गत 24 जून को वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग ने एक अधिसूचना जारी की: ‘केंद्र सरकार वित्तीय सेवा विभाग की अधिसूचना क्रमांक 4/3/2023-बीओ.1 दिनांक 27 मार्च 2024 के तहत यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक (ईडी) के रूप में ‘ए’ (नाम गोपनीय) की नियुक्ति को तत्काल प्रभाव से रद्द करती है और उन्हें उनके पिछले पद यानी पंजाब ऐंड सिंध बैंक में महाप्रबंधक के पद पर वापस भेजती है।’
‘ए’ के अलावा इस अधिसूचना की प्रति रिजर्व बैंक के गवर्नर, स्टेट बैंक के चेयरमैन, सभी सरकारी बैंकों के प्रबंध निदेशकों और मुख्य कार्यकारी अधिकारियों और इंडियन बैंक्स एसोसिएशन के मुख्य कार्यकारी आदि को भेजी गई। सरकारी बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध हमने कई अनुशासनात्मक कार्रवाई देखी हैं। सीबीआई और खुफिया ब्यूरो द्वारा उनकी जांच के मामले भी सुने हैं। यहां तक कि उनका गिरफ्तार होना और जेल जाना भी हमने देखा है लेकिन यह मामला विशिष्ट है।
मैं केवल तथ्यों का उल्लेख करूंगा न कि सही-गलत का फैसला। इस किस्से की शुरुआत काफी पहले यानी वित्त वर्ष 2016-17 में हुई थी लेकिन ताजा प्रेरणा बनी दिल्ली उच्च न्यायालय में अगस्त 2024 में दायर एक जनहित याचिका। पंजाब ऐंड सिंध बैंक की एक महिला कर्मचारी ने इस याचिका में ‘ए’ की नियुक्ति को चुनौती देते हुए प्रश्न किया: ‘बिना समुचित छानबीन के किसी को सरकारी बैंक का ईडी कैसे नियुक्त किया जा सकता है?’ इससे पहले उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत ‘ए’ की नियुक्ति से संबंधित सारी जानकारी जुटानी चाही। मुझे लगता है कि उन्हें सूचनाएं नहीं मिलीं। एक बार दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जांच शुरू करने के बाद मुख्य सतर्कता आयोग ने दखल दिया और सतर्कता मंजूरी देने से इनकार कर दिया। तब तक ‘ए’ की नियुक्ति हुए 14 महीने बीत चुके थे।
यहां पंजाब ऐंड सिंध बैंक के मुख्य सतर्कता आयुक्त और वरिष्ठ प्रबंधन की भूमिका सामने आती है। एक बैंक में मुख्य सतर्कता आयुक्त सतर्कता कार्यों की देखरेख और नैतिक व्यवहार और नियमों के पालन पर नजर रखता है। सीवीसी और सीबीआई जरूरत पड़ने पर उसी से बात करते हैं। एक तरह से वह बैंक में गड़बड़ियां पहले ही रोकने की कोशिश करता है।
वित्त वर्ष 17 में महिला (हम उसे ‘बी’मान लेते हैं) बैंक की इंदौर स्थित पीवाई रोड शाखा में मुख्य प्रबंधक थी, तब उन्होंने ‘ए’ द्वारा अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की सूचना दी। उस समय ‘ए’ बैंक के सेंट्रल इंडिया के जोनल मैनेजर थे और भोपाल में पदस्थ थे।
14 दिसंबर 2017 को ‘बी’ का तबादला जबलपुर की कुंडम तहसील में स्थित एक शाखा में किया गया। महिला ने गलत इरादों से और अक्षम अधिकारी द्वारा तबादला किए जाने का दावा करते हुए मप्र उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ में चुनौती पेश की। इससे पहले महिला ने बैंक प्रबंधन में ‘ए’ के विरुद्ध यौन प्रताड़ना की शिकायत की थी। लंबी प्रतीक्षा के बाद 8 जनवरी 2019 को वह स्थानीय शिकायत समिति (एलसीसी) के पास गईं। कोई संस्थान जिसमें 10 से अधिक कर्मचारी हों उसे आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) बनानी ही होती है। उसकी अध्यक्षता एक वरिष्ठ महिला कर्मचारी करती है और उसमें एक बाहरी सदस्य भी होता है।
