दक्षिण एशिया के दो देशों इंडोनेशिया और पाकिस्तान में पिछले महीने राष्ट्रीय चुनाव हुए जिनके परिणाम सत्ता बदलने वाले रहे। दुनिया के चौथे और पांचवें सबसे बड़ी आबादी वाले ये देश सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले देश भी हैं। दोनों देश आजादी के बाद अलग-अलग दौर में तकरीबन समान अवधि यानी तीन दशकों तक सैन्य तानाशाही और अधिनायकवादी शासन के अधीन रह चुके हैं।
पाकिस्तान जहां अभी भी निर्वाचित सरकार के स्वरूप के साथ संघर्ष कर रहा है, वहीं इंडोनेशिया अपेक्षाकृत लंबे समय तक राजनीतिक स्थिरता के दौर से गुजर रहा है। सन 1998 में पूर्वी एशियाई वित्तीय संकट के बाद की असैन्य और राजनीतिक अशांति के बाद वह लोकतंत्र में बदल गया। बहरहाल ये दोनों देश एक दूसरे से काफी विपरीत भी हैं।
इंडोनेशिया ने लंबे समय से 5-6 फीसदी की वृद्धि दर बरकरार रखी है। इसमें 1998 के संकट के समय और 2020 में महामारी के दौरान जरूर बाधा आई। इंडोनेशिया जल्दी ही उबरने में कामयाब रहा और उसने 2022 में पांच फीसदी से अधिक की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर हासिल की। सतत वृद्धि देश के लिए लाभदायक रही। इससे न केवल अत्यधिक गरीबी में कमी आई बल्कि सतत विकास लक्ष्य भी समय से पहले प्राप्त हुए तथा समग्र गरीबी दर भी 1998 के संकट के समय से आधी से कम रह गई।
बीते तीन दशकों में इंडोनेशिया ने मानव विकास सूचकांक में अच्छी तरक्की की और 2017 से वह उच्च मानव विकास वाले देशों में शामिल है। यह सही है कि अभी भी उसे आसियान के समकक्ष देशों की बराबरी करनी है। उनमें से चार बहुत अच्छी स्थिति में हैं। इंडोनेशिया की एक उपलब्धि महिला-पुरुष असमानता सूचकांक में सुधार भी है। बीते दशक के दौरान वहां माध्यमिक शिक्षा पाने वाली 25 वर्ष तक की आयु की महिलाओं की तादाद में 25 फीसदी का उल्लेखनीय इजाफा हुआ है। इसके बावजूद इंडोनेशिया में श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी दो दशकों से करीब 50 फीसदी पर स्थिर है।
इंडोनेशिया जहां 1990 के दशक के अंत में क्षेत्रीय संकट से उबरने में कामयाब रहा, वहीं पाकिस्तान एक संकट से निकलकर दूसरे संकट में फंसता गया। उसने 76 वर्ष के अपने इतिहास में कुछ वर्षों तक छह फीसदी से अधिक की वृद्धि दर हासिल की है लेकिन बाद के वर्षों की अस्थिरता ने इसे बेतुका कर दिया। लगभग हर दशक में पाकिस्तान ने एक या उससे अधिक सालों तक सकल घरेलू उत्पाद में 0-2 फीसदी तक की वृद्धि दर्ज की।
बीते तीन दशकों में उसका प्रति व्यक्ति जीडीपी 2015 के अमेरिकी डॉलर के स्थिर मूल्य पर केवल 77 फीसदी बढ़ा जबकि इंडोनेशिया में यह ढाई गुना तक बढ़ा। वृद्धि को बरकरार रखने में नाकामी ने गरीबी के मामले में पाकिस्तान के प्रदर्शन पर असर डाला और करीब 40 फीसदी आबादी अब गरीबी रेखा के नीचे जी रही है। वह अफगानिस्तान के अलावा दक्षिण एशिया का इकलौता देश है जो मानव विकास सूचकांक में नीचे है।
महिला-पुरुष असमानता सूचकांक में गिरावट के बावजूद वहां स्थिति वैश्विक औसत से बेहतर है। 25 से अधिक आयु की माध्यमिक शिक्षा लेने वाली आबादी 2013 के 25 फीसदी से घटकर 2021 में 22 फीसदी रह गई। श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी बेहद कम है और बीते तीन दशक में यह उनकी आबादी के 20 फीसदी से अधिक नहीं हुई है। इस तरह यह विकासशील देशों में भी कमतर स्तर पर है।
दोनों देशों के इस आर्थिक परिदृश्य का विरोधाभास उनकी दीर्घकालिक वृद्धि रणनीति में उजागर हो जाता है। इंडोनेशिया ने अपने विनिर्माण क्षेत्र को गति दी है। बीते कुछ वर्षों में उसने अपने खनिज संसाधनों का इस्तेमाल करके और वैश्विक मूल्य श्रृंखला को एकीकृत करने की रणनीति अपनाकर खासकर इलेक्ट्रिक व्हीकल के क्षेत्र में ऐसा किया है।
