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Opinion: शहरी कचरा प्रबंधन में गंभीर रणनीति जरूरी

अमेरिका और चीन हर साल दुनिया भर में 20 करोड़ टन से अधिक नगरपालिका के स्तर का कचरा तैयार करते हैं।

Last Updated- June 18, 2023 | 11:31 PM IST
hazardous waste hazards

दुनिया में जैसे-जैसे शहरीकरण की गति तेज होती जा रही है, वैसे ही नगरपालिका के स्तर पर बढ़ता कचरा एक कठिन चुनौती पेश कर रहा है। दुनिया शहरी भविष्य की दिशा की ओर अग्रसर हो रही है लेकिन शहरी जीवन शैली के परिणामस्वरूप सबसे महत्त्वपूर्ण उप-उत्पादों में से एक नगरपालिका के स्तर पर जमा होने वाले ठोस कचरे (एमएसडब्ल्यू) की तादाद शहरीकरण की दर से भी अधिक तेजी से बढ़ रही है।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट , ‘व्हाट ए वेस्ट: ए ग्लोबल रिव्यू ऑफ सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट’ में कहा गया है कि 2.9 अरब लोग 10 साल पहले महानगरीय क्षेत्रों में रहते थे और प्रति व्यक्ति, रोजाना 0.64 किलोग्राम नगरपालिका ठोस कचरा (0.68 अरब टन सालाना) तैयार होता था। हालांकि, लगभग 3 अरब लोग आज शहरों में रहते हैं और प्रति व्यक्ति के हिसाब से रोजाना 1.2 किलोग्राम ठोस कचरा (1.3 अरब टन प्रति वर्ष) तैयार कर देते हैं।

इस अनुमान के मुताबिक कोई भी यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि वर्ष 2025 तक, 2.2 अरब टन नगरपालिका ठोस कचरा तैयार हो सकता है क्योंकि शहरी आबादी 4.3 अरब तक बढ़ जाएगी। अमेरिका और चीन हर साल दुनिया भर में 20 करोड़ टन से अधिक नगरपालिका के स्तर का कचरा तैयार करते हैं।

विश्व बैंक के अनुसार, उच्च आमदनी वाले देशों में वर्ष 2050 तक रोजाना प्रति व्यक्ति कचरा उत्पादन 19 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है जबकि निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में यह लगभग 40 प्रतिशत या उससे अधिक बढ़ने का अनुमान है।

इसके अलावा, यह भविष्यवाणी की गई है कि कम आय वाले देशों में कचरा उत्पादन वर्ष 2050 तक लगभग तीन गुना बढ़ जाएगा। कुल कचरा उत्पादन के संदर्भ में देखा जाए तो पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र सबसे अधिक कचरे (23 प्रतिशत) का उत्पादन करते हैं और पश्चिम एशिया तथा उत्तरी अफ्रीका में सबसे कम (6 प्रतिशत) कचरा होता है।

उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया, पश्चिम पूर्व और उत्तरी अफ्रीका जैसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में कचरा उत्पादन की दिशा पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और आर्थिक पहलू को भी महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगा जिसको ध्यान में रखते हुए तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता होगी। वर्तमान में, आधे से अधिक कचरे को खुले तौर पर इन क्षेत्रों में फेंक दिया जाता है।

शहरीकरण के अपने लाभ भी हैं लेकिन अगर शहरीकरण की योजना अनियोजित है और यह शहरों में रहने वाले लोगों की सहूलियत के अनुकूल नहीं है तब कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। हमें सिर्फ ऐसे शहरों की जरूरत नहीं है जो ग्रामीण इलाकों को छोड़ने वाली आबादी को रखने के लिए पर्याप्त हों बल्कि हमें ऐसे शहरों की आवश्यकता है जो उन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं जो अपने नागरिकों के रोजमर्रा के जीवन में बाधा ला सकते हैं।

नगरपालिका कचरा प्रबंधन न केवल महत्त्वपूर्ण है बल्कि शहरी प्रशासन का एक आवश्यक कार्य है, खासतौर पर महामारी के बाद की दुनिया में। खराब तरीके से प्रबंधित कचरे के परिणामस्वरूप आमतौर पर ऐसे खर्च होते हैं जो लंबे समय में कचरे को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की तुलना में अधिक होते हैं। कचरे के खराब प्रबंधन का स्वास्थ्य, पर्यावरण और वैश्विक स्तर पर पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

