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संगठनात्मक सुधार से ऊर्जा संक्रमण के मिलेंगे परिणाम

कोयला मंत्रालय अधिक कोयला उत्पादन का लक्ष्य लेकर चलता है तो नवीकरणीय (अक्षय) ऊर्जा मंत्रालय कोयले पर निर्भरता कम करना चाहता है।

Last Updated- June 11, 2024 | 11:04 PM IST
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केंद्र सरकार में संगठनात्मक स्तर पर सुधार से सरकारी कामकाज अधिक सक्षम एवं प्रभावी ढंग से हो पाएंगे। बता रहे हैं अजय शाह
और अक्षय जेटली

सं शयवादी भारत में सरकार के भारी भरकम आकार पर लंबे समय से टीका-टिप्पणी करते रहे हैं। उनके अनुसार केंद्र सरकार का आकार 15 मंत्रियों एवं रायसीना हिल (राष्ट्रपति भवन सहित महत्त्ववपूर्ण मंत्रालयों का ठिकाना) तक सीमित रखा जाना चाहिए। नया मंत्रिमंडल हमेशा केंद्र सरकार की गतिविधियों पर पुनर्विचार करने का एक अवसर देता है।

अनियोजित कार्य पद्धति लगातार जारी है और सरकार का हस्तक्षेप अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों में भी पहुंच गया है जहां इसकी जरूरत नहीं है और कई मामलों में तो इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। जिन क्षेत्रों में सरकार की उपस्थिति अनिवार्य है वहां मौजूदा संगठनात्मक ढांचा प्रायः प्रगति की राह में बाधा साबित हो रहा है।

ऊर्जा क्षेत्र ऐसा ही एक उदाहरण है। अधिक विभाग होने से उनके बीच तालमेल नहीं बैठ पाता है। कोयला मंत्रालय अधिक कोयला उत्पादन का लक्ष्य लेकर चलता है तो नवीकरणीय (अक्षय) ऊर्जा मंत्रालय कोयले पर निर्भरता कम करना चाहता है। दूसरी तरफ, बिजली निरंतर बिजली उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करता रहता है।

पर्यावरण मंत्रालय जलवायु परिवर्तन से जुड़े विषयों पर सोचता है मगर ऊर्जा मंत्रालयों उसके प्रभाव के जद में नहीं आता है। यह पूरी प्रक्रिया नीतियों में तारतम्यता की राह में बाधा बनती है। कार्यपालिका के विभिन्न कदम एक दूसरे के विपरीत जान पड़ते हैं।

नीतियों एवं प्रयासों के बीच आपसी तालमेल का अभाव देश के भीतर (राज्य सरकारों के साथ संबंधों के संदर्भ में) और बाहर (दूसरे देशों के साथ संबंधों में), दोनों जगहों पर केंद्र सरकार के प्रदर्शन को प्रभावित करता है। दूसरे क्षेत्रों की तुलना में ऊर्जा क्षेत्र के लिए बाहरी दुनिया के साथ तालमेल खासा मायने रखता है।

नीतिगत योजना और राष्ट्रीय हित में तालमेल नहीं होने से आर्थिक कुशलता का लक्ष्य हासिल नहीं हो पाता है। ऊर्जा संक्रमण (जीवाश्म ऊर्जा पर निर्भरता कम कर धीरे-धीरे अक्षय ऊर्जा अपनाने की तरफ बढ़ना) कोई अनूठी समस्या नहीं है और यहां भी विभागों एवं मंत्रालयों की संरचना दोषपूर्ण है। भारत में नीतिगत स्तर पर अफसरशाही की शिथिलता एक तार्किक संगठनात्मक ढांचे को कमजोर कर देती है।

परिवहन क्षेत्र में भी ऐसी ही समस्या पाई जाती है। वित्त मंत्रालय में विभागों की संरचना भी दोषपूर्ण मानी जा सकती है। विजय केलकर की अध्यक्षता में ‘अ मिनिस्ट्री ऑफ फाइनैंस फॉर द 21 सेंचुरी’ शीर्षक नाम से एक रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार शताब्दी के पहले 24 वर्षों में वित्त मंत्रालय में काफी कम सुधार हुए हैं।

मौजूदा व्यवस्था किस तरह काम करता है? ऊर्जा संक्रमण जिन मंत्रालयों या विभागों से जुड़ा है उनमें कोयला, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, बिजली, परमाणु ऊर्जा, भारी उद्योग मंत्रालय में इलेक्ट्रिक वाहन विभाग और आर्थिक मामलों का विभाग आदि शामिल हैं। ज्यादातर लोग इस बात पर सहमत होंगे कि यह एक अच्छी व्यवस्था नहीं है।

अब प्रश्न है कि इसे बेहतर कैसे बनाया जा सकता है? पांच ऐसे कार्य हैं जो इस दिशा में किए जा सकते हैं। पहली बात, हमें सबसे पहले विभागों की सूची पर पुनर्विचार करना होगा। क्या हमें कोयला मंत्रालय और एक परमाणु ऊर्जा विभाग की आवश्यकता है? उदाहरण के लिए केवल दो विभाग हो सकते हैं, एक कार्बन आधारित ईंधन और दूसरा कार्बन मुक्त ईँधन।

