क्या आपको 1992 में विश्व कप क्रिकेट का वह क्षण याद है जब एक मैच में दक्षिण अफ्रीका के जोंटी रोड्स ने पाकिस्तान के इंजमाम-उल-हक को रन-आउट किया था? रोड्स के उस कारनामे को देखकर मैच का हाल सुनाने वाले कमेंटेटर भौचक्के रह गए थे। उनके जेहन में एक ही सवाल थाः रोड्स ने यह कारनामा किसी पक्षी के अंदाज में किया या हवाई जहाज के अंदाज में?
कुछ यही हाल नीतिगत दरें लगातार दो बार अपरिवर्तित रखने के भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के निर्णय का विश्लेषण करने वाले विश्लेषकों का है। विश्लेषक यह पूछ रहे हैं कि ये दरें अपरिवर्तित रखना नरम रुख का परिचायक है या यह कोई सतर्कता भरा कदम है?
अप्रैल में मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था, ‘यह महज एक ठहराव है, न कि कोई बड़ा बदलाव।’ उनकी इस टिप्पणी के बाद अप्रैल में नीतिगत दरें अपरिवर्तित रखने के निर्णय का सतर्क विश्लेषण होने लगा। मैं कहना चाहूंगा कि इस बार केंद्रीय बैंक ने सतर्कता बरतते हुए दरों में कोई बदलाव नहीं किया है।
वर्ष 2014 में मौद्रिक नीति की घोषणा के बाद मीडिया से बातचीत में तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था, ‘हम न ही सतर्क हैं और न ही बेफिक्र हैं। हम उल्लू की तरह हैं।’ तभी मौद्रिक नीति के प्रभारी डिप्टी गवर्नर ऊर्जित पटेल ने राजन की टिप्पणी को स्पष्ट किया और कहा, ‘परंपरागत रूप से उल्लू बुद्धिमानी का प्रतीक माना जाता है। दूसरे लोगों से अलग हम सदैव परिस्थितियों पर नजर बनाए रखते हैं।’
कुछ इसी अंदाज में दास ने महंगाई दरों को लेकर आरबीआई के सतर्क रुख पर बार-बार जोर दिया है। अप्रैल में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित सालाना महंगाई दर मार्च में दर्ज 5.7 प्रतिशत से कम होकर 4.7 प्रतिशत रह गई। इस तरह, अप्रैल में सालाना खुदरा महंगाई दर कम होकर 18 महीने के निचले स्तर पर आ गई थी। मगर आरबीआई इसे खुश होने की वजह मानने के लिए तैयार नहीं है।
कोविड महामारी के बाद पैदा हुए हालात में महंगाई निर्धारित दायरे के ऊपरी सिरे पर पहुंच गई थी और आरबीआई इसे बर्दाश्त कर रहा था। अब पूरा ध्यान महंगाई दीर्घकाल के लिए तय दायरे के निचले स्तर यानी 4 प्रतिशत पर लाने पर है। इस कारण से यह मौद्रिक नीति समीक्षा पूर्व की समीक्षाओं से अलग हो जाती है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘हमें महंगाई दर 4 प्रतिशत तक सीमित रखने के प्रमुख लक्ष्य की तरफ बढ़ना है।’ आरबीआई ने महंगाई दर के लिए 4 प्रतिशत की सीमा तय कर रखी है। इसमें 2 प्रतिशत कमी या बढ़ोतरी की गुंजाइश रखी गई है।
नीतिगत दरों का निर्धारण करने वाली आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के परिणामों से किसी को कोई आश्चर्य नहीं हो रहा है। समिति के सभी सदस्यों ने एकमत के साथ रीपो दर 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है।
वित्तीय प्रणाली से नकदी वापस लेने से जुड़े रुख में कोई बदलाव नहीं किया गया है। हालांकि, एमपीसी के एक सदस्य ने राहत उपाय वापस लिए जाने के पक्ष अपनी राय दी है।
मगर एक बात स्पष्ट है कि आरबीआई इस मौद्रिक नीति समीक्षा में आत्मविश्वास से अधिक ओत-प्रोत लग रहा है। आरबीआई को लगता है कि उतार-चढ़ाव वाले पिछले तीन वर्षों की तुलना में अब भविष्य की तस्वीर अधिक स्पष्ट लग रही है। आरबीआई ने इस बात को भी इंगित किया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय क्षेत्र मजबूत एवं प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम दिख रहे हैं।
मगर आरबीआई सतर्कता का स्तर कम नहीं करना चाहता है क्योंकि प्रमुख महंगाई दर निर्धारित दायरे से अब भी ऊपर है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आरबीआई के अनुमान के अनुसार आने वाले दिनों में भी इसमें कमी की गुंजाइश नहीं दिख रही है। यही कारण है कि आरबीआई को लगता है कि महंगाई की चाल पर पैनी नजर रखना जरूरी है, खासकर तब जब मॉनसून और अल नीनो के प्रभाव पर अनिश्चितता बरकरार है।
सतर्क रुख का परिचय देते हुए आरबीआई गवर्नर ने स्पष्ट किया कि नीतिगत दरें अपरिवर्तित रखने का निर्णय वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप लिया गया है और आवश्यकता महसूस होने और महंगाई नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति के मोर्चे पर सभी कदम उठाए जाएंगे।
लगभग सभी इस बात की उम्मीद कर रहे थे कि नीतिगत दरें अपरिवर्तित रहेंगी। कुछ लोगों को लग रहा था नीति को लेकर आरबीआई के रुख में बदलाव हो सकता है। आरबीआई ने ऐसा नहीं किया है। क्यों ?
इसका कारण यह है कि वित्तीय प्रणाली में अधिशेष नकदी है। बैंकों में जैसे-जैसे 2,000 रुपये के नोट आते जाएंगे, वैसे ही नकदी में संभवतः और इजाफा होगा। आरबीआई नकदी प्रबंधन में फुर्तीला रवैया अपनाने की बात कह चुका है। वह आर्थिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त नकदी सुनिश्चित करने और वित्त वर्ष 2024 में सरकार के 15.43 लाख करोड़ रुपये के भारी भरकम उधारी कार्यक्रम को चरणबद्ध रूप से पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है।
आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के अनुमान में कोई बदलाव नहीं किया है और इसे 6.5 प्रतिशत के स्तर पर स्थिर रखा है। हालांकि, इसने तिमाही वृद्धि दर के अनुमानों में जरूर बदलाव किए हैं। दो तिमाहियों के लिए इसने अनुमान बढ़ा दिए हैं और दो के लिए कम कर दिए हैं।
केंद्रीय बैंक ने खुदरा महंगाई का अनुमान अप्रैल के अनुमान 5.2 प्रतिशत से मामूली घटाकर 5.1 प्रतिशत कर दिया है? मगर बुधवार को धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाए जाने के कारण खुदरा महंगाई पर 10-12 आधार अंक का बदलाव हो सकता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि नीतिगत दरें बढ़ने का सिलसिला अब समाप्ति की ओर बढ़ चला है। तो फिर दरों में पहली कटौती कब होगी?
फिलहाल तो कमी की गुंजाइश नहीं है। निकट भविष्य में महंगाई बढ़ने की आशंका कम जरूर हो गई है मगर वित्त वर्ष की दूसरी छमाही के संदर्भ में ऐसा नहीं कहा जा सकता। आरबीआई दरों में कटौती करने का निर्णय लेने से पहले इन तमाम पहलुओं पर जरूर विचार करेगा।
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक और जन स्मॉल फाइनैंस बैंक में वरिष्ठ सलाहकार हैं)