दुनिया के साथ कदमताल करते भारत की जरूरतें भी आज बदल चुकी हैं। शायद इसीलिए फलते-फूलते रियल एस्टेट सेक्टर, संगठित होते रीटेल कारोबार।
मेगा टाउनशिप में बदलते टियर-2 और टियर-3 शहर, आधुनिक शक्लो-सूरत पा चुके विशालकाय स्कूल कैंपस या यूनिवर्सिटी और ग्रामीण क्षेत्र…हर कहीं से ज्यादा से ज्यादा वायरलेस नेटवर्किंग को लागू करने की आवाज सुनाई दे रही है।
यह जरूरत किस कदर है, इसका अंदाज वाई-फाई अलायंस-टोंस टेलीकॉम की एक ताजा रपट से लग जाता है। रपट कहती है कि वायरलेस नेटवर्किंग का यह बाजार अगले 3-4 वर्षों में बढ़कर तीन गुने से भी ज्यादा हो जाएगा। जहां 2008-09 में यह कारोबार लगभग 1050 करोड़ रुपये का होने का अनुमान है, वहीं 2011-12 तक इसके बढ़कर 3,560 करोड़ रुपये तक पहुंचने के पूरे आसार हैं।
दिलचस्प बात यह है कि बाजार की इतनी मोटी कमाई तो तब है जबकि इसमें लैपटॉप की चिपसेट, सेलफोन हैंडसेट जैसे उपकरणों से होने वाली कमाई को शामिल नहीं किया गया है। अगर इनकी कमाई और तथ्य को भी ध्यान में रखा जाए कि अब 90-95 फीसदी नोटबुक (जो कि इन दिनों डेस्कटॉप को कड़ी चुनौती दे रही हैं)भी वाई-फाई तकनीक से लैस हो रही हैं, तो इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि यह बाजार किस कदर बड़ा होने वाला है।
होटलों, सर्विस अपार्टमेंट्स, शॉपिंग मॉल्स जैसी जगहों पर सार्वजनिक वाई-फाई केंदो्रं की तादाद के बारे में भी इस रिपोर्ट में जानकारी दी गई है। लगभग 1500 से 1600 के बीच की संख्या वाले इन केंद्रों की अहमियत इतनी ज्यादा हो चुकी है कि प्रमुख इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियां इन्हें बाजार कब्जाने के सबसे बड़े हथियार के रूप में देख रही हैं।
मिसाल के तौर पर, टाटा समूह की कंपनी वीएसएनएल को ही लीजिए, जिसने इनकी अहमियत पहचानते हुए पहले ही लगभग 350 केंद्र बना लिए हैं और 2008 तक इनकी तादाद बढ़ाकर 1000 तक करने के मूड में है। इसी तरह टाटा इंडीकॉम के वाई-फाई हॉटस्पॉट प्रमुख घरेलू और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों, होटलों, रेलवे स्टेशनों, शैक्षिक संस्थानों, स्टेडियमों, अस्पतालों, रेस्तराओं, कॉफी शॉप चेन और रिटेल स्टोरों में हैं।
इन केंद्रों में ताज होटल्स गु्रप, ली मैरीडियन, कैफे कॉफी डे, बरिस्ता कॉफी शॉप, मणिपाल यूनिवर्सिटी और वोकहार्ड जैसे खास स्थान भी शामिल हैं। भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) ने भी 100,000 सामुदायिक सेवा केंद्रों (सीएससी) को बनाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है, जो इंटरनेट कनेक्टिविटी बूथों से लैस होंगे। हालांकि इनमें वाई-फाई कनेक्टिविटी होगी या नहीं, इस बारे में कोई खुलासा नहीं किया गया है।
इंडियन रेलवे भी इस होड़ में पीछे नहीं है। इंडियन रेलवे ने मेट्रो शहरों के बीच प्रमुख रेल मार्गों के 50 रेलवे स्टेशनों को वाई-फाई से जोड़ने की घोषणा की है, जिनमें से 20 स्टेशनों पर मार्च 2008 तक काम पूरा हो जाएगा। रिपोर्ट में इसका जिक्र भी किया गया है कि कई जगहों को बड़े पैमाने पर वाईमैक्स तकनीक से भी लैस किए जाने की योजनाओं की भी घोषणाएं की गई हैं।
यह तकनीक न सिर्फ वाई-फाई कनेक्टिविटी की क्षमता को बढ़ाएगी बल्कि एक-दूसरे की सहयोगी तकनीक के तौर पर भी काम कर सकने में सक्षम होंगी। बड़े होटलों, सर्विस अपार्टमेंटों और थ्री-फोर स्टार होटलों के कमरों को भी वाई-फाई तकनीक के दायरे में लाने की पुरजोर कवायद की जा रही है। वैसे तो इन जगहों पर इस तकनीक को इस्तेमाल करने के लिए रकम वसूली जाती है लेकिन होटलों में ठहरने वाले लोगों को इसके लिए कोई पैसा नहीं देना पड़ता।
कुछ होटल अपने रिसेप्शन पर वाई-फाई कार्डडोंगल भी बेचते हैं तो कुछ होटल इसके लिए प्री-पेड या फ्री स्क्रैच कार्ड की बिक्री करते हैं।रियल एस्टेट कंपनियों को भी वायरलेस तकनीक बहुत रास आ रही है। इस वर्ष फरवरी के मध्य में ही भारत की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ लिमिटेड ने घोषणा की थी (स्रोत: एसी नील्सेन रिपोर्ट) कि वह पूरे भारत में फैले अपने डीएलएफ भवनों को वाई-फाई तकनीक से लैस करेगी।
इसी के साथ इस तकनीक को अपनाने वाली वह पहली रियल एस्टेट कंपनी भी हो जाएगी। उसे वाई-फाई तकनीक ओ-जोन नेटवर्क्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा मुहैया कराई जाएगी। एक और रियल एस्टेट डेवलपर अंसल ने भी ओ-जोन के साथ एक समझौता किया है, जिसके तहत साल-दर-साल उसकी शॉपिंग प्रॉपर्टीज ओ-जोन वाई-फाई से लैस करने की योजना को पूरा करेगी।
अगर ग्रामीण क्षेत्रों की बात की जाए, तो अश्विनी जैसी परियोजनाओं के जरिए यहां भी यह तकनीक अपने पैर पसार रही है। इस परियोजना को बाइरराजू फाउंडेशन ने शुरू किया है। इसके तहत आंध्र प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को एक डिलीवरी प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर हाई क्वॉलिटी सेवाएं दी जा रही हैं। परियोजना के लिए कनेक्टिविटी 802.11 बीजी सिस्टम्स मुहैया कराती है। इसका विकास आईआईटी-कानपुर और मीडिया लैब एशिया ने किया है।
इनके अलावा, कई राज्यों और शहरों ने भी अपने-अपने यहां निजी भागीदारी में वाई-फाई के स्थानीय नेटवर्क और वाईमैक्स तकनीक पर आधारित परियोजनाओं को लागू करने की घोषणा की है। ऐसी परियोजनाओं में से एक पश्चिमी भारत में पिम्परी-चिंचवाड नगरपालिका ने तैयार की है, जो कि पुणे की तर्ज है।
पुणे तो इस तरह की एक परियोजना को पहले ही अमल में ला चुका है। इसके लिए उसने इंटेल को भागीदार बनाया है। एक साल के अंदर इस परियोजना का काम पूरी तरह से खत्म हो जाने की उम्मीद है।