स्पेन के बार्सिलोना शहर में हर साल होने वाला दूरसंचार सम्मेलन मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस इस बार कुछ खास रहा क्योंकि डॉनल्ड ट्रंप के दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद दूरसंचार उद्योग के दिग्गज पहली बार एक साथ इकट्ठे हुए। इनमें टेलिफोनिका और चाइना मोबाइल से टेलस्ट्रा, टेलिनॉर और भारती एयरटेल तक के मुखिया शामिल थे। सम्मेलन की दिशा पहले ही दिन टेलिफोनिका के चेयरमैन एवं सीईओ मार्क मर्टरा के भाषण ने तय कर दी। उन्होंने अधिक से अधिक फायदे के लिए तकनीक और दूरसंचार के संबंध को प्रगाढ़ बनाए जाने पर जोर दिया। मध्यकालीन गलियों, खूबसूरत वास्तुकला और बार्का (फुटबॉल क्लब एफसी बार्सिलोना) के लिए मशहूर इस शहर से मर्टरा का वीडियो पूरी दुनिया में देखा गया, जिसमें उन्होंने कहा, ‘वक्त किसी के लिए नहीं रुकता और न ही तकनीक।’
जब भारती एयरटेल के चेयरमैन सुनील मित्तल मंच पर पहुंचे तो उन्होंने एक साथ आने और साझा करने की जरूरत पर पूरा जोर दिया। उन्होंने उद्योग, नियामकों और दुनिया भर की सरकारों से इसे सुनने और समझने की गुजारिश की। दूरसंचार कंपनियों और उनके साथ साझेदारी करने वाली तकनीकी कंपनियों के लिए मित्तल का एक ही संदेश था: साझा कीजिए और साझा कीजिए। इसका मकसद तकनीकी ढांचे को एक-दूसरे के साथ साझा कर लागत घटाना और मुनाफा बढ़ाना है। दूरसंचार की बड़ी हस्तियां वक्त के साथ चल रही हैं और जानती हैं कि तकनीक में (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस से 5जी प्लस तक) भारी निवेश अब टाला नहीं जा सकता। उनका जोर इस बात पर है कि अकेले न चलकर बुनियादी ढांचा सबके साथ बांटा जाए तो चुनौती भरे इस माहौल में निवेश का बोझ बहुत कम हो सकता है।
विश्व व्यवस्था पर अपना दबदबा बढ़ाने की ट्रंप की मंशा को देखते हुए हर देश समझ रहा है कि आर्थिक बदलाव होना ही है और इस बदलाव में तकनीक की बहुत अहमियत है। कोविड-19 में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला इस कदर बरबाद हो गई थी कि उसके उबरने की कोई उम्मीद ही नहीं थी। उसी दौर की तरह एक बार फिर देश अपने ही भरोसे रह गए हैं। ऐसे में तकनीकी संप्रभुता या तकनीक पर पूरी तरह नियंत्रण करने की बात उठने लगी है। इस समाचार पत्र द्वारा पिछले दिनों आयोजित एक कार्यक्रम में एचसीएल के सह-संस्थापक अजय चौधरी ने यही बात कही थी। विश्व व्यवस्था इतनी अप्रत्याशित हो गई है कि अपनी तकनीक, डेटा तथा डिजिटल ढांचे पर नियंत्रण रखने की किसी देश की क्षमता (तकनीकी संप्रभुता) को ‘आत्मनिर्भरता’ की दिशा में अहम कदम माना रहा है।
करीब 25 साल से बार्सिलोना सम्मेलन में और उससे पहले दुनिया भर में हुई जीएसएम वर्ल्ड कांग्रेस में लगातार पहुंचने वाले मित्तल ने भी तकनीकी संप्रभुता की बात उठाई मगर उनका विचार कुछ अलग था। मंच से जब उन्होंने तकनीक साझा करने का आह्वान किया तो उनका साफ मतलब था कि तकनीक में उत्कृष्टता और नया स्तर हासिल करने के लिए एक-दूसरे के संसाधनों का इस्तेमाल होना चाहिए। उन्होंने साफ शब्दों में यह भी कहा कि ब्रांड और सेवा में होड़ होनी चाहिए अपना अलग पूंजीगत ढांचा बनाने में नहीं। क्या तकनीक पर नियंत्रण की मौजूदा होड़ में उनकी बात सुनी जाएगी?
सम्मेलन में उपग्रह संचार (सैटेलाइट कम्युनिकेशन या सैटकॉम) का भी सरसरी तौर पर जिक्र किया गया। भारत में उपग्रह संचार की स्पष्ट नीति नहीं होने के कारण इसका स्पेक्ट्रम सालों से अटका पड़ा है। इसमें भी जोर तकनीक एवं संसाधन साझा करने पर ही था। मित्तल ने टेस्ला के संस्थापक एवं ट्रंप के करीबी सहयोगी ईलॉन मस्क का नाम लिए बिना सैटकॉम में स्पेक्ट्रम आवंटन पर टकराव का जिक्र किया। मस्क के नियंत्रण वाली कंपनी स्टारलिंक भारत में सैटकॉम में उतरना चाहती है और उसने नीलामी के बगैर सीधे स्पेक्ट्रम आवंटित किए जाने की मांग की है। मगर दूरसंचार उद्योग जगत के ज्यादातर लोगों ने नीलामी से स्पेक्ट्रम आवंटन के पक्ष में हैं। सरकार ने भी कह दिया है कि दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत में भी स्पेक्ट्रम नीलामी के बगैर दिया जाएगा मगर अभी यह नहीं पता कि कीमत कितनी रहेगी।
मित्तल ने बार्सिलोना सम्मेलन में मस्क की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह लड़ाई का वक्त नहीं है। सुदूर इलाकों और अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने में सैटेलाइट कम्युनिकेशन की अहमियत समझाते हुए उन्होंने कहा कि बचे हुए 40 करोड़ लोगों को दूरसंचार के दायरे में लेने का काम पूरा करना ही होगा।
दुनिया के इस सबसे बड़े दूरसंचार सम्मेलन में एकीकरण, ढांचे की साझेदारी और निवेश पर बेहतर रिटर्न की बातें जोर-शोर से उठाई गईं मगर चीन से आई एक बड़ी शख्सियत के विचार सबसे अलग रहे। चाइना मोबाइल के प्रेसिडेंट और सीईओ हे प्याओ ने एक ऐसी बात कही, जिस पर शायद ही किसी ने ध्यान नहीं दिया हो। उनकी बात का अंग्रेजी अनुवाद जब हॉल में गूंजा तब लोगों ने सुना, ‘ एआई प्लस को हम बनाते हैं, इस्तेमाल करते हैं और बदल डालते हैं..’।
हे का मतलब था कि एआई प्लस की दशा-दिशा चीन ही तय करता है और उनके भाषण में कुछ भी साझा करने की बात नहीं कही गई थी। जाहिर है कि चीन की सबसे बड़ी मोबाइल नेटवर्क कंपनी (जिस पर पीपल्स रिपब्लिक) को संसाधन साझा करने की कोई जरूरत नहीं लग रही है। यह उन दूरसंचार कंपनियों के रुख से एकदम उलट रहा, जो बार्सिलोना के मंच से अपनी सरकारों और नियामकों को कर तथा शुल्क कम करने के लिए कह रही थीं। तकनीक पर पूरी तरह कब्जा करने की हसरतों के इस दौर में क्या उनकी बात सुनी जाएगी?