कोविड-19 महामारी से उत्पन्न हालात के बीच निर्यात के आंकड़े उत्साह बढ़ाने वाले हैं। वर्ष 2021-22 के पहले पांच महीनों में देश से वस्तुओं का निर्यात 67 प्रतिशत वृद्धि (2020-21 की समान अवधि की तुलना में) के साथ 164 अरब डॉलर रहा। यह भी सच है कि न्यून आधार प्रभाव से निर्यात में वृद्धि इतनी अधिक दिख रही है। मगर पिछले वर्ष अप्रैल-अगस्त 2020 के दौरान निर्यात 26 प्रतिशत फिसल कर 98 अरब डॉलर रह गया था और इस दृष्टिïकोण से निर्यात में सुधार शानदार रहा है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अप्रैल-अगस्त 2021 में 164 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात 2019 की समान अवधि की तुलना में 23 प्रतिशत अधिक था। पिछले एक दशक से अधिक अवधि में देश के निर्यात में इतनी वृद्धि नहीं देखी गई थी।
अब एक तर्क यह दिया जा सकता है कि पेट्रोलियम उत्पादों का मूल्य पिछले एक वर्ष की अवधि में करीब 50 प्रतिशत तक उछला है। इस वजह से इन उत्पादों की कीमतों में वैश्विक स्तर पर बढ़ोतरी से भारत के निर्यात के आंकड़े मजबूत रहे हैं। एक वर्ष के आधार पर तुलना करें तो यह तर्क वास्तव में सही भी है। भारत से होने वाले वस्तुओं के निर्यात में पेट्रोलियम उत्पादों का हिस्सा 14 प्रतिशत से अधिक होता है।
पेट्रोलियम, तेल एवं स्नेहक (पीओएल) शामिल नहीं करें तो अप्रैल-अगस्त 2021 में भारत का निर्यात अनुमानित 141 अरब डॉलर रहा, जो 2020 की समान अवधि के मुकाबले 57 प्रतिशत अधिक है। हालांकि अप्रैल-अगस्त 2019 की तुलना में गैर-पीओएल वस्तुओं का निर्यात 22 प्रतिशत के समान स्तर पर ही रहा। यानी भारत से वस्तुओं के निर्यात में व्यापक सुधार हुआ है। देश के निर्यात में शानदार वृद्धि उत्साह का विषय अवश्य है मगर निर्यात में शामिल वस्तुओं और इनकी दशा-दिशा का विश्लेषण भी आवश्यक है।
इनके विश्लेषण के बाद सामने आए निष्कर्षों से निर्यात में वृद्धि की प्रकृति समझने और जरूरत महसूस होने पर आवश्यक नीति तैयार करने में मदद मिलेगी। इससे निर्यात की गति में निरंतरता कायम रखने में भी सहायता मिलेगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत से सालाना निर्यात लगभग पिछले एक दशक से उतार-चढ़ाव वाला रहा है। वर्ष 2011-12 से 2020-21 के बीच निर्यात प्रति वर्ष 262 से 330 अरब डॉलर के सीमित दायरे में रहा है। इस दौरान कम से कम तीन बार सालाना निर्यात 300 अरब डॉलर से नीचे आ गया। इससे भी कष्टïकारक बात यह रही कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में निर्यात की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत से कम होकर पिछले दस वर्षों में लगभग 11 प्रतिशत तक रह गई।
अत: वर्तमान वर्ष में महत्त्वपूर्ण सुधार को देखते हुए अप्रैल-जून 2021 की अवधि के आंकड़ों से क्या सबक लिए जा सकते हैं? इनमें तीन बातें की अनदेखी नहीं की जा सकती। पहली बात यह कि भारत से चीन को होने वाला निर्यात बढ़ रहा है और इसके कई नीतिगत असर दिख सकते हैं। चीन से भारत में आयात पर सरकार पैनी नजर रख रही है मगर चीन को निर्यात में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि यह बढ़ रहा है। वर्ष 2020-21 में देश का निर्यात 7 प्रतिशत कम हो गया मगर चीन को होने वाला निर्यात 26 प्रतिशत तक बढ़ गया। भारत से चीन को निर्यात लगातार बढ़ता जा रहा है।
अप्रैल-जून अवधि में यह 6.75 अरब डॉलर के अनुमानित स्तर पर था, जो 2020 की समान अवधि की तुलना में 5.5 अरब डॉलर था।
