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मुंबई की ट्रिलियन-डॉलर की रियल एस्टेट अब वास्तविक जलवायु जोखिम की चपेट में

वैश्विक तापवृद्धि से समुद्र का बढ़ता जल स्तर तटीय शहरों में स्थित अचल संपत्ति के बारे में हामारी सोच को बुनियादी रूप से बदल देगा। बता रहे हैं

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अजय शाह   
Last Updated- July 23, 2025 | 10:26 PM IST

कार्बन उत्सर्जन कम करने को लेकर दुनिया के नीतिगत काम में धीमापन आया है। खासकर अमेरिका में 2016 में डॉनल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के समय से और फिर 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद यह हुआ। अब उत्सर्जन को लेकर परिदृश्य और भी चुनौतीपूर्ण है। हम सभी को अब मध्यम से लेकर उच्च उत्सर्जन परिदृश्य के लिए योजना तैयार करनी होगी।

मुंबई के लिए इसका क्या अर्थ है? उच्च उत्सर्जन वाले परिदृश्य में, जैसा कि अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन समिति ने अनुमान लगाया है, मुंबई का समुद्री जलस्तर वर्ष2050 तक 25 सेंटीमीटर बढ़ जाएगा। इसकी वजह होगी, समुद्री जल का तापमान बढ़ना और गर्म होती दुनिया में बर्फ का तेजी से पिघलना। इसके अलावा एक स्थानीय भूवैज्ञानिक घटना भी मुंबई को प्रभावित करती है और वह है जमीन की सतह का धीरे-धीरे नीचे धंसना। मुंबई हर वर्ष करीब दो मिलीमीटर धंस रहा है। इस भूमि धंसाव की कई वजह हैं। मसलन भूजल का ज्यादा दोहन, गाद का एकत्रित होना, शहरी निर्माण का दबाव आदि। इसके चलते भी वर्ष 2050 तक जल स्तर 5 सेंटीमीटर बढ़ सकता है। यानी कुल मिलाकर देखें तो मुंबई का समुद्री जल स्तर 30 सेंटीमीटर यानी करीब 12 इंच तक बढ़ सकता है। जब हम वर्ष2050 से आगे देखते हैं तो उच्च उत्सर्जन परिदृश्य मध्यम परिदृश्य से ज्यादा खराब नजर आते हैं। ऐसे में हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि 2050 तक जल स्तर करीब 12 इंच बढ़ेगा और वर्ष2100 आते-आते हालात बहुत बुरे हो जाएंगे।

एक स्विमिंग पूल को उदाहरण लेकर हम आसानी से यह कल्पना कर सकते हैं कि जल स्तर में 12 इंच के इजाफे का क्या मतलब होता है। हम कल्पना कर सकते हैं कि हम अक्सा बीच पर खड़े हैं पहले हमारे घुटनों तक आने वाला पानी हमारी कमर तक पहुंच रहा है।

परंतु समुद्र कोई स्विमिंग पूल नहीं है। जब औसत समुद्री जल स्तर में मामूली बढ़ोतरी होती है तो भी इसका शहरी पर्यावरण पर बहुत गहरा असर होता है। तटीय इलाकों में बाढ़ आने की घटनाएं बढ़ जाती हैं, खासतौर पर समुद्री ज्वार आने पर या समुद्री तूफान के समय ऐसा होता है। इस समय जिन इलाकों में बाढ़ आती है वहां ऐसी घटनाओं में और अधिक इजाफा हो जाएगा। पानी की निकासी व्यवस्था और भी खराब हो जाएगी। मौजूदा शहरी जल निकासी प्रणाली मोटे तौर पर निकासी के लिए गुरुत्व दबाव पर काम करती है और उस समय यह भी ठीक से काम नहीं करेगी। इससे वर्षा जल और नदी जल की निकासी प्रभावित होती। उस स्थिति में बरसात के बाद जल जमाव की घटनाएं बढ़ेंगी। आदर्श स्थिति में एक बेहतर शहरी प्रशासन में पर्याप्त पंपिंग स्टेशन के निर्माण और संचालन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

समुद्री जल स्तर में इजाफा परिवहन नेटवर्क मसलन सड़क, रेलवे, मेट्रो लाइन आदि को प्रभावित करेगा। बिजली की केबल, पानी की आपूर्ति, सीवेज प्रणाली आदि सभी प्रभावित होंगे। बार-बार जल भराव और खारे पानी के संपर्क में आने से परिसंपत्तियों की गुणवत्ता तेजी से बिगड़ेगी, उनके रखरखाव की लागत बढ़ेगी। निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के लोगों को संसाधन जुटाना और प्रबंधन का काम तेज करना होगा ताकि संपत्तियों के मूल्यह्रास और भयावह परिस्थितियों से निपटा जा सके। भारत के यथार्थवादी हालात की बात करें तो सार्वजनिक और निजी कार्रवाइयों में खामी रहेगी। ऐसे में पंपिंग स्टेशन अपर्याप्त साबित हो सकते हैं और संपत्तियों के परिचालन और रखरखाव में समस्या आ सकती है।

