भारत के लोग मनोरंजन पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं या कम खर्च कर रहे हैं? इसका संक्षिप्त जवाब यह है कि शहरी इलाकों की तुलना में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन के खर्च में थोड़ा इजाफा हुआ है जबकि शहरों में यह कम हुआ है। यह जानकारी राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2022-23 के लिए जारी घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण से मिली है। यह सर्वेक्षण खाद्य और गैर-खाद्य दोनों तरह की चीजों से जुड़े खर्च पर भी नजर रखता है।
देश के ग्रामीण क्षेत्र में मनोरंजन पर हर महीने किए जाने वाला प्रति व्यक्ति खर्च (एमपीईसी) लगातार बढ़ रहा है और यह 1999-2000 के 0.42 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2011-12 में 0.99 प्रतिशत हो गई। इसके बाद के दशक में यह वर्ष 2022-23 में 1.09 प्रतिशत हो गई। यह इन सालों में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि है।
शहरी क्षेत्रों में एमपीसीई में मनोरंजन का अनुपात वर्ष 1999-2000 में 1.16 प्रतिशत से बढ़कर 2011-12 में 1.61 प्रतिशत हो गया। इसके बाद से यह घटकर 2022-23 में 1.58 प्रतिशत हो गया है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन सहित विविध चीजों पर औसतन 234 रुपये मासिक खर्च किया जाता है जबकि देश के शहरी इलाकों में इस मद में 424 रुपये मासिक खर्च किए जाते हैं।
दरअसल राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय ने 261,746 घरों का सर्वेक्षण किया जिसमें यह बात स्पष्ट रूप से नहीं बताई गई है कि इस तरह के ‘मनोरंजन’ में क्या शामिल है। फिल्म, टेलीविजन या स्ट्रीमिंग जैसे अधिकांश मनोरंजन कारोबार में दो तरह से कमाई होती है। विज्ञापनदाताओं को दर्शकों का समय बेचकर विज्ञापन से कमाई की जाती है और इसके अलावा सीधे दर्शकों से शुल्क या सबस्क्रिप्शन शुल्क लेकर कमाई की जाती है।
सर्वेक्षण के आंकड़ों में स्पष्ट रूप से विज्ञापन समर्थित फ्री-टू-एयर या फ्री-टू-व्यू मनोरंजन उपभोग को शामिल नहीं किया जाता है। पिछले साल भारतीय मीडिया और मनोरंजन (एमऐंडई) कारोबार की 2.3 लाख करोड़ रुपये की कमाई में विज्ञापन राजस्व की हिस्सेदारी 49 प्रतिशत है। यह सर्वेक्षण केवल भुगतान से होने वाली कमाई और संभवतः टेलीविजन, फिल्मों और स्ट्रीमिंग तक सीमित है।
भारत में टेलीविजन सबसे बड़ा मीडिया माध्यम है। इसकी पहुंच लगभग 90 करोड़ लोगों तक है और इसने 2023 में (विज्ञापन और शुल्क मिलाकर) लगभग 69,600 करोड़ रुपये की कमाई की। इस दशक (और पिछले दशक में भी) में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने टीवी पर सख्त मूल्य नियंत्रण किया है। इस नियंत्रण का मतलब यह है कि सामान्य महंगाई भी केबल या डीटीएच (डायरेक्ट टू होम) कीमतों को प्रभावित नहीं कर सकती है और यह उपभोक्ता से जुड़े डेटा में भी दिखाई देता है।
अधिकांश टेलीविजन प्रसारक डीटीएच और केबल परिचालकों से मोल-तोल के जरिये बेहतर राजस्व हिस्सेदारी की बात कर भुगतान राजस्व बढ़ाते हैं। पिछले तीन वर्षों में, शुल्क वाले टीवी घरों की संख्या अनुमानतः 16.5 करोड़ से घटकर 9 करोड़ हो गई है। यह स्वाभाविक रूप से भुगतान वाली राजस्व वृद्धि को कम कर देता है।
फिक्की-ईवाई (फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री-अर्नस्ट ऐंड यंग) की रिपोर्ट का यह दावा है कि वर्ष 2023 में टेलीविजन राजस्व 2022 की तुलना में 1.8 प्रतिशत कम हो गया और यह एमपीसीई डेटा के अनुरूप है। इसके संदर्भ के लिए, सिनेमा पर गौर करें। विभिन्न सिनेमाघरों द्वारा दिन, समय, फिल्म आदि के अनुसार कीमतों में बदलाव करने की क्षमता का मतलब यह है कि टीवी के विपरीत, औसत टिकट कीमतें महंगाई के साथ बढ़ी हैं।
