उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर एक बार फिर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा तय दायरे के ऊपरी स्तर से भी अधिक बनी रही। इसके लिए अन्य बातों के अलावा अनाज तथा दूध की कीमतों में इजाफा भी एक वजह है।
फरवरी में खुदरा मुद्रास्फीति की दर 6.44 फीसदी रही जो जनवरी के 6.52 फीसदी से मामूली कम थी। इस प्रकार शीर्ष मुद्रास्फीति की दर बीते 14 महीनों में से 12 महीनों तक 6 फीसदी से ऊपर बनी रही। मुद्रास्फीति के इन नतीजों को देखते हुए मौद्रिक नीति समिति को अपने पूर्वानुमान पर नए सिरे से विचार करना होगा।
समिति का अनुमान था कि मौजूदा तिमाही में मुद्रास्फीति की औसत दर 5.7 फीसदी रहेगी लेकिन अब यह मुश्किल लग रहा है। मुद्रास्फीतिक परिदृश्य में संशोधन का असर नीतिगत दरों संबंधी निर्णयों पर भी पड़ेगा।
यद्यपि अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था में हाल में जो कुछ हुआ उसके बाद यह आवश्यक नहीं कि दरों से जुड़ा निर्णय आरबीआई या किसी भी अन्य केंद्रीय बैंक के लिए उतना सीधा रहे। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में अचानक और तेज इजाफा भी संकट के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार रहा क्योंकि इसकी वजह से बैंकों के निवेश पोर्टफोलियो का मूल्यांकन काफी कम हुआ जिसमें प्रमुख रूप से सरकारी बॉन्ड और मॉर्गेज समर्थित प्रतिभूतियां थीं।
एक अनुमान के मुताबिक दिसंबर 2022 में ऐसी होल्डिंग को करीब 600 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ। नीतिगत दरों में इजाफा होने के बाद यह भी संभव है कि इन पोर्टफोलियो की कीमत उतनी न रह गई हो जो दिसंबर में थी। अगर केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति से निपटने के लिए दरों में इजाफा जारी रखते हैं तो मूल्यांकन में और कमी आएगी।
फेडरल रिजर्व ने तात्कालिक समस्या से निपटने की राह तलाश कर ली है लेकिन यह कोई स्थायी समस्या नहीं है। फेडरल रिजर्व अमेरिकी ट्रेजरी के अर्हता वाले संस्थानों को तथा कुछ अन्य संस्थानों को ऋण दे रहा है। इससे वित्तीय संस्थानों को नकदी की तात्कालिक समस्या को दूर करने में मदद मिलेगी लेकिन समस्या का निदान नहीं निकलेगा।
वित्तीय बाजारों का दांव अब इस बात पर है कि फेडरल रिजर्व दरें बढ़ाने के सिलसिले में धीमे कदम बढ़ाएगा। यही कारण है कि बॉन्ड बाजारों में तेजी आई। यह भी आंशिक तौर पर जोखिम से बचाव के लिए किया गया। ध्यान रहे कि गत सप्ताह बाजारों को लग रहा था कि दरों में तेज इजाफा होगा। ऐसा इसलिए कि फेड के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने कहा था कि ब्याज दरों का स्तर पहले लगाए गए अनुमान की तुलना में अधिक रह सकता है।
फेड का वास्तविक रुख 22 मार्च को पता चलेगा लेकिन वित्तीय क्षेत्र की अस्थिरता एक किस्म की दुविधा पैदा कर सकती है। क्या उसे मुद्रास्फीति को लेकर अपनी लड़ाई पर ध्यान देना चाहिए या वित्तीय स्थिरता को बचाना चाहिए? आरबीआई समेत अधिकांश केंद्रीय बैंक जो दरों में इजाफा कर रहे थे उन्हें भी ऐसी ही दुविधा का सामना करना पड़ेगा, भले ही वित्तीय स्थिरता को तात्कालिक रूप से कोई खतरा न हो।
यह समस्या आंशिक रूप से इसलिए उत्पन्न हुई कि अधिकांश केंद्रीय बैंक उच्च मुद्रास्फीति को लेकर प्रतिक्रिया देने में पिछड़ गए। केंद्रीय बैंकों को मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए क्योंकि ऐसा नहीं करने के खतरे कहीं अधिक गंभीर हो सकते हैं। इससे वित्तीय स्थिरता के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
वित्तीय तंत्र के समक्ष उत्पन्न तात्कालिक जोखिम से वित्तीय संस्थानों के पोर्टफोलियो को हुए संभावित नुकसान का आकलन करके और उन्हें पर्याप्त पूंजी मुहैया कराके निपटा जा सकता है। केंद्रीय बैंकों को विस्तारित नकदी समर्थन के लिए तैयार रहना चाहिए। भारत में बीते कुछ वर्षों में बैंकों की बैलेंस शीट में अहम सुधार हुआ है लेकिन बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थानों का निरंतर आकलन करने से केंद्रीय बैंक को यह अवसर मिलेगा कि वह मूल्य स्थिरता का लक्ष्य हासिल कर सके।