पिछले वर्ष विश्व की बिजली उत्पादन क्षमता में नवीकरणीय यानी अक्षय ऊर्जा का योगदान उल्लेखनीय रूप से 83 प्रतिशत रहा। इसमें पवन और सौर ऊर्जा का खासा हिस्सा रहा है। हालांकि, अक्षय ऊर्जा को सहेजना सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि पवन हो या सौर ऊर्जा, यह परिवर्तनशील और अनियमित प्रकृति की है। इसका एक मात्र हल भंडारण ही है, जिसकी क्षमता हर वर्ष 23 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। चीन और अमेरिका में भंडारण सुविधाओं में सबसे अधिक करीब 60 प्रतिशत की वार्षिक दर से वृद्धि हो रही है, जबकि भारत में भी परिदृश्य ठीक-ठाक है। वर्ष 2030 तक भारत के विश्व का तीसरा सबसे बड़ा अक्षय ऊर्जा क्षमता वाला देश बनने की संभावना है, लेकिन भंडारण सुविधाएं विकसित करने के मामले में यह शीर्ष पांचवां देश हो सकता है।
केंद्र सरकार ने मई 2021 में उन्नत सेल रसायन बैटरी बनाने के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का ऐलान किया था। सरकार को उम्मीद थी कि इस योजना के लागू होने से घरेलू और विदेशी दोनों मिलाकर लगभग 45,000 करोड़ रुपये का निवेश आ सकता है। पिछले अगस्त में ऊर्जा मंत्रालय ने ऊर्जा भंडारण प्रणाली (ईएसएस) को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक मसौदा जारी किया है। इसमें ऊर्जा भंडारण प्रणाली के पांचों उप-क्षेत्रों में विस्तृत प्रक्रिया और प्रोत्साहन पर विस्तार से बताया गया है। ये हैं- (1) अक्षय ऊर्जा उत्पादन के साथ-साथ भंडारण, (2) पारेषण के लिए भंडारण, (3) वितरण के साथ भंडारण, (4) वाणिज्यिक इकाई के रूप में स्वतंत्र संचालन वाले ईएसएस और (5) सहायक एवं संतुलित सेवाओं के लिए भंडारण।
यह मसौदा तैयार करने के बाद सरकार ने अक्षय ऊर्जा भंडारण के लिए बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (बीईएसएस) के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सितंबर 2023 में 3,760 करोड़ रुपये की व्यवहार्यता अंतर निधि को मंजूरी दी।
योजना के तहत सरकार ने वर्ष 2030-31 तक कुल 4000 मेगावॉट घंटे (एमडब्ल्यूएच) क्षमता की बीईएसएस परियोजना पर आने वाली कुल लागत की 40 प्रतिशत तक वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने का वादा किया। सरकार ने कहा कि यह वित्तीय सहयोग भंडारण की कुल लागत को 5.50 से 6.60 प्रति केडब्ल्यूएच (किलोवॉट आवर) से कम करने की उसकी इच्छा के अनुरूप है। बिजली मंत्रालय ने यह भी संकेत दिया कि सरकार 5 मेगावॉट से अधिक क्षमता वाली अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए ऊर्जा भंडारण प्रणाली (ईएसएस) उनकी क्षमता का कम से कम पांच फीसदी तक करने पर कभी भी निर्देश जारी कर सकती है।
दिसंबर 2023 के मध्य में दुबई में आयोजित कॉप28 शिखर सम्मेलन में पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि जब तक भंडारण क्षमता और संबंधित प्रौद्योगिकी व्यवहार्य नहीं हो जाती तब तक भारत जीवाश्म ईंधन विशेषकर कोयले का इस्तेमाल रोकने के लिए समयसीमा निर्धारित करने का वादा नहीं कर सकता।
वैश्विक जलवायु कार्रवाई एजेंडे के प्रति अपनी वचनबद्धता जताते हुए भारत ने 2030 तक अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता 500 गीगावॉट तक करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसमें प्रमुख रुप से 292 गीगावॉट सौर ऊर्जा का हिस्सा होगा। सौर के चरम घंटों एवं मांग के व्यस्त घंटों के बीच संभावित कमी को देखते हुए ईएसएस की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
ऊर्जा भंडारण के सबसे सामान्य रूप बीईएसएस और पीएसपी (पंप भंडारण परियोजना) हैं। अभी विकास के दौर से गुजर रहे हरित हाइड्रोजन और अमोनिया भंडारण को भी विकल्प माना जा रहा है। ईएसएस को सौर एवं पवन उत्पादन के साथ जोड़ना न केवल ऊर्जा आपूर्ति की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है, बल्कि ग्रिड गुणवत्ता में सुधार की दिशा में आवृत्ति प्रतिक्रिया और वोल्टेज समर्थन के लिए विभिन्न आवश्यक कदम उठाने के लिए भी महत्त्वपूर्ण है।
केंद्रीय बिजली प्राधिकरण ने वर्ष 2030 तक 60 गीगावॉट भंडारण क्षमता की आवश्यकता का अनुमान लगाया है। यह इसी अवधि के लिए प्रस्तावित 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता का 12 प्रतिशत है। इसमें 42 गीगावॉट के बीईएसएस और 18 गीगावॉट के पीएसपी शामिल हैं। इस अनुमान की तुलना में आज भंडारण क्षमता लगभग 30 गीगावॉट की है।
बीईएसएस के लिए लीथियम महत्त्वपूर्ण खनिज है। वैश्विक स्तर पर चिली, ऑस्ट्रेलिया, चीन, अर्जेंटीना और ब्राजील लीथियम के सबसे बड़े उत्पादक माने जाते हैं। भारत में हाल ही में जम्मू-कश्मीर और राजस्थान में लीथियम के भंडार मिले हैं। अनुमान है कि ये दोनों भंडार भारत की कुल मांग का 90 फीसदी लीथियम उपलब्ध करा सकते हैं। इसके बावजूद, बैटरियों के लिए लीथियम की उपलब्धता, अन्य सामग्री घटकों में अस्थिरता, विनिर्माण के लिए ज्यादा पूंजीगत आवश्यकता आदि को लेकर गंभीर चिंता बनी हुई है।
इन तमाम बाधाओं के बावजूद केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह ने हाल में संसद में बताया था कि अनुकूल माहौल होने पर बीईएसएस की लागत वर्ष 2023 से 2026 के दौरान 2.20 से 2.40 करोड़ प्रति एमडब्ल्यूएच आने का अनुमान है।
द इकॉनमिस्ट के 28 अक्टूबर अंक में प्रकाशित एक लेख में बताया गया है कि किस प्रकार सस्ता और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध ‘सोडियम’ का आयन प्रौद्योगिकी के साथ लीथियम बैटरी की जगह ले सकता है या उसको टक्कर दे सकता है। यदि सोडियम आधारित प्रौद्योगिकी का शीघ्र व्यवसायीकरण किया गया तो भारत के लिए यह बहुत फायदेमंद होगा, क्योंकि यह लवण यहां प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
पीएसपी में भारत की विशेषज्ञता और आजमायी हुई प्रौद्योगिकी के मद्देनजर यह बिजली भंडारण का बेहतर विकल्प बन सकती है। पीएसपी पानी को पंप करने के लिए अधिशेष अक्षय ऊर्जा का उपयोग करता है और इसके बाद इसे जल विद्युत संयंत्रों में छोड़ देता है। इससे मांग के हिसाब से बिजली पैदा होती है। इस प्रकार अल्पअवधि में नीति का फोकस पीएचएस को तेजी से संचालित करने पर है। इससे इस तथ्य को बल मिलता है कि भारत ने पहले ही 119 गीगावॉट की पीएसपी क्षमता की पहचान कर ली है।
स्वतंत्र स्टोरेज टैरिफ 9-11 रुपये किलोवॉट घंटा है, वहीं एकीकृत इकाइयों में यह 3 से 7 रुपये किलोवॉट घंटा पाया गया है। यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि भंडारण क्षमता के साथ एकीकृत इकाइयां चौबीसों घंटे प्रेषण आवश्यकताओं या मांग के अनुसार सौर एवं पवन ऊर्जा क्षमता के संयोजन और अनुकूलन का लाभ उठाती हैं।
ऊर्जा भंडारण पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत के साथ-साथ एक सहायक ढांचे पर अमल की भी आवश्यकता है। इसके लिए कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने अनुमान लगाया है कि 2070 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य की दिशा में बढ़ते हुए बड़ी मात्रा में अक्षय ऊर्जा का उत्पादन शुरू होने के कारण 2047 तक ऊर्जा भंडारण की आवश्यकता 320 गीगावॉट (90 गीगावॉट पीएसपी और 230 गीगावॉट बीईएसएस) तक बढ़ने की उम्मीद है।
इस प्रकार, भारत के हरित ऊर्जा बदलाव की तरफ बढ़ने के लिए भंडारण इकाइयों की स्थापना करना स्पष्ट रूप से नवीकरणीय लक्ष्यों के लिए बड़ी चुनौती है।
(लेखक बुनियादी ढांचा विशेषज्ञ और द इन्फ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक एवं प्रबंधन ट्रस्टी हैं। लेख में ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञ विवेक शर्मा का भी योगदान है)