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डेटा मुद्रीकरण की संभावना और भारत की भूमिका

भारत के पास यह अवसर है कि वह बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा लोगों के डेटा के इस्तेमाल के बदले उन्हें कुछ राशि देने या पुरस्कृत करने की मांग करे। बता रहे हैं अजय कुमार

Last Updated- April 02, 2024 | 9:29 PM IST
डेटा मुद्रीकरण की संभावना और भारत की भूमिका, Potential of data monetization and India's role

डेटा तेल की तरह का संसाधन है बल्कि यह तेल से भी कहीं अधिक मूल्यवान साबित हो सकता है। तेल के उलट डेटा एक ऐसा संसाधन है जिसका इस्तेमाल कई उपयोगकर्ता कर सकते हैं और उसकी आपूर्ति पर भी कोई असर नहीं पड़ता। इसके मूल्य में भी अक्सर कोई कमी नहीं आती।

इतिहास की बात करें तो ऐसे मॉडल सामने आए हैं जिनकी मदद से डेटा से मूल्य हासिल किया गया। शुरुआत में डेटा का मूल्य अल्जेब्रिक समीकरणों के भीतर उनके इस्तेमाल में निहित था। यह तकनीकी युग के पहले की बात है। सॉफ्टवेयर के आगमन के बाद डेटा विश्लेषण और अधिक परिष्कृत हो गया। इससे बड़ी तादाद में डेटा का तत्काल प्रसंस्करण करना संभव हो गया। तकनीक ने समय पर प्रबंधन संभव बनाया और डेटा का मूल्य और बढ़ गया। इसके बावजूद इन मॉडल में ज्यादातर मौजूदा कारोबारी गतिविधियों को ही शामिल किया गया।

बहरहाल, उस समय एक बड़ा बदलाव आया जब डेटा खुद कारोबारों का आधार बन गया। इस बदलाव में गूगल की अहम भूमिका रही और उसने डेटा को कच्चे माल और उत्पाद दोनों ही रूपों में इस्तेमाल किया तथा लाखों करोड़ डॉलर का उपक्रम खड़ा किया। इसके बाद डेटा आधारित कारोबार के अन्य विकल्प सामने आने लगे मसलन बिज़नेस इंटेलिजेंस और डेटा मार्केट प्लेस आदि।

एमेजॉन जैसी कंपनियों ने एक और बड़ा बदलाव पैदा किया। उन्होंने न केवल ऑनलाइन कॉमर्स में क्रांतिकारी बदलाव उत्पन्न किए बल्कि डेटा को मूल कारोबारों से अलग करने की क्षमता भी दिखाई। इससे प्लेटफॉर्म आधारित अर्थव्यवस्था उभरी जहां कारोबार उपयोगकर्ताओं के डेटा का इस्तेमाल एक अलग और मूल्यवान पेशकश के लिए किया गया। प्लेटफॉर्म मॉडल अक्सर मूल कारोबार से बड़े हो जाते हैं। इसके बावजूद डेटा आधारित एक नया कारोबार सामने आया- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म।

इस मॉडल के लिए दुनिया फैक्टरी थी और लोग उसके श्रमिक हैं जो उनके मूल्यवर्द्धन के लिए डेटा तैयार करते हैं। इन सभी मॉडल ने इस धारणा को मजबूत किया कि अगर कुछ मुफ्त मिल रहा है तो दरअसल आप ही उत्पाद हैं। डेटा से लाभान्वित हो रहा सबसे नया कारोबारी मॉडल है आर्टिफिशल इंटेलिजेंस यानी एआई। एआई ने अपने मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए डेटा का इस्तेमाल किया।

गूगल और मेटा जैसी कंपनियों का भारी भरकम बाजार पूंजीकरण व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं के डेटा के मूल्य को रेखांकित करता है। इससे प्रश्न उत्पन्न होता है कि व्यक्तिगत डेटा का मूल्य क्या है? अल्फाबेट (गूगल की मूल कंपनी) का मूल्यांकन 1.75 लाख करोड़ डॉलर है। पांच अरब उपयोगकर्ताओं के हिसाब से देखें तो यह करीब 350 डॉलर प्रति व्यक्ति निकलती है।

मेटा (फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, मेसेंजर) का बाजार पूंजीकरण 1.25 लाख करोड़ डॉलर है। उसके 3.98 अरब डॉलर उपयोगकर्ताओं के अनुसार देखें तो यह राशि 250 डॉलर निकलती है। एमेजॉन के पास एक करोड़ विक्रेता और 30 करोड़ से अधिक खरीदार हैं। उसका बाजार पूंजीकरण 1.85 लाख करोड़ रुपये का है।

हमें ओपन एआई को भी नहीं भुलाना चाहिए जो पहले ही 100 अरब डॉलर की कंपनी हैं जिसने इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के डेटा पर अपना साम्राज्य खड़ा किया है। इन सभी मामलों में डेटा उपयोगकर्ता यानी बड़ी टेक कंपनियों ने उपयोगकर्ताओं के आंकड़ों का लाभ लिया। इसके बावजूद उन लोगो को कुछ नहीं मिला जिनके आंकड़े इस्तेमाल किए गए। ऐसा तब है जबकि व्यक्तिगत डेटा पर नियंत्रण को लेकर जोर बढ़ा है।

