ऐक्सिस बैंक के एमडी एवं सीईओ अमिताभ चौधरी ने मनोजित साहा और सुब्रत पांडा से खास बातचीत में बताया कि आरबीआई के नए नियमों से ऐक्सिस बैंक के लिए संभवत: ऐक्सिस फाइनैंस में पूंजी निवेश का मार्ग प्रशस्त हुआ है। उन्होंने बताया कि इससे बैंकिंग क्षेत्र में वृद्धि के रुझान, शुद्ध ब्याज मार्जिन, अनुमानित ऋण नुकसान (ईसीएल) आदि पर भी प्रभाव पड़ेगा। मुख्य अंश:
किसी बैंक समूह की इकाइयों में ओवरलैपिंग (कारोबार के दोहराव) पर आरबीआई द्वारा प्रतिबंध हटाए जाने से ऐक्सिस फाइनैंस में हिस्सेदारी बेचने के आपके निर्णय पर क्या असर पड़ेगा?
ऐक्सिस फाइनैंस के प्रदर्शन को देखते हुए ऐसा लगता है कि वह वित्त वर्ष 2027 तक ऊपरी स्तर की एनबीएफसी में शामिल हो सकती है। ऐसा होने पर हमें तीन साल के भीतर उसे सूचीबद्ध कराना होगा। कारोबार के स्वरूप पर हालिया प्रपत्र बैंकों को बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति के तहत सहायक इकाइयों द्वारा किए गए कारोबार की प्रकृति निर्धारित करने की सुविधा प्रदान करता है। मगर इससे पहले आरबीआई के दिशानिर्देशों के आधार पर हमने स्पष्ट तौर पर कहा था कि हम कोई इक्विटी नहीं डालेंगे और बाहरी स्रोतों से रकम जुटाएंगे। मगर नया प्रपत्र संभवत: हमें पूंजी निवेश करने की अनुमति देता है। इसके लिए हमें आरबीआई से संपर्क करना होगा और मंजूरी लेनी होगी। इस मामले में आंतरिक तौर पर विचार-विमर्श जारी है और हमें अगले कुछ महीनों में तस्वीर साफ होने की उम्मीद है।
अगर आप हिस्सेदारी बेचना चाहेंगे तो वह कितनी होगी?
हिस्सेदारी बेचने की योजना महज इच्छा से नहीं बल्कि अगले कुछ वर्षों के लिए ऐक्सिस फाइनैंस की वित्तीय जरूरतों से प्रेरित थी। हमारा उद्देश्य ऐक्सिस फाइनैंस के लिए पर्याप्त पूंजी जुटाना था। हमने अनुमान लगाया था कि कंपनी को 2,000 से 3,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। इसलिए इतनी रकम जुटाने के लिए मूल्यांकन के लिहाज से जो भी हिस्सेदारी बेचने की जरूरत थी, उसके लिए हम आगे बढ़ सकते थे।
हालिया दर में कटौती के कारण आपके मार्जिन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
हमने संकेत दिया था कि तीसरी तिमाही में हमारे शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में गिरावट आएगी और आगे दर में कटौती नहीं हुई तो उसमें कुछ सुधार की उम्मीद थी। दर में हालिया कटौती के प्रभाव से निपटने में थोड़ा समय लगेगा क्योंकि कटौती का लाभ कर्जधारकों को दिया जाएगा। हमें उम्मीद है कि अगले कुछ तिमाहियों में एनआईएम में सुधार होना शुरू हो जाएगा। हम 3.8 फीसदी एनआईएम के अपने अनुमान पर कायम हैं।
दरों में कटौती करना कितना मुश्किल है?
यह नकदी की हालत पर निर्भर करता है। आरबीआई ने मौद्रिक नीति में स्पष्ट किया है कि तरलता को एक निश्चित स्तर पर बनाए रखना जरूरी है। तरलता के स्थिर होने पर रुपया भी अपेक्षाकृत स्थिर होगा और जमा दरों में भी स्थिरता दिखनी चाहिए। हमें उम्मीद है कि अगले एक से दो तिमाहियों के दौरान कुछ दरें स्थिर हो जाएंगी।
अधिग्रहण के लिए वित्त देने के क्षेत्र में अवसर को आप कैसे देखते हैं?
हम ऋण और बॉन्ड के सबसे बड़े कारोबारियों में शामिल हैं। हमारा मानना है कि हम अधिग्रहण करने की इच्छुक कंपनियों को व्यापक समाधान प्रदान कर सकते हैं। हम अधिग्रहण फाइनैंसिंग अवसर में सबसे आगे रहना चाहेंगे। खास तौर पर ऐसे समय में जब भारतीय कंपनी जगत तेजी से अधिग्रहण कर रहा है। इससे न केवल हमारे बहीखाते में मजबूती आएगी बल्कि हमारी लाभप्रदता भी बढ़ेगी। हमने स्टील, सीमेंट और फार्मास्युटिकल्स जैसे क्षेत्रों में अधिग्रहण गतिविधियां देखी है। मुझे ऐसा कोई कारण नहीं दिखता कि भारतीय बैंकों के पास अधिग्रहण फाइनैंसिंग की क्षमता क्यों नहीं होनी चाहिए और उसे केवल विदेशी बैंकों के लिए छोड़ दिया जाए।
क्या कासा में गिरावट का रुख अब खत्म हो गया है?
मुझे ऐसा नहीं लगता। जैसे-जैसे जमाकर्ता अधिक जानकार होते जाते हैं और विभिन्न विकल्पों, जैसे म्युचुअल फंड, पेंशन फंड एवं अन्य में तेजी से निवेश करते हैं तो बैंकिंग प्रणाली में रकम वापस आती है। मगर वह थोक जमा के रूप में आती है। आम तौर पर खुदरा जमा के मुकाबले इसकी लागत अधिक होती है। कई ग्राहक अब चालू या बचत खातों (कासा) में अधिक रकम नहीं रखते हैं। इससे समग्र जमा प्रोफाइल में सीएएसए यानी कासा की हिस्सेदारी घट रही है।
क्या आप अपने ऋण-जमा अनुपात से संतुष्ट हैं?
हमने कई तिमाहियों से इसे 92 से 93 फीसदी के दायरे में बनाए रखा है। नियामक ने किसी खास आंकड़े पर जोर नहीं दिया है। हम अपनी मौजूदा स्थिति से बिल्कुल संतुष्ट हैं।
वृद्धि के लिए आपके क्या लक्ष्य हैं?
मध्यावधि में हमारा लक्ष्य उद्योग के मुकाबले करीब 300 आधार अंक अधिक दर के साथ बढ़ना है।
ईसीएल दिशानिर्देशों से क्या नुकसान होगा?
अगर अनुमानित ऋण घाटे (ईसीएल) के मसौदा दिशानिर्देशों को उसी रूप में लागू किया जाता है तो पहले और दूसरे चरण में काफी अधिक प्रावधानों की आवश्यकता हो सकती है। यह पूरी बैंकिंग प्रणाली पर लागू होगा। लेकिन यदि अन्य प्रमुख देशों की तरह अंतिम मानदंड तैयार किए गए तो मैं समझता हूं कि हमारे पास पहले से ही पर्याप्त प्रावधान हैं। हमने कोविड से संबंधित प्रावधानों को बरकरार रखा है और उनका उपयोग नहीं किया है।
निजी क्षेत्र के भारतीय बैंकों में विदेशी निवेशकों की काफी दिलचस्पी है। क्या किसी ने आपसे संपर्क किया है?
नहीं। हम एक बड़े बैंक हैं। हमारे में कोई सार्थक हिस्सेदारी रखने के लिए बहुत बड़ी रकम की जरूरत होगी। मगर यह भारतीय बैंकिंग प्रणाली के लिए एक सकारात्मक बात है। उम्मीद है कि ऐसे निवेशक जोखिम प्रबंधन, प्रौद्योगिकी, ग्राहकों के साथ तालमेल और विशेष उत्पादों जैसे क्षेत्रों में वैश्विक सर्वोत्तम चलन को लाने में मदद करेंगे।
क्या आगे किसी सामान्य बीमा कंपनी को खरीदने की योजना है?
हमने सामान्य बीमा क्षेत्र में मौजूद अवसरों का आकलन किया है, लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ नहीं दिखा है जहां वास्तव में हमारी दिलचस्पी हो।
नियामकीय माहौल को आप कैसे देखते हैं?
पिछले आरबीआई गवर्नर के कार्यकाल में परिस्थितियां एवं संदर्भ कुछ अलग थे। नए गवर्नर के आने के साथ ही उच्च वृद्धि पर जोर दिया गया है। आरबीआई ने संकेत दिया है कि वृद्धि पर जोर देने की जरूरत है। साथ ही जोखिम प्रबंधन और अनुपालन के लिए एक मजबूत ढांचा बनाए रखने की आवश्यकता है। नियामक ने कारोबारी सुगमता पर भी ध्यान केंद्रित किया है।