टीवी में उद्योग को प्रभावित करने वाले मूल्य नियमन के चलते देश का ग्रामीण क्षेत्र क्यों नहीं प्रभावित हुआ? ऐसा इसलिए है कि ग्रामीण भारत के अधिकांश हिस्सों में, खासतौर पर उत्तरी क्षेत्र की आबादी में, भुगतान वाले टेलीविजन का प्रसार (केबल या डीटीएच के माध्यम से) बहुत कम रहा है। केरल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में केबल का दखल सबसे अधिक है। इसे पहले से ही 1999-2000 और बाद के वर्षों के आंकड़ों में शामिल कर लिया गया है।
जिस चीज की पहुंच और खपत बढ़ी है वह है मुफ्त वीडियो। इसे पेश करने वाले दो सबसे बड़े मंच, डीडी फ्रीडिश और यूट्यूब हैं जिसने अभूतपूर्व वृद्धि देखी है।
पिछले दशक में, सरकारी मुफ्त डीटीएच सेवा, डीडी फ्रीडिश, टेलीविजन क्षेत्र में सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरी है। अब यह, हिंदी भाषी राज्यों में अनुमानित तौर पर 5 करोड़ घरों (24 करोड़ लोग) तक पहुंच रहा है। डीडी फ्रीडिश के किट में लगभग 1,000-1,200 रुपये का एकमुश्त खर्च शामिल है और इसमें कोई आवर्ती लागत नहीं है। यह पैसा संभवत: ग्रामीण क्षेत्र के मनोरंजन खर्च में नजर आता है।
कॉमस्कोर के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023 में इंटरनेट पर आने वाले 51 करोड़ अनूठे विजिटरों में से अधिकांश यूट्यूब (जो कि काफी हद तक मुफ्त स्ट्रीमिंग सेवा है) के उपभोक्ता थे। चूंकि यह एक विज्ञापन-समर्थित सेवा है इसलिए केवल डेटा पर पैसा खर्च किया जाता है और यह मनोरंजन के मद में दिखाई नहीं देगा।
आर्थिक विकास की धीमी गति और शहरी क्षेत्र के गरीब इलाके और देश के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की फ्री टेलीविजन की सेवाएं लेने का रुझान भी अलग संकेत देता है। अगर इस पहुंच को मापने के लिए उपकरणों की दखल को आधार मानें, तो गरीब, छोटे शहरों और देश के ग्रामीण क्षेत्र का एक बड़ा वर्ग 2020 से शुरू होकर दो साल से ज्यादा समय से मुश्किल दौर में था। इस अखबार में पहले भी बताया गया है कि इसी दौर में इंटरनेट की पहुंच स्थिर हो गई थी।
ऐसा इसलिए हुआ कि महामारी के दौरान और बाद में, स्मार्टफोन की कीमतें चिप की कमी के कारण लगातार बढ़ती रहीं जो भारत में एक बड़े वर्ग के लिए इंटरनेट तक पहुंच बनाने का मुख्य माध्यम है। एक औसत फीचर फोन की कीमत 1,200 रुपये से कम होती है। वहीं सबसे सस्ता स्मार्टफोन भी 5,500 रुपये से अधिक कीमत पर मिलता है। लगभग 4,000 रुपये का यह अंतर भारत के कई क्षेत्रों के लिए बहुत बड़ा रहा।
यही कारण है कि फीचर फोन से स्मार्टफोन तक की स्वभाविक वृद्धि लगभग तीन सालों में धीमी हो गई है। ऐपल के आईफोन का प्रदर्शन अच्छा रहा, वहीं रियलमी और श्याओमी जैसे ब्रांड जो बाजार में किफायती और मध्यम श्रेणी के फोन की पेशकश करते हैं, उनकी बिक्री में भी कमी आई है।
आईडीसी के आंकड़े के मुताबिक 1.4 अरब लोगों वाले देश में लगभग 65 करोड़ यानी आधे लोगों के पास ही स्मार्टफोन है जिसका मतलब यह है कि उनकी इंटरनेट तक पहुंच बनी हुई है। वर्ष 2023 के अंत में, सेकंड हैंड स्मार्टफोन बाजार में कुछ तेजी आई। ट्राई के सितंबर 2023 के आखिरी उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, ब्रॉडबैंड ग्राहकों की संख्या बेहतर रफ्तार से बढ़ी है। मनोरंजन से जुड़ी खपत के बेहतर स्थिति में पहुंचने में अभी कुछ समय लगेगा।