अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 25 जून को हेग में संपन्न उत्तर अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो की शिखर बैठक में एक ‘भारी जीत’ दर्ज करने का दावा किया है। यह उनके पहले कार्यकाल के आक्रामक रुख से काफी अलग है। नाटो के सदस्यों ने 2035 तक अपने वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 5 फीसदी रक्षा पर खर्च करने पर व्यापक सहमति बनाई। इससे अमेरिकी राष्ट्रपति की पहले कार्यकाल की वह शिकायत भी दूर होगी जिसमें वह कह रहे थे कि इस संगठन का बोझ ज्यादातर अमेरिका ही उठा रहा है।
ऐसा लगता है कि इस प्रतिज्ञा और पहली बार बैठक की अध्यक्षता कर रहे नाटो महासचिव मार्क रट द्वारा ट्रंप की खुशामद कारगर साबित हुई है। पहले कार्यकाल में जहां ट्रंप नाटो से अलग होने की धमकी दिया करते थे, वहीं इस बार उन्होंने वाशिंगटन समझौते के अनुच्छेद 5 को बरकरार रखने की अमेरिका की प्रतिज्ञा को दोहराया जो सामूहिक सुरक्षा की महत्त्वपूर्ण प्रतिबद्धता से संबंधित है। चूंकि अमेरिकी रक्षा व्यय नाटो के सदस्य देशों के कुल रक्षा व्यय के दो-तिहाई के बराबर है इसलिए ट्रंप के कदम नाटो के भविष्य के लिए अहम हैं। खासकर मध्य यूरोप में रूस के विस्तारवादी खतरे को देखते हुए।
यह सही है कि बुधवार का समझौता मौजूदा 2 फीसदी व्यय के लक्ष्य में एक बड़ा इजाफा है। 2 फीसदी व्यय को 2014 में वेल्स में आयोजित नाटो शिखर बैठक में मंजूरी दी गई थी। यद्यपि व्यय के आकलन का तरीका कुछ अलग हकीकत दर्शाता है। ‘बुनियादी रक्षा जरूरतों’ मसलन सैनिकों और हथियारों पर होने वाले व्यय को अब 2 फीसदी से बढ़ाकर 2035 तक 3.5 फीसदी करने का लक्ष्य है। अमेरिकी राष्ट्रपति के 5 फीसदी की मांग को पूरा करने के लिए नाटो ने सुरक्षा संबंधी निवेश पर जीडीपी के 1.5 फीसदी के अतिरिक्त व्यय की बात कही है।
इसमें सैन्य इस्तेमाल के लिए अहम अधोसंरचना मसलन सड़क, पुल और बंदरगाह आदि शामिल हैं। इसके अलावा साइबर सुरक्षा और ईंधन पाइपलाइन की सुरक्षा भी शामिल हैं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यूरोपीय संघ अपने सदस्य देशों को यह इजाजत देगा कि वे अगले 4 साल तक हर वर्ष रक्षा व्यय में जीडीपी के 1.5 फीसदी के बराबर इजाफा करें। इस दौरान घाटे के जीडीपी के 3 फीसदी से अधिक हो जाने पर भी कोई
अनुशासनात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा।
इन अलग-अलग लक्ष्यों के लिए भी नाटो के सदस्यों को व्यय में भारी इजाफा करना होगा। समग्र रूप से देखें तो नाटो के सदस्य सैनिकों और हथियारों पर जीडीपी का 2.6 फीसदी या करीब 1.3 लाख करोड़ डॉलर व्यय करते हैं लेकिन यह बड़ा आंकड़ा अलग-अलग सदस्यों के बीच व्यय की असमानता को ढक लेता है। उदाहरण के लिए पोलैंड अपने जीडीपी का 4.12 फीसदी, एस्टोनिया 3.43 फीसदी और लातविया 3.15 फीसदी व्यय करता है।
स्पष्ट है कि रूस के सीमावर्ती देश जीडीपी की तुलना में सबसे अधिक व्यय करने वाले देश हैं। स्पेन जो जीडीपी के मुताबिक यूरोप का पांचवां सबसे बड़ा देश है वह सूची में सबसे नीचे आता है। वह जीडीपी का केवल 1.28 फीसदी व्यय करता है। इससे सदस्यों के बीच तनाव पैदा होता है। स्पेन का कहना है कि वह जीडीपी के 3 फीसदी से कम खर्च करके भी सैन्य क्षमता लक्ष्यों को हासिल कर सकता है। यकीनन नाटो अभी भी रूस से अधिक खर्च करता है।
वर्ष 2024 में रूस का सैन्य खर्च 14.9 करोड़ डॉलर रहा यानी जीडीपी के 7 फीसदी के बराबर। परंतु आलोचकों का कहना है कि 2035 का लक्ष्य अभी बहुत दूर है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमिर जेलेंस्की ने भी शिखर बैठक से इतर ट्रंप से मुलाकात की और हेग घोषणापत्र में ‘साझेदार देश’ के रूप में समर्थन की पुष्टि की। परंतु इसे पुतिन के साम्राज्यवादी इरादों के लिए बाधा के रूप में नहीं देखा जा सकता। सच तो यह है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के नतीजे नाटो की व्यय प्रतिबद्धताओं के लिए असली चुनौती साबित हो सकते हैं।