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बजट में व्यावहारिकता के साथ ही सीमाओं पर रखा गया ध्यान

वित्त मंत्री ने राजकोषीय अनुशासन और संरचनात्मक सुधारों के साथ वृद्धि के वैकल्पिक रास्तों पर दिया जोर

Last Updated- February 01, 2025 | 10:52 PM IST
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बजट की सराहना अवश्य करनी होगी क्योंकि इसमें व्यावहारिकता झलकती है और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने जो चुनौतियां हैं, उन्हें देखते हुए यह शानदार बजट है। पिछले सात वर्षों में सरकार ने बहुत सोच-समझ कर सार्वजनिक खर्च बढ़ाया है और इसे वित्त वर्ष 2018 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.5 प्रतिशत से बढ़ाकर वित्त वर्ष 2025 में जीडीपी का 3.2 फीसदी (बजट अनुमान) कर दिया गया है। पूर्ण राशि वित्त वर्ष 2019 के 3 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 के लिए 11.11 लाख करोड़ रुपये के बजट आंकड़े पर पहुंच गई।

इस पूंजीगत व्यय का सबसे बड़ा लाभ सड़कों और रेलवे में बढ़े हुए खर्च के तौर पर दिखा और यही आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने वाले चालक थे। केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में 25 फीसदी वृद्धि के दिन अब लद गए हैं और यह आंशिक रूप से राजकोषीय बाधाओं की वजह से है लेकिन इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अब सड़कों और रेलवे की इस्तेमाल करने की क्षमता में भी कमी आई है। वे निश्चित रूप से अधिक खर्च नहीं कर सकते हैं और अब ऐसा कोई क्षेत्र भी नहीं दिखता है जो इस कमी को पूरा कर सके।

यह वित्त वर्ष 2025 में सरकार की पूंजीगत खर्च के लक्ष्यों को हासिल करने की असमर्थता में भी साफ दिखता है जो लगभग 1,00,000 करोड़ रुपये की कमी है। इसकी पुष्टि वित्त वर्ष 2026 में रेलवे के लिए 2,52,000 करोड़ रुपये और सड़कों के लिए 2,87,000 करोड़ रुपये के पूंजी आवंटन से होती है जो मूलतः वित्त वर्ष 2025 के लगभग समान है। केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र, रक्षा क्षेत्र से जुड़े पूंजी उपकरण हैं जो 1,60,000 से 1,80,000 करोड़ रुपये के बीच हैं। एक बार फिर इसकी जटिल प्रक्रिया और पूंजी की कमी को देखते हुए यह आंकड़े नाटकीय रूप से नहीं बढ़ सकते हैं।

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केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय बढ़ाने की सीमित गुंजाइश देखते हुए सोचने का विषय यह है कि आखिर वित्त मंत्री अर्थव्यवस्था की रफ्तार कैसे बढ़ाएंगी? इसके लिए सबसे पहले निजी पूंजीगत खर्च को बढ़ावा देने और फिर खपत पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर देना होगा। साथ ही दरों में कमी के साथ अर्थव्यवस्था में मांग की रफ्तार बढ़ाने और व्यापार सुगमता में सुधार करने की जरूरत है। उन्होंने बजट में इन तीन मुद्दों पर ध्यान देने की कोशिश की है। वित्त मंत्री ने 4.4 फीसदी के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को बरकरार रखकर राजकोषीय मोर्चे पर रूढ़िवादी रवैया अपनाया है और साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को दरें कम करने की गुंजाइश दी है।

हम उन चुनिंदा अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं जिनके पास विश्वसनीय तरीके से राजकोषीय घाटे को कम करने की एक योजना है। सकल बाजार उधारियों में भी केवल 5.85 फीसदी की बढ़ोतरी है और यह 14.82 लाख करोड़ रुपये है। विदेशी मुद्रा भंडार की अनिश्चितता कम होने से दरें भी अनुकूल होनी चाहिए। वित्त मंत्री ने मध्य वर्ग को 1,00,000 करोड़ रुपये की प्रभावी कर कटौती की सौगात दी है जिससे उपभोक्ताओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा और इससे खपत में बढ़ोतरी होगी। कर कटौती से उन उपभोग वाले क्षेत्रों को मदद मिलेगी जो चुनौतियों से जूझ रहे हैं और मांग बढ़ने के साथ ही कंपनियों को अपनी क्षमता बढ़ाने का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।

वित्त मंत्री ने कारोबार सुगमता में सुधार के बारे में भी काफी कुछ कहा है। अनुपालन तथा नियमन आदि के पहलुओं को देखने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति बनाने, कानूनों की सख्ती कम करने और कराधान के सरलीकरण के निरंतन प्रयासों के साथ ही कॉरपोरेट जगत के आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद मिलेगी। निजी पूंजीगत व्यय का भी प्रभाव दिखेगा। कर कटौती का लाभ स्पष्ट रूप से खपत में मिलेगा। सरकारी पूंजीगत व्यय के लिए सीमित गुंजाइश देखते हुए वित्त मंत्री ने वृद्धि के वैकल्पिक कारकों यानी पूंजीगत व्यय और खपत बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाए हैं। बजट का व्यापक गणित ठीक लगता है।

नॉमिनल जीडीपी के 10.1 फीसदी का अनुमान भी उचित है। केवल आयकर के लिए राजस्व धारणा आक्रामक दिख रही है, यानी 1 लाख करोड़ रुपये की कटौती के बाद, हम कर संग्रह में 22.35 फीसदी की वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं। कॉरपोरेट कर में 10.4 फीसदी वृद्धि और 47,000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य दोनों उचित लगता है।

