फसलों के उत्पादन में रसायनों का उपयोग कम करने को लेकर बढ़ती जागरूकता के बीच जैव-उर्वरकों एवं जैव-कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। जैव-उर्वरक एवं जैव-कीटनाशक रासायनिक उर्वरकों के विकल्प माने जाते हैं और पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी ये अनुकूल होते हैं।
अधिकांश जैव-उर्वरक एवं जैव-कीटनाशक रासायनिक उर्वरकों की तरह एवं कुछ मामलों में फसल के विकास एवं इन्हें कीटों, बीमारियों और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाने में अधिक असरदार होते हैं। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ये मूलभूत संसाधनों जैसे मृदा एवं जल को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
जिन क्षेत्रों में आधुनिक पद्धति से खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए खेती-बाड़ी अधिक होती है उन इलाकों में कीटनाशकों, रासायनिक उर्वरकों और अन्य संश्लेषित तत्त्वों के बेतहाशा इस्तेमाल से मृदा एवं जल संसाधनों को काफी नुकसान पहुंचा है। इसका एक और नुकसान यह हुआ है कि कीट एवं रोगाणु रासायनिक उर्वरकों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते जा रहे हैं। कीटों एवं फसलों में होने वाली बीमारियों के नए स्वरूप भी दिखने लगे हैं।
हानिकारक रसायनों के इस्तेमाल के बिना उगाए गए उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है। अब कृषि-रसायन उद्योग ने भी इन पहलुओं पर गौर करना शुरू कर दिया है। उर्वरकों, कीटनाशकों एवं पौधों के विकास में सहायक हार्मोन बनाने वाली कंपनियां अब नए उत्पाद तैयार करने पर ध्यान देने लगी हैं। वे अपने मौजूदा संयंत्रों में जैविक कृषि तत्त्व तैयार करने की क्षमता बढ़ा रही हैं या इस कार्य के लिए नए संयंत्र लगा रही हैं।
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जैव-उत्पादों का उत्पादन एवं इनके इस्तेमाल को बढ़ावा देने में स्टार्टअप कंपनियां सराहनीय भूमिका निभा रही हैं। हालांकि, परंपरागत रसायनों एवं कीटनाशकों की जगह पूरी तरह जैव-उर्वरकों का इस्तेमाल संभव नहीं है और ना ही ऐसा करना उपयुक्त होगा मगर पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से अनुकूल जैविक कृषि तत्त्वों को निश्चित रूप से बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार रासायनिक उर्वरकों के साथ ही जैविक खाद का इस्तेमाल कर फसलों का उत्पादन करना एक उचित माध्यम होगा। कई स्टार्टअप कंपनियां इस संकल्पना के आधार पर फसलों की सुरक्षा में आड़े आने वाली समस्याओं के लिए किसानों को नए समाधान दे रही हैं। जैव-उर्वरक एवं जैव-कीटनाशक टिकाऊ कृषि के लिए आवश्यक समझे जाते हैं।
तकनीकी रूप से जैव-उर्वरक जैविक तत्त्व होते हैं जिनमें जीवाणु, कवक और शैवाल जैसे सूक्ष्मजीव होते हैं। ये पौधे एवं मृदा दोनों ही के लिए लाभदायक होते हैं। जब इनका इस्तेमाल किया जाता है तो ये पौधों की जड़ों को मृदा या वायुमंडल एवं अन्य स्रोतों से पोषक तत्त्व अवशोषित करने में मदद करते हैं।
मवेशी के गोबर और फसलों के अवशेष से तैयार जैविक खाद सामान्यतः जैव-उर्वरकों के रूप में सबसे अधिक इस्तेमाल होता है। इसका एवं कई मामलों में बेहतर संस्करण केंचुआ खाद (वर्मी कंपोस्ट) भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। वर्मीकम्पोस्ट केंचुए की मदद से कृषि और फसलों के अवशेष के जरिये तैयार होता है।