दूसरी बात, ऊर्जा के साथ जुड़े सभी खंडों को एकल ऊर्जा मंत्रालय में समाहित किया जा सकता है। इस मंत्रालय की संरचना विदेश मंत्रालय जैसी हो सकती है जिसमें विभिन्न विभागों का नेतृत्व सचिव स्तर के अधिकारी कर सकते हैं। ये इनके ऊपर एक ऊर्जा सचिव होंगे और ये सभी ऊर्जा मंत्री के अधीन काम करेंगे। मगर यह संरचना समस्या का पूर्ण समाधान नहीं कर पाता है।

इसका कारण यह है कि विभाग सरकार तंत्र की आधारभूत इकाई होते हैं और इस संरचना के अंतर्गत कोयला विभाग भी होगा जो कार्बन उत्सर्जन बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। एक मंत्रालय में दो विभागों को समाहित करने के कई उदाहरण हैं। किसी विभाग को एक मंत्रालय से निकालकर दूसरे मंत्रालय में ले जाने के कई उदाहरण मौजूद हैं, इसलिए ऐसे बदलाव संभव एवं लाभकारी प्रतीत हो रहे हैं।

ऊर्जा मंत्रालय में भारी उद्योग का विलय करना तर्कसंगत लग रहा है। मगर आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) का ऊर्जा मंत्रालय में विलय उपयुक्त नहीं होगा। कार्य आवंटन नियमों में बदलाव पर नए सिरे से विचार और बदलाव करने की जरूरत है ताकि ऊर्जा संक्रमण से जुड़ी समस्याएं ठीक ढंग से परिलक्षित हो सकें।

कई मंत्रियों के बीच समन्वय में सुधार के लिए जलवायु परिवर्तन से जुड़े विषयों के लिए एक मंत्रिसमूह की गुंजाइश बनती है। इसमें संबंधित आठ या इससे कम मंत्री एक साथ काम कर सकते हैं। यह इस मायने में अच्छा समाधान है कि मंत्रिसमूह के पास संस्थागत अनुभव एवं अफसरशाही क्षमता होती है।

हालांकि, यह भी सच है कि पूर्व में ऐसे समूह पूरी तरह संतुष्ट करने वाले साबित नहीं हुए। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि इस समूह को समर्थन देने वाला कोई तकनीकी सचिवालय नहीं है।

फिलहाल जो व्यवस्था है उसके अंतर्गत मंत्री अपना प्रभाव जताने के लिए एक दूसरे प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं। मौजूदा ऊर्जा विभागों के हितों पर वित्त मंत्री अध्यक्षता में इन मंत्रिसमूह के माध्यम आंशिक रूप से की जा सकती है। पूर्व में तकनीकी सचिवालय नहीं होने के कारण मंत्री समूह असफल रहे थे।

चौथी बात, सरकार के तीन परंपरागत अंगों के बीच भारत में सरकारी तंत्र या संगठन की एक नई संकल्पना सामने आई है। यह संकल्पना नियामकों की है जो कार्यकारी, विधायी और न्यायिक शक्तियों के माध्यम से काफी प्रभावशाली साबित हो रहे हैं। ऊर्जा संक्रमण को आगे बढ़ाने के लिए संगठन संरचना में बदलाव के लिए इन नियामकों पर भी विचार करना चाहिए।

पांचवीं बात, कार्यपालिका के ढांचे के साथ विधायिका में भी सरकार कार्य क्षमता से जुड़ी समस्या मौजूद है। संसदीय स्थायी समितियों के स्तर पर बिखराव की समस्या ऊर्जा संक्रमण पर एकीकृत संसदीय स्थायी समिति गठित कर दूर की जा सकती है। इसमें आठ विभागों में सात की स्थायी समितियों को समाहित कर दूर की जा सकती है। इस संसदीय समिति के लिए शोध समूहों का एक समूह तैयार करने से भी मदद मिलेगी।

दिलचस्प बात यह है कि दूसरे देशों में भी जहां पहले से मौजूद ऐसी समस्या नहीं थी वहां जलवायु परिवर्तन से जुड़ी कठिनाइयों को देखते हुए नई सरकारी ढांचा स्थापित किया गया है। जर्मनी में इकनॉमिक अफेयर्स ऐंड क्लाइमेट एक्शन (बीएमडब्ल्यूके) ऊर्जा संक्रमण नीतियों पर नजर रखता है।

फ्रांस में मिनिस्ट्री फॉर द ईकोलॉजिकल ट्रांजिशन जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करता है। स्पेन में ईकोलॉजिकल ट्रांजिशन ऐंड डेमोग्राफिक चैलेंज एक अलग मंत्रालय है। उरुग्वे में ऊर्जा संक्रमण उद्योग, ऊर्जा एवं खनन मंत्रालय के अधीन आता है। इंडोनेशिया में ऊर्जा संक्रमण ऊर्जा एवं खनन संसाधन मंत्रालय के माध्यम से होता है।

अमेरिका में जॉन पोडेस्टा ‘क्लाइमेट जार’ हैं जो एक अनूठी भूमिका निभा रहे हैं। मगर भारतीय संवैधानिक संरचना में यह समाधान सरल नहीं दिख रहा है जहां सरकारी तंत्र मंत्रिमंडल, कैबिनेट मंत्रियों और विभागों के माध्यम से चल रहा है।

(शाह एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता और जेटली ट्रायलीगल में पार्टनर एवं ट्रस्टब्रिज के संस्थापक हैं।)

First Published - June 11, 2024 | 10:43 PM IST

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