भारत भीषण गर्मी का सामना कर रहा है। विशेषकर, मई ने कहर बरपाया और तापमान इतना बढ़ गया कि पिछले कई वर्षों के रिकॉर्ड टूट गए और पिछले रिकॉर्ड की तुलना में तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। अल नीनो प्रभाव से बेकाबू हो रहे जलवायु संकट के कारण पारा लगातार चढ़ता ही जा रहा है और भीषण गर्मी से मानव से लेकर जीव-जंतु तक परेशान हैं।
तापमान लगातार बढ़ने से भारत समेत पूरी दुनिया में हाहाकार मच गया है जिससे जलवायु अनुरूप एवं वैकल्पिक समाधानों की तत्काल जरूरत महसूस की जा रही है ताकि मानव, जीव-जंतु सहित पर्यावरण को और नुकसान से बचाया जा सके।
विश्व में शहरी आबादी बढ़ने के साथ अधिक लोगों को मौसम में आए प्रतिकूल बदलावों का सामना करना पड़ रहा है। मौसम का सख्त मिजाज कमजोर एवं वंचित लोगों को अधिक प्रभावित कर रहा है।
सी40 (शहरों का जलवायु नेतृत्व समूह) के एक सर्वेक्षण के अनुसार इस समय दुनिया के 350 से अधिक शहर अत्यधिक गर्मी की जद में आ गए हैं। इस अध्ययन के अनुसार 2050 तक ऐसे शहरों की संख्या बढ़कर 970 तक पहुंच सकती है। सिटी40 वैश्विक स्तर पर 96 शहरों का संगठन है, जो जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिम एवं शहरी समाधान लागू करने के लिए संकल्पित है। इसी अध्ययन में कहा गया है कि शहरों में रहने वाले 2.6 करोड़ से अधिक गरीब लोग अत्यधिक गर्मी से जूझ रहे हैं। वर्ष 2050 तक यह संख्या बढ़कर लगभग 21.5 करोड़ तक पहुंच जाएगी।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ का कहना है कि लगभग 56 करोड़ बच्चे बार-बार लू का सामना कर रहे हैं और आशंका जताई जा रही है कि यह संख्या 2050 तक बढ़कर 2 अरब तक पहुंच सकती है। ऐसी चरम स्थितियां इस बात का संकेत हैं कि वर्तमान समय में अत्यधिक तापमान का सामना करने वाले लोगों को निकट भविष्य में और भीषण गर्मी झेलने के लिए तैयार रहना होगा।
ठंडे प्रदेशों में रहने वाले लोग भी अधिक गर्मी का अनुभव करेंगे जिसके वे आदी नहीं रहे हैं। ऐसी आशंका के बीच योजनाकारों को प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने के लिए तैयारी दुरुस्त रखनी होगी।
शहरी नियोजन प्रक्रिया में भीषण गर्मी से निपटने के लिए एक समग्र नजरिया अपनाया जाना चाहिए जिसमें बदलती परिस्थितियों में अनुकूल व्यवहार और आधुनिक जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में बेहतर तालमेल बैठाना आसान हो जाए। इस बदलाव के केंद्र में एक टिकाऊ शहरी ढांचा होना चाहिए।
शहरों को ऐसे भविष्य की नींव रखनी चाहिए जिसमें सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से इतर प्रत्येक व्यक्ति की उन आवश्यक सेवाओं तक पहुंच हो, जो रोजमर्रा का जीवन आसान बनाने के साथ ही चरम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने में मददगार हों। यह न केवल समाधान है बल्कि रोकथाम एवं मदद का जरिया भी है जिससे उन लोगों के लिए एक सुरक्षा चक्र तैयार हो जाएगा जो भीषण गर्मी के दौरान उपेक्षा का शिकार हो सकते हैं।
सार्वजनिक परिवहन प्रणाली भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक विश्वसनीय एवं सक्षम परिवहन तंत्र निजी वाहनों पर निर्भरता कम करता है और उत्सर्जन एवं नगरीय उष्मा द्वीप प्रभाव भी कम करता है।
मौजूदा संकट हमें चरम तापमान से निपटने में हरित अवसंरचना पर विचार करने के लिए प्रेरित कर रहा है। हरित अवसंरचना में प्रकृति के अनुकूल उपायों का समागम होता है जिनका मकसद शहरी एवं जलवायु-संबंधी चुनौतियों से निपटना है। इन उपायों में वर्षा जल प्रबंधन, जलवायु अनुकूलन, गर्मी का प्रभाव नियंत्रित करना रखना, जैव-विविधता बढ़ाना और मानव केंद्रित उपायों (जैसे छाया एवं आश्रय) के साथ टिकाऊ ऊर्जा उत्पादन बढ़ावा शामिल हैं।
