युद्ध और महामारी के अलावा वैश्विक मूल्य श्रृंखला (जीवीसी) यानी वैश्विक उत्पादन साझेदारी के वित्तीय और परिचालन संबंधित पहलुओं में बदलाव और कठिन परिस्थितियों से उबरने की उनकी क्षमता भी वर्ष 2022 की प्रमुख वैश्विक चिंता बनी रही। चीन से इतर अन्य जगहों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) द्वारा विविधता लाने की कोशिशों के तहत फ्रेंडशोरिंग और ऐलाइशोरिंग चर्चा का विषय बन गए।
फ्रेंडशोरिंग एक ऐसी रणनीति है जिसके तहत एक देश कच्चे माल, कलपुर्जे और यहां तक कि तैयार वस्तुओं को उन देशों से हासिल करता है जिससे इसके मूल्यों की साझेदारी होती है। वहीं ऐलाईशोरिंग वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा देश अहम आपूर्ति श्रृंखला तैयार करते हैं और विश्वसनीय लोकतांत्रिक साझेदारों और सहयोगियों के साथ आवश्यक सामग्री, वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति का इंतजाम करते हैं।
‘चीन प्लस एन’ अब बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) की प्रमुख रणनीति है क्योंकि उन्हें यूक्रेन संकट के कई आयामों के साथ-साथ अमेरिका और चीन के बीच बनी गतिरोध की स्थिति के परिणाम से भी जूझना पड़ रहा है। आपूर्ति श्रृंखला में नए सिरे से बदलाव और विविधता के इस दौर में भारत भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने की उम्मीद कर रहा है जो अपने सहायक परिचालनों को अन्य देशो में स्थानांतरित करने की प्रक्रिया में हैं।
पिछले दशक में आपूर्ति श्रृंखला के विविधीकरण के रुझान की रफ्तार बढ़ी है और इससे यह अंदाजा होता है कि बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपनी पसंदीदा जगहों पर कंपनी के कामों के क्रियान्वयन की रणनीति के रूप में फ्रेंडशोरिंग का विकल्प चुना है। दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के बीच वियतनाम जीवीसी में क्षेत्रीय बदलाव से बन हुए अवसरों का लाभ उठाने में अग्रणी है।
वर्ष 2010 और 2018 के बीच, वियतनाम ने अपने सकल निर्यात के विदेशी मूल्य वर्धित (एफवीए) घटक में नाटकीय तरीके से वृद्धि दर्शायी है और इसी वजह से इसके जीवीसी का एकीकरण हुआ। एशिया और भारत के लिए 5 प्रतिशत से कम की तुलना में वियतनाम ने इसी अवधि में अपने सकल निर्यात के एफवीए में 17.3 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज की।
इससे वियतनाम को वैश्विक व्यापारिक निर्यात की अपनी हिस्सेदारी में महत्त्वपूर्ण लाभ दर्ज करने में मदद मिली। वियतनाम की हिस्सेदारी वर्ष 2010 के 0.5 प्रतिशत के निचले स्तर से, 2020 में तीन गुना से अधिक बढ़कर 1.6 प्रतिशत हो गई, जिससे यह दुनिया का 20वां सबसे बड़ा माल निर्यातक देश बन गया। इसके विपरीत इस अवधि के दौरान भारत की हिस्सेदारी 1.6 प्रतिशत पर स्थिर रही है।
दोनों अर्थव्यवस्थाओं में जीवीसी भागीदारी का अंतर भी देश में विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात की हिस्सेदारी से स्पष्ट है जो मूलतः वैश्विक व्यापारिक निर्यात में अग्रणी श्रेणी है।
2010 में अपने कुल व्यापारिक निर्यात (63 प्रतिशत) में निर्मित वस्तुओं के निर्यात के बराबर हिस्से के मुकाबले वियतनाम ने वर्ष 2020 में 86 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की (जो विशेष रूप से देश के लिए इस सदी की शुरुआत में 43 प्रतिशत की हिस्सेदारी से दोगुनी थी), जबकि भारत के विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात ने 2020 में केवल 71 प्रतिशत की मामूली वृद्धि दर्ज की। यह वर्ष 2000 में 78 प्रतिशत हिस्सेदारी (डब्ल्यूडीआई, विश्व बैंक) के सापेक्ष एक गिरावट थी।
महामारी के दौरान भी पूर्वी एशिया ने वर्ष 2020-21 की तीसरी और चौथी तिमाही में व्यापार में सुधार को आगे बढ़ाया, वहीं दूसरी तरफ वियतनाम साल-दर-साल निर्यात वृद्धि और बाजार हिस्सेदारी में वृद्धि (अंकटाड ग्लोबल ट्रेड अपडेट, अक्टूबर 2020 और फरवरी 2021) के मामले में अग्रणी था।
भारत बहुराष्ट्रीय कंपनियों को स्थानांतरित करने के लिए खुद को एक आकर्षक गंतव्य के रूप में पेश करता है। लेकिन इस प्रक्रिया का ज्यादा लाभ उठाने वाले प्रमुख देश वियतनाम के साथ भारत की तुलना उपयोगी हो सकती है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्थानांतरण को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख कारकों में सबसे महत्त्वपूर्ण मुक्त व्यापार व्यवस्था है।