नगरपालिका के ठोस कचरे का वैश्विक आयाम, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में इसकी बढ़ती भूमिका और वस्तुओं, शहरी चलन और प्रसंस्करण क्षेत्र के बीच बढ़ते परस्पर संबंध से भी साबित होता है। कचरा और ऊर्जा कार्यबल से जुड़ी एक रिपोर्ट (अक्टूबर 2017 में जारी) के अनुसार, भारत के शहरी क्षेत्रों में 37.7 करोड़ लोग अनुमानित तौर पर 6.2 करोड़ टन ठोस कचरे का उत्पादन सालाना करते हैं। शहरी प्रशासन तंत्र को सक्रिय करने और भारत में स्वच्छ भारत मिशन-शहरी जैसे अभियानों में लोगों की व्यापक भागीदारी की पहल से आगे का रास्ता तैयार हो सकता है।

औद्योगीकरण, समाजीकरण और क्षेत्रीय जलवायु के स्तर सभी नगरपालिका के ठोस कचरे की उत्पादन दरों को प्रभावित करते हैं। आमतौर पर, उत्पादित ठोस कचरे की मात्रा, आर्थिक विकास और शहरीकरण दर के साथ बढ़ती है।

शहरीकरण और आमदनी के स्तर में गहरा संबंध है और जैसे-जैसे खर्च करने योग्य आमदनी और जीवन स्तर बढ़ता है, वैसे-वैसे वस्तुओं तथा सेवाओं की खपत के साथ ही उत्पादित कचरे की मात्रा भी बढ़ती है। शहरी क्षेत्रों के निवासी, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में लगभग दोगुना कचरा पैदा करते हैं। इस तरह के कचरे के अस्वास्थ्यकर, अवैज्ञानिक और खराब निपटान के परिणामस्वरूप पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है और स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियां खड़ी हो जाती हैं।

इस संबंध में, कचरा प्रबंधन के लिए एक एकीकृत रणनीति की दरकार है जिसमें रकम मुहैया कराने, निर्माण और उन केंद्रों का संचालन शामिल है जहां शहरी अपशिष्ट प्रबंधन की वर्तमान समस्याओं का प्रबंधन करने के लिए कचरे को अलग करने के तरीके, संग्रह, परिवहन, दोबारा प्रसंस्करण, इसके निपटान की सुविधाएं दी जा सकें।

इस संदर्भ में, वैश्विक कचरा उत्पादन के आंकड़े दो प्रमुख मुद्दों का संकेत दे सकते हैं जैसे कि कचरे को स्थायी रूप से प्रबंधित करने के लिए शहरों में सक्रिय शासन तंत्र की कमी और नागरिकों के उपभोग का रुझान और व्यवहार बड़ी मात्रा में कचरे को बढ़ावा देता है।

अपर्याप्त संसाधनों और मौजूदा प्रणालियों में व्याप्त कमियों ने शहरी बुनियादी ढांचा सेवाओं, विशेष रूप से शहरी ठोस कचरा प्रबंधन पर भारी दबाव डाला है। इसीलिए, शहरी कचरे को पर्यावरण प्रदूषण का कारक न बनाए जाने और स्वास्थ्य से जुड़े जोखिम पैदा करने से रोकने के लिए, शहरी स्थानीय निकायों के लिए यह आवश्यक होगा कि वे अपनी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को टिकाऊ तरीके से बढ़ाएं, संचालित करें और उसका बेहतर तरीके से रख-रखाव करें।

इसके लिए महत्त्वपूर्ण तरीके से पूंजी निवेश, अत्याधुनिक, लागत प्रभावी प्रौद्योगिकियों को शामिल करने, अपशिष्ट प्रबंधन में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के साथ ही उचित कचरा प्रबंधन की शुरूआत करने की आवश्यकता होगी।

(कपूर इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस, भारत के अध्यक्ष और यूएसएटीएमसी, स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में व्याख्याता हैं। देबरॉय भारत के प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष हैं)

First Published - June 18, 2023 | 11:31 PM IST

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