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होटल उद्योग के आंगन में आईटीसी का पांव

वर्ष 2000 के दशक की शुरुआत में आईटीसी ने अपने अध्यक्ष वाईसी देवेश्वर के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया होटल (जिसे ओबेरॉय समूह के नाम से ज्यादा जाना जाता है) के शेयर इकट्ठा करने शुरू

Last Updated- September 28, 2023 | 10:26 PM IST
ITC Hotel Share Price

पिछले महीने आईटीसी के निदेशक मंडल ने अपने होटल डिवीजन को अलग करने को मंजूरी दे दी। इस तरह देश की सबसे मूल्यवान फर्मों में से एक आईटीसी में महत्त्वपूर्ण और बहुप्रतीक्षित कवायद शुरू हो गई। सिगरेट से लेकर एफएमसीजी तक के उत्पाद बनाने वाला आईटीसी एक डायवर्सिफाइड समूह है।

जाहिर तौर पर देखें तो होटल डिवीजन को अलग कंपनी बनाने और इसे मातृ कंपनी से विलग करने के पीछे रणनीतिक व्याख्या साफ झलकती है। लेकिन जिस तरह से नई कंपनी यानी आईटीसी होटल्स के लिए प्रस्तावित ढांचा तैयार किया गया है और आईटीसी ने उसमें 40 फीसदी की अच्छी-खासी हिस्सेदारी अपने पास रखने का फैसला किया है, उस पर महत्त्वपूर्ण टिप्पणियां मिली हैं। साथ ही 24 जुलाई से लेकर 9 अगस्त को घोषणा के दिन तक आईटीसी के शेयर में 2.6 प्रतिशत की गिरावट आई।

बहस का मसला यह है कि क्या आईटीसी अपने होटल व्यवसाय को खुद से पूरी तरह अलग करने को लेकर सतर्क है? क्या वाकई अधिग्रहण का कोई खतरा है, जैसा कि कुछ विश्लेषकों ने अनुमान लगाए हैं, कि आईटीसी ने होटल व्यवसाय की नियंत्रक हिस्सेदारी अपने पास रखने का फैसला किया?

इस पर विस्तार से चर्चा करने से पहले आइए इसके निहितार्थ और आतिथ्य क्षेत्र को संचालित कर रहे महत्त्वपूर्ण रुझानों को समझ लेते हैं। संगठित होटल उद्योग में टाटा समूह के इंडियन होटल्स के बाद आईटीसी होटल्स ही आकार में दूसरी सबसे बड़ी खिलाड़ी है। जब आईटीसी होटल्स करीब 15 महीने बाद शेयर बाजारों में सूचीबद्ध होगी तो यह अलगाव संभवत: उद्योग के ढांचे पर असर डाल सकता है। कैसे?

वर्ष 2000 के दशक की शुरुआत में आईटीसी ने अपने अध्यक्ष वाईसी देवेश्वर के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया होटल (जिसे ओबेरॉय समूह के नाम से ज्यादा जाना जाता है) के शेयर इकट्ठा करने शुरू किए। ईआईएच उद्योग का तीसरा खिलाड़ी है जो इंडियन होटल्स और आईटीसी से काफी छोटा है। हालांकि आईटीसी ने ओपन ऑफर टालने के लिए 15 फीसदी से थोड़े कम ही शेयर खरीदे। देवेश्वर ने कहा था कि आईटीसी का अधिग्रहण का कोई इरादा नहीं है और यह सिर्फ वित्तीय निवेश है।

लेकिन इस आश्वासन से कंपनी के पितामह पीआरएस ‘बिकि’ ओबेरॉय की नाराजगी दूर नहीं हुई और उन्होंने संभावित जबरिया अधिग्रहण से बचाव के लिए मुकेश अंबानी को कंपनी में 14.1 फीसदी हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया। नीता अंबानी और मनोज मोदी ईआईएच के बोर्ड में शामिल हुए। इस समय ईआईएच में रिलायंस का 18.83 प्रतिशत हिस्सा है जबकि आईटीसी के पास 13.69 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इस बात को लेकर गहरी अटकलें हैं कि अंबानी इसके अधिग्रहण के लिए इंतजार कर रहे हैं लेकिन शायद 94 वर्षीय मानद अध्यक्ष बिकि ओबेरॉय के बाद।

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अपने इरादों का संकेत देते हुए रिलायंस ने पिछले साल 10 करोड़ डॉलर में न्यूयॉर्क में सबसे महंगी संपत्ति-मंडारिन ओरियंटल-में नियंत्रक हिस्सेदारी खरीद ली। यह होटल ताज ग्रुप के पियरे से बहुत दूर नहीं है। पिछले महीने रिलायंस इंडस्ट्रीज ने ओबेरॉय होटल और रिसॉर्ट के साथ भारत और ब्रिटेन में मौजूद तीन संपत्ति परियोजनाओं के सह-प्रबंधन के लिए समझौते की घोषणा की। इस तरह उसने आतिथ्य उद्योग में ज्यादा दमदार तरीके से उतरने का संकेत दिया। ओबेरॉय द्वारा मुंबई में संचालित अनंत विलाज और पश्चिमी भारत के गुजरात में एक परियोजना की योजना और ब्रिटेन के बकिंघमशर में रिलायंस के स्वामित्व वाली स्टॉक पार्क का प्रबंधन अब दोनों कंपनियां मिलकर करेंगी।

