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एआई के दौर में मानवीय संवेदनाओं का महत्त्व

इससे कुछ नैतिक प्रश्न खड़े हो गए हैं। ये एआई एजेंट अपने लक्ष्य कैसे तय करते हैं? उन्हें किन बातों की परवाह होती है?

Last Updated- December 26, 2024 | 10:25 PM IST
Artificial Intelligence

आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) मानव से निर्देश लेने के बजाय स्वयं अपनी दिशा तय करने लगी है। जानकारी खोजने की आजादी से अब यह निर्णय लेने की आजादी तक पहुंच रही है। महज दो साल पहले आया चैटजीपीटी प्लेटफॉर्म इस्तेमाल करने में आसान है, बात कर सकता है और प्रश्नों के उत्तर दे सकता है। अब यह गूगल की खोज यानी सर्च करने की क्षमता से काफी आगे निकल गया है। दवा, वित्त और युद्ध कौशल जैसे कई क्षेत्रों में कई ताकतवर ‘एआई एजेंट्स’ उभरे हैं, जिन्हें काम करने के लिए मानवीय मदद की जरूरत ही नहीं है। ये एजेंट शब्द, छवि, सेंसर आदि से आसपास का माहौल भांप लेते हैं, सूचना का विश्लेषण करते हैं और तय उद्देश्य के मुताबिक निर्णय लेते हैं।

इससे कुछ नैतिक प्रश्न खड़े हो गए हैं। ये एआई एजेंट अपने लक्ष्य कैसे तय करते हैं? उन्हें किन बातों की परवाह होती है? जब ये तकनीक मानव जाति के जीवन की दिशा तय करने लगेगी तो मानव का जीवन कैसा हो जाएगा? हो सकता है कि दुनिया अधिक क्षमता के साथ चले मगर क्या न्याय होगा और एक-दूसरे की फिक्र रह जाएगी?

यह पहला मौका नहीं है, जब जीवन आसान बनाने के लिए मानव ने ऐसी तकनीकें ईजाद की हैं। 17वीं सदी में कानूनी जामा पहनने वाला पूंजीवादी कारोबारी संस्थान समाज का आर्टिफिशल नागरिक है, जिसे मानवों की ही तरह संपत्ति रखने, बोलने की स्वतंत्रता और अन्य नागरिकों (मानव तथा अन्य कंपनियां) पर मुकदमे करने का अधिकार दिया गया है। लिमिटेड लायबिलिटी कॉरपोरेशन भी कानून द्वारा गढ़ा गया स्वार्थी नागरिक है, जिसे निवेशकों को कम से कम जिम्मेदारी के साथ प्राकृतिक एवं मानव संसाधनों का जमकर शोषण करने देने के लिए बनाया गया है। कंपनियां आरोप लगाती हैं कि पर्यावरण और श्रम से जुड़े कानून कारोबारी सुगमता और मुनाफे में अड़चन बन रहे हैं। ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम प्रशासन’ का उनका विचार असल में सबके निजीकरण का विचार है, जिसमें कंपनियां और नागरिक होड़ करेंगे और सबकी डोर ‘बाजार के अदृश्य हाथ’ में होगी।

कंपनियों के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) एवं उनके निदेशक मंडल (बोर्ड) के सदस्य एक-दूसरे का ख्याल रखने वाले हो सकते हैं। कंपनी कानून के अंतर्गत उन पर कंपनियों के निवेशकों का हित सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी होती है। कंपनी में मानव जैसी संवेदना नहीं होतीं। लिहाजा सतर्क पूंजीवाद के पुरोधा कंपनियों के तौर तरीकों पर असर डालने के लिए संघर्ष करते हैं।

मानवीय संवेदना एवं विचारों के बगैर एआई भी दूसरी तकनीकों की तरह नैतिकता से हीन है। ऐसे में जिस एआई के असर को पूरी तरह समझा भी नहीं गया है, उसके नियंत्रण और प्रचार-प्रसार की छूट केवल अपने फायदे के लिए काम करने वाले कारोबारी प्रतिष्ठानों को देना अच्छी बात नहीं है। तकनीक के प्रति उत्साही लोग नई तकनीक के विरोध को प्रगतिवादी सोच के खिलाफ मानते हैं। उनका कहना है कि नई तकनीक मानव समाज के लिए हमेशा फायदेमंद रही है। मगर वे भूल जाते हैं कि समाज एवं अर्थव्यवस्थाओं को ऐसी तकनीक अपनाने में दशकों लग जाते हैं।