इंडोनेशिया का वैश्विक मूल्य श्रृंखला के साथ यह एकीकरण ज्यादातर प्राथमिक और कम प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल वाले क्षेत्रों में हुआ। इसके बावजूद वह पूर्वी एशियाई क्षेत्र की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं की वैश्विक मूल्य श्रृंखला एकीकरण के त्रिकोणीय व्यापारिक विशेषताओं का हिस्सा नहीं था। हाल के दिनों में उसने व्यापक निकल संसाधन के आधार पर स्वदेशी ईवी आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने की महत्त्वाकांक्षी बात कही जो मूल्य श्रृंखला एकीकरण को उच्च मूल्यवर्द्धित विनिर्माण और निर्यात सामग्री की दिशा में ले जाने की प्रक्रिया का हिस्सा है।
इस लक्ष्य को देखते हुए और उद्योग जगत के लिए 2015-2035 के मास्टर प्लान के अहम तत्त्व के रूप में इंडोनेशिया विदेशी निवेश को रणनीतिक, औद्योगिक और कारोबारी नीतियों के साथ जोड़ रहा है। वहां की सरकार ने निकल के लिए सब्सिडी और निर्यात नियंत्रण के मिश्रण की नीति अपनाई है।
इंडोनेशिया यह कोशिश करता रहा है कि वह अमेरिका के साथ अहम खनिजों को लेकर व्यापारिक सौदा कर सके। चूंकि दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता नहीं है इसलिए वह अमेरिकी इन्फ्लेशन रिडक्शन ऐक्ट के तहत ऋण क्रेडिट नहीं पा सकेगा। ऐसी साझेदारी को लेकर प्राथमिक बातचीत नवंबर 2023 में हुई। इंडोनेशिया इसके साथ-साथ यह प्रयास भी कर रहा हैकि वह बड़े अधिक इच्छुक निवेशक देश चीन के साथ भी संतुलन कायम रख सके और साथ ही पर्यावरण, सामाजिक और संचालन मानकों पर अमेरिका को भी संतुष्ट कर सके।
इसके विपरीत पाकिस्तान के औद्योगिक आधार में पर्याप्त विविधता नहीं है। वहां मौजूदा आर्थिक संकट से निपटने या दक्षिण एशियाई समकक्ष देशों के समान दर्जा हासिल करने के लिए कोई व्यापार या उद्योग नीति विकसित करने की हड़बड़ी भी नहीं नजर आ रही है। इसके भौगोलिक रणनीतिक लाभ और बाहरी धन संसाधनों पर उसकी अत्यधिक निर्भरता ने उसे गलत तरह की आत्मसंतुष्टि का शिकार बना दिया।
इन बातों ने उसे क्षेत्रीय भूराजनीतिक संदर्भों में बदलाव के प्रति संवेदनशील और निरंतर आर्थिक वृद्धि के लिए अनुपयुक्त भी बना दिया। विनिर्माण उत्पादन समय के साथ कम होता गया और अब पाकिस्तान कम उत्पादकता, सीमित शोध एवं विकास, स्थगित निर्यात और कमजोर मानव पूंजी विकास वाला देश है।
पाकिस्तान की कारोबारी नीति संरक्षणवादी है और वहां निर्यात को लेकर पूर्वग्रह है। इससे उसके विनिर्माण प्रतिस्पर्धी बनने की संभावनाएं सीमित होती हैं। वहां पर्याप्त लॉजिस्टिक्स अधोसंरचना नहीं है और कुल मिलाकर माहौल कारोबार और निवेश के लाभ भी नगण्य ही रहे हैं। चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते का उदाहरण लें तो पाकिस्तान चीनी बाजार में भी आसियान अर्थव्यवस्थाओं सहित अन्य मुक्त व्यापार साझेदारों की तुलना में पिछड़ गया है। वहीं उसका घरेलू बाजार सस्ते चीनी माल से भर गया है। इससे पाकिस्तान की पहले से सीमित क्षमता पर और असर पड़ा है।
लब्बोलुआब यह है कि इंडोनेशिया जहां अपने प्राकृतिक लाभ के सहारे सतत वृद्धि के मार्ग पर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है, वहीं पाकिस्तान अपने जनसंख्या संसाधन अथवा भौगोलिक बढ़त का लाभ लेकर सतत आर्थिक विकास हासिल करने में नाकाम रहा है।
(लेखिका जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में अर्थशास्त्र की प्राध्यापक हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं)