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भारत की आर्थिक कमजोरियां उजागर, अहम क्षेत्रों में विदेशी निर्भरता से बढ़ा खतरा

ट्रंप के टैरिफ विवादों ने दो अन्य खतरों से ध्यान हटा दिया है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय हैं और जिस पर अब मीडिया का ध्यान गया है।

Last Updated- August 12, 2025 | 10:06 PM IST
Indian GDP growth forecast

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के गुस्से और भारत से आने वाले सभी सामान पर 25 फीसदी आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने के फैसले ने एक बार फिर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद हमारी आर्थिक कमजोरियों को उजागर कर दिया है। हालांकि, ट्रंप के टैरिफ विवादों ने दो अन्य खतरों से ध्यान हटा दिया है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय हैं और जिस पर अब मीडिया का ध्यान गया है।

पहला खतरा चीन द्वारा ‘दुर्लभ खनिज’ और ‘दुर्लभ मैग्नेट’ के निर्यात पर रोक लगाने से जुड़ा है, जिससे हमारे वाहन उद्योग की परेशानी बढ़ गई है। दूसरा मामला माइक्रोसॉफ्ट द्वारा नायरा एनर्जी को सेवाएं देने से इनकार करने का है। नायरा एनर्जी की 49 फीसदी हिस्सेदारी, रूस की रोसनेफ्ट के पास है और यूरोपीय संघ ने रूस और उसकी कंपनियों पर प्रतिबंध लगा रखे हैं।

गुजरात के वडीनार में मौजूद पूर्ववर्ती एस्सार रिफाइनरी को खरीद कर उसे संचालित करने वाली नायरा एनर्जी, भारत में 6,500 से अधिक पेट्रोल पंप भी संचालित करती है। नायरा ने माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ भारत में केस दर्ज कराया जिसके बाद सेवाएं बहाल कर दी गईं, लेकिन इस घटना ने हमारी एक बड़ी आर्थिक कमजोरी को उजागर किया है और वह है कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अमेरिका और अन्य देशों पर हमारी निर्भरता।

तेल आपूर्ति में बाधाओं के खतरे के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन अन्य कमजोरियों पर कम ध्यान दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर, इलेक्ट्रॉनिक चिप, दवाओं में इस्तेमाल की जाने वाली सक्रिय सामग्री (एपीआई), दुर्लभ खनिज, लीथियम और कोबाल्ट जैसे महत्त्वपूर्ण खनिज संसाधनों के लिए हम चीन पर निर्भर हैं। इसके अलावा आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी नई उभरती तकनीकों में हमारी कमजोरी और तेजी से उभरती आर्थिक शक्ति के तौर पर ऑपरेटिंग सिस्टम व डेटा सेंटर सेवाओं जैसे एमेजॉन वेब सर्विसेज (एडब्ल्यूएस) और माइक्रोसॉफ्ट एज्योर के लिए अमेरिकी कंपनियों पर निर्भरता भी चिंता का विषय है। दशकों से निष्क्रियता के कारण हमने इन कमजोरियों को बढ़ने दिया है। न तो सरकारों ने और न ही बड़ी मुनाफा कमाने वाली कंपनियों और कारोबारी समूहों ने इन समस्याओं पर ध्यान दिया, जिसके कारण हम कुछ देशों की दया पर निर्भर हो गए हैं।

तेल, लीथियम और कोबाल्ट जैसे संसाधनों के हमारे पास पर्याप्त भंडार नहीं है। हालांकि ये भंडार चीन के पास भी नहीं है, लेकिन उसने अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करके इस कमजोरी को कम कर लिया है जिसके कारण उसकी अर्थव्यवस्था पर उतना असर नहीं होगा।

इलेक्ट्रिक वाहन की बैटरियों के लिए जरूरी माने जाने वाले खनिज, लीथियम और कोबाल्ट के मामले में भी चीन ने इन खनिजों वाले देशों के साथ मजबूत संबंध बनाए और प्रसंस्करण क्षमता मजबूत की जबकि अमेरिका और यूरोप आयात पर निर्भर रहे। चीन पहला ऐसा देश है जिसने दुर्लभ खनिज के महत्त्व को समझते हुए अपनी खदानें विकसित कीं और दुर्लभ खनिज के लिए प्रसंस्करण क्षमता बनाई। भारत में दुर्लभ खनिज की आपूर्ति पर्याप्त है लेकिन केवल एक सार्वजनिक कंपनी ही इसके छोटे हिस्से का खनन करती है और इसे भी प्रसंस्करण के लिए जापान भेजा जाता था।

