भारतीय स्टेट बैंक ने बकाया कर्ज की वसूली के लिए एमटीएनएल को जो नोटिस दिया है, वह इस दूरसंचार कंपनी के स्वामित्व में बदलाव का अवसर प्रदान करता है। बता रहे हैं ए के भट्टाचार्य
पिछले सप्ताह महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL) खबरों में थी। देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने एमटीएनएल को बताया कि 325 करोड़ रुपये के कुल कर्ज वाला उसका ऋण खाता फंसे हुए कर्ज (NPA) की श्रेणी में चला गया है। किस्त और ब्याज दोनों ही इस वर्ष 30 जून के बाद से नहीं चुकाए गए थे। चूंकि 90 दिन से भी ज्यादा समय से बकाया रकम नहीं चुकाई गई थी, इसलिए एसबीआई ने ऋण खाते को सब-स्टैंडर्ड यानी खराब श्रेणी में डाल दिया। उसने एमटीएनएल को चेतावनी भी दी कि यह रकम फौरन नहीं चुकाई गई तो समूची बकाया राशि पर बतौर दंड ऊंची दर से ब्याज वसूला जाएगा।
1986 में सरकारी कंपनी के रूप में स्थापित की गई एमटीएनएल ने दिल्ली और मुंबई महानगरों में दूरसंचार सेवा प्रदान करनी शुरू की थी। 1997 में वह नवरत्न कंपनी बन गई, जिस श्रेणी में दर्जन भर बड़ी सरकारी कंपनियां थीं। इन कंपनियों को निवेश के मामले में ज्यादा आजादी होती है।
नवरत्न बनने के बाद उसका विनिवेश किया गया और धीरे-धीरे उसमें सरकार की हिस्सेदारी घटकर केवल 56 फीसदी रह गई। कंपनी को 1998 में देसी स्टॉक एक्सचेंजों पर और 2001 में न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध किया गया। लेकिन लगभग उसी समय देश का दूरसंचार क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए भी खोल दिया गया।
सरकारी नियंत्रण वाली एमटीएनएल निजी क्षेत्र के साथ होड़ में टिक नहीं पाई और उसकी बाजार हिस्सेदारी खिसककर निजी कंपनियों के पास जाने लगी। समय के साथ मोबाइल फोन ने लैंडलाइन फोन को पीछे छोड़ दिया और मोबाइल सेवाओं के तेजी से विस्तार में नाकाम रहने के कारण एमटीएनएल का वायरलेस और लैंडलाइन बाजार भी तेजी से घट गया। 2023 के अंत में मोबाइल फोन बाजार में उसकी हिस्सेदारी आधे फीसदी से भी कम रह गई थी और लैंडलाइन बाजार में यह 7 फीसदी थी।
पिछले कुछ वर्षों में एमटीएनएल को वित्तीय पैकेज के रूप में सरकारी मदद मिलती रही ताकि वह कर्मचारियों की संख्या को उचित स्तर पर ला सके। इसके अलावा उसे विशेष शर्तों पर स्पेक्ट्रम देकर नई तकनीक के साथ मोबाइल सेवा शुरू करने में मदद की गई और उसकी जमीन तथा संपत्तियों आदि के मुद्रीकरण यानी उनसे कमाई करने की कोशिश की गई ताकि वह अपनी वित्तीय देनदारी चुका सके।
किंतु इस दौरान उसकी वित्तीय सेहत और कारोबार में तेजी से गिरावट आई। 2023-24 में कामकाज से उसकी शुद्ध बिक्री 728 करोड़ रुपये रह गई, जो 2019-20 के आंकड़े की आधी भी नहीं थी। फिर भी कंपनी का शुद्ध घाटा 3,300 करोड़ रुपये ही रहा, जो 2019-20 के आंकड़े से भी 400 करोड़ रुपये कम था।
कंपनी को आखिरी बार 2013-14 में शुद्ध मुनाफा हुआ था। कुछ वर्ष पहले कर्मचारियों की संख्या घटाने से उसे काफी लाभ हुआ और 2020-21 में कर्मचारियों पर उसका कुल खर्च 80 फीसदी घटकर 413 करोड़ रुपये ही रह गया। परंतु तीन वर्ष बाद कर्मचारियों की लागत 38 फीसदी से अधिक बढ़ गई, जिससे फायदा काफी हद तक कम हो गया।
एमटीएनएल पर कर्ज बता रहा था कि दिक्कत ज्यादा गहरी है। अगस्त 2024 के अंत तक कंपनी पर कर्ज बढ़कर 32,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया, जिसमें से 7,800 करोड़ रुपये का कर्ज बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिया गया था।
बीते 10 वर्षों में कंपनी ने देनदारी चुकाने के लिए बॉन्ड से 36,000 करोड़ रुपये जुटाए। इन बॉन्डों को भारत सरकार की गारंटी होती है। यदि एमटीएनएल बॉन्ड पर मूलधन और ब्याज नहीं चुका पाती है तो डिबेंचर ट्रस्टी सरकारी गारंटी का इस्तेमाल करेंगे और केंद्र को वह रकम एमटीएनएल को देनी ही पड़ेगी। इसलिए सितंबर 2024 के अंत में केंद्र सराकर फिक्र में पड़ गई होगी, जब एमटीएनएल ने स्टॉक एक्सचेंजों को बताया कि वह सीरीज 5 के अपने बॉन्डों का छमाही भुगतान नहीं अदा कर पाएगी।
