वर्ष 2023 में भारत के शेष विश्व की तुलना में तेज वृद्धि हासिल करने की उम्मीद है लेकिन यह अच्छी खबर अस्थायी ही है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था की खराब हालत की आशंका भी इसके समांतर चल रही है। मुद्रास्फीति बढ़ी हुई है और भारतीय रिजर्व बैंक सहित अधिकांश केंद्रीय बैंक इसे नियंत्रित करने के लिए नीतिगत दरों में इजाफा कर रहे हैं तथा नकदी की तंगी को उपाय के रूप में अपना रहे हैं। जीवाश्म ईंधन, औद्योगिक धातुओं तथा खाद्य की बात करें तो यूक्रेन युद्ध के कारण आपूर्ति श्रृंखला को लेकर तमाम चिंताएं हैं।
चीन कोविड के नए उभार से निपटने की जद्दोजहद कर रहा है और यह बात वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती है। यूक्रेन युद्ध अन्य भू-राजनीतिक तनावों को भी भड़काएगा। इन सब कारणों से वैश्विक मांग प्रभावित हो सकती है। घरेलू मोर्चे पर नीतियां चुनावी संभावनाओं से प्रभावित हो सकती हैं क्योंकि 2023 में कई राज्यों के विधान सभा चुनाव तथा 2024 में आम चुनाव होने हैं। ऐसे में बहुत संभव है कि राजकोषीय घाटे और बिजली क्षेत्र के घाटे जैसे वास्तविक मुद्दों के बजाय लोक लुभावन कदमों को तरजीह दी जाए।
हालांकि इस बात पर आम सहमति है कि निजी खपत के बढ़ने और आर्थिक गतिविधियों में सुधार के चलते कारोबारी जगत का प्रदर्शन मजबूत बना रहेगा। सरकारी बैंकों समेत बैंकिंग क्षेत्र और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की स्थिति अच्छी है और ऋण की बढ़ती मांग उन्हें और फायदा पहुंचाएगी। वाहन क्षेत्र की मांग में जबरदस्त सुधार हुआ है। दो पहिया वाहनों और ट्रैक्टर की मांग में इजाफा यह दर्शाता है कि ग्रामीण खपत में भी सुधार हुआ है।
उच्च तीव्रता वाले अन्य संकेतक मसलन बिजली खपत, रेलवे और बंदरगाहों के जरिये माल ढुलाई में इजाफा, विमान यात्रियों की संख्या और वस्तु एवं सेवा कर संग्रह में सुधार अदि सभी में सुधार देखने को मिल रहा है। अधिकांश कारोबारी क्षेत्रों में बिक्री कोविड-पूर्व के स्तर से आगे निकल रही है। नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारी निवेश हो रहा है और ग्रीन हाइड्रोजन को बिजली के नए स्रोत के रूप में विकसित करने को लेकर नए अवसरों में होड़ है। वहीं बिजली से चलने वाले वाहनों तथा अन्य घटकों के निर्माण और आपूर्ति के लिए कारखाने लगाने पर जोर है।
5जी और सैटेलाइट ब्रॉडबैंड की शुरुआत वृद्धि का एक और क्षेत्र है। अभी यह देखना होगा कि कारोबार कितनी सहजता से इन नए, उच्च गति नेटवर्क को अपनाते हैं। दूरसंचार क्षेत्र पर तो यह सीधा प्रभाव डालेगा ही, साथ ही यह तेजी से विकसित होते ई-कॉमर्स क्षेत्र के लिए भी बुरा साबित नहीं होगा। बीते दो वर्षों के दौरान हुए नीतिगत बदलावों की बदौलत तमाम क्षेत्रों मसलन वैमानिकी और रक्षा आदि में भी गतिविधियां तेज होनी चाहिए जहां निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के पास अब नए अवसर हैं।
अन्य नीतिगत बदलावों मसलन सेमीकंडक्टर निर्माण को प्रोत्साहन देने के बाद इसके नतीजे आने में समय लग सकता है। वर्ष 2022 में इक्विटी पर प्रतिफल धीरे-धीरे कमजोर पड़ा। हालांकि निफ्टी नई ऊंचाइयों पर पहुंचा तथा 4 फीसदी के प्रतिफल के साथ सकारात्मक ढंग से बंद हुआ। मुद्रास्फीति के समायोजन के साथ उसे नकारात्मक माना जा सकता है। डेट बाजार में भी सतर्कता नजर आई क्योंकि दरें बढ़ीं और मजबूत डॉलर ने सोने की कीमतें कम रखीं।
वैकल्पिक परिसंपत्तियों में क्रिप्टोकरेंसी बाजार में तीव्र गिरावट देखने को मिली और घोटालों ने बड़े क्रिप्टो एक्सचेंजों को प्रभावित किया। जीवाश्म ईंधन कीमतें ऊंची बनी रहीं और यूक्रेन युद्ध के समाप्त होने तक उसमें तेजी बनी रह सकती है। औद्योगिक धातुओं की कीमतों में कमी आई है क्योंकि वैश्विक मांग कमजोर पड़ी है। सख्त मौद्रिक हालात को देखते हुए बड़ी तादाद में निवेशक, खासकर विदेशी निवेशक जोखिम से बचने के लिए आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत अधिक स्थिर देशों की मुद्राओं का रुख कर सकते हैं। भारत में जब तक आर्थिक स्थिति में स्पष्ट सुधार नहीं दिखता तब तक इक्विटी बाजार में गिरावट आ सकती है और बहुत चुनिंदा निवेश नजर आ सकता है। राजनीति और भूराजनीति बाजार रुझानों को प्रभावित करेगी।