फार्मास्यूटिकल एपीआई जैसी अहम सामग्री के क्षेत्र में हम कुछ वर्षों से चीन पर निर्भर हो गए हैं जबकि हमें फार्मा उद्योग के लिए इसे सुनिश्चित करने की जरूरत है। चीन हमारा मुख्य आपूर्तिकर्ता देश बन गया है जबकि घरेलू उत्पादन क्षमता घट गई है । हाल में हम एपीआई उत्पादन फिर से शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन कच्चे माल की आपूर्ति से जुड़ी दिक्कतों से उबरने में अभी समय लगेगा तभी उत्पादन संभव होगा।

इलेक्ट्रॉनिक चिप के मामले में भी हमारी स्थिति कमजोर है जबकि यह हमारे वाहनों, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और टिकाऊ वस्तुओं के उद्योग के लिए अहम है। हम अब इंटिग्रेटेड सर्किट (आईसी) निर्माण क्षमता बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इसमें अभी समय लगेगा और मुमकिन है इसमें शायद एक दशक या इससे अधिक वक्त लगे ताकि हम प्रतिस्पर्द्धी तरीके से इस क्षेत्र में काम कर सकें और कुछ चुनिंदा आपूर्तिकर्ताओं पर अपनी निर्भरता कम कर सकें।

इसके अलावा, हमारी कुल विनिर्माण क्षमता और दक्षता, चीन और वियतनाम जैसे देशों की तुलना में कमजोर है जो वास्तव में विनिर्माण के लिहाज से बेहतर देश हैं। इसका एक कारण यह है कि उद्योगों ने अपनी प्रतिस्पर्द्धी क्षमता नहीं बनाई है और यह अफसरशाही व्यवस्था के लालफीताशाही वाले रवैये, अक्षम न्यायिक प्रणाली, खराब बुनियादी ढांचे और कई स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण है, विशेषकर स्थानीय स्तर पर।

आखिर में एआई को लेकर मची होड़, आने वाले दशकों में विजेताओं और असफल होने वालों का फैसला करेगी। अमेरिका, चीन और कुछ पश्चिमी देश इस दौड़ में आगे हैं जबकि हम मुख्य तौर पर एआई को अपनी आईटी सेवाओं में शामिल करने पर ध्यान दे रहे हैं। ऐप्लिकेशन तैयार करना और सेवाओं में एआई को शामिल करना जरूरी है लेकिन अपने एआई मॉडल तैयार करना और भी महत्त्वपूर्ण है जिसके लिए हम अमेरिका और अन्य देशों पर निर्भर हैं। अगर हम अपना एआई मॉडल नहीं तैयार करते और अमेरिका-चीन के साथ (कुछ हद तक यूरोप के साथ) प्रतिस्पर्धा नहीं करते हैं तब ऐसी स्थिति में हम तकनीकी रूप से पिछड़ सकते हैं जैसा कि मैंने पहले के लेख में भी यह बात लिखी है।

चीन ने यह बात बहुत पहले ही समझ ली थी कि केवल एक विनिर्माण केंद्र बनकर नहीं रहा जा सकता। उसने एआई, जेनेटिक्स और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में शोध क्षमता विकसित की। आज प्रौद्योगिकी शोध में चीन, अमेरिका के बराबर या उसके करीब है। भारत को भी इन क्षेत्रों में अपनी क्षमता बढ़ाने की जरूरत है।

ये सभी लक्ष्य रातोरात हासिल नहीं किए जा सकते है। इसके लिए लंबे समय तक निरंतर प्रयास, अच्छी नीतियों और केंद्र-राज्य सरकारों के बीच सहयोग की जरूरत होगी। साथ ही, भ्रष्टाचार, अक्षमता और खराब नियमन को दूर करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति भी जरूरी है। लेकिन अगर सरकार सिर्फ अगले साल की आ​र्थिक वृद्धि दर के बजाय दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान दे, तो ही यह संभव है।


(लेखक बिजनेस टुडे और बिजनेसवर्ल्ड के संपादक रह चुके हैं और संपादकीय परामर्श संस्था प्रोजैक व्यू के संस्थापक हैं)

First Published - August 12, 2025 | 9:48 PM IST

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