वियतनाम की बात करें तो पिछले दशक में हस्ताक्षर किए गए मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की संख्या के साथ ही, भागीदार अर्थव्यवस्थाओं की प्रकृति और इसके एफटीए का कवरेज वास्तव में कारोबार के एक अनुकूल और उदार माहौल बनाने की दिशा में योगदान देने वाले प्रमुख तत्त्व रहे हैं। व्यापार से संबंधित पर्यावरण और श्रम मुद्दों पर डब्ल्यूटीओ ++ के प्रावधानों को शामिल करना और इन क्षेत्रों में घरेलू स्तर पर सुधार करना वियतनाम की प्रतिबद्धता के सकारात्मक संकेत रहे हैं।
विशेष रूप से वियतनाम के एफटीए में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसेप), उच्च श्रेणी की कॉम्प्रीहेंसिव ऐंड प्रोग्रेसिव ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप और इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क व्यापार स्तंभ के साथ-साथ ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ भी इसके द्विपक्षीय संबंध हैं और आसियान अर्थव्यवस्था के एक सदस्य के रूप में यह क्षेत्रीय ब्लॉक के एफटीए का पक्ष है।
दिलचस्प बात यह है कि भारत में भी लगभग समान संख्या के एफटीए हैं लेकिन ये स्थायी व्यापार समझौते नहीं हैं। जापान और कोरिया के अलावा, भारत विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ किसी भी एफटीए का हिस्सा नहीं रहा है। जापान और कोरिया के साथ एफटीए की समीक्षा की जा रही है और ऑस्ट्रेलिया के साथ 2022 में हस्ताक्षरित एफटीए अभी प्रारंभिक चरण वाली योजना ही दिख रही है। भारत किसी भी बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौते का सदस्य नहीं है।
गौरतलब है कि भारत एफटीए में श्रम और पर्यावरण से संबंधित मुद्दों को शामिल करने के लिए अनिच्छुक बना हुआ है और लंबी वार्ता में दोनों पहलू भी कारण हैं और इसकी वजह से ही हाल में यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ बातचीत हुई है। वियतनाम की टैरिफ (शुल्क) संरचना इसकी अपेक्षाकृत अधिक खुले व्यापार का एक और संकेतक है। गैर-कृषि वस्तुओं के लिए तरजीही राष्ट्रों (एमएफएन) के टैरिफ का सामान्य औसत, भारत द्वारा लगाए गए टैरिफ की तुलना में बहुत कम है।
शुल्क-मुक्त श्रेणी में काफी अधिक संख्या में टैरिफ को शामिल किया गया है और 15 प्रतिशत से अधिक श्रेणी में टैरिफ की संख्या के सापेक्ष 0-< = 5 के निचले कोष्ठक में शामिल किया गया है। पिछले एक दशक में भारत की स्पष्ट संरक्षणवादी प्रवृत्तियां इन टैरिफ श्रेणियों में प्रतिकूल अंतर से भी स्पष्ट है।
गौर करने वाली बात यह है कि जीवीसी जैसे गतिशील क्षेत्रों में, जैसे कि विद्युत मशीनरी और परिवहन उपकरण, एमएफएन द्वारा लागू कम औसत टैरिफ और बड़ी संख्या में शुल्क मुक्त लाइनें, कलपुर्जे (विद्युत मशीनरी में 89 प्रतिशत तक) के आयात की अनुमति देती हैं जो वियतनाम में इस व्यापार गतिशील क्षेत्र में कुशल जीवीसी एकीकरण की सुविधा देती हैं।
अच्छे लॉजिस्टिक्स सीमा के भीतर और उसके पार माल को कहीं लाने-ले जाने में मददगार साबित होते हैं और व्यापार लागत को कम करने के साथ ही जीवीसी संचालन की सुविधा देते हैं। पिछले एक दशक में विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स (एलपीआई) में, वियतनाम के स्कोर और रैंक में अच्छी वृद्धि दर्ज की गई है।
वर्ष 2018 में इसकी रैंकिंग 160 देशों में 39 वें स्थान पर रही और वर्ष 2007 से 2012 के दौरान 53 स्थान पर रही इसकी रैंकिंग में अपेक्षाकृत रूप से बड़ा सुधार दिखा। इसके विपरीत, भारत वर्ष 2018 में 44 वें स्थान पर था जो 2010 की तुलना में एक सुधार था लेकिन इसकी मात्रा कम थी। वहीं दूसरी तरफ, वियतनाम वर्ष 2010 से 2018 तक एलपीआई के सभी आयामों के स्कोर में वृद्धि दिखाता है जबकि भारत के केवल दो उप-घटकों में वृद्धि दिखी है।
इसमें सीमा शुल्क के मोर्चे पर तुरंत मंजूरी और प्रतिस्पर्धी मूल्य पर सामान को भेजने की व्यवस्था शामिल है। अन्य उप-घटकों के लिए, वर्ष 2018 का स्कोर 2010 की तुलना में कम या कमोबेश समान है। इसके अलावा, दो बेहतर प्रदर्शन करने वाले उप-घटकों का लाभ भी सामान को भेजने की समयबद्धता के साथ ही लॉजिस्टिक्स क्षमता और प्रदर्शन दोनों के कम स्कोर से गड़बड़ होता नजर आता है।
ऐसे में चीन से अलग जब विविधता पर जोर देने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) के लिए सबसे आकर्षक गंतव्य के रूप में वियतनाम अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए तैयार है तब भारत को इस प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण दावेदार माने जाने के लिए सभी क्षेत्रों में पर्याप्त सुधार करने की आवश्यकता है।
(लेखक जेएनयू के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं)