान है कि तीसरी और चौथी तिमाही में अर्थव्यवस्था में 6.5 फीसदी और छह फीसदी का इजाफा होगा। यह अनुमान भी है कि 2024-25 की पहली छमाही में वृद्धि दर 6.5 फीसदी रह सकती है। अगले वर्ष अगर वृद्धि दर को इस स्तर पर रखा जा सका तो यह सराहनीय होगा।
मुद्रास्फीति के मोर्चे पर मौद्रिक नीति समिति का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में इसकी दरें औसतन 5.4 फीसदी रहेंगी। चालू वर्ष में जहां दरें तय लक्ष्य से ऊंची रहेंगी, वहीं समिति का अनुमान है कि 2024-25 की दूसरी तिमाही में यह घटकर चार फीसदी रह जाएगी और तीसरी तिमाही में पुन: बढ़कर 4.7 फीसदी हो जाएगी। दुनिया भर में मुद्रास्फीति की दरों में कमी आ रही है और कोर मुद्रास्फीति भी सहज हो रही है। ऐसे में खाद्य कीमतों में इजाफा चुनौती बन सकता है।
हेडलाइन मुद्रास्फीति की दर के नवंबर और दिसंबर में अधिक रहने की उम्मीद है क्योंकि सब्जियां महंगी हैं। एमपीसी इस पर नजर रखेगी जो कि समझदारी भरी बात है क्योंकि सब्जियों की कीमतों में इजाफा टिकाऊ नहीं है। वास्तविक चिंता खाद्यान्न कीमतों को लेकर होनी चाहिए।
सरकार ने कई चीजों के निर्यात पर रोक लगा दी है जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिली है लेकिन मौसमी कारणों से उत्पादन में होने वाली कमी के चलते कीमतें ऊंची बनी रह सकती हैं। कुल मिलाकर भूराजनीतिक तनाव जैसे वैश्विक कारक जहां भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम बने रहेंगे और वैश्विक वृद्धि मध्यम अवधि में रुझानों के नीचे बनी रहेगी, वहीं वित्तीय बाजारों से जोखिम में उल्लेखनीय कमी आई है।
हकीकत में अगली कुछ तिमाहियों के लिए पूर्वानुमान बीते कुछ वर्षों की तुलना में बेहतर हुए हैं। घरेलू नतीजों पर नीतिगत परिवर्तन का भी असर होगा। यह 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले और बाद में भी देखने को मिलेगा।