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AI के साथ आवश्यक हैं अन्य कारक

आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) की सहायता से प्रतिस्पर्धी बढ़त हासिल करने की बात करें तो केवल इतना पर्याप्त नहीं है। विस्तार से बता रहे हैं अजय कुमार

Last Updated- January 02, 2024 | 9:22 PM IST
Other factors are essential with AI

ओपन एआई के चैटजीपीटी और डीएएलएल-ई की शुरुआत के साथ-साथ गूगल द्वारा स्टूडियो बॉट, बार्ड और जेमिनी को सहज उपलब्ध एपीआई (ऐप्लीकेशंस प्रोग्रामिंग इंटरफेस) के साथ पेश किए जाने से एआई यानी कृत्रिम मेधा को लेकर छोटी-बड़ी दोनों तरह की कंपनियों के बीच एक किस्म के उन्माद का माहौल बन गया है। कोशिश यह है कि एआई को अपने-अपने तंत्र में एकीकृत किया जाए ताकि तकनीक की मदद से अधिकतम लाभ हासिल किया जा सके।

ये रचनात्मक एआई मॉडल अत्यंत समझदारी के साथ टेक्स्ट, छवियां, ध्वनियां तथा अन्य सामग्री तैयार करने में सक्षम हैं और उन्होंने मानवीय मेधा और रचनात्मकता की मांग वाले क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव किया है। अनुवाद से लेकर डेटा एनालिसिस, रिपोर्ट लेखन से लेकर सॉफ्टवेयर कोड निर्माण तक और यहां तक कि डीप फेक के निर्माण तक ये मॉडल पलक झपकते ही जटिल काम करने में सक्षम हैं। क्या इसका अर्थ यह है कि एआई नवाचार के लिए बाजार भी तैयार कर सकता है?

अपनी प्रतिस्पर्धी और रणनीतिक बढ़त के लिए नवाचार पर निर्भर रहने वाली कंपनियों पर इसका क्या असर होगा? क्या कंपनियों को प्रतिस्पर्धी और रणनीतिक बढ़त दिलाने के लिए एआई पर्याप्त और आवश्यक है या फिर यह सूचना-प्रौद्योगिकी के बुनियादी ढांचे की केवल एक और परत भर है?

एआई मॉडल अपनी योग्यता व्यापक डेटाबेस पर आधारित गहन प्रशिक्षण से हासिल करते हैं। ओपन एआई का उदाहरण लें तो वह दुनिया के सबसे जबरदस्त डेटासेट यानी इंटरनेट का इस्तेमाल करता है जिसका आकार करीब 157 लाख करोड़ गीगाबाइट है। इंटरनेट की व्यापकता उसे समृद्ध और विविधता से भरी सूचनाएं और संदर्भ मुहैया कराती है जो वास्तविक दुनिया की जटिलताओं को प्रतिबिंबित करते हैं। बेहतर डिजाइन वाले एआई मॉडल जो इंटरनेट डेटा पर प्रशिक्षित हैं वे मूल्यवान और अप्रासंगिक सूचनाओं के बीच भेद करना भी सीख जाते हैं। उपलब्ध एपीआई मसलन चैटजीपीटी और जेमिनी द्वारा प्रस्तुत एपीआई एआई का लोकतंत्रीकरण है।

ये एपीआई उपयोगकर्ताओं के अनुकूल टूलकिट का काम करते हैं और बुनियादी सतह पर संदर्भ और कंपनी आधारित ऐप्लीकेशन के विकास को सक्षम बनाता है। इस सुलभता की बदौलत ही कृत्रिम मेधा को छोटे और मझोले उपक्रमों के साथ एकीकृत किया जा सका और एआई के क्रियान्वयन से संबद्ध समय और लागत में कमी लाई जा सकी। निस्संदेह इन क्रियान्वयन ने बेहतर संगठनात्मक क्षमता पैदा की और इन संस्थानों में लागत कम करने में मदद मिली। परंतु क्या इससे प्रतिस्पर्धी बढ़त हासिल होगी? इसके विपरीत यह कहा जा सकता है कि चैटजीपीटी अथवा डीएएलएल-ई जैसे सामान्य बुनियादी मॉडल को अपनाने से विभिन्न कंपनियों में एकरूपता आ सकती है क्योंकि ये समान इंटरनेट डेटासेट से प्रशिक्षित हो सकते हैं।

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खासतौर पर छोटे और मझोले उपक्रमों के साथ ऐसा हो सकता है जहां समुचित आंकड़े या मॉडल अनुपलब्ध हों। जेनरेटिव एआई उन विशेषताओं का जिंसीकरण कर सकता है जिन्हें पहले विशिष्ट और प्रतिस्पर्धी बढ़त दिलाने वाला माना जा सकता है। उदाहरण के लिए पर्सनलाइजेशन या स्थानीय भाषा को सक्षम बनाना। जब इस प्रकार का एआई डेटा विश्लेषण और रिपोर्टिंग के लिए मानक बन जाता है तो निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी ऐसे नतीजे हासिल हो सकते हैं।

बल्कि सोशल मीडिया पर किया जाने वाला भावनाओं का विश्लेषण भी ऐसे ही परिणाम दे सकता है क्योंकि सोशल मीडिया की सामग्री सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थी। एआई से संपन्न साइबर सुरक्षा उत्पाद निस्संदेह साइबर सुरक्षा प्रोफाइल को मजबूत करेंगे लेकिन सबके लिए उनकी उपलब्धता को देखते हुए संभव है कि वे कंपनियों के लिए कोई अंतर न प्रस्तुत कर सकें।

