अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को यही लगता है कि चुनाव में पिछले साल उन्हें जो प्रचंड जनादेश मिला, उसके पीछे बड़ी वजह देश में अवैध रूप से घुसने वालों पर लगाम कसने का उनका वादा था। उनके देश में यह धारणा काफी पुख्ता है और आधिकारिक आंकड़े भी एक हद तक इसे सही साबित करते हैं कि सही कागजात के बगैर सीमा पार कर अवैध रूप से घुसने वालों की तादाद 2020 के बाद बहुत तेजी से बढ़ी है। इसके लिए जो बाइडन के नेतृत्व वाली पिछली सरकार किस हद तक जिम्मेदार है, इस पर बहस हो सकती है। लेकिन अवैध आव्रजन या घुसपैठ अब अमेरिका में बिल्कुल उसी तरह ज्वलंत राजनीतिक मुद्दा बन चुका है, जैसे जर्मनी और हंगरी समेत कई यूरोपीय देशों में पहले से ही है।
खुद को ट्रंप गुट का नेता मानने वाले लोग इस समस्या से निपटने के लिए कई तरह के विचार देते हैं और संभव है कि राष्ट्रपति उन सभी को एक-एक कर आजमाएं। वह पहले ही एक कार्यकारी आदेश जारी कर चुके हैं, जिसके तहत अमेरिकी धरती पर जन्म लेने वाले सभी नागरिकों को मिलने वाले नागरिकता के अधिकार कम हो जाएंगे। अमेरिका में लंबे समय से चले आ रहे ‘जन्मसिद्ध नागरिकता’ के इस अधिकार पर पहले खास ध्यान नहीं दिया गया था मगर अब यह राजनीतिक रूप से विवादास्पद मुद्दा बनता जा रहा है। इस बात पर बहस चल रही है कि यह अधिकार खत्म करने के प्रयासों को संवैधानिक माना जाएगा या नहीं। मगर सुप्रीम कोर्ट का दक्षिणपंथी झुकाव इस मामले में ट्रंप प्रशासन को कुछ राहत दे सकता है।
ट्रंप ने पद संभालते ही झटपट अवैध प्रवासियों को देश से निर्वासित करने का प्रयास किया। रिपब्लिकन पार्टी के धुर दक्षिणपंथियों में से कुछ ने सामूहिक निर्वासन का वादा किया था जिस पर कुछ लोगों ने बहुत खौफनाक मंशा बताया था। कागजी कार्रवाई पूरी किए बगैर अमेरिका में रह रहे लाखों लोगों की पहचान करना और उन्हें उनके देश वापस भेजना आसान काम नहीं है। इनमें से कई लोग दशकों से अमेरिका में हैं और उनका निर्वासन राजनीति और आर्थिक आफत ला देगा। इसके अलावा राजनीतिक सर्वसम्मति को छोड़िए अभी तो यह भी पक्का नहीं है कि संघीय सरकार के पास इतने बड़े स्तर पर कार्रवाई करने के लिए संसाधन और क्षमता हैं।
किंतु ट्रंप को अपने मतदाताओं को यह दिखाकर खुश करना ही होगा कि वह कुछ कर रहे हैं और इसीलिए कुछ लोगों को उनके देश वापस भेजना जरूरी है। ध्यान रहे कि यह कोई अनूठी या असामान्य बात नहीं है। सभी राजनीतिक दलों के मतदाता उनकी सरकारों को ऐसे कदम उठाने के लिए बाध्य करते रहे हैं। यहां तक कि ब्रिटेन की लेबर पार्टी सरकार जैसी मध्य-वाम सरकारें तक कथित निर्वासन का ढिंढोरा पीटती रही हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कियर स्टार्मर ने तो पिछली दक्षिणपंथी सरकार के प्रधानमंत्री पर ‘खुली सीमा के साथ प्रयोग करने’जैसे आरोप लगाए थे। बिल्कुल वैसे ही आरोप ट्रंप ने भी अपने विरोधियों पर लगाए।