भविष्य में इस क्षेत्र में उभर रहे संकेत हैं, ओबेरॉय समूह और अपनी विलय अधिग्रहण योजनाओं के जरिए रिलायंस का आतिथ्य उद्योग में प्रवेश इसकी शक्ल और सूरत में काफी बदलाव कर सकता हैऔर फिर इसमें तीन बड़े खिलाड़ी रहेंगे जिनमें टाटा, आईटीसी और रिलायंस शामिल हैं। अभी तक ओबेरॉय समूह सुदूर तीसरे नंबर पर रहा है। लग्जरी चैन का विस्तार करने के मामले में बिकि थोड़े सतर्क माने जाते थे।

उन्होंने टाटा और आईटीसी के विपरीत मिड मार्केट और बजट होटल के क्षेत्र से दूरी ही बनाए रखी। इतना ही नहीं, अपनी कई संपत्तियों के स्वामित्व के साथ उनका प्रबंधन खुद ही करने का फैसला किया जिससे जब भी कारोबार में मंदी का चक्र आया, वे झटकों के प्रति संवेदनशील हो गईं जबकि टाटा ने ऐसेट लाइट मैनेजमेंट कॉन्ट्रैक्ट मॉडल अपनाया।

दूसरी तरफ वाईसी देवेश्वर ने 1996 में जबसे आईटीसी के अध्यक्ष का पद संभाला, उनके दिल में होटल को लेकर बड़ी तमन्ना रही है। दबदबे वाले सिगरेट कारोबार से जबरदस्त नकदी प्रवाह के बल पर उन्होंने इसकी मौजूदगी 100 से अधिक (अभी 120) संपत्तियों तक बढ़ाई। हाल में यानी 2019 तक उन्होंने कोलकाता में रॉयल बंगाल जैसी शानदार और मशहूर संपत्तियां बनाईं जबकि 2012 में चेन्नई में ग्रैंड चोला का निर्माण किया। लेकिन कंपनी पर लगातार नजर रखने वाले विश्लेषक इसमें लगाई गई पूंजी पर एक अंक में रिटर्न या कुल राजस्व में इसके योगदान से कभी खुश नहीं थे।

इसकी तुलना में तंबाकू, कागज, पेपर बोर्ड, कृषि और एफएमसीजी जैसे अन्य कारोबारों ने ज्यादा शानदार प्रदर्शन किया। इतना ही नहीं, पूर्व मातृ कंपनी ब्रिटिश अमेरिकन टोबैको (बैट) जिसके पास अभी भी आईटीसी में 29.1 प्रतिशत हिस्सा है,वह भी देवेश्वर की डायवर्सिफाई करने की रणनीति से कभी भी खुश नहीं थी। लेकिन उनको प्रभावित करने के लिए बहुत कुछ कर भी नहीं सकी।

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आईटीसी से अलग करने की योजना का प्रस्ताव वित्त वर्ष 20 की सालाना रिपोर्ट में किया गया था। देवेश्वर का 11 मई, 2019 को कैंसर से निधन हो गया। उसके अगले साल कोविड महामारी और लॉकडाउन ने समूचे आवभगत उद्योग में बहुत बड़ा संकट पैदा कर दिया। कोविड के बाद होटल उद्योग अब फिर से फल फूल रहा है। इसमें बढ़ोतरी का अनुमान लगाकर नए अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक संजीव पुरी ने अलग करने की योजना को फिर से आगे बढ़ाया है।

आईटीसी के इस कदम से एक ही तीर से कम से कम तीन शिकार होते हैं। यह बैट समेत आईटीसी के शेयरधारकों को एक विकल्प यह देता है कि वह आईटीसी होटल्स में निवेश बनाए रखें या इससे निकल जाएं। आईटीसी होटल्स के पास अब कई परिसंपत्तियां हैं, अलग-अलग जगह पर ब्रांडेड संपत्तियां हैं और उस पर कोई ऋण भी नहीं है। वह संसाधन जुटाने में सक्षम होगी। उसके पास स्वतंत्र बोर्ड है जो कंपनी चलाने के लिए तुरंत फैसले ले सकता है। सबसे बड़ी बात उसके पास साख है, आईटीसी ब्रांड है और क्षमता है। आईटीसी को भी पूंजी खर्च की जरूरत घट जाने से अधिक ऊंचा रिटर्न मिलना तय है।

अगर बैट अपनी 17.4 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर आईटीसी होटल्स से निकलने का फैसला करती है तो 40 फीसदी हिस्से के साथ आईटीसी कंपनी का किसी भी जबरिया अधिग्रहण से बचाव करने में और अपने कर्मचारियों को स्थायित्व का भाव देने में सक्षम होगी। बदलाव के दौर के लिए तैयारी शुरू हो गई है।

(लेखक फाइंडिंग फ्यूल के सह संस्थापक हैं)

First Published - September 28, 2023 | 10:26 PM IST

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