यह सच है कि भारत के निर्यात में चीन की हिस्सेदारी अप्रैल-जून 2020 की 10 प्रतिशत से कम होकर अप्रैल-जून 2021 में 7 प्रतिशत रह गई है। मगर कोविड-19 महामारी के बाद चीन ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को पीछे धकेल कर भारत के लिए निर्यात के दूसरे सबसे बड़े केंद्र के रूप में जगह बना ली। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। चीन को होने वाला निर्यात इस पड़ोसी देश के प्रति भारत का रणनीतिक रुख तय करने में भी अहम भूमिका निभाएगा।
दूसरी अहम बात यह है कि वाहन उद्योग से होने वाला निर्यात अब भी सुस्त बना हुआ है। अप्रैल-जून अवधि में मोटर वाहन एवं कारों का निर्यात कम होकर 0.58 अरब डॉलर रह गया मगर 2021 की समान अवधि में सुधरकर 1.51 अरब डॉलर रह गया। वर्ष 2019-20 में वाहन एवं कार का अनुमानित निर्यात 7.8 अरब डॉलर रहा था मगर 2020-21 में यह कम होकर 5.1 अरब डॉलर रह गया। अब एक बड़ा प्रश्न है कि आने वाले दिनों में वाहन उद्योग निर्यात के मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन करेगा या नहीं। हमें यह याद रखना चाहिए कि भारत के वाहन उद्योग में निवेश करने से पहले निवेशक कार निर्यात पर जरूर नजर डालते हैं।
तीसरी अहम बात यह है कि अधिक रोजगार देने वाले क्षेत्रों ने शानदार वापसी की है। उदाहरण के लिए मोतियों एवं जवाहरात का निर्यात खासा सुधरा है। वर्ष 2013-14 में भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं में इनकी हिस्सेदारी 9 प्रतिशत थी और उस वर्ष इनका निर्यात 27 अरब डॉलर रहा था। यह हिस्सेदारी लगातार कम हो रही थी और 2019-20 तक इनका निर्यात 21 अरब डॉलर रह गया और कुल निर्यात में इनकी हिस्सेदारी भी घटकर लगभग 7 प्रतिशत रह गई। अप्रैल-जून 2020 में इस क्षेत्र को फिर झटका लगा और इसकी हिस्सेदारी कम होकर 3.5 प्रतिशत रह गई। हालांकि अप्रैल-जून 2021 में आंकड़ा सुधरा और मोतियों एवं जवाहरात का निर्यात बढ़कर 6.6 अरब डॉलर हो गया। देश से कुल निर्यात वस्तुओं में इनकी हिस्सेदारी भी बढ़कर 7 प्रतिशत तक हो गई।
मोती एवं जवाहरात क्षेत्र में हजारों लोग काम करते हैं और निर्यात आंकड़े सुधरने से इसमें रोजगार के नए अवसरों की उम्मीद भी बढ़ गई है। स्वर्ण आभूषण निर्यात में भी सुधार के संकेत हैं। 2020 में इस खंड पर भारी चोट पड़ी थी। 2020 में लॉकडाउन के दौरान स्वर्ण आभूषणों का निर्यात कम होकर 0.65 अरब डॉलर रह गया और कुल निर्यात में इस खंड की हिस्सेदारी भी कम होकर 1.26 प्रतिशत रह गई। अप्रैल-जून 2021 अवधि में स्वर्ण आभूषण निर्यात सुधरा है मगर कोविड-19 महामारी की धमक से पहले कुल निर्यात में 4 प्रतिशत हिस्सेदारी के स्तर से यह अब भी दूर है। इस क्षेत्र पर काफी ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि यह छोटे शहरों में हजारों लोगों को रोजगार देता है।
तैयार परिधानों, रेशे, इनसे बने उत्पाद एवं संबद्ध वस्तुओं का निर्यात भी 2021 में शानदार रहा है। 2020-21 की पहली तिमाही में इनका निर्यात प्रभावित हुआ था मगर अप्रैल-जून 2021 अवधि में कुल निर्यात में उन्होंने 3.7 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल कर ली है। अगर यह रुझान जारी रहा तो भारत के व्यापक निर्यात खंड में इनकी हिस्सेदारी और बढ़ सकती है।
इस क्षेत्र में रोजगार सृजन की भारी संभावनाएं हैं। निर्यात से लाभान्वित होने वाले सभी क्षेत्र रोजगार सृजित कर सकते हैं, खासकर शहरी क्षेत्रों में जहां कोविड-19 महामारी से कई लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। नीति निर्धारकों को निर्यात में आई तेजी को अवसर में बदलने से नहीं चूकना चाहिए। अगर वे इस अवसर का उपयुक्त इस्तेमाल नहीं कर पाए तो देश की विदेशी मुद्रा आय से अधिक रोजगार की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर होगा।