भारतीय नौसेना के लिए पिछले कुछ सप्ताह काफी गतिविधियों वाले रहे हैं। नौसेना ने कुछ दिन पहले ही 7,400 टन वजन वाले आईएनएस मोरमुगाओ को अपने बेड़े में शामिल किया है। तीन महीने पहले प्रधानमंत्री ने 45,000 टन वजन वाले देश में ही निर्मित विमान वाहक युद्धपोत को भी नौसेना के बेड़े में शामिल किया था। नौसेना दूसरी परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी आईएनएन अरिघात को भी अपने बेड़े में शामिल करने की योजना पर काम कर रही है। हालांकि इसे शामिल करने की आधिकारिक तिथि गुप्त रखी गई है। इस बीच, 5वीं स्कॉर्पीन पनडुब्बी आईएनएस वागिर नौसेना को सौंप दी गई है। अगले साल फ्रिगेट की नई श्रेणी के साथ इसे सेवा में शामिल किया जाएगा।
यह पहली बार है जब नौसेना को इतने कम समय में इतने छोटे-बड़े जहाज एवं पनडुब्बियां मिले हैं। वर्ष 2021 भी नौसेना के लिए काफी हलचल भरा रहा था जब उसके बेड़े में 2 स्कॉर्पीन पनडुब्बियां और एक डिस्ट्रॉयर शामिल किए गए थे। इन गतिविधियों से तो यही लग रहा है कि नौसेना के बेड़े का विस्तार करने की प्रक्रिया अब जोर पकड़ रही है और कुछ मायनों में यह सही भी है। हालांकि हमें दीर्घ अवधि के स्वरूप पर भी विचार करना चाहिए। वर्ष 2021 और 2022 की तुलना में 2019 और 2020 में नौसेना के बेड़े में केवल एक पनडुब्बी और और एक कॉर्वेट शामिल किए गए थे। वर्ष 2018 में बेड़े के विस्तार में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई थी। अगर 2011 से रुझान की बात करें तो सालाना औसतन दो बड़े युद्धपोत नौसेना के बेड़े में शामिल किए जा रहे हैं।
एक दशक पहले की तुलना में प्रगति जरूर हुई है मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रत्येक युद्धपोत के निर्माण में काफी अधिक समय लग जाता है। एक डिस्ट्रॉयर, फ्रिगेट या कॉर्वेट के निर्माण में सात से नौ वर्षों का समय लग रहा है। चीन की तुलना में भारत में इनके निर्माण में दोगुना समय लग जाता है। हालत यह है कि सेवा में शामिल किए जाने के समय लंबी दूरी तक मार कर सकने वाली एयर-डिफेंस मिसाइल, तारपीडो, ऐंटी-सबमरीन हेलीकॉप्टर और विमानवाहक पोत के विमान तक तैनात नहीं हो पाते हैं। सोवियत संघ से खरीदे गए विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य के साथ यही हुआ जो 2013 में नौसेना में शामिल हुआ। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के किसी भी विमानवाहक पोत पर पिछले दो वर्षों में एक भी विमान नहीं उतरा है। हालांकि इन तमाम खामियों के बावजूद यह कहा जा सकता है कि भारत धीरे-धीरे अपनी नौसेना को धार दे रहा है। आने वाले समय में नौसेना में 6,600 टन के सात फ्रिगेट शामिल किए जाएंगे।
अब नई निर्माण तकनीक के जरिेये युद्धपोतों के निर्माण में दो साल कम लगेंगे। मझगांव डॉक्स डिस्ट्रॉयर और फ्रिगेट का निर्माण करने वाली प्रमुख कंपनी है, मगर गार्डन रीच शिपबिल्डर्स ऐंड इंजीनियर्स, कोचीन शिपयार्ड और गोवा शिपयार्ड सभी बड़े और उच्च तकनीक वाले युद्धपोत बनाने में सक्षम हैं। इसी तरह विशाखापत्तनम में परमाणु पनडुब्बी निर्माण परिसर है। लार्सन ऐंड टुब्रो ने भी चेन्नई के निकट शिप डिजाइन एवं यार्ड सुविधा विकसित की है। हालांकि तब भी युद्धपोत एवं सेना के लिए साजो-सामान बनाने में भारत चीन से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं दिख रहा है। चीन ने कुछ महीनों पहले तीसरा विमानवाहक युद्धपोत अपनी नौसेना के बेड़े में शामिल किया था। इस युद्धपोत का आकार भारत के दोनों युद्धपोतों के संयुक्त आकार से भी बड़ा है। इसमें अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जिसकी मदद से कम समय अंतराल पर लड़ाकू विमान अधिक ईंधन और घातक हथियारों के साथ उड़ान भर पाएंगे।
काफी कम समय में सक्षम कई डिस्ट्रॉयर बनाने के बाद चीन समुद्र में खतरनाक ड्रोन और मानव रहित युद्धपोतों के साथ युद्ध की तैयारी में जुट गया है। ये ड्रोन और मानव रहित युद्धपोत सामान्य युद्धपोतों के साथ मिलकर हमले करने की भी खासियत रखते हैं। चीन हिंद महासागर में नौसैनिक अड्डे के साथ कई सुविधाएं तैयार कर रहा है। भारत की नौसेना को जल्द ही हिंद महासागर में चीन से कड़ी चुनौती मिलने वाली है। भारत का रक्षा बजट सीमित है, इसलिए युद्धपोतों आदि के निर्माण के लिए बहुत ऑर्डर नहीं आ पा रहे हैं। हालांकि छोटे युद्धपोतों के लिए जरूर कई ऑर्डर मिले हैं।
भारत की नौसेना में पनडुब्बियों के बेड़े का आकार छोटा है और इनमें ज्यादातर जहाज 1980 के दशक के हैं। मझगांव डॉक्स छठी और अंतिम स्कॉर्पीन पनडुब्बी तैयार कर रही है और इसके बाद उसके पास फिलहाल कोई ऑर्डर नहीं है। अन्य छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के लिए ऑर्डर में देरी हो रही है क्योंकि संभावित बोलीदाताओं को इनसे जुड़ीं शर्तें स्वीकार नहीं हैं। इस बीच, रक्षा मंत्री ने हाल में यह कहकर सबको चौंका दिया कि भारत ने तीसरे विमान वाहक युद्धपोत का निर्माण शुरू कर दिया है। हालांकि इसके लिए कब ऑर्डर दिया गया इसे लेकर अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। भारी प्रतिस्पर्द्धा के कारण मलेशिया, ब्राजील और फिलिपींस से आने वाले ऑर्डर पर भी ग्रहण लग गया। इस तरह, भारत की नौसेना के सामने इस वक्त कई चुनौतियां हैं। सीमित बजट, ऑर्डर देने में देरी और इसके बाद धीमी गति से निर्माण, आपूर्ति में देरी और चीन से मिल रही चुनौती भारतीय नौसेना की परेशानी बढ़ा रहे हैं। इन विषयों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।