इस उभरते रुझान के बीच भारत को लेकर भी अध्ययन किया जा सकता है। भारत में भारी-भरकम डिजिटल आबादी है जो दुनिया के कुल डेटा का करीब 20 फीसदी तैयार करती है। यह डेटा बहुत मूल्यवान है क्योंकि इसमें बहुत अधिक विविधता है क्योंकि भारत अभी एक युवा देश है।

सर्वोच्च न्यायालय ने 2017 में पुट्‌टास्वामी और भारत सरकार मामले में निजता को मूल अधिकार माना था। डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन ऐक्ट, 2023 ने इसे अधिक कानूनी मजबूती प्रदान की। इसके तहत लोगों को उनके निजी डेटा पर नियंत्रण दिया गया। भारत के कानूनी ढांचे और विस्तृत डेटा को देखते हुए वह निजी डेटा मुद्रीकरण के लिए एकदम मुफीद देश है।

अकाउंट एग्रीगेटर सिस्टम यानी एए सिस्टम में भारत अग्रणी है और यह उन शुरुआती पहलों में से है जिन्होंने दुनिया में डेटा पर होने वाली बातचीत को बदल दिया। इसकी शुरुआत 2015 में हुई जब अरुण जेटली के नेतृत्व वाली वित्तीय स्थिरता विकास परिषद ने यूनीफाइड डेटा-साझेदारी व्यवस्था की परिकल्पना की जो विभिन्न संस्थानों के वित्तीय डेटा से संबद्ध थी। एए का काम एकदम सामान्य है- वित्तीय डेटा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक सुरक्षित और प्रभावी ढंग से पहुंचाना और वह भी स्पष्ट मंजूरी के साथ।

यह क्रांतिकारी ढांचा उपयोगकर्ता को अधिकार देता है कि वे अपनी वित्तीय जानकारी को सुरक्षित तरीके से उन संस्थानों को दे सकें जो उन्हें ऋण, निवेश आदि पर बेहतर पेशकश करते हैं। यह सब गोपनीयता के बरकरार रहते हो सकता है।

उदाहरण के लिए ये एए छोटे कारोबारों को नकदी प्रवाह के आधार पर कार्यशील पूंजी सुनिश्चित करते हैं। एक छोटा सा सब्जी विक्रेता जो थोक में सब्जी खरीदकर दिन भर उसे आसपास के मोहल्ले में बेचता है वह साहूकारों से कर्ज लेता है। उसे औसतन एक से दो फीसदी रोजाना ब्याज चुकाना पड़ता है। नई व्यवस्था में एए उन्हें बैंक की दर के मुताबिक ऋण दे सकती हैं।

भारतीय एए जगत में 500 से अधिक कंपनियां हैं और छह करोड़ से अधिक कंपनियां इससे जुड़ी हैं। सहमति नामक एक गैर लाभकारी औद्योगिक संस्था सुरक्षित डेटा साझेदारी के मानक तय करती है, बैंकों, फिनटेक कंपनियों और नीति निर्माताओं के बीच सहयोग करवाती है और उपयोगकर्ताओं को व्यवस्था के लाभों से अवगत कराती है। एए व्यवस्था लोगों को यह अधिकार प्रदान करती है कि वे अपने डेटा का क्या करें। उपयोगकर्ताओं के डेटा को स्पष्ट सहमति के साथ साझा किया जाता है। एए व्यवस्था अभी नई है लेकिन शुरुआती संकेत तो सकारात्मक ही हैं।

करीब एक महीने में 50 लाख नए खाते जुड़ रहे हैं और लगभग इतनी ही संख्या में सहमति के अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं। सहमति का अनुमान है कि 2027 तक सहमति का आंकड़ा सालाना 5 अरब हो जाएगा यानी मौजूदा स्तर से 100 गुना। यह तेज वृद्धि बताती है कि डेटा अर्थव्यवस्था में बुनियादी बदलाव आ रहा है। अब लोग अपने डेटा पर नियंत्रण रख सकते हैं और उससे लाभ हासिल कर सकते हैं।

एए प्रणाली न केवल वित्तीय क्षेत्र के लिए बल्कि अन्य क्षेत्रों के लिए भी कारगर हो सकती है। कल्पना कीजिए कि कोई किसान है जो बीजों की गुणवत्ता, मिट्‌टी और कीटनाशकों को लेकर डेटा साझा कर सकता है ताकि बेहतर कीमत मिल सके। कोई मरीज अपने पुराने मेडिकल रिकॉर्ड साझा करके बेहतर चिकित्सा पा सकता है।

एए प्रणाली दुनिया में पहली ऐसी व्यवस्था है जिसने लोगों और छोटे कारोबारियों को यह अवसर दिया है कि वे अपने डेटा को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल कर सकें। ओपन एपीआई आधारित व्यवस्था होने के कारण यह प्रवेश की कृत्रिम बाधाओं को कम करता है तथा व्यवस्था को पहुंच योग्य, लचीला, समावेशी और गैर भेदभावकारी बनाता है।

दुनिया ऐसी व्यवस्था की तलाश में है जहां लोगों के डेटा का इस्तेमाल उन्हें अधिकारसंपन्न बनाया जा सके। ऐसे में एए प्रणाली समस्या का हल हो सकती है। यह भारत में निर्मित और क्रियान्वित हुआ है। भारत के पास अवसर है कि वह डेटा सशक्तीकरण और नवाचार को लेकर वैश्विक वार्ता का नेतृत्व कर सके।

(लेखक भारत के पूर्व रक्षा सचिव और आईआईटी कानपुर के वि​शिष्ट अति​थि प्राध्यापक हैं)

First Published - April 2, 2024 | 9:29 PM IST

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