facebookmetapixel
पांच साल में 479% का रिटर्न देने वाली नवरत्न कंपनी ने 10.50% डिविडेंड देने का किया ऐलान, रिकॉर्ड डेट फिक्सStock Split: 1 शेयर बंट जाएगा 10 टुकड़ों में! इस स्मॉलकैप कंपनी ने किया स्टॉक स्प्लिट का ऐलान, रिकॉर्ड डेट जल्दसीतारमण ने सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों को लिखा पत्र, कहा: GST 2.0 से ग्राहकों और व्यापारियों को मिलेगा बड़ा फायदाAdani Group की यह कंपनी करने जा रही है स्टॉक स्प्लिट, अब पांच हिस्सों में बंट जाएगा शेयर; चेक करें डिटेलCorporate Actions Next Week: मार्केट में निवेशकों के लिए बोनस, डिविडेंड और स्प्लिट से मुनाफे का सुनहरा मौकाEV और बैटरी सेक्टर में बड़ा दांव, Hinduja ग्रुप लगाएगा ₹7,500 करोड़; मिलेगी 1,000 नौकरियांGST 2.0 लागू होने से पहले Mahindra, Renault व TATA ने गाड़ियों के दाम घटाए, जानें SUV और कारें कितनी सस्ती हुईसिर्फ CIBIL स्कोर नहीं, इन वजहों से भी रिजेक्ट हो सकता है आपका लोनBonus Share: अगले हफ्ते मार्केट में बोनस शेयरों की बारिश, कई बड़ी कंपनियां निवेशकों को बांटेंगी शेयरटैक्सपेयर्स ध्यान दें! ITR फाइल करने की आखिरी तारीख नजदीक, इन बातों का रखें ध्यान

शहरीकरण के सबक सिखा रही कुंभ नगरी

कुंभ मेले ने साबित किया कि शहर तेजी से बनाए जा सकते हैं, ज्यादा स्मार्ट, लचीले भी हो सकते हैं मगर चेतावनी भी दी है कि शहरी योजना को केवल माल-असबाब से जुड़ा ना समझा जाए।

Last Updated- February 26, 2025 | 10:14 PM IST
Mahakumbh:

संगम के तट पर बसी कुंभ नगरी किसी दिव्य मरीचिका की तरह है। प्रयागराज में सब कुछ अपने भीतर समाए यह बड़ी सी नगरी मानो अचानक प्रकट हो गई और कुछ ही दिनों में एकाएक विलीन हो जाएगी। कुछ लोग इसे क्षणिक शहरीकरण का नाम भी दे सकते हैं। कुंभ नगरी में ऐसा महानगर नजर आता है, जो स्थायी तौर पर बसे किसी शहर की तरह चलता-फिरता है मगर इसका अस्तित्व कुछ समय के लिए ही है।

प्रयागराज में 40 करोड़ से अधिक तीर्थयात्रियों के आने का अनुमान लगाया गया था। उनके लिए रातोंरात सड़कें बिछा दी गईं, पवित्र नदी पर अस्थायी पुल बना दिए गए और लोगों के हुजूम पर नजर रखने को भारी-भरकम डिजिटल बुनियादी ढांचा खड़ा कर दिया गया। सचमुच यह ऐसी शहरी झांकी है, जिसमें तगड़ा निवेश है, संकल्प है और बारीकी भी। लेकिन ऐसा शहर बनाने का क्या फायदा, जिसे खत्म ही हो जाना है? जब कोई अस्थायी महानगर बसता है तो स्थितियों के हिसाब से ढलने और टिकाऊपन से जुड़े अहम सवाल उठते हैं। यह भी पूछा जाता है कि भविष्य के शहर उस नगरी से क्या सीख सकते हैं, जो टिकेगी ही नहीं।

उत्तर प्रदेश में 75 जिले हैं और राज्य के शहरी विकास विभाग ने 76वां मगर अस्थायी जिला बनाने पर 7,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए। इस शहर में 30 अस्थायी (पंटून) पुल बनाए गए, 92 सड़कों को नया रूप दिया गया, 2,700 से ज्यादा एआई सीसीटीवी कैमरे लगाए गए और पानी के भीतर ड्रोन नदी पर नजर रख रहे हैं। तंबुओं वाले विशाल महाकुंभ नगर में रहने के लिए लक्जरी आवास हैं, वाई-फाई जोन है और गूगल मैप के जरिये आगंतुकों का आना-जाना आसान बनाया जा रहा है। सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवा के ऐसे इंतजाम हैं, जो किसी भी स्थायी शहर को टक्कर दे सकते हैं – 50,000 पुलिसकर्मियों तैनात हैं, चार आर्टिकुलेटेड वाटर टावर (ऊंचाई से पानी छोड़ने वाली दमकल मशीनें) हैं, आपातकालीन अस्पताल हैं और ‘नेत्र कुंभ’ शिविर में लाखों लोगों की जांच हो रही है। पर्यावरण के अनकूल प्रयासों में सौर ऊर्जा से मिली बिजली शहर को रोशन कर रही है, प्लास्टिक पर प्रतिबंध है और गंगा-यमुना के पानी को साफ रखने के लिए नए सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र भी तैयार किए गए हैं। बुनियादी ढांचे के अलावा विभिन्न आर्थिक गतिविधियों और उनसे दूर-दूर तक होने वाले प्रभाव के कारण बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है। माना जा रहा है कि इससे 2 लाख करोड़ रुपये तक का राजस्व आएगा और श्रद्धालुओं की भीड़ पर्यटन, होटल, दुकानों और परिवहन जैसे क्षेत्रों में करीब 12 लाख अस्थायी नौकरियां (गिग जॉब्स) देगी। आने वाले लोग खर्च भी करेंगे, जिसका फायदा रेहड़ी-पटरी वालों से लेकर बड़े रिटेलरों तक समूचे स्थानीय कारोबार को मिलेगा। साथ ही सड़क, पुल और सार्वजनिक सुविधाओं समेत बुनियादी ढांचा सुधरने से इलाके को लंबे समय तक फायदा होता रहेगा।

आग लगने से भगदड़ तक हालिया घटनाएं हमें अस्थायी शहरीकरण की हदों के बारे में सोचने पर भी मजबूर कर दिया है। स्थायी शहरों में तो लंबे समय तक निवेश मजबूती देता है मगर अस्थायी शहरों का बुनियादी ढांचा किसी खास मकसद के लिए खड़ा किया जाता है और मकसद पूरा होने पर गायब हो जाता है। सुरक्षा के इंतजाम होते हैं मगर अस्थायी होने के कारण अक्सर उनमें लापरवाही हो जाती है। भगदड़, आग और पुल गिरना जैसी घटनाओं का बार-बार होना डिजाइन की ही नाकामी नहीं है बल्कि प्रशासन की, जवाबदेही की नाकामी भी है। इसकी वजह मानव व्यवहार भी है, जिसका पहले से अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस कितनी भी निगरानी कर ले, कितने भी अस्थायी पुल बना दिए जाएं या कितनी भी डिजिटल मैपिंग कर ली जाए, लाखों लोगों की भीड़ पर किसी का काबू नहीं हो सकता। इसीलिए जो सबक मिला है वह केवल इंजीनियरिंग से जुड़ा नहीं है बल्कि शहरी डिजाइन के पीछे की मंशा और असर का भी है।

कुंभ मेले ने साबित किया है कि शहरों ज्यादा तेजी से बनाए जा सकते हैं, ज्यादा स्मार्ट और लचीले भी हो सकते हैं मगर इसने चेतावनी भी दी है कि शहरी योजना को केवल माल-असबाब से जुड़ा न समझा जाए। शहर चाहे कितने भी कम समय के लिए बसाया जा रहा है, उसमें एक क्षण के लिए भी रहने वालों के प्रति उसका कुछ कर्तव्य होता है। भविष्य के योजनाकारों को इस तमाशे से अगर कुछ सीखना है तो वह सबक यह है कि किसी शहर की सफलता को उसके कारगर होने से ही नहीं बल्कि उसमें रहने या आने-जाने वाले लोगों की हिफाजत से तथा उन्हें सुविधाएं प्रदान करने की क्षमता से आंका जाना चाहिए।