दुर्भाग्य से भारत को भी यहां से अवैध तरीके से अमेरिका गए लोगों को छोड़ने आए विमानों के लिए तैयार रहना होगा। पिछले दिनों संसद में एक वीडियो पर जमकर हंगामा हुआ था, जिसे ऐसे ही एक विमान का लीक हुआ वीडियो बताया गया था। मगर ट्रंप के समूचे शासन काल यानी चार साल तक संसद में हंगामा जारी नहीं रह सकता। पहले स्वीकार करना होगा कि पिछले कुछ समय से भारत से बड़ी संख्या में लोग जाकर अवैध तरीके से अमेरिका में रहने लगे हैं। इसके बाद इस समस्या से निपटने के तरीके पर राजनीतिक आम सहमति बनानी होगी। अनुमान तो यह भी कहते हैं कि भारत से ‘डंकी रूट’ के जरिये इतने लोग अवैध रूप से अमेरिका पहुंच गए हैं कि मेक्सिको के बाद वहां सबसे ज्यादा अवैध आप्रवासी भारत के ही हैं और उनकी संख्या लाखों में है।
इसमें कोई शक नहीं है कि अगर निर्वासन किया ही जा रहा है तो उसे यथासंभव मानवीय तरीके से अंजाम दिया जाए। उदाहरण के लिए जो लोग हिरासत में है उन्हें हथकड़ी पहनाने की जरूरत तब तक नहीं है, जब तक यह साबित न हो जाए कि वे दूसरों के लिए खतरनाक हैं। भारत में हाल में जो लोग लाए गए, उन्हें अमेरिकी सैन्य विमान लेकर आया। यह भी बेजा हरकत थी, जबकि उन्हें सामान्य तरीके से भेजा जा सकता था।
लेकिन जैसा विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में कहा, अब हमें लोगों को गैर-कानूनी तरीके से दूसरे देशों में भेजे जाने (जिसे मानव तस्करी कहा जाता है) की समस्या को गंभीरता से लेना होगा। देश के कुछ हिस्सों में तो यह गुपचुप नहीं बल्कि खुलेआम होती है और इससे हर साल करोड़ों रुपये कमाए भी जाते हैं। लेकिन यह सब चलने नहीं दिया जा सकता। इससे भारत की विदेश नीति की प्राथमिकताएं भी खतरे में पड़ती हैं और ऐसे लोगों के कानूनी तथा अस्थायी प्रवासन की गुंजाइश भी कम हो जाती है, जो विदेश से देश में अच्छा खासा धन भेज सकते हैं।
लेकिन कुछ असहज सवाल भी जरूर पूछे जाएंगे। मिसाल के तौर पर यह तो साफ लग रहा है कि जो लोग अमेरिका से वापस भेजे गए हैं उनमें से ज्यादातर ऐसे नहीं हैं, जो देश के भीतर आर्थिक संभावनाओं से पूरी तरह कटे हों। अक्सर वे देश के ज्यादा संपन्न हिस्सों से आते हैं और विदेश जाने के लिए लाखों रुपये आराम से दे सकते हैं फिर चाहे वे उसका इंतजाम कर्ज लेकर करें या परिवार की बचत से। फिर वे ऐसा खतरनाक रास्ता चुनते ही क्यों हैं?
उनमें से ज्यादातर लोगों का पंजाब से होना तो समझ में आता है क्योंकि वहां विदेश में कई साल बिताकर लौटना जीवन शैली ही बन गई है। लेकिन गुजरात से इतनी बड़ी तादाद में लोग क्यों गए, जिस राज्य को हम कई दशकों से संपन्न और प्रगति करता राज्य मानते आ रहे हैं? भारत के सबसे उन्नत इलाकों के इन युवाओं की हसरतें, अरमान और उम्मीदें टूट कैसे गई हैं? ट्रंप निर्वासितों के जितने ज्यादा विमान भारत भेजेंगे ये सवाल उतने ही ज्यादा जरूरी होते जाएंगे।