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Editorial: कमजोर रुपया निर्यात में मददगार, लेकिन भुगतान संतुलन पर बढ़ रहा दबाव

वर्ष की शुरुआत से अब तक वह 5 फीसदी से अधिक गिर चुका है। व्यापार घाटा भी बढ़ा है और अर्थशास्त्रियों को अंदेशा है कि चालू खाते का घाटा भी इस वित्त वर्ष में बढ़ेगा

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- December 03, 2025 | 10:44 PM IST

रुपये ने बुधवार के कारोबार में 90 प्रति डॉलर का मनोवैज्ञानिक स्तर लांघ दिया है। वर्ष की शुरुआत से अब तक वह 5 फीसदी से अधिक गिर चुका है। बहरहाल जरूरी है कि रुपये के अवमूल्यन को व्यापक वृहद आर्थिक घटनाओं के साथ जोड़कर देखा जाए और नीति निर्माता तथा दूसरे भागीदार रुपये के किसी खास स्तर के बारे में फिक्र नहीं करें।

आंकड़े बताते हैं कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भुगतान संतुलन 10.90 अरब डॉलर नकारात्मक हो गया जबकि वह पिछले वर्ष की समान तिमाही में 18.6 अरब डॉलर सकारात्मक था। व्यापार घाटा भी बढ़ा है और अर्थशास्त्रियों को अंदेशा है कि चालू खाते का घाटा भी इस वित्त वर्ष में बढ़ेगा। यह जानकारी भी है कि भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रा बाजार में आक्रामक हस्तक्षेप नहीं कर रहा है जो समझदारी भरा नीतिगत कदम है।

जब भुगतान संतुलन नकारात्मक हो गया हो तो मुद्रा के अवमूल्यन की अपेक्षा रहती है, जिससे ठहराव आता है। मुद्रा बाजार की गतिविधियां भी भारत-अमेरिका व्यापार के हालात से प्रभावित नजर आ रही हैं। भारत को अमेरिका के 50 फीसदी शुल्क का सामना करना पड़ रहा है, जिसका असर भारत के निर्यात पर पड़ने लगा है।

कुछ क्षेत्रों को वैकल्पिक बाजार मिल गए हैं मगर उनके आंकड़ों को सतर्कता के साथ समझने की जरूरत है। उच्च मूल्य वाली वस्तुएं मसलन रत्न एवं आभूषण शायद दूसरे बाजारों के रास्ते अमेरिका भेजी जा रही हों मगर यह सिलसिला हमेशा नहीं चलता रहेगा। इसलिए जरूरी है कि भारत और अमेरिका जल्द से जल्द पारस्परिक लाभकारी व्यापार समझौता कर लें। भारत के वार्ताकारों ने उम्मीद जताई है कि वर्ष के अंत तक समझौता हो जाएगा।

लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह समझौता मध्यम अवधि में भारत-अमेरिका व्यापार को कैसे प्रभावित करेगा। वैश्विक व्यापार के लिहाज से देखें तो कमजोर रुपया भारतीय निर्यातकों की मदद करेगा। हालांकि अमेरिकी शुल्क से जो नुकसान हो रहा है उसकी पूरी तरह भरपाई रुपये के अवमूल्यन से शायद नहीं हो पाएगी मगर इससे भारतीय निर्यातकों को नए बाजार तलाशने में कुछ मदद मिल जाएगी।

रिजर्व बैंक के हाल के आंकड़े दिखाते हैं कि रुपया वास्तव में गिरा है, जो वास्तविक प्रभावी विनिमय दर से साफ पता चलता है। मौजूदा हालात में मुद्रा की कमजोरी निर्यातकों के लिए उपयोगी होगी। इसी समाचार पत्र में पिछले दिनों एक विश्लेषण में बताया गया है कि रुपया दूसरी मुद्राओं की तुलना में गिरा है मगर वास्तव में महामारी के बाद से यह चीन की मुद्रा युआन के मुकाबले काफी मजबूत हुआ है। इसके कारण चीनी आयात बहुत सस्ता हो जाता है और चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा और भी बिगड़ सकता है।

इस लिहाज से मौजूदा अवमूल्यन भारत के हित में है और अर्थव्यवस्था के व्यापारिक क्षेत्रों को इससे कुछ हद तक सुरक्षा मिलेगी। रिजर्व बैंक के पास करीब 688 अरब डॉलर मूल्य का विदेशी मुद्रा भंडार है, जिससे मुद्रा बाजार के हालात सही रखने में मदद मिलेगी। हाल फिलहाल में रुपये का मूल्य भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता के नतीजों से प्रभावित होगा। इन नतीजों का असर चालू खाते पर ही नहीं पड़ेगा बल्कि पूंजी खाते को भी ये प्रभावित करेंगे।

समझौता हमारे अनुकूल होता है तो विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को भारतीय संपत्तियों की खरीद शुरू करने का हौसला मिलेगा। इन निवेशकों ने 2025 में अभी तक 15 अरब डॉलर से अधिक की भारतीय परिसंपत्तियां बेच दी हैं। मौद्रिक नीति समिति की इस समय जारी बैठक भी संभवतः मुद्रा बाजार की घटनाओं के निहितार्थों पर विचार करेगी, लेकिन उसके निर्णय पर इनका असर शायद ही पड़ेगा। कम मुद्रास्फीति वाले वातावरण को देखते हुए कमजोर रुपये से किसी तरह का जोखिम नहीं होता।

First Published : December 3, 2025 | 10:36 PM IST