इस तरह के शहर ने पर्यावरण के प्रति कुछ असमंजस को जन्म दिया है, जिनसे चिंता होती है। सरकार ने तीन नए सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र लगाए और प्लास्टिक कचरे पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन इतनी बड़ी मात्रा में हो रही मानव गतिविधियों का असर तो जरूर पड़ेगा। तीर्थयात्री आत्मा के शुद्धिकरण हेतु गंगा में स्नान करते हैं लेकिन औद्योगिक कचरा, बिना उपचार वाला कचरा और सामूहिक स्नान की यह परंपरा ही उस पवित्रता को खतरे में डाल देते हैं, जिसकी तलाश में ये श्रद्धालु आ रहे हैं। यह विरोधाभास ही चौंकाने वाला है।

अपने सभी विरोधाभासों के बावजूद कुंभ मेले में मिलने वाली खुशियां और दुख शहरी नियोजन और मजबूती का बड़ा सबक दे जाते हैं। ये हमें गहरे प्रश्नों पर सोचने के लिए मजबूर करते हैं: क्या तकनीकी उन्नति और आर्थिक वृद्धि लंबे समय की परिकल्पना की जगह ले सकते हैं? क्या बुनियादी ढांचे की तेज वृद्धि मानव के अप्रत्याशित स्वभाव को भांप सकती है? सबसे बड़ी बात, क्या कोई शहर अपने लोगों की रक्षा में नाकाम होने के बाद भी अपना मकसद पूरा करता माना जाएगा? शहर चाहे अस्थायी हो या स्थायी, वह सामूहिक प्रयास होता है। सरकारों और शहरी योजनाकारों को इसकी नींव जरूर रखनी चाहिए लेकिन इसकी व्यवस्था, सुरक्षा तथा पर्यावरण का ध्यान रखना भागीदारों, तीर्थयात्रियों, रेहड़ी वालों, व्यापारियों और वॉलंटियरों का भी जिम्मा होता है। ऐसे शहर बनाना इकलौती चुनौती नहीं है बल्कि उनका रखरखाव करना, संभालना और सम्मान के साथ उपयोग करना भी चुनौती है।

जब लाखों लोग एक ही जगह इकट्ठे होते हैं तो व्यक्तिगत व्यवहार भी संस्थागत नियोजन जितना महत्त्वपूर्ण हो जाता है फिर चाहे वह भीड़ में शामिल रहकर किया जा रहा व्यवहार हो, कचरा निपटान हो सुरक्षा नियमों का पालन हो। अगर कुंभ को शहरीकरण का सफल नमूना बनना है तो जरूरी है कि मानवीय गरिमा के प्रति पूरी निष्ठा हो, आर्थिक मजबूती हो और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी हो, जो वास्तव में सभी की जिम्मेदारी होगी। किसी भी शहर की सफलता उसकी तेज वृद्धि या भव्यता से नहीं बल्कि इस बात से आंकी और याद की जाएगी कि इसने लोगों को कितनी अच्छी सेवा दी और आसपास का कितनी जिम्मेदारी के साथ ध्यान रखा। यह भी देखा जाएगा कि यहां एक पल के लिए या पूरी उम्र के लिए आए लोगों ने इसका कितना ध्यान रखा।

(लेखक इंस्टीट्यूट फॉर कंपेटिटिवनेस के अध्यक्ष हैं। लेख में मीनाक्षी अजित का भी योगदान है)

First Published - February 26, 2025 | 10:11 PM IST

संबंधित पोस्ट