बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) मामूली अंतर से चुनाव जीत गया है। उसकी जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनाव जीतने की क्षमता की पुष्टि करती है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) स्पष्ट तौर पर सबसे अधिक फायदे में रही है। पार्टी अब देश के तीसरे सबसे बड़े राज्य का भविष्य तय करने की निर्णायक स्थिति में है। उसके अलावा केवल वामपंथी दलों को ही जीत हासिल हुई है, नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड (जदयू) समेत शेष सभी दलों ने गंवाया ही है। राज्य के मतदाताओं की बंटी हुई प्रवृत्ति और उनकी बदलती आकांक्षाओं ने भी अहम भूमिका निभाई। अंतिम नतीजे बताते हैं कि छोटे दलों मसलन चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी से लेकर असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन तक ने जनता दल यूनाइटेड और महागठबंधन का खेल बिगाड़ा। चार सीटों के साथ हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और चार सीटों के साथ विकासशील इंसान पार्टी ने राजग को बहुमत दिलाने में मदद की। अनुमान है कि पासवान की पार्टी ने कम से कम 35 सीटों पर जदयू को प्रभावित किया।
तेजस्वी यादव के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को नुकसान हुआ है लेकिन अब यह स्पष्ट है कि इस युवा राजनेता ने खुद को प्रदेश में बड़ी ताकत के रूप में स्थापित किया है। राजद के 23.1 फीसदी मतों के मुकाबले 19.6 फीसदी मतों के साथ भाजपा दूसरे स्थान पर है लेकिन उसने जिन 110 सीटों पर चुनाव लड़ा उनमें से 74 पर उसे जीत मिली। राजद ने 144 सीटों पर चुनाव लड़कर 75 पर जीत हासिल की। भाजपा इस बात से भी मजबूत हुई है कि नीतीश कुमार की पार्टी जदयू 28 सीटें गंवाकर तीसरे स्थान पर फिसल गई। भाजपा नेतृत्व ने इस बात की पुष्टि की है कि वह नीतीश कुमार को चौथी बार मुख्यमंत्री बनाएगा लेकिन माना यही जा रहा है कि नीतीश कुमार की काम करने की आजादी बहुत सीमित हो जाएगी। कुमार के कद में गिरावट तो तभी जाहिर हो गई थी जब गठबंधन साझेदार पासवान सार्वजनिक रूप से उनकी निंदा कर रहे थे और भाजपा खामोश थी। नीतीश कुमार ने जब कहा कि यह उनका आखिरी चुनाव है तो जाहिर है उन्हें कुछ अहसास हुआ होगा। वैसे भी वह बहुत लंबी पारी खेल चुके हैं।
चुनाव सर्वेक्षकों और विश्लेषकों को जहां बैठकर यह समझना होगा कि उनसे आकलन करने में कहां चूक हो गई वहीं मोदी ने शायद मतदाताओं की आकांक्षाओं को बिल्कुल ठीक समझा। सन 2015 के प्रचार अभियान में भाजपा को कामयाबी हाथ नहीं लगी थी। वह चुनाव गोवध पर रोक और आरक्षण जैसी बातों के परिदृश्य में लड़ा गया था। इस बार अपनी 12 रैलियों में मोदी ने विकास और भ्रष्टाचार के विरोध पर ध्यान केंद्रित किया जो राजद की दुखती रग है। उन्होंने बिहार के मतदाताओं से कहा कि उनका भविष्य बेरोजगारी और धीमी आर्थिक वृद्धि से मुक्त होगा। लोकसभा चुनाव की तरह वह अपने संदेश को जातियों से परे पहुंचाने में कामयाब रहे। उन्होंने नीतीश कुमार की विकास से जुड़ी छवि का भी इस्तेमाल किया। यह भी एक वजह है कि यादवों और मुस्लिमों के रूप में परंपरागत वोट बैंक होने और 10 लाख नौकरियों के वादे के बावजूद यादव निर्णायक जीत नहीं हासिल कर सके। यादव को अपने वामपंथी सहयोगियों के बेहतर प्रदर्शन से सबक लेना चाहिए। वहीं कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन जारी है। भाकपा (माले) ने 12 सीटों के साथ जोरदार जीत दर्ज की। उसका पूरा प्रचार अभियान गरीबों के हित में था। बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक है, ऐसे में इस संदेश में संभावनाएं हैं।