एलसीसी की प्रक्रिया चल ही रही थी कि बैंक ने अपने मुख्यालय दिल्ली में आईसीसी का गठन कर दिया। 26 फरवरी 2019 को आई आईसीसी की रिपोर्ट में अधिकारी को बरी कर दिया गया। परंतु 17 जून 2019 को एलसीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आईसीसी का निष्कर्ष गलत है और शिकायत सही है। एलसीसी ने कहा कि ‘बी’की पदोन्नति नहीं किए जाने के मामले पर दोबारा विचार हो। ‘ए’ को यौन प्रताड़ना का दोषी पाया गया और यह भी कि बैंक उनकी मदद कर रहा था। इस बीच मप्र उच्च न्यायालय के एकल पीठ ने 17 अप्रैल 2018 को ‘बी’ के स्थानांतरण आदेश को निरस्त कर दिया। बैंक ने उच्च न्यायालय के डिवीजन बेंच में अपील की लेकिन वहां भी यह खारिज हो गई। तब पंजाब ऐंड सिंध बैंक ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली और एक सिविल अपील दायर की। सर्वोच्च न्यायालय ने 25 फरवरी 2020 को अपील खारिज कर दी और उच्च न्यायालय के डिवीजन बेंच के निर्णय को लागू रखा।
बैंक और ‘ए’ ने एलसीसी के आदेश के विरुद्ध मप्र उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की। एलसीसी के आदेश के विरुद्ध एक और रिट याचिका लगाई गई थी। इन याचिकाओं में कहा गया कि आईसीसी के आदेश को अंतिम माना जाए और आईसीसी का प्रावधान होने पर एलसीसी की आवश्यकता ही नहीं है।
‘बी’ के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि एलसीसी का आदेश अंतिम था और उसे केवल अपीलीय प्राधिकार के समक्ष चुनौती दी जा सकती है न कि उच्च न्यायालय में। उच्च न्यायालय में मामला चल ही रहा था कि मार्च 2024 में ‘ए’ को यूनियन बैंक का ईडी बना दिया गया। अगस्त 2024 में ‘बी’ ने नियुक्ति के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायालय में नई याचिका दायर की।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘अपराधी’ को सतर्कता मंजूरी और ईडी के पद पर नियुक्ति के आधार को लेकर प्रश्न किया। दिल्ली उच्च न्यायालय में नियुक्ति को प्रश्नांकित करती याचिका पर सुनवाई को देखते हुए, पंजाब ऐंड सिंध बैंक द्वारा दायर रिट याचिका और ‘ए’ व एक अन्य व्यक्ति द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर याचिका को 8 अप्रैल 2025 को खारिज कर दिया गया। अदालत ने बैंक और ‘ए’ से कहा कि वे एलसीसी के निर्णय के विरुद्ध उचित मंच पर अपील करें। अंतत: सरकार ने दखल दिया और नियुक्ति रद्द करके ए को वापस महाप्रबंधक बना दिया।
यहां कुछ सवाल उठते हैं: संबंधित अधिकारी को जोनल मैनेजर (उपमहाप्रबंधक की रैंक) से महाप्रबंधक कैसे बनाया गया? और बाद में ईडी भी बनाया गया। क्या यौन शोषण सतर्कता के दायरे में नहीं आता। एक सरकारी बैंक के ईडी का इस तरह पद छोड़ना आम बात नहीं है लेकिन उसका महाप्रबंधक के पद पर लौटना तो और भी अनोखी बात है। ईडी केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त होते हैं जबकि महाप्रबंधक बैंक के कर्मचारी होते हैं। वर्ष2012 में सरकार ने एक अधिसूचना के जरिये पूर्णकालिक निदेशक मसलन कार्यकारी निदेशक और प्रबंध निदेशक की पदोन्नति के मामले में सेवा जारी रखना सुनिश्चित किया। इससे पहले महा प्रबंधक को उच्च पद पर जाने के पहले सेवानिवृत्त होना पड़ता था।
यह ‘डॉक्ट्रिन ऑफ रिलेशन बैक’ का मामला है। इस विधिक सिद्धांत के तह भले ही कोई काम बाद में हुआ हो लेकिन उसे पहले हुआ मान लिया जाता है। ऐसा पहले उठाए गए कदम को वैध ठहराने के लिए किया जाता है। यह सिद्धांत कुछ कदमों को अतीत से लागू करने की सुविधा देता है ताकि उन्हें पिछली तिथि से प्रभावी बनाया जा सके।
सवाल यह है कि अगर किसी को ईडी के पद के लिए उपयुक्त नहीं पाया जाता है तो क्या उसे महाप्रबंधक बनाया जा सकता है? मैं एक ऐसा मामला जानता हूं जहां एक सरकारी बैंक में एक उपमहाबंधक, जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में नैतिक पतन के आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे हैं, उनको हाल ही में महाप्रबंधक के पद पर पदोन्नति दी गई। क्या वह भविष्य में ईडी बनेंगे?
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के वरिष्ठ सलाहकार हैं)