नोबेल से सम्मानित अर्थशास्त्री एवं ‘गुड इकनॉनिक्स फॉर हार्ड टाइम्स’ के लेखक अभिजित बनर्जी और एस्थर डुफ्लो का कहना है कि अर्थशास्त्रियों के मुक्त व्यापार समर्थक सिद्धांत सामाजिक यथार्थ को अनदेखा कर देते हैं। वे सामाजिक-आर्थिक व्यवस्थाओं की कमजोरियां समझाते हैं। उदाहरण के लिए अर्थव्यवस्थाओं से सरकारी नियंत्रण कम करने पर दीर्घ अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ सकता है मगर इस बदलाव में पूरी एक पीढ़ी लग सकती है और इस दौरान कई तरह के नफे-नुकसान भी हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन और कार्बन उत्सर्जन तेजी से कम करने के वैज्ञानिकों के उपाय यह नहीं सोचते कि इसमें दशकों लगेंगे और इस दौरान लोगों की आजीविका में कितना व्यवधान आएगा। उदार आर्थिक सुधारों में सरकारों की भूमिका न्यूनतम करने वाले तकनीकी बदलाव सबसे ऊपर रहते हैं और गरीब देशों में उनके कारण अरबों लोगों की रोजी-रोटी बिगड़ रही है।

तकनीकों का इस्तेमाल अच्छे के लिए भी हो सकता है और बुरे के लिए भी। रक्षा, वित्त और डिजिटल तकनीक उद्योगों के उत्पाद लोगों की भलाई के लिए इस्तेमाल हो सकते है मगर इनसे सामाजिक व्यवस्था तितर-बितर की जा सकती है और जीवन भी बरबाद किए जा सकते हैं। इन्हें कायदे में रखने की संस्थागत क्षमता इनके विकास जितनी तेज नहीं बढ़ पाई है। परमाणु प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग की आशंका उन्होंने रोकी, जिन्होंने खुद सबसे पहले इसका दुरुपयोग किया था और अब वे दूसरों को इससे दूर रहने की नसीहत दे रहे हैं। यह अनुचित बात है। एआई को ईजाद करने वाले कहते हैं कि फायदा और नुकसान पहुंचाने की इसकी क्षमता अब तक आई सभी तकनीकों से ज्यादा है। मामला हाथ से निकल जाए, इससे पहले ही रक्षा, वित्त, सिंथेटिक जीव विज्ञान और एआई तकनीक के आगे के विकास तथा प्रसार का कारगर नियमन जरूरी है। इसके लिए चार रास्ते अपनाए जा सकते हैं।

सबसे पहले हमें नियमन में संजीदगी से सहयोग करना चाहिए। बड़ी कंपनियों (रक्षा, वित्त, तकनीक, स्वास्थ्य आदि) के सीईओ एवं निवेशक अक्सर दिखाते हैं कि उन्हें लोगों के हितों की चिंता है। मगर हकीकत यह है कि वे कंपनी के शेयरधारकों के तुच्छ हितों को ही बढ़ावा देते हैं। धन बल और उससे खरीदे गए वकीलों तथा विशेषज्ञों के दम पर वे नागरिक समाज की आवाज दबा देते हैं। उन्हें दूसरों के विचार सुनना भी सीखना चाहिए और सभी नागरिकों की भलाई के लिए नियम-कायदे तैयार करने में सहयोग करना चाहिए।

दूसरा रास्ता संस्थागत नवाचार से जुड़ा है। पिछली कई सहस्राब्दियों में मानव जाति ने तकनीकी और संस्थागत नवाचार में बहुत प्रगति की है। चुनावी लोकतंत्र भी नवाचार है मगर इसका इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। सभी नागरिकों (अमीर, गरीब एवं महिलाओं) के अधिकारों की समान सुरक्षा के लिए कानून अभी बन ही रहे हैं। शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनी भी संस्थागत नवाचार है, जो इस समाज में कानून की मदद से गढ़ी गई स्वार्थी नागरिक है। अब एक असली सामाजिक उद्यम खड़ा करने का समय आ गया है, जो सभी पक्षों और विशेष रूप से समाज के लिए कानूनी तौर पर जवाबदेह हो, वित्तीय मदद देने वालों के लिए नहीं।

तीसरा रास्ता कंपनी नेतृत्व को बढ़ावा देने से जुड़ा है। शेयर बाजार किसी अर्थव्यवस्था या कंपनी का आकलन नहीं कर सकता। कई युवा बेहतर दुनिया बनाना चाहते हैं मगर उसका तरीका उन्हें नहीं पता। उन्हें बेहतर प्रेरणा चाहिए। दुनिया को कंपनी जगत में ऐसे लोगों की जरूरत है जो मानवीय और नैतिक मूल्यों को अपने कारोबार के वित्तीय मूल्यांकन से ज्यादा अहमियत दे सकें। प्रबंधन स्कूलों एवं कारोबारी मीडिया को स्टार्टअप मालिकों और अरबपतियों के महिमामंडन के बजाय ऐसे लोगों की कहानियां सामने लानी चाहिए। जब मैं बिजनेस स्कूलों और कारोबारी मीडिया के अपने दोस्तों से इसकी वजह पूछता हूं तो वे कहते हैं कि उन्हें भी तो धंधा चलाना है। उन्हें बाजार को वही देना पड़ता है, जो बाजार चाहता है। बेहतर भविष्य गढ़ने का जरिया बनने के बजाय वे भी लोगों की फरमाइश पूरी करने में जुट गए हैं।

(लेखक हेल्पएज इंटरनैशनल के चेयरमैन हैं)

First Published - December 26, 2024 | 10:18 PM IST

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