वैश्विक तापवृद्धि के बारे में अक्सर यह माना जाता है कि यह भविष्य में घटित होने वाली कोई घटना है। यह तर्क हमें एक खास भारतीय परिवेश यानी मुंबई पर और एक ऐसी तारीख पर स्थिर करता है जो सामान्य इंसानी योजना अवधि यानी 25 वर्ष के भीतर फिट बैठती है। 75 साल से कम आयु के किसी भी व्यक्ति के लिए यह परिदृश्य मायने रखता है।

इन भौतिक जलवायु जोखिमों को वित्तीय क्षेत्र की निर्णय प्रक्रिया में शामिल करके ही सटीक बाजार मूल्य का निर्धारण किया जा सकता है। ऐसे में मुंबई में निजी संपत्ति में निवेश करने के इच्छुक लोगों और कंपनियों की बात करें तो अगर वे दीर्घकालिक इस्तेमाल के लिए ऐसा करना चाहते हैं तो 2050 तक समुद्री जल स्तर में 30 सेंटीमीटर के प्रभावी इजाफे का आकलन भविष्य की उपयोगिता और परिसंपत्ति मूल्यांकन को लेकर सटीक गैर वित्तीय जानकारी मुहैया कराता है।

अचल संपत्ति में निवेश करने वालों को तीन तरह की चिंताओं पर विचार करना होगा। भविष्य की बाढ़ और बढ़ी हुई परिचालन लागत से निवेशकों और असल उपभोक्ताओं की मांग में कमी आएगी। इससे संवेदनशील क्षेत्रों की परिसंपत्ति कीमतों में गिरावट की स्थिति बनेगी। परिसंपत्ति स्वामित्व की लागत बीमा प्रीमियम बढ़ने के कारण बढ़ेगी। बाढ़ से बचाव के लिए रखरखाव व्यय में इजाफे और संभावित ढांचागत मरम्मत का भी ध्यान रखना होगा जो पानी से होने वाली क्षति से बचाव के लिए आवश्यक होगा। लोगों में जागरूकता बढ़ने के साथ ही जलवायु जोखिम वाली परिसंपत्तियों का बाजार कमजोर होगा। ये समस्याएं वित्तीय कंपनियों की विचार प्रक्रिया पर असर डालेंगी। मुंबई का अचल संपत्ति बाजार ही 50,000 से एक लाख करोड़ डॉलर का है और इस पर विपरीत प्रभाव परिसंपत्ति कीमतों में गिरावट के रूप में नजर आएगा।

भारतीय रिजर्व बैंक इससे जुड़े सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा है। वह जल्दी ही बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए जलवायु परिवर्तन जोखिम के प्रबंधन और खुलासे से संबंधित रिपोर्ट जारी कर सकता है। इससे ऋण पोर्टफोलियो के भीतर जलवायु संबंधित जोखिम और उत्सर्जन नियंत्रण रणनीतियों, लक्ष्य तथा दबाव परीक्षण को लेकर नियमित खुलासे करने होंगे। वित्तीय कंपनियों को इससे संबंधित क्षमता विकसित करने में काफी समय लगेगा और अनिवार्य खुलासे के पहले तीन साल की तैयारी का समय दिया जाएगा।  

कई भारतीय वित्तीय कंपनियों की रणनीतिक उदासीनता को देखते हुए ऐसा माना जा सकता है कि नए प्रकार के खुलासे पहले केवल रिजर्व बैंक के नियमों के अनुपालन को ही दर्शाएंगे और वे इसके लिए सलाहकारों तथा सॉफ्टवेयर विक्रेताओं को ठेका देंगी। विभिन्न कंपनियों की निवेश रणनीतियों और व्यवहार को नया स्वरूप देने के लिए इस डेटा का अधिक गहराई से उपयोग करने के लिए नए ज्ञान तैयार करने की आवश्यकता होगी।

जलवायु परिवर्तन को समझने तथा इसे लेकर प्रतिक्रिया देने की बात करें तो बेहतर कंपनियों की प्रदर्शन संबंधी बढ़त तय करने में यही मुख्य कारक होगा। ऐसी रिपोर्टिंग से कई स्तरों पर प्रोत्साहन को नया स्वरूप दिया जा सकेगा। वित्तीय कंपनियों के निवेशक बेहतर तैयारियों के पक्ष में अपनी प्राथमिकता को नए सिरे से निर्धारित कर सकेंगे। वित्तीय कंपनियों को जलवायु प्रतिरोधी परिसंपत्तियों के पक्ष में बाजार-आधारित प्रोत्साहन मिलेंगे। अनुमानित जलविज्ञान परिर्वतनों के प्रति लचीलापन प्रदर्शित करने वाली संपत्तियों पर प्रीमियम की संभावना होगी, जबकि चिह्नित कमजोरियों वाली संपत्तियों के बाजार मूल्य में कमी आएगी। इसी प्रकार जलवायु परिवर्तन को संपूर्ण वित्तीय प्रणाली के वित्तीय विनियमन में गहराई से शामिल किया जाना चाहिए, जिसमें नियामक और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन भी शामिल हों।

(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)

First Published : July 23, 2025 | 10:18 PM IST