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तेल और गैस पर ध्यान देने की जरूरत

निजी बातचीत में वैश्विक तेल निवेशक इस बात की शिकायत करते हैं कि भारत के तेल क्षेत्र में जोखिम की तुलना में संभावित लाभ बहुत कम है।

Last Updated- July 11, 2024 | 9:39 PM IST
Oil

दुनिया भर के देशों ने यह महसूस किया है कि प्रदूषणकारी ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन का सफर इतना आसान नहीं है। इसका रास्ता बहुत ही टेढ़ा और मुश्किलों से भरा है। भले ही वे नए एवं स्वच्छ ऊर्जा संयंत्रों पर भारी निवेश करें, इसके बावजूद गंदे ईंधन पर उनकी निर्भरता निकट भविष्य में समाप्त होने वाली नहीं है।

विशेष रूप से भारत के बारे में यह बात बिल्कुल सत्य है। भारत सबसे तेज गति से तरक्की करने वाली अर्थव्यवस्था है, लेकिन विकसित अथवा सही मायने में उच्च आय वाला देश समझे जाने से पहले इसे लंबा रास्ता तय करना है। इसकी ऊर्जा जरूरतें बहुत तेजी से बढ़ रही हैं।

इसलिए आने वाले दशकों में भारत में सौर और वायु ऊर्जा क्षमता में इजाफा होगा और यहां स्वच्छ ऊर्जा भंडारण का पारिस्थितिकीय तंत्र विकसित होगा। इसी के साथ यहां प्रदूषणकारी ईंधन जैसे कोयला और हाइड्रोकार्बन (तेल और प्राकृतिक गैस) की खपत बहुत तेजी से बढ़ेगी।

तेल के मामले में भारत पहले से ही विश्व का तीसरा सबसे बड़ा आयातक और उपभोक्ता देश है। अंतरराष्ट्रीय एनर्जी एजेंसी (आईईए) का अनुमान है कि भारत में गैस और तेल की मांग वर्ष 2050 तक बढ़ती जाएगी। हालांकि इस दौरान कोयले की मांग में कुछ कमी आ सकती है।

इस समय भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत से अधिक तेल और 50 प्रतिशत से ज्यादा प्राकृतिक गैस का आयात करता है। इससे बाजार में किसी भी तरह के व्यवधान या उथल-पुथल का देश और अर्थव्यवस्था पर असर साफ दिखता है।

सबसे खराब बात यह है कि देश में तेल उत्पादन गिर रहा है, क्योंकि कुएं पुराने पड़ गए हैं, जिनमें से पहले के मुकाबले कम कच्चा तेल निकल रहा है। यदि नए कुओं की तलाश नहीं की गई और उनमें समय रहते उत्पादन शुरू नहीं किया गया तो अगले कुछ वर्षों में भारत में तेल उत्पादन और घट जाएगा।

ऐसा नहीं है कि भारतीय नीति निर्माता देश में घटते तेल उत्पादन और वैश्विक उथल-पुथल की स्थिति से पैदा होने वाले संभावित संकट से वाकिफ न हों, जो तेल और गैस के दाम बढ़ने की सबसे बड़ी वजह बनते हैं। रूस और यूक्रेन युद्ध के अलावा भारत को तेल के मामले में और भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है।

भारत इस बार तो रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद रूस से सस्ता तेल आयात करने में कामयाब रहा, लेकिन वैश्विक स्तर पर इस प्रकार की किसी और गड़बड़ी के चलते व्यवधान पैदा हुआ तो स्थिति उलट होगी। जब-जब वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल और गैस के दाम बढ़ते हैं तो भारतीय नीति निर्माता ऐसे हालात से निपटने के लिए सक्रिय हो जाते हैं और तुरत-फुरत योजनाएं बनाने में जुट जाते हैं, लेकिन जैसे ही संकट टल जाता है, तेल के दाम कम करने की ये सभी योजनाएं ठंडे बस्ते में डाल दी जाती हैं।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (NDA) सरकार के पहले कार्यकाल में रणनीतिक भूमिगत तेल भंडारण क्षमताएं बनाने की योजना तैयार की गई थी, ताकि आपात स्थिति में उस तेल का इस्तेमाल किया जा सके। शुरुआत में इस प्रकार के कई भंडारण तैयार किए गए, लेकिन कुछ समय बाद यह परियोजना रोक दी गई और तेल भंडारण बनाने का काम बंद हो गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में कच्चे तेल की कीमतें बहुत तेजी से गिरी थीं। उस दौरान रणनीतिक तेल भंडारण क्षमताएं विकसित करने का बहुत अच्छा मौका था, लेकिन देश ने उसे गंवा दिया।