हरित अवसंरचना एक पारिस्थितिकी-तंत्र आधारित ढांचा तैयार करता है। यह ढांचा समुदायों के सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरण से जुड़े हितों की रक्षा करता है। इसे देखते हुए यह लाजिमी हो गया है कि शहरी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन एवं बढ़ते तापमान पर अंकुश लगाने के उपाय शहरीकरण की प्रक्रिया में अनिवार्य रूप से शामिल किए जाएं।
पर्यावरण अभियांत्रिकी के माध्यम से शहरी नियोजन पेचीदा शहरी चुनौतियों से निपटने की दिशा में टिकाऊ विकल्पों का मार्ग प्रशस्त करता है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति ने छठी समीक्षा रिपोर्ट में पारिस्थितिकी-तंत्र आधारित दृष्टिकोण जैसे शहरी नियोजन, शहरी वन एवं आर्द्रभूमि दोबारा बहाल करने और शुरुआती चेतावनी प्रणाली पर जोर दिया है।
वैश्विक स्तर पर हो रहे नवाचार हमें रहने लायक अधिक से अधिक शहर तैयार करने की महत्त्वपूर्ण सीख देते हैं। सिंगापुर हरित छत और ऊर्ध्वाधर उद्यान (वर्टिकल गार्डन) के जरिये गर्मी की समस्या से निपट रहा है।
न्यूयॉर्क सिटी में ‘कूल रूफ’ कार्यक्रम शुरू किया गया जिसमें धूप का असर कम करने के लिए घरों की छतों को सफेद रंग दिया गया है। इसी तरह, मेलबर्न में साल 2012 में 20 वर्षों की एक रणनीति अपनाई गई जिसमें शहरी वन क्षेत्र बढ़ाने पर जोर दिया गया और 2040 तक कैनोपी कवर (बढ़ते पौधों से छायांकित क्षेत्र) बढ़ाकर 60 फीसदी करने का लक्ष्य रखा गया है।
शहरी क्षेत्रों में तापमान कम करने की प्रभावी रणनीति में हरित अवसंरचना तैयार करना शामिल है। पार्क, उद्यान और हरित छतों की संख्या बढ़ाकर शहरों में तापमान काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसी तरह, शहरों में सड़कों एवं गलियों के किनारों और सार्वजनिक स्थानों पर हरियाली बढ़ाकर न केवल तापमान कम किया जा सकेगा बल्कि इससे वायु की गुणवत्ता भी सुधरेगी। इससे शहर अधिक सुंदर भी दिखेंगे।
एक दूसरा जरूरी माध्यम छतों एवं सतह को गर्म होने से बचाना है। ठंडी छतें सामान्य छतों की तुलना में सूर्य की रोशनी पीछे धकेल देती है और कम गर्मी अवशोषित करती हैं। इन छतों में विशेष सामग्री या परत का इस्तेमाल होता है जो तापमान रोधी होते हैं। इस तकनीक का इस्तेमाल कर पार्किंग, फुटपाथ एवं गलियों में भी सतह ठंडी रखी जा सकती है।
अत्यधिक गर्मी की समस्या दूर करने में प्रभावी जल प्रबंधन भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शहरी जल इकाइयां वाष्पशील शीतलन (इवैपरेटिव कूलिंग) के जरिये आस-पास की जगहों को ठंडा रख सकती हैं। इसके अलावा, तूफानी बारिश से आए जल का प्रबंधन एवं इसका बहाव रोकने के लिए वर्षा उद्यान एवं बायोस्वाल जैसे ढांचे भी शहरों में जल एवं पेड़-पौधों के साथ तापमान कम रखने में मदद करते हैं।
अगर शहरों का आकार थोड़ा छोटा रखा जाए तो यह नगरीय ऊष्मा प्रभाव कम करने में मदद कर सकता है। इसका एक फायदा यह होगा कि लंबे-चौड़े परिवहन तंत्र की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। घरों एवं इमारतों को अधिक हवादार बनाया जाए तो वातुकूलित मशीनों (AC) का इस्तेमाल कम होगा जिससे उष्मा उत्सर्जन भी घटेगा।
इन विविध रणनीतियों की मदद से शहरी क्षेत्र भीषण गर्मी एवं लू के असर को कम कर सकते हैं और शहरी जीवन को अधिक सुगम बना सकते हैं। इन रणनीतियों का एक और फायदा यह होगा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए हमारी तैयारी मजबूत होगी और भविष्य के लिए अधिक सुदृढ़ शहरी तंत्र तैयार हो पाएगा।
(कपूर इंस्टीट्यूट फॉर कंपेटटिवनेस इंडिया के अध्यक्ष और देवरॉय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष हैं। लेख में जेसिका दुग्गल का भी योगदान)