मृदा की भौतिक स्थिति बरकरार रखने के साथ ही जैव-उर्वरक बड़े एवं छोटे पोषक तत्त्व मुहैया कर मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बनाए रखने में सहायक सिद्ध होते हैं। पौधों को इन पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है मगर आम तौर पर इस्तेमाल होने वाले उर्वरक ऐसा नहीं कर पाते हैं। इनमें जीवित सूक्ष्म-जीव भी होते हैं जो मिट्टी में मौजूद फॉस्फेट और पोटेशियम को द्रव में बदल देते हैं जिससे पौधों की जड़ों के लिए इन्हें अवशोषित करना आसान हो जाता है।
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नाइट्रोजन-स्थिरीकरण करने वाले बैक्टीरिया जैसे राइजोबियम और एजोबैक्टर फलीदार फसलों जैसे दलहन की जड़ों में पाई जाने वाली गांठों से वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन अवशोषित करते हैं। कुछ ऐसे जीवाणु की भी खोज हुई है जो गैर-फलीदार फसलों में भी नाइट्रोजन-स्थिरीकरण कर सकते हैं। अक्सर ये सूक्ष्मजीव पोषक तत्त्वों से संबंधित पौधों की मांग पूरी करते हैं और दूसरे पौधे भी इनका (पोषक तत्त्व) इस्तेमाल करते है।
जैव-उर्वरकों के साथ एक खास बात यह है कि ये बरबाद नहीं होते हैं। रासायनिक उर्वरकों की बड़ी मात्रा गैस के रूप में या अन्य कारणों से बरबाद हो जाती है। सूक्ष्म जीव लंबे समय तक मिट्टी में सक्रिय रहते हैं। इतना ही नहीं, जैव-उर्वरक मृदा के भौतिक एवं जैविक स्थिति में भी सुधार करते हैं जिससे तेजी से विकास करने के लिए पौधों की जड़ें फैलती हैं।
जैव-कीटनाशक स्वाभाविक रूप से मौजूद जीवित या निर्जीव पदार्थों जैसे सूक्ष्मजीव, जानवर, पौधे एवं खनिज के अवशेष से तैयार किए जाते हैं। ये पौधों में बीमारी लगने से रोकते हैं या बीमारियों से निजात दिलाते हैं। इसके अलावा पर्यावरण या स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाए बिना ये कीटों को नियंत्रित करते हैं या उन्हें दूर रखते हैं। ये रासायनिक कीटनाशकों और पौधों को सुरक्षित रखने वाले अन्य तत्त्वों के तरजीही विकल्प होते हैं।
इसका कारण यह है कि ये आसानी से मिट्टी में अवशोषित हो जाते हैं और मानव एवं मवेशी के लिए हानिकारक नहीं होते हैं। कुछ ऐसे जैव-कीटनाशकों की भी खोज हुई है जो खरपतवार उगने से रोक सकते हैं। जैव-कीटनाशकों के इस्तेमाल से कुछ खास किस्म के खरपतवार नाशकों के खिलाफ खरपतवार में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने का जोखिम भी कम रहता है।
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जैव-उर्वरकों और कीटनाशकों की उपयोगिता साबित होने और किसानों के इनके इस्तेमाल के प्रति झुकाव के बावजूद उर्वरक एवं कृषि-रसायन बाजार में इनकी हिस्सेदारी काफी कम है। हालांकि, एक अच्छी बात यह है कि इनका इस्तेमाल पिछले पांच वर्षों के दौरान सालाना 7-8 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। अनुमान जताया जा रहा है कि यह दर अगले पांच वर्षों में 10 प्रतिशत तक पहुंच सकती है।
सरकार की अनुकूल नीतियां और जैविक तरीके से तैयार उत्पादों की मांग में वृद्धि के कारण यह आंकड़ा छू पाना संभव लग रहा है। अब जरूरत उत्पादन बढ़ाने के नए तरीकों के विकास में निजी एवं सार्वजनिक दोनों तरफ से निवेश को बढ़ावा देने की जरूरत है। इसके अलावा फसलों को हानिकारक रसायनों के कम से कम इस्तेमाल के साथ कीटों एवं बीमारियों से बचाने की जरूरत है।