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बसों का कोई विकल्प नहीं

Last Updated- December 05, 2022 | 11:05 PM IST

राजधानी दिल्ली के दक्षिणी इलाके में बनाया गया 5.6 किलोमीटर लंबा रोड कॉरिडोर का मामला अव्यवस्था जैसी स्थिति को दर्शाता है।


बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटी) के तहत इस कॉरिडोर पर बीते रविवार से ट्रायल रन शुरू किया गया। इस बाबत किए गए प्रयोगों से साफ है कि इस परियोजना को लागू करवाने में जुटे लोगों ने इस बाबत पर्याप्त तैयारी नहीं की।


साथ ही दिल्ली ट्रैफिक पुलिस भी अलग-अलग कॉरिडोर में ट्रैफिक की उचित आवाजाही संबंधी नियमों के पालन को सुनिश्चित करने में नाकाम रही। इसका पता इसी बात से चलता है कि ट्रायल रन शुरू होने के दिन ट्रैफिक सिग्नल सुबह 9.30 तक काम नहीं कर रहे थे, जबकि ट्रायल 2 घंटे पहले ही शुरू हो चुका था। नतीजतन ट्रैफिक की स्थिति बेकाबू हो गई और इस वजह से लोगों में काफी गुस्सा था।


इस परियोजना को लागू करने वाली संस्था दिल्ली इंटिग्रेटेड मल्टी मॉडल ट्रांजिट सिस्टम ने भी अपर्याप्त सिग्नलों की बात स्वीकार की है, जो भयंकर ट्रैफिक के लिए बिल्कुल नाकाफी थे। नतीजतन कार और अन्य निजी वाहन बस के लिए आरक्षित कॉरिडोर में घुस गए, जबकि मोटरसाइकल सवारों ने साइकल सवारों की जगह में घुसपैठ करने से परहेज नहीं किया। किसी परियोजना को इस तरीके से तो बिल्कुल लागू नहीं किया जा सकता।


बहरहाल इस मामले में ज्यादा बड़ा खतरा यह है कि इसे लागू करने में उपजी अव्यवस्था से इस आइडिया के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगेगा। वह भी इसका उचित ट्रायल हुए बगैर। गौरतलब है कि भारी वाहनों को ध्यान में रखते हुए सड़कों पर इसके लिए अलग लेन बनाने के प्रस्ताव को भारी आलोचना का शिकार होना पड़ा है।


दिल्ली में निजी वाहनों की तेजी से बढ़ती तादाद के मद्देनजर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। इस प्रोजेक्ट को लागू करने की कोशिश में उपजी अव्यवस्था को रोका जा सकता था। बहरहाल इस सिस्टम की खामियां दूर करने के मकसद से इसके ट्रायल रन को टाल दिया गया।


इस हफ्ते जो कुछ भी हुआ, उससे पता चलता है कि बीआरटी सिस्टम को लागू करने में शामिल एजेंसियां अपने काम को अंजाम देने में पूरी तरह नाकाम रहीं। ऐसे में इस बात को ध्यान में रखते हुए तर्कसंगत बहस छिड़नी चाहिए कि अगर बीआरटी प्रोजेक्ट को हमेशा के लिए टाल भी दिया जाता है ( जिसकी संभावना है), तो भी दिल्ली (अन्य बड़े शहरों की तरह) के पास ट्रैफिक की समस्या बरकरार रहेगी।


भारतीय शहरों में सड़कों की जगह काफी सीमित है और निजी वाहन सड़कों के ज्यादातर हिस्से पर अपना कब्जा जमा लेते हैं। मेट्रो दिल्ली और अन्य शहरों के लिए एक बेहतर विकल्प मुहैया कराता है, लेकिन ट्रैफिक में लगातार हो रही बढ़ोतरी के मद्देनजर सिर्फ इस विकल्प के जरिये पूरी तरह समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता। कुल मिलाकर कहें तो सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या कम करने और ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक बसों को लाने जैसे विकल्प से बचा नहीं जा सकता।

First Published - April 23, 2008 | 11:15 PM IST

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