कीमती धातुओं ने वर्ष 2025 में अधिकांश वित्तीय परिसंपत्तियों को पीछे छोड़ दिया है। वर्ष अपनी अंतिम तिमाही में प्रवेश कर रहा है और सोना तथा चांदी लगातार तेजी पर बने हुए हैं। अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में सोना 48 फीसदी ऊपर है जबकि चांदी ने जनवरी 2025 से अब तक 65 फीसदी का रिटर्न दिया है। दोनों धातुओं ने रिकॉर्ड स्तर छुआ है।
अब त्योहारी मौसम चल रहा है जो पारंपरिक रूप से सोना-चांदी खरीदे जाने का समय है। ऐसे में भारतीय परिवारों की नजर इन दोनों धातुओं पर है। कई लोग सोच रहे होंगे क्या उन्हें इतनी महंगी कीमत पर केवल नाम मात्र की ही खरीदारी करनी चाहिए। हालांकि यह मानने की वजह मौजूद हैं कि यह तेजी आगे भी जारी रह सकती है। भले ही इसकी गति का अनुमान लगाना मुश्किल हो।
कई कारक ऐसे भी हैं जो विश्व स्तर पर सोने और चांदी की कीमतों को प्रभावित कर रहे हैं। वर्षों से सोने और चांदी को मूल्यवान माना जाता है। ये ऐसी संपत्तियां हैं जिनके बारे में माना जाता है कि ये मुद्रास्फीति को मात दे सकती हैं और अनिश्चित आर्थिक माहौल में सुरक्षा प्रदान करती हैं। यही वजह है कि निवेशकों की रुचि इन धातुओं में बनी रहती है।
कीमतों में इजाफे की एक वजह मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव भी है। खासतौर पर कमजोर अमेरिकी डॉलर अक्सर तेजी को गति देता है क्योंकि दोनों धातुओं की अंतरराष्ट्रीय कीमतें डॉलर में ही निर्धारित होती हैं। एक अन्य कारक है भूराजनीतिक तनाव। कीमती धातुओं का बाजार बहुत नकदीकृत होता है और युद्ध, बाढ़ तथा अन्य उथलपुथल की हालत में भी इन्हें भंडारित करना या लाना-ले जाना बहुत आसान होता है। एक्सचेंज ट्रेडेड फंड यानी ईटीएफ ने आधुनिक समय में इन मूल्यवान धातुओं को रखना और आसान किया है। ईटीएफ ऐसे डिजिटल साधन हैं जो इन धातुओं की कीमतों पर करीबी नजर रखते हैं।
भूराजनीतिक तनाव और आर्थिक अनिश्चितता सोने और चांदी की कीमतों में तेजी की वजह हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के प्रशासन ने शुल्क वृद्धि की जो जंग छेड़ी है, वह मुद्रास्फीति को भी गति दे सकती है। खासतौर पर अमेरिका में। इससे मुद्रा बाजार में भी अस्थिरता उत्पन्न हुई है, क्योंकि वैश्विक बाजार अमेरिकी शुल्क संबंधी मांगों से पैदा हुई अनिश्चितताओं को समायोजित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जनवरी से अब तक अमेरिकी डॉलर विभिन्न मुद्राओं की एक बास्केट के मुकाबले 10 फीसदी से अधिक गिर चुका है, जिससे सोने और चांदी की कीमतों में तेजी आई है। वैश्विक स्तर पर डॉलर कमजोर होने के बावजूद रुपया भी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ है, जिससे घरेलू बाजार में इन धातुओं की कीमतें और अधिक बढ़ गई हैं।
भूराजनीतिक तनाव भी ऊंचे स्तर पर है। गाजा में चल रही जंग को इस सप्ताह दो वर्ष हो जाएंगे। रूस- यूक्रेन युद्ध अपने चौथे वर्ष में है। अमेरिका ने वेनेज़ुएला के जहाजों पर हमला किया है, जिससे मध्य और दक्षिण अमेरिकी देशों के साथ तनाव उत्पन्न हो गया है। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों जैसे जापान और दक्षिण कोरिया के बीच संबंध भी शुल्क दरों को लेकर चल रही खींचतान के कारण तनावपूर्ण हो गए हैं। यह वैश्विक व्यवस्था की स्थिरता के लिए एक खतरा बन सकता है।
इन हालात को मिलाकर देखा जाए तो सोने और चांदी की कीमतों में तेजी जारी रहने की संभावना है, जब तक कि वैश्विक आर्थिक विकास के मजबूत संकेत, शुल्क दरों को लेकर स्पष्टता, और भूराजनीतिक तनावों में कमी नहीं आती। पिछले कुछ वर्षों में कई केंद्रीय बैंकों ने अपने भंडार को सुरक्षित रखने के लिए बड़ी मात्रा में सोना खरीदा है, जो इस बात का संकेत है कि वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में विश्वास लगातार घट रहा है।
व्यापक आर्थिक भूराजनीतिक हालात से इतर निवेशकों को इन धातुओं के औद्योगिक उपयोग पर भी विचार करना चाहिए। चांदी (प्लेटिनम जैसी धातु की तरह जो जनवरी से अब तक 84 फीसदी बढ़ी है) का कई उद्योगों में बहुत अधिक इस्तेमाल होता है। इनमें इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर नवीकरणीय ऊर्जा और जल शुद्धीकरण आदि शामिल हैं। उधर सोने का आभूषण उद्योग से बाहर बहुत कम उपयोग है। यह आगे चलकर व्यापारिक प्रवृत्तियों में अंतर उत्पन्न कर सकता है।