जैसे-जैसे संस्थान सर्वव्यापी एआई को अपनाने की दिशा में बढ़ रहे हैं वास्तविक चुनौती एकरूपता के बीच विशिष्टता को बचाए रखने की होगी। ऐसे में प्रतिस्पर्धी बढ़त हासिल करने के कुछ पारंपरिक तरीके मद्धम पड़ सकते हैं लेकिन इसके बावजूद जेनरेटिव एआई में यह क्षमता है कि वह नए मार्ग प्रशस्त कर सके। मेरा मानना है कि ऐसी प्रतिस्पर्धी बढ़त के चार कारक हो सकते हैं।

पहला कारक होगा संदर्भ विशेष वाले डेटासेट का इस्तेमाल। उन संस्थानों को मदद मिलेगी जिनके पास बड़े पैमाने पर डेटा होगा और उन्हें रणनीतिक बढ़त भी हासिल हो सकेगी क्योंकि ये डेटासेट जेनरेटिव एआई मॉडल को सशक्त बनाएंगे, बेहतर उत्पादन गुणवत्ता तैयार करेंगे। उदाहरण के लिए डेटा से लैस कार निर्माता रखरखाव को लेकर अनुमान लगा सकता है और प्रतिस्पर्धियों पर बढ़त हासिल कर सकता है। जिन कंपनियों के पास डेटा नहीं होंगे वे अन्य उत्पादकों के डेटा इस्तेमाल कर सकती हैं बशर्ते कि डेटा मुद्रीकरण फ्रेमवर्क डेटा के ऐसे लेनदेन को उचित ठहराता हो।

एक औषधि शोध और विकास कंपनी कई अस्पतालों के साथ गठजोड़ करके मरीजों के असीमित आंकड़े जुटा सकती है और उसे औषधि विकास के क्षेत्र में मदद मिल सकती है। आंकड़ों का ऐसा स्थानांतरण एक मजबूत आर्थिक-तकनीकी ढांचे की जरूरत पैदा करता है। इसके साथ आर्थिक हित और सभी अंशधारकों की निजता की चिंताएं भी जुड़ी हैं। भारत सरकार का डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून, 2023 इस दिशा में एक कदम है।

दूसरा कारक जेनरेटिव एआई मॉडल से रचनात्मक परिणाम हासिल करने की क्षमता से संबद्ध हो सकता है। इसके लिए कुशल संकेत तैयार करना और मॉडल को लेकर व्यावहारिक प्रश्न तैयार करने होंगे। जैसा कि डॉक्टरेट के विद्यार्थियों को बताया जाता है, सही शोध प्रश्न तैयार करने का अर्थ ही है आधी पीएचडी थीसिस तैयार करना।
कंपनियों की प्रतिस्पर्धी बढ़त के लिए तीसरा कारक होगी कंप्यूटर की शक्ति।

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कंपनियां एआई के लिए उन्नत समर्पित गणन क्षमताओं में निवेश करेंगी। यह रुझान देखा जा सकता है क्योंकि कई बड़ी कंपनियों ने उन्नत निविडा प्रोसेसर्स की खरीद के लिए अरबों डॉलर खर्च करने की प्रतिबद्धता जताई है ताकि समर्पित एआई गणना क्षमता हासिल कर सकें। इससे उन्हें मॉडल को अधिक तेजी से और प्रभावी ढंग से प्रशिक्षित करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही वे विभिन्न मॉडल के साथ प्रयोग भी कर सकेंगे। गणना की अधिक शक्ति गति को तेज करेगी और अधिक मानकों वाले प्रशिक्षण मॉडल इस्तेमाल किए जा सकेंगे।

चौथा कारक होगा एआई शोध और विकास। यह सही है कि जेनरेटिव एआई ने अहम प्रगति की है लेकिन अभी भी ऐसी स्थिति नहीं है कि मशीन की क्षमता इंसानी क्षमताओं का मुकाबला कर सके। समय के साथ यह अंतर कम होगा और इस दिशा में बढ़ रही कंपनियों को दूसरों पर रणनीतिक बढ़त भी मिलेगी।

जेनरेटिव एआई को अपनाने लेकर मौजूदा उत्साह आईटी को अपनाने के शुरुआती दिनों जैसा प्रतीत होता है। आईटी के व्यापक क्रियान्व्यन से एक किस्म का मानकीकरण और जिंसीकरण हुआ जिसका असर आईटी घटकों- हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और नेटवर्क में नजर आया। इसी जिंसीकरण ने पत्रकार निकोलस कार को हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में लिखे लेख में यह सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित किया, ‘क्या आईटी मायने रखता है?’

उनका तर्क था कि आईटी एक कमोडिटी बन गया है और इसके बुनियादी ढांचे में निवेश से कोई प्रतिस्पर्धी बढ़त नहीं हासिल होती। बाद में उन्होंने ‘आईटी डज मैटर’ शीर्षक वाले पर्चे में इस प्रश्न का उत्तर दिया। एआई क्रियान्वयन के संदर्भ में इसी सवाल संबोधित करते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि केवल एआई को अपनाना पर्याप्त नहीं है। प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त के लिए अतिरिक्त कारकों की आवश्यकता होगी।

(लेखक भारत के पूर्व रक्षा सचिव और आईआईटी कानपुर के वि​शिष्ट अति​थि प्राध्यापक हैं)

First Published - January 2, 2024 | 9:22 PM IST

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