परेशान करने वाली इन घटनाओं के बीच ही पिछले हफ्ते स्टेट बैंक का नोटिस आ गया। इसमें चौंकाने वाली कोई बात नहीं थी क्योंकि दूसरे बैंक भी ऐसे ही नोटिस भेज चुके थे। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने 21 अगस्त को एमटीएनएल के सभी खातों से निकासी पर रोक लगा दी थी क्योंकि वह कर्ज नहीं चुका पा रही थी और उसी महीने उसका कर्ज एनपीए बन चुका था। अगस्त के आरंभ में एटीएनएल ने स्टॉक एक्सचेंज को यह भी बताया कि वह बैंकों के कर्ज की किस्तें नहीं चुका पाई है। इनमें बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब ऐंड सिंध बैंक और पंजाब नैशनल बैंक के 40-40 करोड़ रुपये से ज्यादा के कर्ज शामिल थे।
स्टेट बैंक का नोटिस एक और वजह से महत्वपूर्ण था। बैंक ने एमटीएनएल से पूछा था कि सरकार कब और कैसे उसका बकाया चुकाएगी। उसे इस बात की तकलीफ थी कि एमटीएनएल को जमीन के मुद्रीकरण से कितना नकद मिलना है, इसकी जानकारी बैंक को दी ही नहीं गई थी। बताया गया था कि एमटीएनएल ने दिल्ली और मुंबई में प्रमुख स्थानों पर 158 संपत्तियां चुनी हैं, जिन्हें सीधे बेच दिया जाएगा। इसके अलावा वह खाली पड़ी 137 संपत्तियां किराये पर देना चाहती है, जिनमें से 103 मुंबई में और 34 दिल्ली में हैं।
स्टेट बैंक ने एमटीएनएल से यह भी पूछा था कि आवासीय और वाणिज्यिक रियल एस्टेट के विकास के लिए एनबीसीसी लिमिटेड के साथ चलने वाली उसकी परियोजना से होने वाली कमाई का इस्तेमाल बकाया कर्ज चुकाने में होगा या नहीं। उसके बाद धमकी भरे अंदाज में उसने दूरसंचार कंपनी से यह भी कहा कि बकाया फौरन नहीं चुकाया गया तो वह समूचे कर्ज और ब्याज की वसूली के लिए कानूनी कार्यवाही शुरू करेगा और दूसरे कदम भी उठाएगा।
स्टेट बैंक चेतावनी में शायद यह बताना चाहता था कि कर्ज तत्काल नहीं चुकाया गया तो वह ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) की मदद ले सकता है। मगर हो सकता है कि बैंक के कानूनी कदम से पहले ही सरकार एमटीएनएल की कुछ वित्तीय मदद कर दे क्योंकि सरकार और एमटीएनएल बोर्ड कंपनी में नई जान फूंकने के लिए तरह-तरह के प्रस्तावों पर चर्चा करते रहे हैं।
एमटीएनएल के बोर्ड ने पिछले अगस्त में एक समझौते को हरी झंडी दे दी थी, जिसके तहत सरकारी दूरसंचार कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) विलय के बगैर ही 10 साल तक एमटीएनएल को चलाएगी। दोनों के विलय की योजना त्याग दी गई क्योंकि इसमें कई पेच और चुनौतियां थीं। बोर्ड के फैसले में एमटीएनएल को अपनी कुछ सहयोगी इकाइयों में से शेयर बेचने और एक को बंद कर देने की इजाजत भी मिल गई।
परंतु एमटीएनएल से बकाया वसूलने के लिए कानूनी कदम उठाने के स्टेट बैंक के नोटिस के बाद सरकार को बीएसएनएल के साथ 10 साल के समझौते जैसे कामचलाऊ इंतजाम करने के बजाय कंपनी को पटरी पर लाने के विकल्पों पर दोबारा विचार करना चाहिए। सच तो यह है कि एमटीएनएल की वित्तीय देनदारी इतनी ज्यादा हैं कि वे निजीकरण से पहले की एयर इंडिया की याद दिलाती हैं। बाजार के हालात इतने चुनौती भरे हैं कि बीएसएनएल को इसे चलाने के लिए कहना सही समाधान नहीं होगा। बीएसएनएल यदि एमटीएनएल का अधिग्रहण नहीं कर सकती तो बाजार से उसके लिए खरीदार तलाशना बेहतर होगा।
एमटीएनएल का शेयर भाव भी बताता है कि कंपनी कितनी कमजोर है। उसका बाजार पूंजीकरण मुश्किल से 3,000 करोड़ रुपये है। बाजार हिस्सेदारी जिस तेजी से घट रही है और संपत्ति बेचने का कार्यक्रम जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसे देखते हुए इसका बाजार मूल्यांकन और भी कम हो सकता है। अगर एयर इंडिया जैसा निजीकरण का रास्ता सही नहीं लगता तो बकाया वसूलने के लिए कानूनी कार्यवाही करने की धमकी वाला एसबीआई का नोटिस एक मौका हो सकता है।
कर्ज देने वाले आईबीसी का इस्तेमाल कर नया और कारगर प्रबंधन ला सकते हैं ताकि वे अपना बकाया वसूल सकें और नया खरीदार वसूलने में एमटीएनएल की मदद कर सकें। आईबीसी में बदलाव की बात चल रही है और एमटीएनएल मामले से पता चल जाएगा कि यह कितनी कारगर है।