कुल व्यय, वित्त वर्ष 2026 में 7.44 फीसदी बढ़ रहा है जिसमें केवल राजस्व व्यय 6.65 फीसदी बढ़ रहा है। अगर हम ब्याज भुगतान में वृद्धि को हटा दें, तब राजस्व व्यय केवल 3 फीसदी बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2026 में लगभग 3,50,000 करोड़ रुपये का क्रमिक व्यय पूरी तरह से बढ़े ब्याज भुगतान (1,38,000 करोड़ रुपये), पूंजीगत परिसंपत्तियों के लिए सहायता अनुदान में वृद्धि (1,27,000 करोड़ रुपये) और 1,02,000 करोड़ रुपये के उच्च पूंजीगत व्यय के मद में गया है। यह एक बेहतर मिश्रण है खासतौर पर यह देखते हुए कि ब्याज भुगतान गैर-विवेकाधीन है।

सब्सिडी भी 3,83,000 करोड़ रुपये के स्तर पर रखी गई है और वित्त वर्ष 2025 के वास्तविक आंकड़े में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। मनरेगा के मद में भी सपाट तौर पर 86,000 करोड़ रुपये दिए गए हैं। हमने जल जीवन मिशन के आवंटन में बढ़ोतरी देखी है जिसके लिए वित्त वर्ष 2025 में 22,700 करोड़ रुपये दिए गए थे लेकिन वित्त वर्ष 2026 में इस योजना पर 67,000 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य है। पीएमएवाई योजनाओं, ग्रामीण और शहरी दोनों में 50 फीसदी से अधिक की अच्छी वृद्धि देखी गई है।

इसके अलावा शोध एवं विकास (आरऐंडडी) मिशन के लिए 20,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है और नए रोजगार सृजन कार्यक्रमों पर खर्च में वृद्धि 6800 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 20,000 करोड़ रुपये तक कर दी गई है। राजस्व व्यय पर नियंत्रण के साथ, घाटे की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है, राजस्व घाटे में 86,000 करोड़ रुपये की कमी आई है यानी यह जीडीपी के 1.9 फीसदी से घटकर 1.5 फीसदी हो गया है।

संरचनात्मक सुधारों की बात करें तब बीमा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा 100 फीसदी तक बढ़ाना उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि परमाणु क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी की अधिक संभावनाएं और परमाणु क्षति अधिनियम के लिए नागरिक दायित्व पर पुनर्विचार करना है जिसके चलते निवेश रोका गया था। शहरी बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए एक लाख करोड़ रुपये का शहरी चुनौती कोष और राज्यों को बिजली वितरण सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना स्वागत योग्य है।

इसके अलावा खिलौने, खाद्य प्रसंस्करण और फुटवियर जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों के लिए लक्षित उपाय लंबे समय से लंबित थे। आईआईटी और मेडिकल कॉलेजों की क्षमता का विस्तार करना आसान है और हमारी बढ़ती आबादी के प्रबंधन के लिहाज से भी यह बेहद जरूरी है। बजट में पर्यटन पर ध्यान देना भी समझदारी भरा कदम है और इससे संकेत मिलते हैं कि अर्ध-कुशल रोजगार के मौके तैयार करने पर ध्यान है। इंडिया पोस्ट पर टिप्पणी करना और इसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए मुख्य स्रोत बनाना संभवतः एक बड़ा सुधार है जो क्रियान्वयन पर निर्भर करता है। उच्च पैदावार वाले बीजों और कपास उत्पादकता से जुड़े अभियान भी लंबे समय से लंबित है।

अंशकालिक कामगारों (गिग वर्कर) वाली अर्थव्यवस्था को सरकारी कल्याणकारी कार्यक्रमों के दायरे से जोड़ना और उन्हें औपचारिक रूप से पंजीकृत करते हुए 10 लाख से अधिक श्रमिकों को कुछ सुरक्षा देना महत्त्वपूर्ण है। केंद्रीय केवाईसी रजिस्ट्री में भी नए बदलाव किए गए हैं और इससे वित्तीय क्षेत्र के लिए व्यापार सुगमता में सुधार होना चाहिए। सुरक्षित बंदरगाह नियमों के दायरे का विस्तार करने और अंतरराष्ट्रीय लेनदेन के लिए पूर्वनिर्धारित कीमतों से अंतरराष्ट्रीय कराधान की निश्चितता बढ़ेगी और विवादास्पद कानूनी मामले भी कम होंगे। टीडीएस/टीसीएस नियमों को युक्तिसंगत बनाने का प्रयास भी गंभीर लग रहा है।

कुल मिलाकर इसे एक अच्छा बजट कह सकते हैं। वित्त मंत्री ने अपनी पूरी कुशलता दिखाने की कोशिश की है। उन्होंने सरकार के पूंजीगत व्यय के परे वृद्धि के अन्य चालकों को प्रोत्साहित करने के लिए वह सब किया जो वह कर सकती थीं, और उन्होंने राजकोषीय घाटे को लेकर जिम्मेदारी भी बरती है। बजट के बड़े आलोचकों को भी संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त संरचनात्मक सुधार और व्यापार सुगमता बढ़ाने के उपायों का जिक्र है। इसमें कुछ भी बुरा नहीं है। मुझे लगता है कि यह एक ऐसा बजट है जो इस वक्त की जरूरतों को पूरा करता हुआ प्रतीत हो रहा है। भारत के वृद्धि के दृष्टिकोण को लेकर अधिक आत्मविश्वास होना जरूरी है।
(लेखक अमांसा कैपिटल से जुड़े हैं)

First Published - February 1, 2025 | 10:52 PM IST

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