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय नीति निर्माताओं ने तेल और गैस पर भारत की निर्भरता कम करने की जरूरत पर बल दिया है और उन्होंने इस दिशा में पुन: कुछ कार्य शुरू किया है। यद्यपि जिस गति से नीतियां बनाने और उन्हें लागू करने का काम चल रहा है, तेल भंडारण क्षमताएं विकसित करने का लक्ष्य उससे कहीं बड़ा और महत्त्वाकांक्षी है।

कच्चे तेल के रणनीतिक भंडारण बनाने की योजनाओं को दोबारा सक्रिय कर दिया गया है। सरकार ने रणनीतिक तेल भंडारण क्षमताएं बनाने और उनका संचालन करने के लिए वर्ष 2004 में इंडियन स्ट्रैटजिक पेट्रोलियम रिजर्व्स लिमिटेड (आईएसपीआरएल) जैसी विशेष एजेंसी का गठन किया था।

इसने कर्नाटक के पेद्दूर में ऐसे ही 25 लाख टन क्षमता वाले भूमिगत तेल भंडार बनाने के लिए हाल ही में निविदाएं निकाली हैं। आईएसपीआरएल के नियंत्रण में ऐसी कुछ भंडार क्षमताएं हैं, जो पहले चरण में बनाई गई थीं, लेकिन मौजूदा और भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एजेंसी और भंडारण क्षमताएं बना रही है।

शायद सबसे जरूरी यह बात है कि प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल में नए तेल क्षेत्र खोजने की दिशा में काम किया गया। सरकार ने 1997 में बनी नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (एनईएलपी) की जगह वर्ष 2015 और 2016 में हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (एचईएलपी) और ओपन एकरेज लाइसेंसिंग नीति (ओएएलपी) की घोषणा की थी।

इससे सरकार को उम्मीद थी कि नीतियों में सुधार होने से इस क्षेत्र में नए निवेशक विशेष रूप से वैश्विक खिलाड़ी उतरेंगे। दुर्भाग्य से वैश्विक स्तर पर बड़ी तेल कंपनियों ने भारत के तेल कुओं में निवेश के लिए अधिक रुचि नहीं दिखाई। इसकी अपेक्षा उन्होंने विश्व भर में कम जोखिम वाले तेल भंडारों पर फोकस किया।

वैश्विक स्तर की ऐसी तेल कंपनियां, जिन्होंने भारतीय तेल कुओं में कुछ रुचि दिखाई थी, उन्होंने भी कम जोखिम का रास्ता चुना और सार्वजनिक क्षेत्र की ओएनजीसी एवं ओआईएल और निजी क्षेत्र की रिलायंस जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी में काम आगे बढ़ाया। जिन कंपनियों ने अपने स्तर पर बोली लगाने का रास्ता चुना था, वे धीरे-धीरे मैदान छोड़ कर भारत से बाहर निकल गईं।

निजी बातचीत में वैश्विक तेल निवेशक इस बात की शिकायत करते हैं कि भारत के तेल क्षेत्र में जोखिम की तुलना में संभावित लाभ बहुत कम है। यह बात ठीक है कि एनईएलपी की अपेक्षा एचईएलपी और ओएलएपी आने से बहुत अधिक सुधार हुआ है। कुछ अन्य निवेशक लाल फीताशाही और अनिश्चित कर व्यवस्थाओं के बारे में शिकायत करते हैं।

उदाहरण के लिए भारत सरकार के राजस्व में बड़ा योगदान देने वाले अप्रत्याशित लाभ कर भी निवेशकों को बड़ा झटका देते हैं। निवेशक यह नहीं समझ पाते कि आखिर जोखिम लेने के बाद वे अतिरिक्त कर का भुगतान क्यों करें।

भारतीय कंपनियां विशेष तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां आने वाले कुछ वर्षों में तेल और गैस क्षेत्र में भारी-भरकम निवेश की योजना बना रही हैं, लेकिन यह निवेश भी पर्याप्त नहीं होगा। भारत को इस क्षेत्र में घरेलू और वैश्विक दोनों मोर्चों पर और अधिक निजी निवेश लाने की आवश्यकता है।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इस बात के स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वह इस रणनीतिक क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करने के लिए विशेष उत्पादन प्रोत्साहन की योजना ला सकती है।

देश के लिए तेल और गैस क्षेत्र के रणनीतिक महत्त्व को देखते हुए सरकार अपनी नीतियों और प्रोत्साहन योजनाओं में सुधार के रास्ते निकाल सकती है, ताकि अधिक से अधिक निजी कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश करें। यदि ऐसा नहीं होता है तो तेल और गैस आयात को कम करने के लक्ष्य केवल कागजों तक ही सिमट कर रहे जाएंगे।

(लेखक बिज़नेस टुडे एवं बिज़नेस वर्ल्ड के पूर्व संपादक तथा संपादकीय सलाहकार कंपनी प्रोजैक व्यू के संस्थापक हैं)

First Published - July 11, 2024 | 9:35 PM IST

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